“IPS मैडम ने थप्पड़ मारा तो मंत्री का बेटा बोला – जानती हो मेरा बाप कौन है”

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दोपहर की तेज़ धूप में शहर के मुख्य चौराहे पर ट्रैफिक का रोगी जहां-तहां फर्श पर पसीने के छींटे उगल रहा था। इधर–उधर चलती मोटरसाइकिलें, ऑटो-रिक्शा और कारें एक-दूसरे से टकराने को बेचैन थीं, सायरन की चिलियाहट और हॉर्न विज़्ज़–विज़्ज़ की बेजोड़ कशमकश बीच सड़क पर खड़े लोगों को घबराहट में छोड़ रही थी। अचानक सड़कों की हाय-तौबा में एक वीरान-सी खामोशी घुल गई, जब यातायात पुलिस की एक जीप ने हड़बड़ी भरे सुर में बीच चौराहे पर रुकावट डाली। जीप के पीछे से चार सिपाही उतरे, उनके पीछे पीली पगड़ी बँधी, पर सबसे आगे सीधी कंधों वाली एक महिला अधिकारी थी, जिसके कदमों की ठोकरें मानो ठहराव की बुलंद इरादों की घोषणा थीं।

उस महिला का नाम रचना सिंह था, सहायक पुलिस आयुक्त। पुलिस की वर्दी उसके तन पर इस तरह सजी थी मानो उसमें सीधी–सादी ढंग से बैठी गर्वमयी शक्ति हो। उसने हाथ उठाया तो मोटर चालकों ने झट से गियर छोड़ा और सड़क के कोने पर खड़े हो गए। रचना ने धीमी आवाज़ में कहा, “सभी लोग सड़क के किनारे खड़े हो जाइए, यातायात बहाल करना है।” उसके आदेश का कोई विरोध नहीं हुआ। वह खुद तेज़ी से बीच सड़क में आई, चारों ओर खड़े सिपाही उसकी सुरक्षा कवच थे, पर वह जगज़ाहिर लक्ष्य की ओर एकाकी बढ़ रही थी।

तभी तेज़ रफ्तार से एक काली लग्जरी कार चौराहे के करीब आई। कार की धक्कड़ गति ने सड़क पर खड़े लोगों को धक्का दे दिया। बुरी तरह टूटी–फूटी सड़क के उत्थान–पतन के बीच किशोरावस्था से निकली तरह होकर लोगों ने खुद को किनारे कर लिया। पर रचना ने पाँव नहीं पीछे खींचे। गाड़ी बीच सड़क पर ठहरी, गाड़ी का दरवाज़ा खुला और बाहर निकला एक नौजवान, जिसकी उम्र बीस–इक्कीस के क़रीब थी। उसने जबर्दस्त ठाठ से जैकेट का कॉलर उठाया हुआ था, बाल पीठ पर पड़ी चिकनाई में अँधेरे से लिपटे हुए थे, पर चेहरा पस्त पाप से भी सख्त था। चश्मा ऊपर सरकाकर उसने रास्ता देखा और तेवर से बोला, “ओ मैडम, लगता है आज सूरज भी तुमसे जल रहा है। इतनी लटकनवाली वर्दी में खड़ी हो—चौराहा संभालने या दिल चोरी करने?”

उसकी यह हरकत सुन कर चारों ओर खड़े पुलिस वाले आह भर गए। लेकिन रचना की नीली आँखों में जरा सा भी भय या धड़कन नहीं थी। वह बस बिलकुल स्थिर खड़ी रही। फिर अचानक उसकी हथेली ने नौजवान के गाल पर ऐसा तमाचा जड़ दिया कि धूप में गूँजती तान उसके कानों पर थपाट सुनाई दी। युवक एक पल के लिए जमीन पर गिरने–उठने के बीच झूल गया, गर्दन से आकाश देखता हुआ बोला, “तुम्हें पता भी है तुमने मुझे थप्पड़ मारा? मैं राघव हूं, मंत्री राधेश्याम का बेटा, पूरे शहर में मेरा नाम चलता है। इस वर्दी की हिम्मत कैसे हुई मुझे थप्पड़ मारने की?”

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रचना ने बांह तानी, जैसे कोई जज अपनी पलटकर पलटकर देखी आपराधिक पांडुलिपि को लहराता हो। उसने कहा, “नाम सुनने से इज़्ज़त नहीं मिलती, बर्ताव से मिलता है। तुम्हारी अभद्र भाषा का यही जवाब है।” राघव ने जीभ उगल दी, जेब से मोबाइल निकाला, उसके ठूँठे से अवाज में टेलीफोन पर चिल्लाया, “पापा, देखो यह औरत कौन होती है मैंने थप्पड़ मारने वाली। काली गाड़ी में खड़ा था मैं, रोकने पर थप्पड़ जड़ दिया। आओ, सज़ा दिलाओ।” उन्होंने कॉल काटा, पर रचना पहले से तैयार थी। उसने अपनी कंधे की वायरलेस यूनिट पकड़ी और फुसफुसाई, “यूनिट चार को अलर्ट करो। स्थिति नियंत्रण से बाहर हो रही है। मुझे मंत्री पोशाक के गुंडों से ख़तरा है।”

मंत्रिमण्डल में जम चुकी सत्ता की गूँज सड़क की गूँज से तेज़ थी। आधे ही मिनट में बाजू में लगे मुखबिर पुलिसकर्मी ने कान में फुसफुसाया कि मंत्री राधेश्याम आ रहे हैं। कुछ ही क्षणों में पीछे से आई गाड़ी रुकी, और वहाँ उतरे मंत्री राधेश्याम—लाल बत्ती वाली कार में बाहर उतरते ही जिसने ज़माने का वज़न अपने कंधे पर ढो रखा हो। उसने चेहरे पर बिफरी हुई गहरी लकीरों से रचना का मुंहतोड़ जवाब माँगा। उसने ज़ोरदार स्वर में कहा, “तुम्हारी नौकरी ठहर गई। तुम्हें लाइन हाजिर करो या कुर्सी छोड़ दो।” रचना ने ठंडे स्वर में उत्तर दिया, “आप वही हैं जो सत्ता के दम पर कानून को ट्विस्ट कर देते हैं। आज सामने वर्दी है जो किसी से डरती नहीं।”

मामले का वीडियो कोई खड़े प्रेस फोटोग्राफर ने तुरंत लाइव कर दिया था। मोमेंट की गर्माहट सोशल मीडिया तक पहुँच गई। विपक्षी पार्टियों के नेता ट्वीट करने लगे, “क्या एक अधिकारी की हिम्मत सत्ता के अतिरेक को बचा पाएगी?” मंत्रिमण्डल में मौन छा गया। राधेश्याम ने फिर चिल्लाकर कहा, “अगर वर्दी उतारोगी तो रखूँगा इस चौराहे पर ऐसा तमाशा…” पर रचना ने मुस्कुरा कर कहा, “वर्दी उतार लूँगी, पर इंसाफ नहीं छोड़ूंगी।”

भीड़ खामोश थी, चक्कर में कर्मवश कुछ लोग चिल्ला उठे, “वन मोर थप्पड़!” तभी मंत्री के एक गुर्गे ने हाथ बढ़ाया, प्रहार की मुद्रा में। रचना ने बीस साल की कड़ी ट्रेनिंग की पाई-पाई याद कर उस गुर्गे का हाथ दबोचा, जोर से घुमा दिया और ज़मीन पर पटक दिया। उसकी गूँज पर बाकी गुंडे दो कदम पीछे हो लिए। चौराहे की धूल में लाल पसीना रंग गया। राधेश्याम ने नहीं पहचाना कि यह लड़ाई अब सिर्फ नौजवान की वज़नदारी बनाम सास्कृतिक घमंड की नहीं रही। यह न्याय बनाम अवमान की जंग थी।

महाराष्ट्र का पूरा मीडिया अगली सुबह मामले की आवाज़ उठा चुका था। रचना को शाम तक ज्ञापन भेजा गया कि वह फौरन बचाव के लिए रिपोर्ट लिखे, वरना निलंबन। उसी ऐलान ने रचना के कानों में उस कार्यालय की टेबलों से कराहन निकलवाया, जहाँ फाइलों के पंखे चूकर भ्रष्टाचार की धूल उड़ाते थे। पर वह चुप न रही। उसने DGP को फोन किया—“तबादला हुआ तो पूरे सिस्टम को अदालत में चैलेंज कर दूंगी।” डीजीपी चुप रहे। अगले ही दिन उसके छोटे भाई को एक थाने में फंसा दिया कि कॉलेज में झगड़ा किया। रचना खुद थाने पहुँची, हवलदारों की मंडी में जैसे सत्याग्रह कर रही हो, चिल्लाई—“जो भी आदेश है लिखित दो, वरना मैं कोर्ट में चुनौती दूँगी।” किसी के पास लिखित आदेश न था।

रचना ने फिर ठान लिया कि अब वह बचने की मुद्रा नहीं, आक्रमण का मोर्चा खोलेगी। उसने राघव के पुराने मामले खंगाले—नशे में धुत्त रोज़ा तोड़ना, लाइसेंस बगैर होली मनाना, सब पुराने गुनहगार रजिस्टर में दर्ज थे। हर केस को खंगालकर उन्होंने मीडिया प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबूतों के साथ रखा। लोगों ने पूछा, “उस राजकुमार को कौन लेता था वर्दी से ऊँचा?” एकजुटता के बीच मंद-मंद ताली बजने लगी। मंत्री राधेश्याम ने झट से इस्तीफ़ा देने की धमकी पोस्ट किया, सोशल मीडिया पर खुद को शोषण–विरोधी बता दिया। पर लोग मांगने लगे, “हम सिर्फ थप्पड़ का हिसाब नहीं मांग रहे, सिस्टम को भी खंगालो।”

एक रात रचना की गाड़ी का ब्रेक अचानक फेल हो गया। तेज मोड़ के पास बल्लभगढ़ रोड तक वह गाड़ी अनियंत्रित घुमी; पर ब्रेक वाल्व में लगे नए सेंसर ने अलार्म बजा दिया, रचना ने सोचा—ये कोई हादसा नहीं, साजिश है। अगले दिन फिर सीसीटीवी फुटेज वो ख़ुद मीडिया को सौंप दिया कि किस तरह किसी ने उसकी जान लेनी चाही। अब राधेश्याम के गुर्गों ने मुकदमे की रीढ़ तोड़ने के लिए झूठा महिला उत्पीड़न का केस दर्ज करवाया। उन्होंने एक महिला कांस्टेबल को खरीदा और इसपर मोर्चा खोल दिया। पर रचना ने कांस्टेबल की पुरानी सर्विस रिपोर्ट निकाल कर प्रेस में प्रकाशित करवा दी कि वह वक्त के साथ कितनी बेइमानी कर चुकी है। केस दब गया।

दिन-प्रतिदिन हर नई चाल के पीछे गहरी साज़िश छुपी थी, मगर रचना हर मोड़ पर दस्तावेज के पहाड़ों से पलटकर साबित कर देती कि सच दमदार होता है। जो अफसर साथ खड़े रहते, उनको पहले लाइन से हटाया गया, पर रचना ने उनका मनोबल बनाए रखा—“आज तुम्हें सस्पेंड कर सकते हैं, पर कल तुम्हारी बहादुरी की मिसाल पूरे देश में गूंजेगी।” इस हौसले ने अन्य महिला अधिकारियों जो डर से सिर झुकाए खड़ी थीं, उनमें नई ललक जगा दी। वे रचना के आगे–पीछे खड़ी हो गयीं, एक क़ानूनी मोर्चा खड़ा हुआ—‘लेडी पुलिस आफ़िसर्स यूनाइटेड’।

समर्थन के साथ–साथ विरोध भी तेज़ हुआ। राधेश्याम ने एक नकली वीडियो बनवाया जिसमें रचना को घूस लेते दिखाया गया। तकनीकी विशेषज्ञों ने एडिट हुए फुटेज उजागर कर दुनिया को बताया कि यह फ़र्ज़ी निर्माण है। मंत्री जी का चेहरा सबके सामने बेनकाब हुआ, लेकिन उसके पास आख़िरी दांव था—पुरानी बलात्कार की शिकायत, उसके बेटे के खिलाफ दर्ज दलित लड़की से जुड़े केस को दबाने का मुकदमा। इन जानकारियों को रचना ने खंगाला, अदालत में पुनः खोलने की याचिका बनाई। अगले ही दिन हाई कोर्ट ने २४ घंटे में पीड़िता और अभियुक्त, दोनों पक्षों के दस्तावेज़ तलब कर लिए।

राधेश्याम की नींद उड़ गयी—जिस केस को उसने दस साल तक धूल में दबा रखा, उस केस के पुनः खोलने से उसका ताज गिरने वाला था। रात को रचना सिविल ड्रेस में गुप्त रूप से एक रिटायर्ड पत्रकार के पास गई, जिसने उस समय की रिपोर्टिंग बंद कर दी थी। ले गए पुराने फ़ुटेज और मौन कर दिया गया मिथ्या आरोपों का पहाड़। सुबह अदालत में वह फ़ुटेज सबके सामने रख दिया गया—पीड़िता की लहू से सनी आवाज़ गूँजी, “हम लड़ते रहेंगे।” अदालत के दरवाज़े पर राधेश्याम विकट शिकस्त से कांप रहा था, जब समन उसके बंगले पर पहुँचा।

IPS मैडम के मंत्री के बेटे ने बिच चौराहे पर मारा थप्पड़ ; फिर IPS मैडम ने  जो किया ..... - YouTube

फिर उस दिन हुआ वो निर्णायक पल, जब राधेश्याम के बेटे को कोर्ट परिसर में लाया गया। कैमरे उसके चेहरे को कैद किए, पर उसकी दृष्टि केवल एक तरफ थी—वहाँ रचना खड़ी थी, हाथ में पीड़िता के दस्तावेज लिए, वर्दी की चाबी को सीने से गूंथा हुआ। गवाह पेश हुए, पुराने अधिकारी ज्यों-ज्यों बयान देते गए, मंत्री का महल ढहने लगा। अचानक कोर्ट के बाहर बम ब्लास्ट से भगदड़ मची, पर रचना पहले से तैयार थी—दौड़ कर मंत्री पुत्र को उसी भीड़ से अलग पकड़ लिया। एक थप्पड़ और पड़ा, पर अब यह थप्पड़ सत्ता के लिए नहीं, उन लाखों लड़कियों के लिए था जिन्हें अकेलेपन में लाठी-डंडे सहने पड़ते थे।

जज के आदेश से मंत्री पुत्र को १७ वर्ष की सज़ा मिली। उसी दिन राधेश्याम पर ध्वनि स्वीकार राज को तोड़ने, बलात्कार केस में संलिप्तता वगैरह के आरोप तय हुए। जब सुनवाई ख़त्म हुई, रचना ने कोर्ट हॉल से बाहर निकलते ही अपने वकील मित्रों से कहा, “यह आख़िरी नहीं, बस शुरुआत है।” फिर उन्होंने ‘शुद्धि’ नामक अभियान शुरू किया—हर महिला थाने में महिला हेल्पडेस्क, हर पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी, हर यातायात चौराहे पर महिला अधिकारी। पूरे प्रदेश में महिला सुरक्षा का मानदंड बदला गया।

कुछ महीनों बाद जब मंत्री जी की जमानत अर्जी खारिज हुई, तो बड़ी-छोटी लड़कियाँ भी सड़कों पर फूल बरसा रहीं थीं। मस्जिद से निकलती बुजुर्ग महिलाएं जयकारे लगा रहीं थीं—“रचना मैडम की जय!” पर रचना ने एक बार भी आत्ममुग्ध न होकर कहा, “मैं सिर्फ कर्ता हूँ। ये वर्दी अब आग नहीं, मशाल है।” मंदिर के प्रांगण में पूजा करते समय एक बुजुर्ग महिला ने प्रणाम करते हुए कहा, “बिटिया, तूने हमें हौसला दिया।” रचना की आँखों में आँसू थे—न डर के, बल्कि बदलाव की खुशी के।

अब राजधानी में किसी भी चेहरे पर अश्वेत नाम सुन कर डर नहीं, बल्कि उम्मीद की किरण है। सड़क पर कोई मंत्री पुत्र गाली कूली करने से पहले दस बार सोचता है, क्योंकि उसे खबर है—कोई एक महिला अधिकारी हो, जिसके भीतर आदर्शों की लौ जल उठी हो। अब रचना सिर्फ एक अफ़सर नहीं, न्याय की प्रतिमूर्ति बन चुकी थी। उसकी उस थप्पड़ ने तंत्र के घमंड को उसी के खेल में उलट दिया, और साबित कर दिया कि जब वर्दी नेक इरादों की मिले, तो अवमान की हर दीवार धूल में मिल सकती है। यही सच्ची क्रांति थी, परिवर्तन का चेहरा, जिसे न तो कोई अदालत हरा सकती थी, न कोई साज़िश झुण्डा सकती थी।