Ips Officer और किन्नर के बिच बहस | उसके बाद किन्नर ने जो किया Ips Officer कहानी
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सत्ता, अपमान और इंसानियत: एक किन्नर की ममता और बेटे की बदला कहानी
शहर के सबसे ताकतवर और क्रूर पुलिस अफसरों में से एक था आईपीएस सिकंदर सिंह। उसका नाम जितना शाही था, उसके कारनामे उतने ही संगीन थे। उसकी वर्दी पर लगे सितारे उसकी कामयाबी की नहीं, बल्कि उसके जुल्म और घूसखोरी की गवाही देते थे। उसका दफ्तर गरीबों के लिए इंसाफ का मंदिर नहीं, बल्कि एक ऐसी मंडी था जहां इंसाफ नीलाम होता था। कमजोर औरतों की इज्जत से खिलवाड़ करना, बेगुनाहों पर हाथ उठाना और दौलत के लिए किसी भी हद तक गिर जाना उसकी आदत बन चुकी थी। सत्ता का नशा शराब के नशे से भी ज्यादा गहरा था और सिकंदर इन दोनों नशों में हर पल डूबा रहता था।
एक दिन सिकंदर के आलीशान बंगले में खुशियों की शहनाई बजी। घर में एक बेटे ने जन्म लिया। सिकंदर की छाती गर्व से चौड़ी हो गई। उसे लगा जैसे उसकी सल्तनत को अब एक वारिस मिल गया है। उसने अपने बेटे का नाम जोरावर रखा, जिसका मतलब होता है शक्तिशाली। शहर भर में मिठाइयां बांटी गईं और बड़े बड़े अफसर और नेता उसे बधाई देने आने लगे।
यह खबर शहर के उस कोने में भी पहुंची जहां समाज की मुख्यधारा से अलग किन्नरों की एक बस्ती थी। उनकी सरदार, गुलाब रानी, एक उम्रदराज और नेक दिल किन्नर थी। उनके चेहरे पर जिंदगी के थपड़ों की झुर्रियां तो थीं, लेकिन आंखों में एक अजीब सी ममता और रूहानियत थी। जैसे ही उन्हें पता चला कि शहर के सबसे बड़े ऑफिसर के घर बेटा हुआ है, उन्होंने अपनी टोली को तैयार किया। यह उनकी सदियों पुरानी रीत थी। किसी के घर खुशी हो तो जाकर दुआएं देना, नाचना गाना और बदले में जो भी इनाम मिले उससे अपना गुजारा करना।
शाम का वक्त था। गुलाब रानी अपनी टोली के साथ सिकंदर के बंगले के बाहर पहुंची। ढोलक की थाप और घुंघरूओं की खनक के साथ उन्होंने नाचना गाना शुरू कर दिया। उनकी आवाजों में एक सच्ची खुशी थी। एक ऐसी दुआ थी जो दिल से निकल रही थी। बंगले के अंदर मौजूद औरतें और नौकर चाकर बाहर आ गए। सिकंदर की पत्नी ने नौकर के हाथ कुछ पैसे और मिठाई भिजवाई। लेकिन किन्नरों ने कहा कि वे साहब के हाथ से ही इनाम लेंगे। यह उनका हक था। उनकी परंपरा थी। वे सब इंतजार कर रहे थे।
तभी एक शानदार गाड़ी गेट के अंदर दाखिल हुई। गाड़ी से आईपीएस सिकंदर सिंह उतरा। उसकी चाल में लड़खड़ाहट थी और आंखें गुस्से से लाल थीं। आज उसका दिन अच्छा नहीं गुजरा था। किसी मंत्री से उसकी बहस हो गई थी और ऊपर से उसने काफी शराब भी पी रखी थी। घर के बाहर किन्नरों का शोर सुनकर उसका पारा और चढ़ गया।
गुलाब रानी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ी और बोली, “साहब, मुबारक हो। अल्लाह आपके बेटे को लंबी उम्र दे। हम अपनी नेक दुआएं देने आए हैं। बस बच्चों की मिठाई का इनाम दे दीजिए।”
सिकंदर ने घृणा भरी नजरों से उन्हें देखा। शराब और सत्ता का नशा उसके सिर पर चढ़कर बोल रहा था। वह गरज कर बोला, “ए हट यहां से भिखारी कहीं के। मेरा घर है। कोई नाच घर नहीं जो मुंह उठाकर चले आए। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे दरवाजे पर आकर भीख मांगने की?”
गुलाब रानी और बाकी किन्नर सन्न रह गए। उनकी आंखों में खुशी की चमक अचानक बुझ गई। गुलाब रानी ने हाथ जोड़कर कहा, “साहब, हम भीख नहीं मांग रहे। यह तो हमारी रीत है। हम दुआएं देने आए हैं। दुआएं।”
सिकंदर जोर से हंसा। “तुम्हारी दुआओं की जरूरत नहीं है मुझे। तुम लोग समाज पर एक कलंक हो। ना मर्द, ना औरत। जाओ यहां से। वरना धक्के मार कर बाहर निकलवा दूंगा।”
यह सुनकर गुलाब रानी की आंखों में आंसू आ गए। अपमान का घूंट पीना मुश्किल हो रहा था। उन्होंने कहा, “साहब, आप बड़े अफसर हैं लेकिन इस तरह किसी गरीब की आत्मा को दुखाना आपको शोभा नहीं देता। हम बस अपना हक मांग रहे हैं।”
सिकंदर आग बबूला हो गया। “मैं बताता हूं तुझे तेरा हक।” और यह कहते हुए उसने एक जोरदार चांटा गुलाब रानी के गाल पर जड़ दिया। थप्पड़ की आवाज ढोलक की आवाज से भी ज्यादा गूंजी। गुलाब रानी लड़खड़ा कर गिर पड़ी। उनकी टोली के बाकी किन्नर उन्हें उठाने दौड़े।
उस एक छांटे ने सिर्फ उनके गाल पर नहीं बल्कि उनके पूरे वजूद, उनकी आत्मा पर चोट की थी। गुलाब रानी की आंखों से आंसू बह रहे थे लेकिन अब उन आंसुओं में ममता नहीं, अपमान की एक ज्वाला धड़क रही थी। वह धीरे से उठी, अपनी साड़ी का पल्लू ठीक किया और सिकंदर की आंखों में आंखें डालकर बोली, “हम दुआ भी देते हैं और बद्दुआ भी। पर आज हम सिर्फ इतना कहेंगे—अल्लाह तेरा भला करे, सिकंदर सिंह।”
उनकी आवाज में इतना दर्द और इतनी गहराई थी कि एक पल के लिए सिकंदर भी कांप गया, लेकिन फिर उसने घमंड में अपना मुंह फेर लिया। किन्नरों की टोली चुपचाप बिना कोई और शब्द कहे उस बंगले से लौट गई। उनके घुंघरूओं की आवाज अब नहीं आ रही थी, लेकिन उनके अपमान की गूंज उस रात के सन्नाटे में दूर तक सुनाई दे रही थी।
उस रात एक बाप के घमंड ने कई मांओं जैसी आत्माओं को जख्मी कर दिया था। और आसमान में शायद कुछ लिखा जा रहा था जिसकी खबर सिकंदर को बिल्कुल नहीं थी।
सिकंदर के बंगले से अपमानित होकर लौटने के बाद गुलाब रानी और उनकी टोली के दिलों में अपमान की आग जल रही थी। वह चांटा सिर्फ एक गाल पर नहीं बल्कि किन्नर समाज की इज्जत पर पड़ा था। कई दिनों तक उनकी बस्ती में मातम जैसा सन्नाटा पसरा रहा। गुलाब रानी घंटों तक चुपचाप बैठी रहती। उनकी आंखों के सामने बार-बार सिकंदर का घमंडी चेहरा और उसके कड़वे शब्द घूमते रहते। वह अल्लाह से सवाल करती, “या अल्लाह, क्या हमारा कोई वजूद नहीं? क्या हम इंसान नहीं? हमारा अपमान करने का हक इन दौलत और ताकत वालों को किसने दिया?”
एक रात जब शहर में तेज बारिश हो रही थी, गुलाब रानी को अपनी बस्ती के पास एक मंदिर की सीढ़ियों से किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी। वह दौड़कर वहां पहुंची। उन्होंने देखा कि कपड़े में लिपटा एक नन्हा सा बच्चा ठंड से कांप रहा था। किसी ने उसे मरने के लिए छोड़ दिया था। गुलाब रानी ने उस बच्चे को उठाया और अपने सीने से लगा लिया।
उस बच्चे के स्पर्श ने जैसे उनके अंदर की सारी कड़वाहट और दर्द को सोख लिया। उन्हें लगा जैसे अल्लाह ने उनकी दुआओं का जवाब दे दिया है। यह बच्चा बदला नहीं बल्कि एक जवाब था। नफरत का जवाब मोहब्बत से, अपमान का जवाब सम्मान से। गुलाब रानी उस बच्चे को अपने घर ले आई। पूरी बस्ती में खुशी की लहर दौड़ गई।
उन्होंने उस बच्चे का नाम आफताब रखा, यानी सूरज। उन्होंने तय कर लिया कि वह इस आफताब को इतना पढ़ाएंगी, इतना काबिल बनाएंगी कि वह आसमान में चमक कर सिकंदर जैसे हजारों घमंडी लोगों की आंखों को चौंधिया दे। वह उसे एक ऐसा इंसान बनाएंगी जो गरीबों और मजलूमों का दर्द समझे, जो इंसाफ करे, जो वर्दी की इज्जत करे। उन्होंने कसम खाई कि वह आफताब को एक आईपीएस ऑफिसर बनाएंगी।
दूसरी तरफ सिकंदर सिंह की दुनिया धीरे-धीरे उजड़ रही थी। उसका बेटा जोरावर, जो उसकी आंखों का तारा था, एक साल का होते-होते अजीब तरह से बीमार रहने लगा। बड़े-बड़े डॉक्टरों को दिखाया गया, लाखों रुपए पानी की तरह बहा दिए गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। एक दिन डॉक्टरों ने बताया कि जोरावर के शरीर के दाहिने हिस्से को लकवा मार गया है। उसे फालिस हो गया था।
यह सुनकर सिकंदर और उसकी पत्नी पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा। जिस बेटे के दम पर वह अपनी सल्तनत को आगे बढ़ाने का सपना देख रहा था, वह अब खुद बिस्तर पर बेजान पड़ा था। सिकंदर का घमंड और गुस्सा अब चिड़चिड़ाहट में बदल गया। वह पहले से ज्यादा शराब पीने लगा और अपने मातहतों पर और ज्यादा जुल्म करने लगा। उसकी घूसखोरी और बदसलूकी की शिकायतें ऊपर तक पहुंचने लगीं। उसके खिलाफ एक गुप्त जांच बैठाई गई।
एक दिन उसे एक बड़े व्यापारी से रिश्वत लेते हुए हाथों पकड़ लिया गया। यह खबर आग की तरह फैल गई। मीडिया ने उसके पुराने सारे कारनामे उजागर कर दिए। औरतों से बदसलूकी के किस्से, आम लोगों पर हाथ उठाने की घटनाएं सब एक-एक करके सामने आने लगीं। सरकार पर दबाव बढ़ा और कुछ ही हफ्तों में आईपीएस सिकंदर सिंह को सस्पेंड कर दिया गया। उसकी वर्दी छीन ली गई। गाड़ी और बंगला खाली करवा लिया गया। जो लोग कल तक उसके आगे पीछे घूमते थे, आज उसे देखकर रास्ता बदल लेते थे।
सत्ता का सूरज डूब चुका था और सिकंदर जमीन पर आ गिरा था। वह अपने बीमार बेटे को लेकर एक छोटे से किराए के मकान में रहने पर मजबूर हो गया।
इस पूरे समय में दूसरी ओर आफताब गुलाब रानी और पूरे किन्नर समाज की देखरेख में बड़ा हो रहा था। उन्होंने अपना पेट काटकर आफताब को शहर के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ाया। आफताब ने भी उन्हें कभी निराश नहीं किया। वह पढ़ाई में बहुत तेज था, लेकिन उससे भी ज्यादा वह एक रहमदिल और ईमानदार लड़का था।
गुलाब रानी ने उसे बचपन से ही सिखाया था कि सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है और सबसे बड़ी ताकत ईमानदारी। आफताब अपनी मां, गुलाब रानी और अपनी मासियों से बहुत प्यार करता था। वह उनके संघर्ष और समाज में उनके अपमान को महसूस करता था और उसके दिल में यह आग जलती थी कि उसे कुछ बनकर दिखाना है ताकि कोई फिर कभी उनकी तरफ उंगली न उठा सके।
साल बीतते गए। सिकंदर गुमनामी के अंधेरे में खो गया। अपनी किस्मत और भगवान को कोसता रहा। उसका बेटा जोरावर व्हीलचेयर पर आ गया था और आंखों में हमेशा एक खालीपन रहता था।
वहीं आफताब ने अपनी मेहनत और लगन से यूनिवर्सिटी में टॉप किया और फिर पूरी शिद्दत से सिविल सेवा परीक्षा यूपीएससी की तैयारी में जुट गया। उसका एक ही सपना था आईपीएस बनना। वह उस वर्दी को पहनना चाहता था जिसे सिकंदर सिंह जैसे लोगों ने दागदार किया था और उसे फिर से इंसाफ और सम्मान का प्रतीक बनाना चाहता था।
कई सालों की कड़ी मेहनत, रातों की नींद और दिन के चयन को कुर्बान करने के बाद आखिरकार वह दिन आ ही गया जब सिविल सेवा परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ। आफताब का नाम सफल उम्मीदवारों की सूची में चमक रहा था। उसने ना केवल परीक्षा पास की थी बल्कि इतनी अच्छी रैंक हासिल की थी कि उसे भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) मिलना तय था।
उस दिन गुलाब रानी की बस्ती में दिवाली मनाई गई। गुलाब रानी की आंखों से खुशी के आंसू रुक नहीं रहे थे। उन्होंने आफताब को गले लगाकर कहा, “बेटा, आज तूने हमारा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। आज तूने साबित कर दिया कि इंसान अपनी पहचान जन्म से नहीं कर्म से बनाता है।”
ट्रेनिंग पूरी करने के बाद किस्मत का खेल देखिए। आईपीएस ऑफिसर आफताब की पहली पोस्टिंग उसी शहर में हुई जहां कभी सिकंदर सिंह का आतंक हुआ करता था।
आफताब ने चार्ज संभालते ही अपने काम करने के तरीके से लोगों का दिल जीतना शुरू कर दिया। उसका दफ्तर हमेशा गरीबों और मजलूमों के लिए खुला रहता था। वह लोगों की समस्याएं ध्यान से सुनता और बिना किसी भेदभाव के इंसाफ करता। वह ना तो किसी से रिश्वत लेता था और ना ही किसी के दबाव में आता था।
उसकी ईमानदारी और रहमदिली के किस्से शहर में मशहूर होने लगे। लोग कहने लगे कि सालों बाद कोई सच्चा पुलिस वाला आया है।
उधर सिकंदर सिंह की हालत बद से बदतर हो चुकी थी। सस्पेंशन के बाद उसका सारा पैसा बेटे के इलाज और मुकदमों में खर्च हो गया था। वह अब एक टूटा हुआ, हारा हुआ इंसान था। उसका घमंड चखनाचूर हो चुका था और अब उसकी आंखों में सिर्फ पछतावा और बेबसी थी। वह अपने व्हीलचेयर पर बैठे बेटे को देखता और उसकी आत्मा कांप जाती।
उसे कभी-कभी वह रात याद आती जब उसने किन्नरों को अपमानित किया था। उसे गुलाब रानी के वह शब्द याद आते—“अल्लाह तेरा भला करे।” वह सोचता, क्या यह उसी की बद्दुआ का असर है?
एक दिन अपनी पेंशन की फाइल के सिलसिले में सिकंदर को एएसपी ऑफिस जाना पड़ा। वह सहमा हुआ, एक आम आदमी की तरह लाइन में खड़ा था। तभी उसकी नजर एएसपी की कुर्सी पर बैठे नौजवान अफसर पर पड़ी। वह आफताब था।
आफताब के चेहरे पर वही तेज, वही आत्मविश्वास था जो कभी सिकंदर के चेहरे पर हुआ करता था। लेकिन उसकी आंखों में घमंड की जगह करुणा और ईमानदारी थी। सिकंदर उसे देखता रह गया। उसे इस नौजवान अफसर में अजीब सा अपनापन महसूस हुआ। एक ऐसी कशिश जिसे वह समझ नहीं पा रहा था।
उसी शाम सिकंदर ने अखबार में नए एसपी की तस्वीर और उसके बारे में एक लेख पढ़ा। लेख में लिखा था कि कैसे एसपी आफताब को किन्नरों के एक समुदाय ने पाल पोसा और पढ़ाया-लिखाया। यह पढ़ते ही सिकंदर के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसके दिमाग में बिजली कौंध गई। उसे सब कुछ समझ आ गया।
यह गुलाब रानी का बेटा था। यह उसी अपमान का जवाब था जो उसने सालों पहले दिया था। शर्मिंदगी और ग्लानि के बोझ तले उसकी कमर झुक गई। वह समझ गया कि कुदरत ने उससे कैसा इंसाफ किया है। उसने जिस समुदाय को समाज का कलंक कहा था, उसी समुदाय ने एक ऐसा हीरा तराशा था जो आज शहर की शान बना हुआ था, और उसका अपना बेटा जोरावर आज बेजान पड़ा था।
सिकंदर कई दिनों तक इसी उधेड़बुन में रहा। वह आफताब से मिलना चाहता था, माफी मांगना चाहता था। लेकिन उसकी हिम्मत नहीं होती थी। वह किस मुंह से उसके सामने जाता?
दूसरी तरफ आफताब सब कुछ जानता था। गुलाब रानी ने उसे सिकंदर की पूरी कहानी बताई थी, लेकिन नफरत के साथ नहीं बल्कि एक सबक के तौर पर। उन्होंने आफताब को सिखाया था कि बदला लेना कमजोरों का काम है, माफ कर देना बहादुरों का।
आफताब के मन में सिकंदर के लिए कोई नफरत नहीं थी, बल्कि एक तरह की दया थी। वह जानता था कि सिकंदर को उसके कर्मों की सजा मिल चुकी है।
एक दिन गुलाब रानी ने फैसला किया कि अब इस कहानी को उसके अंजाम तक पहुंचाने का वक्त आ गया है। वह एक शाम अकेले ही सिकंदर के छोटे से किराए के घर पहुंची। दरवाजा सिकंदर ने ही खोला। सामने गुलाब रानी को खड़ा देखकर वह पत्थर की मूर्ति बन गया। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। वह कुछ कह पाता, उससे पहले ही गुलाब रानी ने अपना हाथ उठाया और बोली, “हम आज कोई इनाम मांगने नहीं आए हैं। सिकंदर सिंह, हम तो बस यह देखने आए हैं कि अल्लाह ने वाकई तुम्हारा भला किया या नहीं।”
सिकंदर गुलाब रानी को अपने सामने खड़ा देखकर कांप रहा था। सालों पहले का घमंड आज शर्मिंदगी में बदल चुका था। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे और वह एक शब्द भी नहीं बोल पा रहा था। वह बस हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।
गुलाब रानी धीरे से घर के अंदर आई। उनकी नजर व्हीलचेयर पर बैठे जोरावर पर पड़ी, जिसकी आंखें छत को घूर रही थीं। गुलाब रानी का दिल पसीज गया। उन्होंने जोरावर के सिर पर हाथ फेरा और फिर सिकंदर की तरफ मुड़कर बोली, “हमने तुम्हें कभी बद्दुआ नहीं दी थी। सिकंदर सिंह तकुर, घमंड और जुल्म की सजा इंसान को इसी दुनिया में मिलती है। अल्लाह ने तुम्हें सजा नहीं दी, आईना दिखाया है। उसने दिखाया है कि जिसे तुम कमजोर और तुच्छ समझते हो, वह क्या कुछ कर सकता है, और जिसे तुम अपनी ताकत समझते हो, वह कैसे एक पल में बेबस हो सकता है।”
सिकंदर अब खुद को रोक नहीं पाया। वह गुलाब रानी के पैरों में गिर पड़ा और फूट-फूट कर रोने लगा। “मुझे माफ कर दो मां जी। मैंने तुम्हारे साथ बहुत बड़ा गुनाह किया। मैंने सत्ता के नशे में इंसानियत को भुला दिया था। मुझे मेरे हर एक गुनाह की सजा मिल गई। मेरी दुनिया उजड़ गई।”
गुलाब रानी ने उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया, जैसे एक मां अपने भटके हुए बेटे को लगाती है। उन्होंने कहा, “रो मत। अल्लाह बहुत रहीम है। वह माफ करने वालों को पसंद करता है। जब हमने तुम्हें माफ कर दिया तो वह भी तुम्हें माफ कर देगा।”
ठीक उसी समय दरवाजे पर आफताब अपनी वर्दी में दाखिल हुआ। उसने यह पूरा मंजर देखा। सिकंदर उसे देखकर और भी ज्यादा शर्मिंदा हो गया। लेकिन आफताब आगे बढ़ा और उसने सिकंदर को सहारा देकर उठाया।
आफताब ने कहा, “अंकल, जो हो गया सो हो गया। मां ने मुझे सिखाया है कि अतीत को भूलकर आगे बढ़ना चाहिए। आप मेरे पिता समान हैं।”
सिकंदर के लिए यह यकीन करना मुश्किल था। जिस शख्स के साथ उसने इतना बुरा किया, उसी का पाल पोसा बेटा उसे अंकल और पिता समान कह रहा था। यह उसके लिए सबसे बड़ी सजा और सबसे बड़ा इनाम भी था।
उस दिन के बाद सब कुछ बदलने लगा। आफताब ने एक ईमानदार अफसर की तरह सिकंदर सिंह की सस्पेंशन की फाइल दोबारा खुलवाई। उसने पाया कि सिकंदर घूसखोर तो था, लेकिन उसे फंसाने के लिए कुछ झूठे सबूत भी लगाए गए थे। आफताब की निष्पक्ष जांच और सिफारिशों के बाद विभाग ने सिकंदर को एक आखिरी मौका देने का फैसला किया।
उसे बहाल तो कर दिया गया, लेकिन एक छोटी पोस्ट पर और इस शर्त पर कि उस पर हमेशा निगरानी रखी जाएगी।
सिकंदर सिंह ने जब दोबारा वर्दी पहनी तो वह एक बिल्कुल अलग इंसान था। उसकी आंखों में अब घमंड नहीं बल्कि विनम्रता थी। उसके दिल में नफरत नहीं बल्कि रहम था। वह पूरी ईमानदारी और लगन से अपना काम करने लगा। वह गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करता क्योंकि अब वह खुद उस दर्द से गुजर चुका था।
आफताब और सिकंदर के बीच एक अजीब सा रिश्ता बन गया। एक गुरु और शिष्य जैसा, एक पिता और पुत्र जैसा। आफताब अक्सर जोरावर को देखने भी जाता और उसकी फिजियोथेरेपी में मदद करता।
कुछ साल बीत गए। सिकंदर अपनी ईमानदारी से विभाग में फिर से सम्मान पाने लगा। एक दिन उसके घर में फिर से खुशियों ने दस्तक दी। उसकी पत्नी ने एक स्वस्थ और सुंदर बेटी को जन्म दिया। इस बार सिकंदर ने कोई बड़ी पार्टी नहीं रखी। उसने किसी बड़े अफसर या नेता को नहीं बुलाया।
बेटी के जन्म के अगले ही दिन वह शहर की सबसे अच्छी दुकान पर गया। ढेर सारी मिठाइयां खरीदी और अपनी पत्नी और नन्ही सी बेटी को लेकर सीधा उस बस्ती में पहुंचा जहां गुलाब रानी रहती थी।
गुलाब रानी और बाकी किन्नर उन्हें देखकर हैरान रह गए। सिकंदर ने मिठाई का डिब्बा गुलाब रानी के हाथों में दिया और अपनी बेटी को उनकी गोद में रख दिया। आंखों में आंसू थे और चेहरे पर एक सच्ची मुस्कान।
वह बोला, “मां जी, यह भी आपकी ही बेटी है। इसे अपनी दुआएं दीजिए। आज इस खुशी का सबसे पहला हक आपका है।”
गुलाब रानी ने बच्ची को चूमा और उसे ढेरों दुआएं दी। पूरी बस्ती ने ढोलक बजाकर और नाच गाकर उस बच्ची का स्वागत किया।
आज उनके नाच में कोई मजबूरी नहीं बल्कि एक सच्चा अपनत्व था। आज सिकंदर के चेहरे पर कोई घमंड नहीं बल्कि एक परिवार का हिस्सा बनने की खुशी थी।
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