रोशनी देवी की कहानी – पार्ट 2

महिला के साथ हुआ बहुत बड़ा हादसा/गांव के लोग और पुलिस सभी दंग रह गए/

नई शुरुआत के सपने

रोशनी देवी की हत्या के बाद पतनपुरी गाँव में माहौल पूरी तरह बदल गया था। लोग अब पहले से ज़्यादा सतर्क हो गए थे। गाँव की औरतें अपने घरों में दुबक गई थीं, और पुरुषों के बीच डर के साथ-साथ गुस्सा भी था। पुलिस ने रणजीत को जेल भेज दिया, लेकिन गाँव के लोग अब अपने-अपने तरीके से इस हादसे को समझने और उसका हल ढूंढने लगे थे।

लक्की, रोशनी का बेटा, अब पूरी तरह अकेला हो गया था। उसकी देखभाल की जिम्मेदारी उसकी मौसी, सरिता देवी ने ले ली थी। सरिता खुद एक साहसी महिला थी, जिसने अपने पति की मृत्यु के बाद अकेले ही अपने बच्चों को पाल-पोसकर बड़ा किया था। उसने ठान लिया कि वह लक्की को अपनी संतान की तरह पालेगी।

गाँव में बदलाव की लहर

गाँव के सरपंच, रामलाल यादव, ने इस घटना के बाद गाँव में जागरूकता फैलाने का फैसला किया। उन्होंने डॉक्टरों को बुलाया और गाँव में एड्स, यौन रोग, और मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष शिविर आयोजित करवाए। गाँव के स्कूल में बच्चों के लिए स्वास्थ्य शिक्षा शुरू की गई। महिलाएँ अब अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रति सजग होने लगी थीं।

सरिता देवी ने गाँव की महिलाओं के लिए एक समूह बनाया—”नारी शक्ति मंडल”। इस समूह में महिलाएँ अपने अनुभव साझा करतीं, एक-दूसरे को सहारा देतीं, और जरूरतमंदों की मदद करतीं। धीरे-धीरे, गाँव में महिलाओं की स्थिति बेहतर होने लगी।

लक्की की जिज्ञासा

लक्की अब नौ साल का हो गया था। उसकी आँखों में माँ की यादें बसी थीं, लेकिन वह सरिता के प्यार में धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। एक दिन, उसने सरिता से पूछा, “मौसी, मेरी माँ क्यों मरी? सब लोग उसकी बातें क्यों करते हैं?”

सरिता ने लक्की को सच बताने का फैसला किया। उसने समझाया, “बेटा, कभी-कभी लोग अकेलेपन या मजबूरी में गलत फैसले ले लेते हैं। तुम्हारी माँ ने भी कुछ गलतियाँ की थीं, लेकिन उसका इरादा बुरा नहीं था।”

लक्की ने मौसी से पूछा, “क्या मैं बड़ा होकर अपनी माँ का नाम साफ कर सकता हूँ?”

सरिता ने मुस्कुराकर कहा, “ज़रूर बेटा, अगर तुम पढ़-लिखकर गाँव के लोगों की मदद करोगे, तो लोग तुम्हारी माँ को याद करेंगे।”

राजकुमार और गुलशन की वापसी

इस बीच, राजकुमार और गुलशन, जो पहले ट्रक ड्राइवर थे, अब गाँव छोड़कर शहर चले गए थे। लेकिन शहर की ज़िंदगी उनके लिए आसान नहीं थी। राजकुमार को भी एड्स का पता चला, और उसने इलाज के लिए अस्पतालों के चक्कर लगाए। गुलशन ने शराब में डूबकर अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर ली।

एक दिन, राजकुमार ने अपने पुराने दोस्त गुलशन को ढूँढा और दोनों ने अपने बीते दिनों की बातें कीं। राजकुमार ने कहा, “अगर हम पैसे की लालच में नहीं पड़ते, तो शायद आज हम स्वस्थ होते।”

गुलशन ने आँसू भरी आँखों से जवाब दिया, “अब पछताने से क्या फायदा? जो होना था, हो गया।”

सचिन का पश्चाताप

सचिन, जो किराने की दुकान चलाता था, अब अकेला महसूस करने लगा था। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने गाँव के मंदिर में जाकर भगवान से माफी मांगी और फैसला किया कि वह अब गाँव के बच्चों को पढ़ाएगा और समाज सेवा करेगा।

सचिन ने गाँव के सरपंच से मिलकर कहा, “मैंने जो किया, वह गलत था। अब मैं बच्चों को पढ़ाकर उनकी ज़िंदगी सँवारना चाहता हूँ।”

सरपंच ने सचिन को माफ कर दिया और उसे स्कूल में सहायक शिक्षक बना दिया।

गाँव में एक नया अध्याय

गाँव की महिलाएँ अब अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने लगी थीं। “नारी शक्ति मंडल” ने गाँव में सिलाई, कढ़ाई, और छोटे व्यापार शुरू करवाए। सरिता देवी ने लक्की को स्कूल भेजना शुरू किया और उसकी पढ़ाई में कोई कमी नहीं रखी। लक्की अब पढ़ाई में अच्छा था और खेल-कूद में भी आगे था।

गाँव के लोग अब एक-दूसरे की मदद करने लगे थे। कोई बीमार होता, तो सब मिलकर उसका इलाज करवाते। महिलाओं के लिए स्वास्थ्य जांच शिविर लगाए जाते। बच्चों को स्कूल भेजने के लिए जागरूकता फैलाई जाती।

रणजीत की जेल में ज़िंदगी

रणजीत जेल में था, लेकिन उसका गुस्सा धीरे-धीरे पछतावे में बदल गया। जेल में उसने कई बार सोचा, “अगर मैं रोशनी से बात कर लेता, उसे समझाने की कोशिश करता, तो शायद यह हादसा न होता।”

जेल में एक सामाजिक कार्यकर्ता, सीमा तिवारी, ने कैदियों के लिए काउंसलिंग शुरू की। सीमा ने रणजीत से बात की और उसे अहसास कराया कि गुस्से में किया गया कोई भी काम हमेशा नुकसान ही देता है।

रणजीत ने सीमा से कहा, “अगर मुझे मौका मिले, तो मैं गाँव लौटकर लोगों को बताऊँगा कि गुस्सा और हिंसा से कुछ नहीं मिलता।”

लक्की का सपना

लक्की अब चौदह साल का हो गया था। उसने ठान लिया था कि वह डॉक्टर बनेगा और गाँव के लोगों की सेवा करेगा। उसने कड़ी मेहनत शुरू कर दी। सरिता देवी ने उसकी पढ़ाई के लिए अपनी बचत खर्च कर दी। गाँव के लोग भी उसकी मदद करने लगे।

एक दिन, लक्की ने गाँव के स्कूल में भाषण दिया, “मेरी माँ की मौत ने मुझे सिखाया कि हमें कभी लालच, अकेलापन या मजबूरी में गलत राह नहीं चुननी चाहिए। अगर कोई परेशानी हो, तो हमें मिलकर उसका हल निकालना चाहिए।”

गाँव के लोग उसकी बातों से प्रभावित हुए और बच्चों को अच्छे संस्कार देने का फैसला किया।

गाँव में बदलाव

गाँव में अब हर महीने स्वास्थ्य शिविर लगते थे। महिलाएँ आत्मनिर्भर बन रही थीं। बच्चों को शिक्षा मिल रही थी। लोग अब एक-दूसरे की मदद करने लगे थे। समाज में बदलाव की लहर आ गई थी।

सरिता देवी ने एक दिन गाँव की पंचायत में कहा, “अगर हम सब मिलकर एक-दूसरे का सहारा बनें, तो कोई भी रोशनी देवी जैसी त्रासदी नहीं होगी। हमें समाज को बदलना है।”

न्याय और इंसाफ

रणजीत को अदालत ने दस साल की सजा सुनाई थी। लेकिन जेल में उसके व्यवहार में बदलाव आया। उसने जेल में पढ़ाई शुरू की और जेल से बाहर निकलकर समाज सेवा करने का सपना देखा।

राजकुमार की बीमारी ने उसे बदल दिया। उसने शहर में एड्स जागरूकता अभियान शुरू किया और लोगों को सुरक्षित जीवन जीने की सलाह देने लगा।

समाज की सीख

गाँव के लोग अब समझ गए थे कि किसी की मजबूरी या अकेलापन का फायदा उठाना सबसे बड़ा अपराध है। उन्होंने ठान लिया कि अब कोई भी महिला अकेली नहीं रहेगी, कोई बच्चा भूखा नहीं रहेगा, और कोई भी व्यक्ति गलत राह नहीं चुनेगा।

कहानी का संदेश

रोशनी देवी की कहानी ने गाँव को बदल दिया। अब लोग जानते थे कि अकेलापन, लालच, और समाज की उपेक्षा किसी की ज़िंदगी बर्बाद कर सकती है। समाज को चाहिए कि वह हर व्यक्ति को सहारा दे, सही शिक्षा दे, और जागरूक बनाए।

लक्की ने अपनी माँ की याद को एक नई पहचान दी—सेवा, प्यार, और इंसानियत की मिसाल। गाँव अब एकजुट था, और लोग जानते थे कि मिलकर ही हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है।

समाप्त