SDM मैडम दिवाली मनाने अपने घर जा रही थी ; अचानक दरोगा ने रोका , थप्पड़ मारा फिर जो हुआ …
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सर्दी की एक धुंधली सुबह थी। हसनाबाद शहर की गलियां अभी भी नींद से जगी नहीं थीं, लेकिन शहर के बाहर एक छोटा सा चेक पोस्ट हर रोज की तरह अपनी ड्यूटी पर तैनात था। पुलिसकर्मी अपनी वर्दी में सजे हुए सड़क के किनारे खड़े थे, कुछ चेकिंग कर रहे थे तो कुछ आराम से खड़े होकर आस-पास नजर दौड़ा रहे थे। उसी चेक पोस्ट के बीचों-बीच इंस्पेक्टर प्रसंजीत अपनी वर्दी में खड़ा था, हाथ में लाठी लिए, चेहरे पर एक घमंडी मुस्कान लिए। वह अपने आप को बहुत बड़ा अधिकारी समझता था और अक्सर आम जनता के साथ अपनी वर्दी के बल पर अभद्र व्यवहार करता था।
उस दिन दिवाली का त्योहार था और शहर की रौनक कुछ अलग ही थी। लोग अपने घरों को सजाने में व्यस्त थे, बाजारों में भीड़ थी और हर तरफ खुशियों का माहौल था। इसी बीच एक युवती मोटरसाइकिल चलाती हुई चेक पोस्ट की ओर बढ़ रही थी। वह साधारण कपड़ों में थी—ना कोई सरकारी गाड़ी, ना कोई सुरक्षा गार्ड, बस एक आम लड़की की तरह। उसकी चाल में आत्मविश्वास था, लेकिन वह पूरी तरह से सावधान भी थी।
जब वह चेक पोस्ट के पास पहुंची, तो इंस्पेक्टर प्रसंजीत ने उसे रुकने का इशारा किया। उसने लाठी उठाकर कड़क आवाज में कहा, “कहां जा रही हो?” लड़की ने बेहद शांत स्वर में जवाब दिया, “दिवाली पर अपने घर जा रही हूं।” इंस्पेक्टर ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और हंसते हुए बोला, “अच्छा, घर जा रही हो? लेकिन हेलमेट क्यों नहीं पहना? और यह बाइक बहुत तेज चली रही थी। चलो, चालान कटेगा।”
लड़की को तुरंत समझ आ गया कि यह सब एक बहाना है। उसने कहा, “सर, मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा है।” इंस्पेक्टर झल्ला गया और बोला, “हमें कानून मत सिखाओ।” उसने पास खड़े कांस्टेबल की तरफ देखा और कहा, “इसे सबक सिखाना होगा।” फिर अचानक उसने लड़की के गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। लड़की का सिर एक पल के लिए घूम गया, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। उसकी आंखों में गुस्सा साफ झलक रहा था।
इंस्पेक्टर प्रसंजीत ने हंसते हुए कहा, “अब भी इसकी आंखों में घमंड है। ऐसे कितनों को ठीक कर चुका हूं। इसे अच्छी तरह से सबक सिखाना होगा।” एक कांस्टेबल आगे आया और बोला, “सर, इसे थाने ले चलते हैं। वहीं इसका इलाज होगा, तब समझेगी कि पुलिस से कैसे बात की जाती है।” दूसरे कांस्टेबल ने लड़की का हाथ पकड़ लिया, लेकिन वह झटके से अपना हाथ छुड़ा कर बोली, “हाथ लगाने की कोशिश मत करना, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा।”

इंस्पेक्टर और ज्यादा भड़क गया। उसने कांस्टेबल से कहा, “देखो इसका घमंड।” कांस्टेबल ने लड़की के बाल पकड़ लिए और खींचने लगा। लड़की दर्द से कराह उठी, लेकिन उसने अब तक अपनी असली पहचान नहीं बताई थी। वह देखना चाहती थी कि ये लोग कितनी नीचता तक जा सकते हैं। इसी बीच एक पुलिसकर्मी ने उसकी बाइक पर लाठी मार दी और ऊंची आवाज में बोला, “बरी आई साधु बनने वाली, अब तुझे खिलौना बनाकर खेलेंगे।”
लड़की अब पूरी तरह समझ चुकी थी कि उसके साथ क्या होने वाला है। इंस्पेक्टर की आंखों में गुस्सा भरा था। वह जोर से चिल्लाया, “इन्हें जैसे कई होशियार देखे हैं। पुलिस से पंगा लेगी, आज मजा चखाएंगे। चलो, इसे थाने ले चलते हैं।” लड़की चुप थी, उसने अब भी अपनी पहचान उजागर नहीं की। वह देखना चाहती थी कि ये लोग प्रशासन की कितनी बदनामी कर सकते हैं और एक आम नागरिक पर किस हद तक जुल्म ढा सकते हैं।
इंस्पेक्टर प्रसंजीत ने उसे जबरन खींचा। उसके सामने एक ऐसी महिला खड़ी थी जिसके गाल पर थप्पड़ का निशान था, जिसके बाल खींचे गए थे, जिसे जबरन सड़क पर घसीटा गया था। फिर भी वह एक मूर्ति की तरह शांत खड़ी थी—ना कोई चीख, ना आंसू। इंस्पेक्टर सोच रहा था कि थाने पहुंचते ही इस जिद्दी और घमंडी औरत का इलाज कैसे किया जाए। यह सिर्फ गुस्सा नहीं था, यह अंदर ही अंदर सुलग रहा क्रोध था।
चौकी इंचार्ज इंस्पेक्टर हंसते हुए बोला, “अब इसकी जुबान भी चलने लगी है। चलो, थाने देखेंगे कितनी चलती है इसकी जुबान।” थाने में घुसते ही इंस्पेक्टर जोर से चिल्लाया, “ओए, कहां गया सब? चाय-पानी लगाओ जल्दी। आज एक खास माल आया है।” लड़की अब भी कुछ नहीं बोली, बस थाने की दीवारों को देखती रही। वह देख रही थी कि ये लोग इन निरीह लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं जो कभी आवाज नहीं उठाते।
तभी एक कांस्टेबल इंस्पेक्टर की ओर झुक कर फुसफुसाया, “क्या केस है सर?” इंस्पेक्टर हंसते हुए बोला, “कुछ भी नहीं, स्पीड ब्रेक करो या हेलमेट का बहाना मारो। जो मन हो लिख दो। बस अनवर करना है और इसका घमंड तोड़ना है। ज्यादा सवाल मत कर।” लड़की सब कुछ सुन रही थी, लेकिन उसकी आंखें अब भी चुप थीं। मानो वह चाहती थी कि पुलिस की यह गिरावट खुद उनके ही मुंह से उजागर हो।
कांस्टेबल फिर कुछ कहने लगा, लेकिन थानेदार की नजर सामने खड़ी लड़की पर ही थी। इंस्पेक्टर कुर्सी पर बैठा, हाथ में पेन लिया और टेबल पर घुमाने लगा। फिर लड़की की ओर देखकर पूछा, “नाम क्या है? कहां रहती है? किसकी बेटी है?” लड़की चुप रही। फिर इंस्पेक्टर बोला, “सुनाई नहीं देता, नाम क्या है तेरा?” लेकिन लड़की की चुप्पी अब भी पत्थर की दीवार जैसी अडिग थी।
तभी इंस्पेक्टर ने जोर से मेज पर हाथ मारा, आवाज पूरे थाने में गूंज उठी। फिर गुस्से से चिल्लाया, “सुनाई नहीं देता, नाम बता जल्दी!” लड़की ने मुंह घुमाकर शांत स्वर में उत्तर दिया, “जी, सुमिता शर्मा।” इंस्पेक्टर उसके चेहरे की ओर देखकर हंसते हुए बोला, “अरे बड़ी चालाक लड़की है तू। झूठ बोलने में तुझे खासा तजुर्बा है, लेकिन याद रख, ज्यादा होशियारी महंगी पड़ती है। एक भी गलती की तो पछताने का मौका तक नहीं मिलेगा।”
फिर लड़की को जबरदस्ती उस सड़ी हुई हवालात में डाल दिया गया जहां पहले से दो कैदी मौजूद थे। उनमें से एक कैदी ने लड़की की ओर देखते हुए पूछा, “बहन, तूने क्या गुनाह किया है?” लड़की ने हल्की सी मुस्कान दी, लेकिन कुछ नहीं बोली। अब वह बस देख रही थी कि यह पूरा सिस्टम कितना सड़ चुका है। अगर एक एसडीओ को बिना वजह अंदर किया जा सकता है, तो आम आदमी की हालत तो सोच पाना भी मुश्किल है।
अब वह उस कोठरी के कोने में बैठी थी, सब कुछ देख रही थी, सुन रही थी और हर एक हरकत को समझ रही थी। उधर इंस्पेक्टर प्रसंजीत एक झूठी रिपोर्ट बना रहा था। उसने आदेश दिया, “इसके ऊपर चोरी और ब्लैकमेलिंग का केस ठोक दो।” फाइल पर हाथ मारते हुए बोला, “चलो जल्दी।” एक कांस्टेबल ने हिचकते हुए पूछा, “सर, बिना सबूत?” प्रसंजीत हंसते हुए बोला, “इस थाने में सबूत लाए नहीं जाते, बनाए जाते हैं। ज्यादा सवाल मत कर।”
कुछ देर बाद एक कांस्टेबल कोठरी में आया और लड़की के कंधे पर जोर से हाथ मारा। तभी इंस्पेक्टर प्रसंजीत ने भी हाथ उठाया ही था कि दरवाजे पर एक भारी, कड़क आवाज गूंजी, “रुको!” सभी लोग घूमकर दरवाजे की ओर देखने लगे। वहां सीनियर इंस्पेक्टर संजय वर्मा खड़ा था। उसकी छवि बाकी अफसरों से कुछ बेहतर मानी जाती थी। वह अंदर झांका और लड़की की हालत देखकर उसके माथे पर बल पड़ गया। उसने सख्त स्वर में पूछा, “यह सब क्या हो रहा है?”
प्रसंजीत हंसते हुए बोला, “कुछ नहीं सर, एक सड़क की औरत ज्यादा अकड़ दिखा रही थी, सबक सिखा रहा हूं।” संजय ने लड़की को ध्यान से देखा। उसका व्यवहार किसी आम महिला जैसा नहीं लग रहा था। उसने पूछा, “इसका अपराध क्या है?” प्रसंजीत थोड़ा घबरा गया और बोला, “अफसर, चेकिंग में बदतमीजी कर रही थी।” अब संजय को शक होने लगा। उसने लड़की से सीधे पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?” लड़की फिर भी चुप रही।
प्रसंजीत हंसते हुए बोला, “देखिए सर, नाम भी नहीं बता रही है।” अब प्रसंजीत पूरी तरह सतर्क हो गया। उसने सख्त आदेश दिया, “इसे अलग कोठरी में रखो।” संजय ने कहा, “मैं खुद इसके पास रहूंगा।” उसके आदेश पर लड़की को एक और अलग कोठरी में ले जाकर बंद किया गया। वह कोठरी पहले वाली से भी ज्यादा बदबूदार और अंधेरी थी। लड़की ने चारों ओर नजर दौड़ाई। एक कोने में टूटी हुई मेज पड़ी थी और पास ही जंग लगी लोहे की छड़। अब वह इस सड़े गले सिस्टम का असली चेहरा और भी करीब से देख रही थी। हर एक पल उसकी आंखें यह समझ रही थीं कि कानून अब सिर्फ फाइलों तक सीमित रह गया है।
इसी बीच एक कांस्टेबल दौड़ते हुए आया और बोला, “सर, बाहर एक बड़ी गाड़ी खड़ी है।” प्रसंजीत चौंक गया। पूछा, “कौन सी गाड़ी?” कांस्टेबल घबराते हुए बोला, “सर, सरकारी गाड़ी।” प्रसंजीत तुरंत बाहर गया। गाड़ी के अंदर झांकते ही उसके होश उड़ गए। वह भागकर वापस आया और धीमी आवाज में बोला, “सर…” प्रसंजीत झुंझलाकर बोला, “क्या हुआ? कौन आया है?” कांस्टेबल कांपते हुए बोला, “सर, कमिश्नर साहब आए हैं।” प्रसंजीत का चेहरा पीला पड़ गया। सीनियर इंस्पेक्टर संजय वर्मा भी सतर्क हो गया। अब मामला सीधे ऊपर तक पहुंच चुका था।
कमिश्नर साहब थाने में दाखिल हुए। उनकी आंखों में गुस्सा साफ झलक रहा था। उन्होंने प्रसंजीत की ओर सख्त स्वर में पूछा, “इंस्पेक्टर प्रसंजीत, यह क्या तमाशा चल रहा है यहां?” प्रसंजीत घबरा गया और बोला, “कुछ नहीं सर, एक छोटा सा केस है बस।” कमिश्नर ने टेबल से फाइल उठाई और ध्यान से पढ़ने लगे। उनके माथे पर शिकन आ गई। फिर वह कोठरी की तरफ झांके और बोले, “यह कौन है?” प्रसंजीत तुरंत बोला, “सर, इस महिला पर 420 और धोखाधड़ी का केस है।” कमिश्नर ने सीधे सवाल किया, “तुम्हारे पास सबूत है?” फिर दोबारा पूछा, “कोई भी सबूत है तुम्हारे पास?” अब प्रसंजीत पूरी तरह फंस चुका था।
कमिश्नर ने सीधे लड़की की ओर देखा और पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?” तभी पहली बार लड़की ने हल्की सी मुस्कान दी और कहा, “एसडीओ अदिति शर्मा।” थाने में एकदम सन्नाटा छा गया। हर चेहरा पीला पड़ गया। प्रसंजीत के हाथ-पांव कांपने लगे। बाकी सभी कांस्टेबल हैरान होकर एक-दूसरे की ओर देखने लगे। प्रसंजीत के पैरों तले जमीन खिसक गई। जिस महिला को वह एक मामूली अपराधी समझ रहा था, वह वही अधिकारी थी जो पूरे जिले की प्रशासनिक व्यवस्था संभालती थी।
यह सच्चाई सबके सामने आई तो पूरे थाने में हड़कंप मच गया। सभी कांस्टेबल्स स्तब्ध हो गए। कमिश्नर साहब ने तेज गुस्से से इंस्पेक्टर प्रसंजीत की ओर देखा और गरजते हुए बोले, “प्रसंजीत, तुझ में इतनी हिम्मत आई, कैसे कि तू एक सीनियर ऑफिसर पर झूठा आरोप लगाने की जरूरत पर बैठा?” प्रसंजीत कुछ बोलने की कोशिश कर रहा था कि पास में खड़े सीनियर इंस्पेक्टर संजय वर्मा जोर से बोले, “सर, मैंने पहले ही कहा था कि यहां कुछ न कुछ गड़बड़ है।” अब प्रसंजीत पूरी तरह अकेला पड़ चुका था।
तभी पहली बार अदिति शर्मा ने अपनी शांत लेकिन दृढ़ आवाज में सीधा फैसला सुना दिया, “प्रसंजीत, अब तेरी नौकरी गई। तेरा सस्पेंशन पक्का है और तेरे खिलाफ अब केस भी चलेगा।” यह सुनते ही प्रसंजीत का चेहरा जैसे सफेद पड़ गया। सांस अटकने लगी। बाकी पुलिसकर्मी भी उससे नजरें चुराने लगे। संजय वर्मा ने तुरंत आदेश दिया, “हवलदार साहब, इसे पकड़ो और लॉक में डालो।”
लेकिन तभी प्रसंजीत ने अपनी जेब से एक मुड़ा हुआ कागज निकाला और मुस्कुराते हुए बोला, “रुको मैडम, यह पहले देख लो, फिर जो करना हो कर लेना।” उसने कागज आगे बढ़ाया। कमिश्नर और अदिति दोनों की नजरें एक साथ उसकी ओर गईं। प्रसंजीत बोला, “यह लो मेरा ट्रांसफर ऑर्डर। तीन दिन पहले ही मेरा तबादला हो चुका है। अब चाहे तुम जितना भी गुस्सा करो, मुझे नौकरी से नहीं निकाल सकती।”
पूरे थाने में फिर एक बार सन्नाटा छा गया। अदिति ने वह कागज हाथ में लिया और ध्यान से पढ़ा। कमिश्नर ने संजय वर्मा की ओर तीखी नजर डालते हुए कहा, “जाओ देखो यह कागज असली है या सिर्फ दिखावा।” संजय ने कंप्यूटर रिकॉर्ड खंगाला और फिर सिर उठाकर बोला, “सर, यह असली है, लेकिन अब तक इसने नए इंस्पेक्टर को चार्ज नहीं सौंपा है। यानी अभी तक यहां का आधिकारिक इंस्पेक्टर यही है और सारे कुकर्म इसी के कार्यकाल में हुए हैं। अब इसे कोई नहीं बचा सकता।”
अदिति ने प्रसंजीत की आंखों में आंखें डालकर कहा, “अब तेरा नया ठिकाना वही होगा जहां तू दूसरों को डाला करता था।” कमिश्नर ने भी सिर हिलाकर अपनी बात पर मोहर लगा दी। जैसे ही दो कांस्टेबल उसे पकड़ने आगे बढ़े, प्रसंजीत फिर से चाल चल गया और जोर से बोला, “रुको मैडम, मैं अकेला नहीं हूं। क्या आपको लगता है कि सारा दोष सिर्फ मेरा है? यह सब मेरे साथ थे। ऊपर तक सब शामिल है।”
इतना कहते ही कुछ पुलिसकर्मियों के चेहरों का रंग उड़ गया। संजय वर्मा हालात को भांप कर एक-एक करके सभी की ओर शक की नजरों से देखने लगे। अदिति ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में कमिश्नर की ओर देखते हुए कहा, “अब इस पूरे थाने को साफ करना होगा। कोई नहीं बचेगा।” कमिश्नर ने भी सिर हिलाते हुए कहा, “जो हुक्म मैडम, अब एक-एक करके सबका हिसाब लिया जाएगा।”
यह बात मुंह से निकलते ही थाने के भीतर बिजली सी गिर गई। थाने के बाहर कुछ पत्रकार पहले से खड़े थे। “थाने के अंदर कोई बड़ा घोटाला चल रहा है,” जैसे ही उन्हें खबर मिली कि पूरा थाना लाइन हाजिर किया गया है, उन्होंने तुरंत मोबाइल से ब्रेकिंग न्यूज़ वायरल करना शुरू कर दिया।

उसी वक्त एक चमचमाती गाड़ी थाने के सामने आकर रुकी। दरवाजा खुला और स्वयं एसपी साहब बाहर आए। चारों ओर नजर दौड़ाई। हर चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं। थाने के सारे अफसर एक तरफ चुपचाप खड़े थे। एसपी साहब ने तीखे स्वर में पूछा, “यहां कब से तमाशा चल रहा है?” लेकिन कमिश्नर और थाना इंचार्ज दोनों एकदम चुप थे।
तभी अदिति शर्मा ने सीधे एसपी की आंखों में आंखें डालकर कहा, “तुम्हें लगता है तुम बच जाओगे?” संजय वर्मा तुरंत एक फाइल निकालकर अदिति के हाथ में थमा दी। यह वही फाइल थी जिसमें एसपी साहब के सारे काले कारनामों का ब्यौरा था। अदिति ने वह फाइल एसपी साहब की ओर बढ़ाते हुए कहा, “लो देखो, इसमें तुम्हारे हर गुनाह का किराया लिखा है।”
एसपी साहब के माथे से पसीना बहने लगा। कमिश्नर ने बिना एक पल गवाए तेज आवाज में आदेश दिया, “पकड़ो, इसे तुरंत गिरफ्तार करो।” पूरा थाना स्तब्ध रह गया। इतने बड़े अफसर को पहली बार खुलेआम इस तरह चुनौती दी गई थी। एसपी की गिरफ्तारी के साथ ही पूरे जिले में तूफान आ गया। मामला दिल्ली तक पहुंच गया।
मुख्यमंत्री तक खबर पहुंच चुकी थी और वहां से सीधा आदेश आया कि जिले में जितने भी अफसर मिलकर गड़बड़ कर रहे थे, सबको गिरफ्तार करो। अगले दो ही दिनों में पूरे जिले से 40 से ज्यादा पुलिस अफसर, 10 से ज्यादा बड़े अधिकारी और कुछ राजनीतिक नेता भी गिरफ्तार कर लिए गए। हसनाबाद जिले की हवा ही बदल गई। अब चारों तरफ सिर्फ एक ही नाम था—एसडीओ अदिति शर्मा। उनकी ईमानदारी और साहस की चर्चा हर जुबान पर थी। वह महिला जिसने पूरे सड़े-गले सिस्टम को हिलाकर रख दिया था।
अब प्रशासन में एक नई गति, एक नई सोच और सबसे अहम, एक नया डर आ गया था। अब कोई भी यह नहीं कह सकता था कि “मुझे कुछ नहीं होगा।” अदिति शर्मा का काम पूरा हो चुका था। उन्होंने साबित कर दिया था कि अगर मन साफ हो, नियत सच्ची हो तो पूरा देश भी सुधारा जा सकता है।
दर्शकों, यह थी हमारी आज की कहानी। एक ऐसी महिला की कहानी जिसने अपने साहस और ईमानदारी से भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी। हमें उम्मीद है कि आपको यह कहानी पसंद आई होगी। कृपया अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं और हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें। हम जल्द ही ऐसी ही और भी प्रेरणादायक कहानियां लेकर आएंगे। तब तक के लिए धन्यवाद और जय हिंद!
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