SDM मैडम से दारोगा ने मांगी रिश्वत और थप्पड़ मारा | फिर जो हुआ सब हैरान रह गए

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SDM मैडम की स्कूटी रोककर दारोगा ने मांगे पैसे, फिर जड़ा थप्पड़ ! फिर ... -  YouTube

एक झूठ जो बहुत महंगा पड़ा। यह कहानी किसी आम औरत की नहीं थी। कभी-कभी खामोशी सबसे बड़ा हथियार होती है। अब चलेगा असली इंसाफ का डंडा।

जिलाधिकारी अंजलि शुक्ला, एक ऐसा नाम जो कर्तव्यनिष्ठा और सादगी का पर्याय बन चुका था। अपनी साधारण सी सलवार-कुर्ते में, वह अपनी पुरानी स्कूटी पर सवार होकर तेजी से अपने भाई की शादी में शामिल होने के लिए जा रही थी। आज वह सिर्फ एक बहन थी, एक बेटी थी, न कि जिले की सबसे बड़ी अधिकारी। न कोई सरकारी गाड़ी का काफिला था, न कोई सुरक्षा गार्डों का तामझाम। बस एक साधारण लड़की की तरह, हवा से बातें करती, अपने ही ख्यालों में गुम, वह शहर की भीड़भाड़ से दूर निकल आई थी।

जैसे ही उसकी स्कूटी ने रानीपुर हाईवे पर रफ़्तार पकड़ी, सामने पुलिस की बैरिकेडिंग नजर आई। तीन-चार पुलिसकर्मी सड़क के किनारे सुस्ता रहे थे और बीच में दारोगा रमेश अपनी वर्दी की पूरी अकड़ के साथ खड़ा था। उसने सामने से आती स्कूटी को देखते ही अंजलि को हाथ के इशारे से रुकने को कहा।

“ओ लड़की! स्कूटी साइड में लगा,” दारोगा की आवाज में अधिकार से ज्यादा रोब था।

अंजलि ने शांति से स्कूटी रोक दी।

“कहाँ जा रही हो?” दारोगा ने सवाल किया, उसकी नजरें अंजलि को ऊपर से नीचे तक तौल रही थीं।

“मेरे भाई की शादी है, वहीं जा रही हूँ,” अंजलि ने शांत और सधे हुए लहजे में जवाब दिया।

दारोगा ने ऊपर से नीचे तक अंजलि के साधारण कपड़ों और पुरानी स्कूटी को घूरा और फिर एक व्यंग्या भरी मुस्कान के साथ बोला, “अच्छा, तो शादी में जा रही हो। लेकिन हेलमेट नहीं पहना है और यह स्कूटी भी बहुत तेज चला रही थी। चलो, चालान भरना पड़ेगा।” दारोगा ने अपनी चालान बुक निकालते हुए कहा, जैसे कोई बड़ा शिकार हाथ लग गया हो।

अंजलि को एक पल में अंदाजा हो गया कि यह सब पैसे ऐंठने का एक बहाना था। वह बोली, “सर, मैंने कोई नियम नहीं तोड़ा है। मेरी रफ़्तार भी सीमा के अंदर थी और हेलमेट मैंने पहना हुआ है।”

“अरे मैडम, कानून हमें मत सिखाओ,” दारोगा चिढ़कर बोला। उसने साइड में खड़े एक सिपाही को आँख मारी और फिर अंजलि की ओर थोड़ा झुकते हुए फुसफुसाया, “ऐसे नहीं मानेगी, इसको तरीका सिखाना पड़ेगा।”

इससे पहले कि अंजलि कुछ समझ पाती, अचानक दारोगा ने पूरी ताकत से एक जोरदार थप्पड़ अंजलि के गाल पर जड़ दिया। ‘चटाक’ की आवाज हाईवे के शोर में भी गूंज गई।

“बहुत सवाल पूछती है! जब पुलिस कुछ कहे, तो चुपचाप मान लेना चाहिए,” वह गुर्राया।

अंजलि का सिर एक पल के लिए झटका खा गया, गाल पर जलन महसूस हुई, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। उसकी आँखों में आँसू नहीं, बल्कि एक ठंडी आग थी। उसने कुछ नहीं कहा, बस दारोगा को घूरती रही।

दारोगा ठहाका मारकर हँसा और अपने साथियों से बोला, “अभी भी अकड़ बाकी है। लगता है, अच्छे से सबक सिखाना पड़ेगा।”

एक सिपाही आगे बढ़ा और बोला, “मालिक, थाने ले चलें। वहाँ आराम से मामला देख लेंगे।”

दारोगा ने सिर हिलाकर कहा, “हाँ, इसे थाने ले चलते हैं। तब समझ आएगा कि पुलिस से कैसे बात की जाती है।”

एक सिपाही ने अंजलि का हाथ पकड़कर खींचा, “चल, जीप में बैठ।”

अंजलि ने अपना हाथ झटक दिया और पहली बार उसकी आवाज में गुस्सा उभरा, “हिम्मत मत करना!”

दारोगा का पारा चढ़ गया। उसने अपने एक आदमी से कहा, “इसका घमंड तोड़ो।” वह देखना चाहती थी कि यह लोग कितनी गिरी हुई हरकत कर सकते हैं। तभी एक पुलिस वाले ने गुस्से में आकर उसकी स्कूटी को जोर से लात मार दी। स्कूटी एक तरफ गिर गई।

“बड़ी आई शरीफ बनने वाली! अब तेरा खेल खत्म,” सिपाही चिल्लाया।

अंजलि अब पूरी तरह समझ गई थी कि यह लोग कितने नीचे गिर सकते हैं। दारोगा की आँखों में गुस्सा और वासना का मिला-जुला भाव था। उसने जोर से चिल्लाकर कहा, “बहुत देखे हैं तेरे जैसे अकड़ू लोग। पुलिस से भिड़ेगी? अभी औकात दिखाता हूँ। ले चलो इसे थाने, वहीं समझाएँगे।”

डीएम अंजलि शुक्ला अब भी चुप थी। उसने अपनी पहचान बताने का कोई इरादा नहीं किया। वह देखना चाहती थी कि जिस प्रशासन की वह मुखिया है, उसकी जड़ें कितनी खोखली और सड़ी हुई हैं। दारोगा ने सिपाहियों को घूरते हुए कहा, “ले चलो इसे थाने! वहीं देखेंगे इसका क्या करना है।”

दो सिपाही अंजलि के दोनों हाथ पकड़कर उसे जीप की तरफ घसीटने लगे।

“छोड़ो मुझे!” अंजलि पहली बार जोर से बोली।

दारोगा हँसा, “अब खुली जुबान? चल, थाने में देखेंगे कितना बोलती है।”

थाने में घुसते ही दारोगा ने जोर से चिल्लाया, “ओए, चाय-पानी लाओ! एक स्पेशल केस आया है।”

अंजलि अब भी शांत थी। उसकी आँखें एक स्कैनर की तरह थाने के हर कोने, हर पुलिसवाले के चेहरे और उनके व्यवहार को दर्ज कर रही थीं। वह देख रही थी कि आम जनता के साथ पुलिस कैसा सलूक करती है।

दारोगा ने अपने एक जूनियर मुंशी से फुसफुसाकर कहा, “सुन, किसी तरह इस पर कोई केस डाल दो।”

सिपाही बोला, “क्या केस, सर?”

दारोगा हँसा, “कोई भी… चोरी, जेब कतरी… बस, इसे अंदर डालना है।”

अंजलि सब सुन रही थी, लेकिन उसने अभी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। दारोगा अपनी कुर्सी पर बैठ गया और कलम घुमाते हुए बोला, “नाम बता। घर का पता बता।”

अंजलि चुप रही।

दारोगा ने फिर से पूछा, “नाम क्या है?”

अंजलि अब भी चुप रही।

दारोगा ने मेज पर जोर से हाथ मारा, “सुनाई नहीं देता तुझे? नाम बता अपना!”

“रीना गुप्ता,” अंजलि ने एक झूठा नाम बताया।

दारोगा हँसा, “बहुत समझदार है तू। लेकिन ज्यादा चालाकी मत कर, वरना बड़ी गलती होगी।”

अंजलि को जबरदस्ती एक लॉकअप में डाल दिया गया। एक गंदा, बदबूदार कमरा, जहाँ पहले से ही दो और महिलाएँ सहमी हुई बैठी थीं।

“क्या किया तूने?” एक औरत ने दबी आवाज में पूछा।

“कुछ नहीं,” अंजलि ने एक हल्की, रहस्यमयी मुस्कान दी। अब वह देख रही थी कि प्रशासन कितना गंदा हो चुका है। अगर एक जिलाधिकारी तक को इस तरह बिना किसी सबूत के अंदर किया जा सकता है, तो आम जनता का क्या हाल होता होगा। अंजलि अब लॉकअप के अंदर थी। वह बस देख रही थी, सुन रही थी और सब कुछ समझ रही थी कि आखिर प्रशासन कितना गिर चुका है। वह हर हरकत पर गौर कर रही थी।

दारोगा ने एक फर्जी रिपोर्ट तैयार करवाई। “इस पर चोरी और ब्लैकमेलिंग का केस डाल दो,” दारोगा ने फाइल को ठोकते हुए कहा।

एक सिपाही झिझका, “लेकिन सर, बिना सबूत के…”

दारोगा हँस पड़ा, “सबूत? इस थाने में सबूत बनाए जाते हैं, ढूँढ़े नहीं जाते।”

थोड़ी देर बाद, दरवाजे पर एक पुलिस अधिकारी खड़ा था। उप-निरीक्षक अर्जुन वर्मा। थाने में उसकी छवि एक ईमानदार और सख्त अफसर की थी। उसने थाने के अंदर का माहौल और लॉकअप में बंद महिलाओं को देखा। उनकी हालत देखकर उसके माथे पर शिकन आ गई।

“यह सब क्या हो रहा है, रमेश?” उसने सख्त आवाज में पूछा।

दारोगा रमेश मुस्कुराया, “कुछ नहीं सर। एक सड़क छाप लड़की है, ज्यादा होशियारी दिखा रही थी। जरा सबक सिखा रहे हैं।”

अर्जुन वर्मा ने गौर से अंजलि को देखा। उसके हाव-भाव, उसकी शांत और स्थिर आँखें, किसी साधारण महिला जैसी नहीं थीं।

“इसका क्या जुर्म है?” अर्जुन ने रमेश से पूछा।

रमेश हड़बड़ा गया, “सर… इसने चेकिंग के दौरान बदतमीजी की थी।”

अर्जुन वर्मा को कुछ गड़बड़ लगी। उसने अंजलि की तरफ देखा, “तुम्हारा नाम क्या है?”

अंजलि शांत थी।

दारोगा रमेश ने हँसते हुए कहा, “सर, यह तो अपना नाम तक नहीं बता रही।”

अर्जुन अब पूरी तरह सतर्क हो गया था। “ठीक है। इसे दूसरी कोठरी में डालो,” उसने एक सिपाही को आदेश दिया।

रमेश हैरान रह गया, “सर, लेकिन…”

“मैं देखूँगा कि यह कौन है,” अर्जुन वर्मा ने सख्ती से कहा।

अर्जुन के आदेश पर अंजलि को एक दूसरी कोठरी में डाल दिया गया। यह कोठरी पहली से भी ज्यादा अंधेरी और गंदी थी। अंजलि ने चारों तरफ नजर दौड़ाई। कमरे में एक टूटा हुआ टेबल और एक जंग लगा लोहे का रॉड पड़ा था। अंजलि अब इस प्रशासन का गंदा चेहरा और गहराई से देख रही थी। यह सिस्टम कितना गिर चुका है, उसका हर मिनट का अनुभव यह साबित कर रहा था।

अचानक एक सिपाही भागते हुए आया, “सर, एक बड़ी सरकारी गाड़ी बाहर खड़ी है।”

रमेश चौंका, “गाड़ी? कौन आया है?”

SDM मैडम स्कूटी से बहन की शादी में जा रही थी दारोगा ने SDM मैडम को रोककर  पैसे मांगे फिर थप्पड़ मारा - YouTube

सिपाही ने घबराकर कहा, “सर, गाड़ी पर नीली बत्ती है।” सिपाही बाहर गया, लेकिन जैसे ही उसने गाड़ी के अंदर झाँका, उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। वह हड़बड़ाते हुए अंदर आया और धीरे से बोला, “सर… वो…”

“क्या हुआ? कौन है?” रमेश झुँझला उठा।

सिपाही ने काँपते हुए कहा, “सर… आयुक्त अवनीश श्रीवास्तव साहब।”

रमेश का चेहरा सफेद पड़ गया। अर्जुन वर्मा भी चौकन्ना हो गया। अब मामला बहुत बड़ा हो चुका था।

आयुक्त अवनीश श्रीवास्तव ने थाने में कदम रखा। उनकी आँखों में गुस्सा था। उन्होंने रमेश की ओर देखा और कड़क आवाज में पूछा, “दारोगा रमेश, क्या चल रहा है यहाँ?”

रमेश घबराया हुआ बोला, “सर… साहब… कुछ नहीं, बस एक मामूली केस था।”

आयुक्त साहब ने टेबल पर पड़ी अंजलि की फर्जी फाइल उठाई और ध्यान से पढ़ी। उनका माथा सिकुड़ गया। फिर उन्होंने लॉकअप में बंद अंजलि की ओर देखा। “इस महिला पर धारा 420 और ठगी का केस?” आयुक्त साहब की आवाज गूंज उठी। उन्होंने रमेश की ओर देखा, “क्या सबूत है तुम्हारे पास?”

रमेश अब पूरी तरह फँस चुका था।

आयुक्त साहब ने अंजलि से सीधा सवाल किया, “आपका नाम?”

अंजलि ने एक हल्की मुस्कान दी और पहली बार अपनी असली पहचान बताई, “अंजलि शुक्ला, जिलाधिकारी।”

यह शब्द नहीं थे, बम थे। पूरा थाना हक्का-बक्का रह गया। रमेश के हाथ-पैर काँपने लगे। सारे पुलिस वाले जो आराम से बैठे थे, चौंक कर खड़े हो गए। रमेश के पैरों तले जमीन खिसक गई। जिलाधिकारी मैडम! जिसे वह एक सड़क छाप ठग समझकर फर्जी केस में फँसा रहा था, वह खुद जिलाधिकारी निकली।

थाने के सारे पुलिसकर्मी सकते में आ गए। आयुक्त साहब ने घूरते हुए कहा, “दारोगा रमेश! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई जिलाधिकारी मैडम पर झूठा केस डालने की?”

रमेश कुछ बोलने ही वाला था कि अर्जुन वर्मा ने तेज आवाज में कहा, “सर, मैंने पहले ही कहा था कि कुछ गड़बड़ है।” अब रमेश अकेला पड़ चुका था।

अंजलि ने अब अपना असली रूप दिखाया। उन्होंने शांत लेकिन सख्त आवाज में कहा, “दारोगा रमेश, तुम सस्पेंड हो। तुम्हारे खिलाफ विभागीय जाँच होगी और तुम पर केस दर्ज किया जाएगा।”

रमेश के होश उड़ गए। सारे पुलिसकर्मी अब रमेश से दूरी बनाने लगे। अर्जुन वर्मा ने तुरंत एक हवलदार को आदेश दिया, “रमेश को हिरासत में लो।”

जैसे ही हवलदार रमेश को पकड़ने आगे बढ़ा, अचानक रमेश ने अपनी जेब से एक कागज निकाला। उसने मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन यह देखिए।” उसने वह कागज हवा में लहराया।

आयुक्त साहब और जिलाधिकारी अंजलि ने उसे ध्यान से देखा।

रमेश ने ठहाका लगाया, “यह रहा मेरा ट्रांसफर ऑर्डर। तीन दिन पहले ही मेरा ट्रांसफर हो चुका है, तो अब आप मुझे सस्पेंड नहीं कर सकतीं।”

थाने में फिर से सन्नाटा छा गया। अंजलि ने कागज अपने हाथ में लिया और गौर से पढ़ा।

“क्या यह असली है?” आयुक्त साहब ने कड़े स्वर में पूछा। उन्होंने अर्जुन वर्मा की ओर देखा और बोले, “इस कागज की तुरंत जाँच करो।”

अर्जुन वर्मा तुरंत ऑनलाइन सिस्टम में रमेश का रिकॉर्ड चेक करने लगे। कुछ ही पलों में अर्जुन ने सिर उठाया और कहा, “सर, यह कागज असली है। लेकिन…”

“लेकिन क्या?”

“लेकिन रमेश ने अभी तक नए थाने में ज्वाइन नहीं किया है और न ही यहाँ से अपना कार्यभार सौंपा था।”

“मतलब?”

“मतलब यह कि रमेश अब भी कानूनी तौर पर इस थाने का प्रभारी था और उसी दौरान उसने यह सब किया था,” अंजलि ने बात पूरी की। अब कोई भी कानूनी दांव-पेंच रमेश को बचा नहीं सकता था।

जिलाधिकारी अंजलि ने सीधी नजर रमेश पर डाली और कहा, “अब तुम्हारी असली जगह तुम्हारी अपनी जेल में होगी। गिरफ्तार करो इसे,” आयुक्त साहब ने आदेश दिया।

जैसे ही रमेश को गिरफ्तार करने का आदेश हुआ, वह पहली बार घबराया। उसे एहसास हुआ कि अब वह बच नहीं सकता। लेकिन अचानक उसने कहा, “ठहरिए, जिलाधिकारी मैडम! मैं अकेला नहीं हूँ।”

रमेश ने हँसते हुए कहा, “मैडम, क्या आपको लगता है कि इस थाने में सिर्फ मैं भ्रष्ट हूँ?” उसने थाने के बाकी पुलिस वालों की तरफ इशारा किया और कहा, “यह सब मेरे साथ हैं। पूरी कड़ियाँ ऊपर तक जुड़ी हैं।”

थाने के कुछ पुलिस वाले घबराने लगे। अर्जुन वर्मा भी चौकन्ने हो गए।

जिलाधिकारी अंजलि ने आयुक्त साहब की तरफ देखा और कहा, “इस पूरे थाने की जाँच की जाएगी। अब कोई भी सुरक्षित नहीं है।”

आयुक्त साहब ने तुरंत आदेश दिया, “भ्रष्टाचार विरोधी पुलिस टीम को बुलाया जाए।”

अब पूरे थाने में हड़कंप मच गया। जैसे ही टीम ने जाँच शुरू की, कुछ पुलिस वालों के चेहरे पीले पड़ने लगे। एक हवलदार आगे आया और जिलाधिकारी मैडम के सामने हाथ जोड़कर बोला, “मैडम, मुझे माफ कर दीजिए। मैं सिर्फ आदेशों का पालन कर रहा था।”

तभी अचानक एक और पुलिस वाले ने एक फाइल निकाली और कहा, “मैडम, हमारे बड़े साहब भी इसमें शामिल हैं।”

“कौन बड़े साहब?” आयुक्त साहब ने गुस्से में पूछा।

पुलिस वाले ने डरते-डरते जवाब दिया, “वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, एसएसपी राजेश निगम साहब।”

अब पूरा मामला ऊपर तक जुड़ चुका था। थाने में सन्नाटा छा गया। आयुक्त साहब ने गहरी साँस ली और फिर सख्त आवाज में बोले, “इस थाने का पूरा स्टाफ तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है।”

जैसे ही यह आदेश मिला, थाने के पुलिस वालों के होश उड़ गए। जिलाधिकारी अंजलि ने आयुक्त साहब की तरफ देखा और बोली, “अब हमें एसएसपी साहब से भी जवाब लेना होगा।”

आयुक्त ने तुरंत आदेश दिया, “एसएसपी को अभी यहीं बुलाया जाए।”

अब इस मामले ने पूरे जिले में हलचल मचा दी थी। थाने के बाहर कुछ पत्रकार गुप्त रूप से खड़े थे। जैसे ही उन्हें भनक लगी कि पूरा थाना सस्पेंड हो चुका है, वे तुरंत खबर फैलाने लगे। तभी एक काले शीशे वाली गाड़ी थाने के सामने आकर रुकी। एसएसपी राजेश निगम साहब खुद आ गए थे।

एसएसपी साहब थाने पहुँचे। उन्होंने चारों तरफ नजर दौड़ाई। पूरा थाना सस्पेंड हो चुका था। उन्होंने गुस्से में कहा, “यह क्या नाटक चल रहा है?”

लेकिन जिलाधिकारी अंजलि शांत थी। उन्होंने एसएसपी की आँखों में देखते हुए कहा, “आपको लगता है कि आप बच जाएँगे?”

अर्जुन वर्मा ने जिलाधिकारी को एक फाइल दी। यह फाइल एसएसपी राजेश निगम साहब के भ्रष्टाचार के सबूतों से भरी थी, जिसे अर्जुन पिछले कई महीनों से गुप्त रूप से इकट्ठा कर रहा था।

अंजलि ने ठोस आवाज में कहा, “एसएसपी साहब, यह देखिए आपके सारे काले कारनामे।”

अब एसएसपी के चेहरे से पसीना टपकने लगा।

आयुक्त साहब ने आदेश दिया, “एसएसपी को तुरंत गिरफ्तार करो।”

अब पूरी पुलिस फोर्स हैरान थी। इतने बड़े अधिकारी को पहली बार किसी ने खुली चुनौती दी थी। जैसे ही एसएसपी की गिरफ्तारी हुई, पूरा मामला राज्य स्तर तक पहुँच गया। मुख्यमंत्री ने तुरंत आदेश दिया कि जिले के सभी भ्रष्ट अधिकारी गिरफ्तार किए जाएँ।

इस एक घटना के बाद, 40 से ज्यादा पुलिस अधिकारी, 10 से ज्यादा आईएएस अफसर और कई राजनेता गिरफ्तार कर लिए गए। जिलाधिकारी अंजलि की एक दिन की खामोशी और एक छोटे से झूठ ने पूरे सिस्टम को हिलाकर रख दिया था। पूरे जिले में एक नया, ईमानदार प्रशासन लाया गया। भ्रष्टाचार पर अब कड़ी नजर रखी जाने लगी। अब जिलाधिकारी अंजलि का मिशन पूरा हो चुका था। वह अपने भाई की शादी में तो देर से पहुँची, लेकिन उन्होंने पूरे जिले को भ्रष्टाचार के दानवों से एक नई आजादी का तोहफा दे दिया था।