SP ऑफिस में आई एक थकी हारी लड़की….जैसे ही उसने नाम बताया,ऑफिस की रंगे कांप उठी!
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बिछड़े रिश्तों की पुनर्मिलन
भाग 1: एक अंधेरी रात
शाम के 6:00 बज रहे थे। सूरज ढल चुका था और सरकारी दफ्तरों की रोशनी जल उठी थी। दिनभर की भागदौड़ और लोगों की भीड़ के बाद अब यहां एक अजीब सी शांति थी। अंदर बड़े से हॉल में पंखा अपनी धीमी चाल में घर की आवाज कर रहा था। कुछ सिपाही अपनी ड्यूटी खत्म होने का इंतजार कर रहे थे। एक उम्रदराज सिपाही पांडे जी अपनी कुर्सी पर पैर फैलाकर अखबार के पन्ने पलट रहे थे। दूसरा नौजवान शर्मा मोबाइल पर कोई वीडियो देखकर मनमंद मुस्कुरा रहा था। माहौल में एक तरह की सुस्ती छाई हुई थी।
तभी ऑफिस के भारी लकड़ी के दरवाजे पर एक हल्की सी सरसराहट हुई। दरवाजा थोड़ा सा खुला और एक दुबली पतली सी लड़की अंदर झांकने लगी। उसकी उम्र यही कोई 18 से 19 साल रही होगी। चेहरा थकान और चिंता से मुरझाया हुआ था। बड़ी-बड़ी आंखों में एक अजीब सी घबराहट थी। जैसे कोई डरा हुआ जानवर अपने लिए पनाह खोज रहा हो। शरीर पर धूल मिट्टी लगी थी। कपड़े जगह-जगह से घिसे और फटे हुए थे। बिखरे बाल और नंगे पांव उसकी गरीबी और लाचारी की कहानी खुद बयां कर रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वह कई दिनों से ना ठीक से सोई है ना कुछ खाया है।
उसने धीमी कांपती हुई आवाज में कहा, “साहब, मेरी मदद कीजिए।” मोबाइल में व्यस्त शर्मा ने नजर उठाकर उसे देखा और फिर पांडे जी की तरफ देखकर आंख मारी। पांडे जी ने अखबार नीचे किया। चश्मे के ऊपर से उसे घूरा और अपनी भारी आवाज में व्यंग से बोले, “क्या है? यहां क्या मेला लगा है? यह एसपी ऑफिस है। कोई धर्मशाला या शरणालय नहीं। भागो बाहर।”
लड़की उस कड़क आवाज से कांप गई। उसके कदम दरवाजे पर ही जम गए। पर वह वहां से हिली नहीं। उसकी आंखों में आंसू भरने लगे थे। लेकिन उसने हिम्मत करके कहा, “मैं भीख नहीं मांग रही साहब। मेरी बहन, मेरी छोटी बहन गायब हो गई है। प्लीज, उसे ढूंढ दो।”
“बहन गायब हो गई है!” यह शब्द हॉल में गूंज गए। माहौल में जो सुस्ती थी, वह अचानक टूट गई। कोने में बैठे एक मुंशी हंस पड़े। शर्मा ने ताना मारा, “वाह, बहन भी गायब हो गई। अब एएसपी ऑफिस को गुमशुदा बच्चों का हॉस्टल समझ लिया है क्या? हर दूसरे दिन कोई ना कोई आ जाता है मुंह उठाकर।”
पांडे जी ने डांटते हुए कहा, “दिमाग खराब है तेरा? यह सब काम थाने का है। यहां बड़े साहब बैठते हैं। चल हट यहां से। साहब का मूड खराब मत कर।” लड़की की आंखें अब तक पूरी तरह से दब चुकी थीं। गालों पर आंसू की लकीरें बन गईं। उसने अपने मैले से झोले में हाथ डाला और एक पुरानी मुनी तड़ी फोटो निकाली। तस्वीर बहुत धुंधली थी। रंग भी उड़ चुके थे। उसमें एक नन्ही सी बच्ची खिलखिलाकर हंस रही थी।
“यह यही है मेरी बहन गुड़िया। बस 10 साल की है। कल रात हमारी बस्ती से अचानक गायब हो गई। सब जगह ढूंढा, कहीं नहीं मिली।” उसकी आवाज में इतनी बेबसी थी कि एक पल के लिए हॉल में छुपी छा गई। लेकिन पांडे जी का दिल नहीं पसीजा। उन्होंने ठंडी आवाज में कहा, “अरे बस्ती की बच्चियां तो अक्सर इधर-उधर भाग जाती हैं। किसी लड़के के साथ भाग गई होगी। दो-चार दिन में खुद लौट आएगी। अब हम किस-किस को ढूंढते फिरे। चल चल काम मत बढ़ा हमारा। और वैसे भी यह काम हमारा नहीं है। जाओ अपने इलाके के थाने में रिपोर्ट लिखवाओ।”
“मीरा ने रोते हुए कहा, ‘गई थी साहब थाने गई थी। वहां के पुलिस अंकल ने मुझे भिखारी बोलकर भगा दिया। बोले यह सब ड्रामा कहीं और जाकर करना।’” यह सुनकर पांडे जी और शर्मा एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए जैसे यह कोई रोज की बात हो।
लड़की पूरी तरह टूट चुकी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कहां जाए, किससे मदद मांगे। वह वहीं जमीन पर बैठ जाने को थी कि तभी अंदर केबिन से एक भारी और कड़क आवाज आई, “क्या हो रहा है बाहर? इतना शोर क्यों है?”
यह आवाज थी एएसपी विवेक राठौर की। विवेक राठौर का नाम पूरे जिले में मशहूर था। उनकी ईमानदारी, अनुशासन और काम करने के तरीके के सब कायल थे। अपराधियों के लिए उनका नाम खौफ का दूसरा नाम था। लेकिन आम और गरीब लोगों के लिए वह किसी मसीहा से कम नहीं थे। उनकी आवाज सुनते ही हॉल में पिन ड्रॉप साइलेंस हो गया।
पांडे जी अपनी कुर्सी से लगभग उछल पड़े और अखबार समेटने लगे। शर्मा ने झट से मोबाइल अपनी जेब में डाल लिया। सब सावधान की मुद्रा में खड़े हो गए। पांडे जी ने घबराते हुए कहा, “कुछ नहीं सर, वह एक लड़की आई है। कह रही है कि उसकी बहन गायब हो गई है।”
अंदर से फाइल के पलटे जाने की आवाज आई और फिर विवेक की आवाज गूंजी, “किसी का गायब होना कोई मामूली बात नहीं है पांडे। और एक फरियादी की शिकायत और किसी की भीख में फर्क करना सीखो। भेजो उसे अंदर।”
पांडे जी का चेहरा उतर गया। उन्होंने सहमी हुई लड़की की तरफ इशारा किया और धीरे से कहा, “जाओ, साहब बुला रहे हैं।” लड़की कांपते हुए कदमों से केबिन की तरफ बढ़ी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसे डर लग रहा था कि कहीं अंदर वाला साहब भी बाहर वालों जैसा ही ना हो।
उसने धीरे से दरवाजा खटखटाया। “अंदर आ जाओ।” आवाज आई। मीरा, उस लड़की का नाम मीरा था। डरते-डरते केबिन में दाखिल हुई। केबिन बहुत बड़ा और साफ सुथरा था। एक बड़ी सी मेज के पीछे आरामदायक कुर्सी पर एसपी विवेक राठौर बैठे थे। उनकी वर्दी पर सितारे चमक रहे थे। चेहरा रबदार था। लेकिन आंखों में एक अजीब सी शांति थी।
उन्होंने मीरा को ध्यान से देखा। उसका मासूम पर टूटा हुआ चेहरा, आंसुओं से भरी आंखें, डरी हुई आवाज। विवेक ने एक ही नजर में उसकी हालत का अंदाजा लगा लिया। उन्होंने अपनी कुर्सी से उठकर पास रखी पानी की बोतल से एक गिलास में पानी भरा और मीरा की तरफ बढ़ाया। उनका स्वर इस बार बहुत नरम था। “बैठो बिटिया, पहले पानी पियो और डरो मत। बताओ क्या हुआ?”
किसी बड़े अफसर का इतना अपनापन देखकर मीरा हैरान रह गई। उसने कांपते हाथों से गिलास पकड़ा और एक ही सांस में पूरा पानी पी गई। उसके गले की खराश कुछ कम हुई। उसने हिम्मत जुटाई और अपनी कहानी सुनानी शुरू की।
“साहब, मेरा नाम मीरा है और मेरी छोटी बहन है गुड़िया। कल शाम को हमारी बस्ती के सारे लोग पास वाले हैंडपंप पर पानी भरने गए थे। बच्चे वहीं खेल रहे थे। जब सब वापस लौटे तो गुड़िया नहीं मिली। पहले हमें लगा कि यहीं कहीं होगी। किसी के घर चली गई होगी। हमने पूरी रात उसे ढूंढा। हर घर, हर गली, पास के मैदान में लेकिन वह कहीं नहीं मिली। सुबह मैं थाने गई थी। पर वहां उन्होंने मुझे भगा दिया।”
मीरा ने रोते हुए वह धुंधली सी फोटो विवेक की मेज पर रख दी। विवेक ने तस्वीर हाथ में ली। एक प्यारी सी बच्ची की मुस्कान। उन्होंने कुछ देर तक तस्वीर को देखा जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहे हों। उनकी निगाहें उस तस्वीर पर जम सी गईं। कुछ पल के लिए केबिन में एक अजीब सी खामोशी छा गई जैसे वक्त हार गया हो।
विवेक ने तस्वीर से नजरें हटाई और मीरा से पूछा, “अपना नाम क्या बताया तुमने बिटिया?”
“जी मीरा।”
“मीरा, यह फोटो बहुत पुरानी लग रही है। कहां खिंचवाई थी?”
मीरा की आंखों में फिर से उदासी छा गई। “बहुत साल पहले साहब, मेरे पिताजी ने खिंचवाई थी एक मेले में। उसके बाद तो वह हमें छोड़कर चले गए। अब हम दोनों बहनें ही एक-दूसरे का सहारा हैं। मैं पास की एक कोठी में साफ-सफाई का काम करती हूं और गुड़िया का ध्यान रखती हूं। वह मेरी दुनिया है साहब। प्लीज, उसे ढूंढ लाइए।”
विवेक का गला भर आया। उन्होंने धीरे से पूछा, “तुम्हारे पिता का नाम क्या था?”
“रघुवीर सिंह।”
यह नाम सुनना था कि विवेक की उंगलियां जो फाइल पर थीं, वह वहीं रुक गईं। यह नाम किसी तीर की तरह उनके सीने में धंस गया हो। रघुवीर सिंह वही नाम था जिसे उन्होंने अपने बचपन की धुंधली यादों में सुना था। उनकी नजर अचानक मीरा की दाहिनी बाह पर पड़ी जहां कपड़ा थोड़ा फटा हुआ था। वहां एक पुराना गहरा जलने का निशान था।
विवेक ने अपनी आवाज को काबू में करते हुए पूछा, “यह चोट का निशान कैसा है?”
मीरा ने अपने निशान को देखा और बोली, “यह बचपन का है साहब। हमारी झोपड़ी में आग लग गई थी। मैं उसी में जल गई थी। पिताजी मुझे बचा रहे थे। उन्होंने ही मुझे बाहर निकाला था। उसके कुछ दिन बाद वह कहीं चले गए। लोगों ने कहा कि वह हमें छोड़कर भाग गए।”
एसपी विवेक का दिल किसी ट्रेन की तरह दौड़ने लगा। उनके कानों में किसी के चीखने की आवाजें गूंजने लगीं। उनकी आंखों के सामने आग की लपटें नाचने लगीं। उनके बचपन का वह भयानक हादसा, वह आग, वह हादसा जिसने उनका पूरा परिवार छीन लिया था। उन्हें भी तो एक ऐसा ही निशान पीठ पर मिला था।
उन्हें याद आया कि कैसे किसी ने उन्हें जलती झोपड़ी से निकालकर अस्पताल पहुंचाया था और जब उन्हें होश आया, तो वह एक अनाथालय में थे। उन्हें बताया गया था कि उनके परिवार में कोई नहीं बचा। उन्होंने अपनी कांपती हुई आवाज में एक आखिरी सवाल पूछा, “मीरा, तुम्हें अपने पिताजी की शक्ल याद है?”
मीरा ने अपनी आंखें झुका ली। “बस थोड़ा-थोड़ा, बहुत धुंधली सी याद है। बड़े मजबूत कद-काठी के थे। लेकिन वह हमें छोड़ गए। हमारी मां तो पहले ही नहीं थी। पिता भी छोड़ गए।”
एसपी विवेक अपनी कुर्सी से ऐसे उठे जैसे उन्हें बिजली का झटका लगा हो। उनकी आंखों में अब सिर्फ आंसू थे। वह अपनी मेज के दूसरी तरफ आए और मीरा के पास आकर खड़े हो गए। “नहीं, वह तुम्हें छोड़कर नहीं गए थे। उन्हें मजबूरी में दूर होना पड़ा था और शायद वह तुम्हारे ही पिता, मेरे भी पिता हैं।”
मीरा ने चौंक कर उनकी तरफ देखा। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। “आपका क्या मतलब है साहब? आप क्या कह रहे हैं?” विवेक की आंखों से आंसू बहने लगे थे। एक सख्त पुलिस अफसर जिसके नाम से अपराधी कांपते थे, आज एक छोटे बच्चे की तरह रो रहा था।
“मीरा, मैं भी रघुवीर सिंह का बेटा हूं। तुम्हारा बड़ा भाई विवेक।”
ऑफिस के उस शांत केबिन में जैसे एक धमाका हुआ। सन्नाटा इतना गहरा गया कि घड़ी की टिक टिक भी साफ सुनाई दे रही थी। मीरा के होंठ कांपने लगे। उसे यकीन नहीं हो रहा था। “भैया, आप सच कह रहे हैं। मेरे भैया तो वह तो उस आग में…”
विवेक ने आगे बढ़कर उसका हाथ थाम लिया। “नहीं, मैं जिंदा था। उस हादसे में मैं बुरी तरह जख्मी हो गया था। किसी ने मुझे हॉस्पिटल पहुंचाया और फिर वहां से मैं अनाथालय चला गया। मुझे बताया गया कि मेरी एक छोटी बहन भी थी जो हादसे में नहीं रही। मैंने तुम्हें मरा हुआ समझ लिया था और तुमने मुझे भगवान आज इतने सालों बाद…”
विवेक ने अपनी जेब से बटुआ निकाला। उसमें एक बहुत ही पुरानी करणोबेला तस्वीर थी। एक आदमी, एक छोटा लड़का और गोद में एक नन्ही सी बच्ची। वह तस्वीर मीरा की तस्वीर से हूबहू मिलती थी। मीरा अब खुद को रोक नहीं पाई। वह फूट-फूट कर रोने लगी। “भैया!” कहकर वह विवेक के गले लग गई।
इतने सालों का दर्द, अकेलापन, बेबसी सब आंसुओं में बह रहा था। भाई-बहन इतने सालों बाद मिले थे एक ऐसी जगह पर जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। बाहर हॉल में बैठे सिपाही और मुंशी दरवाजे की दरार से यह सब देख और सुन रहे थे। उनके चेहरे पर हवाएं उड़ रही थीं। जिस लड़की को वह भिखारी समझकर दुत्कार रहे थे, वह उनके सबसे बड़े साहब की सगी बहन निकली।
पांडे जी को तो चक्कर आने लगा था। अब यह मामला सिर्फ एक लापता बच्ची का नहीं था। यह एक परिवार की अधूरी गाथा थी जिसे आज पूरा होना था। विवेक ने मीरा को संभाला, उसे कुर्सी पर बिठाया और उसके सिर पर हाथ फेरा। “चुप हो जा मेरी बहन। अब मैं आ गया हूं। गुड़िया को कुछ नहीं होगा। मैं उसे ढूंढ निकालूंगा। चाहे वह जमीन के नीचे हो या आसमान में।”
उनके अंदर का अवसर अब जाग चुका था। लेकिन इस बार मिशन पर्सनल था। उन्होंने इंटरकॉम का बटन दबाया। उनकी आवाज में अब वही पुरानी कड़कपन लौट आया था। लेकिन उसमें एक अजीब सी अर्जेंसी थी। “पांडे, शर्मा! तुरंत मेरे केबिन में आओ।”
दोनों सिपाही लगभग भागते हुए अंदर आए। उनके चेहरे पर डर साफ झलक रहा था। वह नजरें झुकाए खड़े थे। विवेक अपनी कुर्सी पर वापस बैठ चुके थे। उनका चेहरा इस्पात की तरह सख्त था। “पूरे जिले में अलर्ट जारी करो। शहर के बाहर जाने वाले हर रास्ते पर नाकाबंदी लगाओ। हर चौकी, हर थाने में इस बच्ची की फोटो भेजो। वायरलेस पर मैसेज फ्लैश करो। एक 10 साल की बच्ची, नाम गुड़िया, कल रात से बस्ती इलाके से लापता है। हर हाल में उसे ढूंढना है। यह केस अब से मेरी सीधी निगरानी में चलेगा। मुझे हर आधे घंटे में अपडेट चाहिए।”
“जाओ।” दोनों सिपाही “जय हिंद सर” बोलकर ऐसे भागे जैसे उनकी जान बच गई हो। देखते ही देखते पुलिस मशीनरी हरकत में आ गई। जो ऑफिस 5 मिनट पहले सुस्ती में डूबा हुआ था, वहां अब तूफान आ गया था। फोन की घंटियां बजने लगीं। वायरलेस सेट खड़कने लगे। जीप से आयरन बजाती हुई शहर की सड़कों पर दौड़ने लगी।
जिस थाने ने मीरा को भगाया था, वहां के थानेदार को जब एसपी साहब का सीधा फोन आया, तो उसके हाथ पैर कांपने लगे। एसपी विवेक ने उसे सिर्फ इतना कहा, “शर्मा जी, जिस लड़की को आपने सुबह भगाया था, वह मेरी बहन है और जो बच्ची गायब है, वह भी मेरी बहन है। अगर कल सुबह तक वह मुझे सही सलामत नहीं मिली, तो अपनी वर्दी उतारने के लिए तैयार रहना।”
थानेदार के पसीने छूट गए। उसने अपनी पूरी फोर्स को उस बस्ती में उतार दिया। विवेक ने मीरा को अपने पास बिठाए रखा। वह बार-बार उसे दिलासा दे रहे थे। “चिंता मत कर मीरा। हमारी पुलिस बहुत काबिल है। वह जरूर गुड़िया को ढूंढ लेगी।”
घंटे बीतते जा रहे थे। रात गहरा रही थी। मीरा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। लेकिन अपने भाई के पास होने से उसे एक अजीब सी हिम्मत भी मिल रही थी। तकरीबन रात के 11:00 बजे विवेक के वायरलेस पर एक संदेश आया। एक खबरी ने बताया था कि बस्ती के पास वाली पुरानी झूठ मिल के गोदाम में कुछ लोगों ने एक बच्ची को छिपा कर रखा है। वह लोग शायद बच्ची को बेचने की फिराक में थे।
विवेक ने तुरंत एक टीम को उस गोदाम पर रेड करने का आदेश दिया। वह खुद भी जाने के लिए उठे लेकिन फिर मीरा को देखकर रुक गए। उसे इस हालत में अकेला छोड़ना ठीक नहीं था। अगले 15 मिनट मीरा और विवेक के लिए सदियों जैसे थे। हर एक सेकंड काटना मुश्किल हो रहा था। फिर विवेक के फोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ से इंस्पेक्टर की आवाज आई, “सर, मुबारक हो। बच्ची मिल गई है। वह थोड़ी डरी हुई है। पर एकदम सही सलामत है। हमने दो लोगों को भी गिरफ्तार किया है।”
यह सुनते ही विवेक की आंखों में चमक आ गई। उन्होंने मीरा के कंधे पर हाथ रखा और मुस्कुरा कर कहा, “मिल गई मीरा। हमारी गुड़िया मिल गई।” मीरा खुशी से उछल पड़ी। उसके चेहरे पर महीनों बाद वैसी ही रौनक लौटी थी, जैसी उस पुरानी तस्वीर में थी।
आधे घंटे बाद पुलिस की जीप एएसपी ऑफिस के सामने आकर रुकी। एक महिला कांस्टेबल गुड़िया को लेकर अंदर आई। गुड़िया बहुत डरी हुई थी। रो-रो कर उसकी आंखें सूझ गई थीं। जैसे ही उसने मीरा को देखा, वो “दीदी” कहकर दौड़ पड़ी और मीरा से लिपट गई। दोनों बहनें एक-दूसरे से लिपटकर बहुत देर तक रोती रहीं। यह खुशी के आंसू थे। मिलन के आंसू थे।
विवेक एक कोने में खड़े होकर यह सब देख रहे थे। उनकी आंखें भी नम थीं। आज वह सिर्फ एक अवसर नहीं थे। वह एक भाई थे। एक परिवार के मुखिया थे जिसने अपने खोए हुए हिस्से को वापस पा लिया था। जब दोनों बहनों का रोना कुछ कम हुआ तो विवेक उनके पास गए। उन्होंने गुड़िया के सिर पर प्यार से हाथ फेरा।
गुड़िया ने डरते-डरते उनकी तरफ देखा। मीरा ने उसे बताया, “गुड़िया, यह हमारे भैया हैं। हमारे बड़े भैया।” गुड़िया ने मासूमियत से पूछा, “हमारे भी भैया हैं?” विवेक मुस्कुराए और उसे गोद में उठा लिया। “हां बेटा।”
उस रात विवेक ने उन सिपाहियों को कुछ नहीं कहा जिन्होंने मीरा से बदतमीजी की थी। उन्हें उनकी सजा मिल चुकी थी। उनके जमीर ने ही उन्हें कटघरे में खड़ा कर दिया था। विवेक दोनों बहनों को लेकर ऑफिस से बाहर निकले। उनकी सरकारी गाड़ी तैयार खड़ी थी।
उन्होंने दोनों को प्यार से पीछे की सीट पर बिठाया और खुद ड्राइविंग सीट के बगल में बैठ गए। गाड़ी जब उनके सरकारी बंगले की तरफ चली तो मीरा और गुड़िया हैरान होकर बाहर की चमचमाती दुनिया देख रही थीं। उनके लिए यह सब एक सपने जैसा था। कल तक जो फुटपाथ पर सोती थी, आज वह एसपी साहब की गाड़ी में अपने सगे भाई के साथ उसके घर जा रही थी।
जब गाड़ी बंगले के गेट पर रुकी तो गेट पर एक खूबसूरत और सुलझी हुई महिला खड़ी थी। वह विवेक की पत्नी सोनिया थी। विवेक को देर हो रही थी तो वह चिंता में बाहर टहल रही थी। जब उन्होंने विवेक के साथ दो अनजान मैले कुचैले कपड़ों में लड़कियों को उतरते देखा तो उन्हें थोड़ी हैरानी हुई।
विवेक ने मुस्कुराते हुए कहा, “सोनिया, इनसे मिलो। यह मीरा है और यह गुड़िया, मेरी बहनें।” सोनिया चौंक गई। “आपकी बहनें? पर आपने तो कहा था कि आपका कोई नहीं है।” विवेक ने सोनिया का हाथ पकड़ा और संक्षेप में उसे पूरी कहानी बताई। कैसे एक हादसा हुआ। कैसे वह बिछड़ गए और कैसे किस्मत ने आज उन्हें फिर से मिला दिया।
सोनिया की आंखों में आंसू आ गए। वह एक बहुत ही नरम दिल की औरत थी। उसने आगे बढ़कर मीरा और गुड़िया को गले लगा लिया। “आज से यह घर सिर्फ हमारा नहीं, तुम दोनों का भी है। मुझे हमेशा से एक ननंद की कमी महसूस होती थी। भगवान ने आज मेरी सुन ली।”
उसने दोनों बहनों का हाथ पकड़ा और प्यार से उन्हें अंदर ले गई। घर बहुत बड़ा और सुंदर था। मीरा और गुड़िया के लिए या किसी महल से कम नहीं था। सोनिया ने उन्हें गर्म पानी से नहाने में मदद की। अपने कपड़े दिए और फिर चारों ने एक साथ डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाया। सालों बाद उस रात उस घर में एक पूरा परिवार एक साथ खाना खा रहा था।
मीरा और गुड़िया को यकीन ही नहीं हो रहा था कि उनकी किस्मत ऐसे भी बदल सकती है। खाना खाते हुए गुड़िया ने विवेक से पूछा, “भैया, क्या अब हम यहीं रहेंगे? हमें वापस उस बस्ती में तो नहीं जाना पड़ेगा?”
विवेक ने उसका गाल सहलाते हुए कहा, “कभी नहीं। अब तुम दोनों कहीं नहीं जाओगी। तुम दोनों मेरे साथ, अपने भाई के साथ रहोगी। तुम स्कूल जाओगी, पढ़ोगी, लिखोगी और बहुत बड़ी अफसर बनोगी।”
उस रात जब मीरा और गुड़िया आरामदायक बिस्तर पर लेटी तो उनकी आंखों में नींद नहीं बल्कि आने वाले कल के खूबसूरत सपने थे। बाहर विवेक और सोनिया अपने कमरे की बालकनी में खड़े होकर उन दोनों के भविष्य की योजना बना रहे थे। एक अधूरी गाथा आज पूरी हो चुकी थी।
किस्मत ने जो पन्ने फाड़ दिए थे, उन्हें आज फिर से जोड़ दिया था और इस नई कहानी की शुरुआत बहुत खूबसूरत थी। उस रात जब शहर सो रहा था, एसपी विवेक राठौर के बंगले की एक खिड़की में देर तक रोशनी जलती रही। यह सिर्फ एक बल्ब की रोशनी नहीं थी बल्कि बरसों से बुझे हुए रिश्तों के दिए की लौ थी।
कहानी की शुरुआत एक बेबस लड़की की आंखों में तैरते आंसुओं से हुई थी। लेकिन इसका अंत एक भाई की आंखों में छलकती खुशी पर हुआ। किस्मत ने उनके अतीत के पन्ने भले ही बेरहमी से फाड़ दिए थे, लेकिन नियती की कलम में इतनी स्याही बाकी थी कि वह उनके लिए एक नया और खूबसूरत भविष्य लिख सके।
एएसपी की वर्दी पर लगे सितारे तो कानून और व्यवस्था के लिए थे। पर उस रात विवेक ने जाना कि परिवार के आसमान का सबसे चमकता सितारा होना क्या होता है। यह सिर्फ एक लापता बहन की कहानी नहीं थी। यह उस विश्वास की कहानी थी कि अगर इरादे नेक हो, तो बंद दरवाजे भी खुद-ब-खुद खुल जाते हैं और बिछड़े हुए रास्ते एक दिन मंजिल पर मिल ही जाते हैं।
भाग 2: नई शुरुआत
कुछ दिन बाद, मीरा और गुड़िया ने स्कूल जाना शुरू किया। विवेक ने उन्हें अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवाया था। सोनिया ने भी उनकी पढ़ाई में मदद करने का फैसला किया। वह हमेशा उनकी पढ़ाई के लिए समय निकालती थीं और उन्हें प्रेरित करती थीं। मीरा और गुड़िया ने पढ़ाई में बहुत मेहनत की। गुड़िया तो हमेशा हंसती-मुस्कुराती रहती थी, लेकिन मीरा के मन में अपने पिताजी के बारे में सोचने का एक कोना हमेशा खाली रहता था।
एक दिन, स्कूल में एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। मीरा ने अपनी बहन गुड़िया के साथ मिलकर एक नाटक की तैयारी की। नाटक का शीर्षक था “प्यार और परिवार”। उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों को इस नाटक में शामिल किया। नाटक का मुख्य संदेश था कि परिवार का प्यार सबसे महत्वपूर्ण होता है, चाहे स्थिति कैसी भी हो।
प्रतियोगिता के दिन, मीरा और गुड़िया ने अपनी पूरी मेहनत से नाटक पेश किया। दर्शकों ने उनकी अदाकारी की सराहना की। विवेक और सोनिया भी वहां मौजूद थे। जब मीरा ने नाटक के अंत में अपनी भावनाओं को व्यक्त किया, तो सभी की आंखों में आंसू थे। उन्होंने कहा, “हमारी कहानी एक संघर्ष की कहानी है, लेकिन प्यार ने हमें फिर से मिलाया।”
नाटक खत्म होने के बाद, विवेक ने अपने दोनों बहनों की पीठ थपथपाई। उन्होंने कहा, “तुम दोनों ने बहुत अच्छा काम किया। मुझे तुम पर गर्व है।”
गुड़िया ने मुस्कुराते हुए कहा, “भैया, क्या आप हमें हमेशा प्यार करेंगे?” विवेक ने कहा, “हमेशा, क्योंकि तुम मेरी जिंदगी का सबसे कीमती हिस्सा हो।”
भाग 3: पुरानी यादें
एक दिन, विवेक ने मीरा और गुड़िया को अपने बचपन की बातें सुनाने का फैसला किया। उन्होंने उन्हें बताया कि कैसे उन्होंने अपने पिताजी को खोया और कैसे उनकी मां ने उन्हें अकेला छोड़ दिया। मीरा ने विवेक की बातें ध्यान से सुनीं और उनकी आंखों में आंसू आ गए।
“भैया, आपको बहुत दुख हुआ होगा। क्या आप कभी अपने पिताजी से मिले?” मीरा ने पूछा। विवेक ने सिर झुकाया और कहा, “नहीं, मीरा। मैं हमेशा सोचता था कि वह हमें छोड़कर चले गए। लेकिन अब मुझे पता चला है कि वह हमें छोड़कर नहीं गए थे। उन्हें मजबूरी में दूर होना पड़ा था।”
गुड़िया ने कहा, “भैया, क्या हम कभी अपने पिताजी से मिलेंगे?” विवेक ने मुस्कुराते हुए कहा, “हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। शायद एक दिन हम उन्हें खोज लेंगे।”
भाग 4: एक नई चुनौती
कुछ महीनों बाद, विवेक को एक नया केस मिला। यह एक मानव तस्करी का मामला था। विवेक ने अपनी टीम के साथ जांच शुरू की। इस मामले में कई बच्चों के लापता होने की खबरें आई थीं। विवेक ने मीरा और गुड़िया को इस मामले के बारे में बताया और कहा, “यह मामला बहुत गंभीर है। हमें इन बच्चों को बचाना है।”
मीरा ने कहा, “भैया, क्या हम मदद कर सकते हैं?” विवेक ने कहा, “तुम दोनों अभी छोटे हो। यह बहुत खतरनाक हो सकता है। लेकिन तुम मेरी प्रेरणा हो। तुम्हारी हिम्मत से मुझे ताकत मिलती है।”
भाग 5: मिशन बचाव
विवेक ने अपनी टीम के साथ मिलकर एक योजना बनाई। उन्होंने बस्ती के लोगों से मिलकर बच्चों की सुरक्षा के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया। मीरा और गुड़िया ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया। उन्होंने अपने अनुभव साझा किए और लोगों को बताया कि कैसे वे सुरक्षित रह सकते हैं।
एक दिन, विवेक को एक सूचना मिली कि कुछ संदिग्ध लोग एक बच्चे को बेचने की कोशिश कर रहे हैं। विवेक ने तुरंत अपनी टीम के साथ उस जगह पर छापा मारने का फैसला किया। मीरा और गुड़िया ने भी विवेक का साथ देने का निश्चय किया।
जब वे वहां पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि कुछ लोग एक छोटे बच्चे को पकड़कर बेचने की कोशिश कर रहे थे। विवेक ने तुरंत कार्रवाई की और पुलिस ने उन लोगों को गिरफ्तार कर लिया। बच्चे को सुरक्षित निकाल लिया गया।
भाग 6: परिवार का पुनर्मिलन
इस घटना के बाद, मीरा और गुड़िया ने विवेक के साथ मिलकर और भी बच्चों को बचाने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने अनुभवों के जरिए बच्चों को जागरूक करने का काम किया। धीरे-धीरे, उनकी मेहनत रंग लाई। उन्होंने कई बच्चों को सुरक्षित निकाला और उनके परिवारों से मिलवाया।
एक दिन, मीरा ने विवेक से कहा, “भैया, क्या हम अपने पिताजी को भी खोज सकते हैं? अब हमें कोई भी नहीं छोड़ सकता।” विवेक ने मुस्कुराते हुए कहा, “हां, मीरा। हम उन्हें खोजेंगे।”
भाग 7: एक नई शुरुआत
कुछ समय बाद, विवेक ने अपने पिताजी के बारे में जानकारी जुटाने का फैसला किया। उन्होंने अपने पुराने दोस्तों से संपर्क किया और कई जगहों पर खोजबीन की। अंततः, उन्हें एक ऐसी जगह का पता चला जहां उनके पिताजी का नाम था।
विवेक ने मीरा और गुड़िया को साथ लिया और वहां पहुंचे। वहां पहुंचकर विवेक ने अपने पिताजी को पहचान लिया। वह एक वृद्ध आदमी थे जो अब अकेले थे। विवेक ने उनसे कहा, “पिताजी, मैं विवेक हूं। आपका बेटा।”
उनके पिताजी ने चौंक कर विवेक को देखा और फिर उनके आंसू बहने लगे। उन्होंने विवेक को गले लगा लिया। “मैंने तुम्हें खो दिया था, लेकिन आज तुम वापस आ गए हो।”
भाग 8: एक नया परिवार
इस पुनर्मिलन के बाद, विवेक ने अपने पिताजी को अपने घर बुलाया। उन्होंने मीरा और गुड़िया को अपने दादा से मिलवाया। यह एक खुशहाल परिवार की शुरुआत थी।
अब विवेक के पास एक पूरा परिवार था। उन्होंने अपने पिताजी को अपने साथ रखा और उन्हें अपने बच्चों के साथ समय बिताने का मौका दिया। मीरा और गुड़िया ने अपने दादा के साथ बहुत अच्छे रिश्ते बनाए।
भाग 9: खुशियों की शुरुआत
इस तरह, विवेक, मीरा, गुड़िया और उनके पिताजी ने एक नए जीवन की शुरुआत की। उन्होंने एक-दूसरे के साथ मिलकर अपनी खुशियों को साझा किया।
एक दिन, मीरा ने विवेक से कहा, “भैया, अब हम कभी अकेले नहीं होंगे। हमारे पास एक-दूसरे का साथ है।” विवेक ने मुस्कुराते हुए कहा, “हां, मीरा। परिवार का प्यार सबसे बड़ा होता है।”
भाग 10: एक नई कहानी
इस कहानी का अंत एक नए अध्याय की शुरुआत थी। विवेक ने अपने परिवार को फिर से मिलाने का वादा किया था। उन्होंने अपने पिताजी से कहा, “अब हम सब एक साथ रहेंगे। हम कभी भी एक-दूसरे को नहीं छोड़ेंगे।”
इस प्रकार, विवेक और उनकी बहनों की कहानी एक नए परिवार की कहानी बन गई। यह उस विश्वास की कहानी थी कि अगर इरादे नेक हों, तो बंद दरवाजे भी खुद-ब-खुद खुल जाते हैं और बिछड़े हुए रास्ते एक दिन मंजिल पर मिल ही जाते हैं।
समापन: एक नई पहचान
तो दोस्तों, यह थी विवेक और उनकी बहनों की कहानी। कैसी लगी आपको? अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी हो, तो अपना प्यार दिखाना बिल्कुल ना भूलें। वीडियो को एक लाइक करके चैनल को सब्सक्राइब कर दें और कमेंट में एसपी विवेक के बारे में आपकी क्या राय है, जरूर बताएं।
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