SP मैडम को आम लडकी समझ कर जब इंस्पेक्टर नें थप्पड़ मारा फिर इंस्पेक्टर के साथ जों हुवा…

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भाग 1: एक नई शुरुआत

हाथों में लिस्ट लिए एमएसपी अनन्या सिंह अपनी बहन ललिता की शादी की साड़ी खरीदने अकेले बाजार जा रही थी। उसने लाल सलवार सूट पहना हुआ था, पैरों में साधारण जूते थे और चेहरे पर सादगी थी। ना कोई बॉडीगार्ड, बस एक आम बहन की तरह बाजार पहुंची। उसे देख आसपास के दुकानदार पहचान भी ना पाए कि कौन आई है। तभी उनकी नजर सीधे उसी पुरानी कपड़ों की दुकान पर गई, जहां वह पहले भी कई बार बिना सिक्योरिटी चोरी छिपे आ चुकी थी।

भाग 2: कपड़ों की दुकान

अनन्या धीरे-धीरे दुकान में दाखिल हुई। दुकान बड़ी नहीं थी, लेकिन चारों तरफ रंग-बिरंगी साड़ियों के थान सजे थे। काउंटर पर मालिक हिसाब किताब में उलझा था और करीब 20 साल का एक लड़का ग्राहकों को साड़ियां दिखा रहा था। अनन्या को आते देख किसी ने खास ध्यान नहीं दिया। सबको लगा कोई आम सी ग्राहक होगी।

वह काउंटर के पास जाकर खड़ी हो गई और लड़के से बोली, “भैया, मेरी बहन की शादी है। उसके लिए एक बहुत अच्छी साड़ी चाहिए। कुछ बढ़िया डिजाइन दिखाएं।” लड़के ने बेमन से कुछ साड़ियां काउंटर पर फैला दीं। अनन्या एक-एक साड़ी को उठाकर गौर से देखने लगी।

भाग 3: सही साड़ी की तलाश

उसे कभी रंग पसंद नहीं आता तो कभी बॉर्डर नहीं। उन्होंने एक साड़ी को देखकर कहा, “यह रंग बहुत हल्का है। ललिता पर खिलेगा नहीं। इसका बॉर्डर बहुत पतला है। शादी के हिसाब से जचेगा नहीं।” फिर अनन्या ने एक और साड़ी को पलट कर कहा, “अरे, यह तो बहुत ज्यादा छटक है। दुल्हन को थोड़ा सोबर दिखना चाहिए।” इसी तरह आधा घंटा कब बीत गया पता ही नहीं चला।

दुकान में ग्राहकों की भीड़ बढ़ने लगी थी। लड़के के चेहरे पर अब झुनझुनाहट साफ झलक रही थी। उधर रामलाल भी अपनी मोटी ऐनक के पीछे से बार-बार अनन्या को घूर रहा था। फिर वह थोड़ा रूखेपन से कहा, “सब एक से बढ़कर एक पीस हैं। मैडम जी, इनमें से ही कोई ले लीजिए।” लेकिन अनन्या का दिल मान ही नहीं रहा था। उनके लिए यह सिर्फ एक साड़ी नहीं थी। यह उनकी बहन के लिए उनका प्यार, उनका दुलार था।

भाग 4: निर्णय का समय

उन्होंने शांत स्वर में जवाब दिया, “मुझे कोई जल्दी नहीं है भाई साहब। मेरी बहन की शादी का मामला है। सबसे अच्छा ही चाहिए।” रामलाल ने धीरे से लड़के को इशारा किया। लड़का बड़बड़ाता हुआ तहखाने की ओर गया और कुछ ही देर में नए बंडल उठाकर ले आया और काउंटर पर रख दिया। अब काउंटर साड़ियों से भर चुका था।

अनन्या एक-एक साड़ी खुलवा कर देख रही थी और रामलाल का पारा चढ़ता जा रहा था। लड़का धीरे से अपने मालिक के कान में फुसफुसाया, “आधे घंटे से दिमाग खराब कर रखा है।” अनन्या ने उसकी बात सुन ली। एक पल को उन्हें बुरा लगा। वह चाहे तो 1 मिनट में इस दुकान पर ताला लगवा सकती थी। लेकिन आज वह अपनी पावर का इस्तेमाल नहीं करना चाहती थी।

भाग 5: सही साड़ी की खोज

उन्होंने लड़के की बात को अनसुना कर दिया और फिर लगभग 1 घंटे की माथापेची के बाद उनकी नजर उस पर पड़ी एक गहरे मरून रंग की साड़ी पर, जिस पर सोने के धागों से चौड़ा बॉर्डर बना था और पूरी साड़ी पर महीन कढ़ाई का काम था। वह साड़ी जैसे ललिता के लिए ही बनी थी। अनन्या के चेहरे पर आखिरकार एक संतुष्टि की मुस्कान आ गई और उन्होंने साड़ी हाथ में लेते हुए कहा, “हां, बस यही चाहिए, इसे पैक कर दो।”

रामलाल ने राहत की सांस ली जैसे कोई बड़ी मुसीबत टल गई हो। लड़के ने जल्दी-जल्दी साड़ी को तह करके एक चमकीले पैकेट में डाल दिया। अनन्या ने पर्स से पैसे निकालकर दिए और पैकेट हाथ में ले लिया। उसके मन में एक खुशी थी, एक सुकून था कि उन्होंने अपनी बहन के लिए सबसे अच्छी चीज चुन ली है।

भाग 6: गड़बड़ का एहसास

वह दुकान से बाहर निकलने के लिए मुड़ी ही थी कि उनकी नजर पैकेट के एक कोने से झांकते एक धागे पर पड़ी। जो कुछ गड़बड़ थी। वह रुकी, पैकेट को खोला और साड़ी को दोबारा बाहर निकाला। उनके दिल की धड़कन बढ़ गई। साड़ी के बॉर्डर पर एक जगह से धागा टूटा हुआ था और उजड़ कर लटक रहा था।

उन्होंने हल्के से उसे खींचा तो कढ़ाई की पूरी सिलाई खुलने लगी। यह एक डिफेक्टिव पीस था। अनन्या का चेहरा उतर गया। वह वापस काउंटर पर गई। उन्होंने रामलाल को दिखाते हुए कहा, “भैया, यह देखिए। इसमें तो धागा टूटा हुआ है। यह तो पूरी उधड़ जाएगी।”

भाग 7: अनदेखी का गुस्सा

रामलाल ने एक नजर साड़ी पर डाली और फिर बड़ी लापरवाही से बोला, “अरे मैडम, इतना छोटा-मोटा तो चलता है। आप ले जाएं। दर्जी से ठीक करवा लेना, कुछ नहीं होगा।” अनन्या का गुस्सा अब बढ़ने लगा था। उनकी आवाज थोड़ी सख्त हो गई। वह रामलाल को बोली, “चलता कैसे है? मैं इतने पैसे दे रही हूं। कोई फोकट में तो नहीं ले रही। मुझे ठीक साड़ी चाहिए।”

अब रामलाल भी भड़क गया और कड़क आवाज में बोला, “देखिए मैडम, अब बार-बार तो नहीं बदल सकते। आपने खुद देखकर पसंद की है। अब इसमें हमारी क्या गलती?” काउंटर के पीछे खड़ा लड़का भी हंसते हुए बोला, “अरे मैडम, आपने तो सब कुछ जांच परख कर ही लिया था ना, अब नाटक क्यों कर रही हो?”

भाग 8: आत्मसम्मान की लड़ाई

यह सुनते ही अनन्या के आत्मसम्मान को ठेस लग गई। वह एक अफसर थी, लेकिन उससे पहले एक ग्राहक थी और एक ग्राहक के साथ ऐसा बर्ताव उन्हें बर्दाश्त नहीं था। उन्होंने दृढ़ता से कहा, “सही साड़ी दो वरना मेरे पैसे वापस करो।” रामलाल ने आंखें तरेर ली और बोला, “पैसे वैसे वापस नहीं होंगे। ज्यादा ड्रामा मत करो यहां पर।”

अब तक दुकान में खड़े बाकी ग्राहक भी तमाशा देखने लगे थे। कान्हा फूंसी शुरू हो गई थी। दुकान के अंदर का माहौल गर्म हो चुका था। अनन्या ने आवाज ऊंची करके बोला, “दुकानदार ऐसे नहीं चलती है। मैंने पूरा पैसा दिया है। या तो सही कपड़े दो या पैसे वापस करो।”

भाग 9: पुलिस का आगमन

रामलाल ने चिल्लाते हुए बोला, “क्यों? बहुत बड़ी अवसर समझती हो? क्या खुद को तुम्हारे जैसे लोग रोज आते हैं? चलो, भागो यहां से।” यह सुनते ही अनन्या ने गुस्से में साड़ी का पैकेट काउंटर पर पटक दिया। भीड़ अब और बढ़ गई थी। लड़के ने पीछे से एक और तीर छोड़ा। “अब शुरू हो गया इनका ड्रामा।”

अनन्या ने उसे घूर कर देखा तो उनकी आंखों में वह सख्ती थी जो बड़े-बड़े अपराधियों को भी चुप करा देती थी। लेकिन यहां कोई उन्हें पहचानने वाला नहीं था। रामलाल ने गुस्से में अपनी जेब से मोबाइल निकाला और चिल्लाते हुए बोला, “ज्यादा हंगामा मत करो, वरना मैं अभी पुलिस को फोन करता हूं।”

भाग 10: अनन्या का आत्मविश्वास

अनन्या के चेहरे पर एक व्यंग्यात्मक मुस्कान आई। “हां, कर लो, बुला लो पुलिस को। हम भी तो देखें तुम्हारी।” रामलाल को लगा कि वह डर नहीं रही है। उसने तुरंत थाने का नंबर मिलाया और स्पीकर पर डाल दिया। “हैलो थानेदार साहब, गुप्ता साड़ी भंडार से बोल रहा हूं। यहां एक औरत बिना वजह झगड़ा कर रही है। दुकान में हंगामा मचा रखा है। जल्दी किसी को भेजिए।”

फोन करते ही भीड़ में फुसफुसाहट और तेज हो गई। “अरे, इसने तो पुलिस ही बुला ली।” अनन्या ने कुछ नहीं कहा। उन्होंने पास पड़ी एक पुरानी लोहे की कुर्सी उठाई और दुकान के गेट पर जाकर बैठ गई। उन्होंने आसमान की तरफ देखा और एक पल के लिए उन्हें ललिता का चेहरा याद आया। उसकी शादी का सपना याद आया।

भाग 11: साहस का प्रतीक

लेकिन अब यह सिर्फ एक साड़ी की बात नहीं थी। यह उनके आत्मसम्मान की लड़ाई बन चुकी थी। वह पीछे नहीं हट सकती थीं। वह उस कुर्सी पर शांति से बैठी थीं जैसे किसी तूफान के आने का इंतजार कर रही हो। मन में एक भरोसा था। उन्होंने खुद से कहा, “कोई बात नहीं, पुलिस आएगी, मुझे पहचान लेगी और यह सारा तमाशा 1 मिनट में खत्म हो जाएगा।”

आखिर वह इसी जिले की एसपी अनन्या थीं। हर थानेदार, हर दरोगा उन्हें पहचानता था। पूरा पुलिस डिपार्टमेंट उन्हें सलाम करता था। लेकिन शायद किस्मत को आज उनकी परीक्षा लेनी थी। 10 मिनट बाद पुलिस की एक पुरानी जीप धूल उड़ाती हुई दुकान के सामने आकर रुकी। जीप से एक दरोगा विक्रम सिंह और दो सिपाही नीचे उतरे।

भाग 12: पुलिस का सामना

दरोगा विक्रम सिंह की तोंद बाहर निकली हुई थी और चेहरे पर एक अजीब सी अकड़ थी। भीड़ उन्हें देखकर किनारे हो गई। रामलाल दौड़कर दरोगा विक्रम सिंह के पास गया। उसने अनन्या की तरफ इशारा करते हुए कहा, “साहब, यही है। वह औरत बिना बात के झगड़ा कर रही है। हमारी दुकान का माहौल खराब कर रही है।”

दरोगा विक्रम सिंह ने बिना कोई सवाल पूछे अनन्या को ऊपर से नीचे तक घृणा भरी नजरों से देखा। अनन्या अभी भी कुर्सी पर बैठी थीं। उनके चेहरे पर थकान थी, लेकिन आंखों में एक उम्मीद भी थी कि अब सब ठीक हो जाएगा। तभी दरोगा विक्रम सिंह ने गरज कर पूछा, “कौन हो तुम? क्या तमाशा लगा रखा है यहां?”

भाग 13: आत्मसम्मान की लड़ाई

अनन्या ने शांत होकर जवाब दिया, “तमीज से बात करो।” फिर उन्होंने कहा, “मैं अनन्या सिंह हूं।” दरोगा विक्रम सिंह अकड़ते हुए बोला, “अनन्या सिंह हो तो क्या हुआ? किसी रानी के खानदान से हो क्या?” दरोगा विक्रम सिंह ने बीच में ही उनकी बात काट दी, “क्या तुम्हें दुकान में हंगामा करने का लाइसेंस मिल गया है?”

भाग 14: अपमान का सामना

अनन्या ने एक गहरी सांस ली। “शायद तुम्हें पता नहीं है कि तुम किससे बात कर रहे हो।” दरोगा विक्रम सिंह जोर से हंसा। “हां हां, पता है। अब सबकी मां बनोगी तुम। ज्यादा अकड़ मत दिखाओ। सीधे थाने चलो। वहां तुम्हारी सारी अकड़ निकालता हूं।”

एक सिपाही आगे बढ़कर अनन्या का हाथ पकड़ने लगा। अनन्या ने उसे घूर कर देखा तो वह एक पल को झिझक गया। यह देख भीड़ में खड़ी औरतें कान्हा फूंसी करने लगीं और बोलीं, “यह तो अच्छे घर की है, पर है बड़ी झगड़ालू।”

भाग 15: अपमान का प्रतिशोध

तभी रामलाल ने दरोगा विक्रम सिंह को कंधे से पकड़ कर धीरे से दुकान के अंदर ले गया। काउंटर के पीछे ले जाकर उसने अपनी पट की जेब से कुछ नोट निकाले और दरोगा विक्रम सिंह की जेब में खिसका दिए। “साहब, इसको उठा ले जाएं यहां से।” उसने फुसफुसा कर कहा। “यह हमारा धंधा खराब कर रही है। जो भी खर्चा पानी होगा मैं देख लूंगा।”

दरोगा विक्रम सिंह ने नोटों पर एक नजर डाली। उसके होठों पर एक गिरी हुई मुस्कान आई। रिश्वत की गर्मी ने उसकी अकड़ को और बढ़ा दिया। वह भीड़ की तरफ देखते हुए बाहर निकला। अनन्या अब भी उसी कुर्सी पर बैठी थी। वह सोच रही थी, “अब तक तो इसने मुझे पहचान लिया होगा। अब यह नाटक खत्म होगा।”

भाग 16: हवालात में कैद

पर दरोगा विक्रम सिंह ने सिपाहियों को इशारा किया। इस बार दोनों सिपाहियों ने आगे बढ़कर अनन्या की दोनों बाहें मजबूती से पकड़ ली। अनन्या चौंक गई। “यह क्या बदतमीजी है? मेरी बात तो सुनो।” दरोगा विक्रम सिंह ने सिटी बजाते हुए जीप की तरफ इशारा किया और बोला, “बहुत बोल लिया तुमने। अब थाने चलो, वहीं पता चलेगा कौन कितना बड़ा अफसर है।”

भाग 17: अपमान का नया अध्याय

भीड़ में से किसी ने ताना कसा। “देखो। देखो, बड़ी मैडम बनने आई थी। अब हवालात में चक्की पीसेंगी।” रामलाल दूर खड़ा अपनी मूछों पर ताव देते हुए हंस रहा था। एसपी अनन्या की आंखों में आग जल रही थी। लेकिन उस वक्त उनकी आवाज से ज्यादा भारी था कानून के रखवालों का वह हाथ जो आज एक बेकसूर को पकड़ रखा था।

भाग 18: थाने में अपमान

उन्होंने कोई विरोध नहीं किया। वह जानती थीं कि अगर उन्होंने यहां अपनी पहचान बताई तो यह लोग शायद यकीन ना करें और तमाशा और बढ़ जाए। जीप का दरवाजा खुला। सिपाहियों ने उन्हें लगभग धकियाते हुए अंदर बिठा दिया। जीप का दरवाजा बंद हुआ और उनकी इज्जत, उनका पद सब कुछ उस बंद दरवाजे के पीछे कैद हो गया।

भाग 19: थाने का माहौल

गाड़ी जैसे ही गली से बाहर निकली, रामलाल ने राहत की सांस ली और अपनी दुकान का शटर गिरा दिया। धंधा फिर से अपनी रफ्तार पकड़ लेगा। लेकिन एसपी अनन्या सिंह की इज्जत को थाने के रास्ते पर घसीटा जा रहा था। पुलिस जीप धूल उड़ाती हुई थाने के गेट पर आकर रुकी। यहां बाजार की भीड़ तो नहीं थी। बस कुछ मुजरिमों के रिश्तेदार और पुलिस वाले थे। माहौल में एक अजीब सी उदासी और खामोशी थी।

भाग 20: दरोगा का अहंकार

दरोगा विक्रम सिंह जीप से उतरा और एक सिगरेट सुलगाकर कश लेने लगा। और सिपाही ने जीप का दरवाजा खोला और अनन्या को बाहर खींच कर निकाला गया। लेकिन अनन्या सिर्फ चुप थी। कोई बहस नहीं। कोई गिड़गिड़ाहट नहीं। उनकी सीधी नजर दरोगा विक्रम सिंह के चेहरे पर थी। लेकिन रिश्वत और अहंकार में डूबे उस दरोगा विक्रम सिंह को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।

भाग 21: थाने में अपमान का सामना

दरोगा विक्रम सिंह ने उन्हें धक्का देते हुए कहा, “ले चलो थाने के अंदर।” थाने में अंदर एक हेड कांस्टेबल बैठा था, जो फाइलें पलट रहा था। उसने पूछा, “साहब, यह कौन लड़की है?” दरोगा विक्रम सिंह ने घमंड से कहा, “यह बहुत बड़ी तोप बनी फिरती थी। एक दुकानदार से झगड़ा कर रही थी। ऐसे ही लोग शहर में दंगे करवाते हैं। इसे हवालात में डालो। सारी गर्मी निकल जाएगी।”

भाग 22: अनन्या का आत्मविश्वास

अनन्या ने उसकी बात बीच में ही रोक दी। उनकी आवाज पूरे थाने में गड़गड़ाहट की तरह गूंजी। “बस अब तेरी यह नौटंकी मुझे और नहीं सुननी। तूने आम महिला समझकर जिस तरह से मेरे साथ दुर्व्यवहार किया, उसी तरह तूने ना जाने कितनों के साथ ऐसा काम किया होगा। तू माफी के लायक नहीं है। आज से तू सस्पेंड है।”

भाग 23: सस्पेंशन का आदेश

एसपी अनन्या की यह बात सुनते ही पूरा थाना सन्नाटे में डूब गया। दारोगा विक्रम सिंह वहीं जमीन पर गिरा। सिर पकड़ कर सुबकने लगा। उसके होंठ कांप रहे थे। लेकिन अब उसके पास कोई दलील नहीं बची थी। राजेंद्र ने तुरंत रिपोर्ट निकाली। सस्पेंशन का आदेश लिखा और उस दारोगा विक्रम सिंह को वहीं मौजूद पुलिस जीप में बैठाकर लाइन हाजिर करवा दिया।

भाग 24: रामलाल का अंत

अब उसकी अकड़ धूल हो चुकी थी। अगले ही दिन उस कपड़ा रामलाल को भी नोटिस भेज दिया गया। ग्राहक के साथ धोखाधड़ी, झूठा केस दर्ज करवाना और प्रशासन के काम में बाधा डालना। उसकी दुकान का लाइसेंस रद्द करने की कार्यवाही शुरू हो गई।

भाग 25: अनन्या की दृढ़ता

रात काफी हो चुकी थी, लेकिन अनन्या ने एक पल भी आराम नहीं किया। उन्होंने वाशरूम जाकर अपने कपड़े ठीक किए। चेहरे पर पानी के छींटे मारे। वह दर्द, वह अपमान सब कुछ उन्होंने अपने अंदर समेट लिया था। एक सिपाही ने कहा, “मैडम, सरकारी गाड़ी भेज देते हैं।” अनन्या ने सिर हिलाया। “नहीं, मैं अपनी कार से ही जाऊंगी।”

भाग 26: बहन का प्यार

वह फिर से अफसर नहीं, सिर्फ एक बहन बनना चाहती थीं। थाने से बाहर निकलकर जब वह अपनी पुरानी कार में बैठी तो उनकी आंखों में आंसू आ गए, लेकिन उन्होंने उन्हें बहने नहीं दिया। कुछ ही घंटों बाद उनकी गाड़ी उसकी घर के गेट पर रुकी। शादी के घर में शहनाई की गूंज थी। चारों तरफ हंसी, मजाक, नाच, गाना और मेहमानों की चहल-पहल थी।

भाग 27: ललिता की खुशी

ललिता अपनी सहेलियों से घिरी हुई थी और उसके चेहरे पर दुल्हन बनने की एक अनोखी चमक थी। उस चमक के बीच उसकी आंखें बार-बार अपनी बड़ी बहन अनन्या को ढूंढ रही थीं। अनन्या वहीं थी। हर रस्म में ललिता के साथ खड़ी कभी उसकी चुनरी ठीक करती, कभी उसे छेड़कर हंसा देती। चेहरे पर एक शांत और प्यारी सी मुस्कान थी। जैसे कल रात कुछ हुआ ही ना हो।

भाग 28: बहन का सपना

उन्होंने ललिता को वह मरून रंग की साड़ी दी तो ललिता की आंखें खुशी से भर गईं। “दीदी, यह कितनी सुंदर है। आपने मेरे लिए सबसे अच्छी चीज चुनी है।” अनन्या बस मुस्कुरा दी। बोली, “अरे पगली, तेरे लिए तो जान भी हाजिर है।” लेकिन उस मुस्कान के पीछे एक गहरा समंदर छिपा था।

भाग 29: रात का साया

कल रात जो कुछ भी हुआ वह किसी बुरे सपने की तरह बार-बार उनके दिमाग में कौद रहा था। वह हवालात की सीलन भरी बदबू व दारोगा विक्रम सिंह की गिरी हुई हंसी व रामलाल का घमंडी चेहरा और भीड़ की वह चुभती हुई निगाहें सब कुछ उनकी आत्मा पर किसी घाव की तरह ताजा था।

भाग 30: सवालों का सामना

उन्होंने उस अपमान के घूंट को पिया जरूर था लेकिन वह उनके गले में अटका हुआ था। वह मुस्कुरा रही थीं लेकिन उनका मन बेचैन था। वह सोच रही थीं, “क्या दारोगा विक्रम सिंह को माफ कर देना चाहिए था? आखिर उसने अपने बीवी बच्चों की कसम खाई थी कि आज के बाद कभी ऐसा काम नहीं करेगा।”

भाग 31: चिंताओं का सामना

उनकी आंखों में डर से ज्यादा अपने घर की फिक्र झलक रही थी। अनन्या के दिल में बार-बार सवाल उठ रहा था। “क्या मैंने सही किया या गलत?” उनकी आत्मा जानती थी कि वर्दी का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। लेकिन तभी उन्हें थाने का अंतिम दृश्य याद आया जब दारोगा विक्रम सिंह को सस्पेंड करके ले जाया जा रहा था।

भाग 32: दारोगा की बेबसी

तो उसके चेहरे पर एक ऐसे हंसी थी कि मानो उसे कुछ हुआ ही नहीं हो। उसकी नजरें यह इशारा कर रही थीं कि तुमको देख लेंगे। उसके अंदर कोई डर नहीं था। उनकी आंखें शून्य में टिक गईं। वह उसकी आंखों में भय होने लगा। तभी ललिता ने धीरे से उनका हाथ हिलाया और मुस्कुरा कर बोली, “दीदी, आप कहां खोई हुई हैं?”

भाग 33: सच्चाई की पहचान

उसकी आवाज ने अनन्या की सोच को तोड़ दिया। अनन्या चौंक कर हकीकत में लौटी। “कहीं नहीं लल्ली, बस देख रही हूं। मेरी गुलियां आज कितनी सुंदर लग रही हैं।” उन्होंने बड़ी सफाई से बात को टाल दिया। वह अपनी बहन की जिंदगी के सबसे बड़े दिन में किसी भी तरह की कड़वाहट भूलना नहीं चाहती थीं।

भाग 34: चिंता का सामना

“दीदी, कल आप इतनी देर से क्यों आई और मां बता रही थी कि आपका फोन भी नहीं लग रहा था। सब ठीक तो है ना?” ललिता की आंखों में चिंता साफ झलक रही थी। अनन्या ने एक गहरा सांस लिया। वह अपनी छोटी बहन से झूठ नहीं बोलना चाहती थीं। लेकिन सच बताने का यह सही वक्त नहीं था।

भाग 35: वादा

“हां, सब ठीक है। बस एक जरूरी ऑफिशियल काम में फंसी थी। लेकिन देख, मैंने अपना वादा पूरा किया।” रात को जब सब लोग संगीत और नाच गाने में डूबे थे, अनन्या अकेले छत पर चली गई। ठंडी हवा के बीच उन्होंने राजेंद्र को फोन किया और बोला, “मुझे दरोगा विक्रम सिंह और दुकानदार रामलाल की पूरी जानकारी चाहिए।”

भाग 36: सच्चाई का खुलासा

राजेंद्र ने भरोसा दिलाया, “सुबह तक रिपोर्ट दे दूंगा।” अगले दिन हल्दी की रस्म के बीच फोन आया। राजेंद्र ने बताया, “रामलाल के कई धोखाधड़ी के केस दबाए गए हैं और दरोगा विक्रम सिंह एमएलए भैरव सिंह यादव का खास आदमी है। अवैध शराब, जमीन कब्जा, वसूली सब उसी के लिए करता है।”

भाग 37: भैरव सिंह का खेल

अनन्या ने सब जोड़ लिया तो रामलाल भी उसी के नेटवर्क का हिस्सा है। शाम होते ही बारात की खुशी पर अचानक साया छा गया। एक जीभ से कुछ गुंडे कूदे और पंडाल के बाहर खौफ का तूफान उतर आया। उनके लीडर मंगल ने चिल्लाकर शादी रोकने को कहा। “रोको यह शादी।” उसकी आवाज में इतनी करिश्माई थी कि संगीत तुरंत बंद हो गया।

भाग 38: झूठे इल्जाम

पूरे पंडाल में सन्नाटा छा गया। उसने सबके सामने ललिता पर इल्जाम लगाया कि उसने उसके भाई जगगा पहलवान से ₹50 लाख उधार लिए हैं और अब वह पैसे लौटाए बिना शादी करके भागना चाहती है। दूल्हे के घर वाले सक्ते में आ गए और मेहमान कानाफूसी करने लगे।

भाग 39: ललिता की बेबसी

ललिता, जिस पर कुछ देर पहले खुशियों के फूल बरसाए जा रहे थे, अब उस पर झूठे इल्जामों की कीचड़ उछाली जा रही थी। वह फूट-फूट कर रोने लगी। अनन्या का खून खौल उठा। वह जानती थी कि यह भैरव सिंह की घटिया चाल है। उन्हें और उनके परिवार को बदनाम करने का तरीका। वह एक शेरनी की तरह आगे बढ़ी।

भाग 40: साहस का प्रदर्शन

उनकी आंखों में ना कोई डर था, ना कोई घबराहट। बस एक सर्द गुस्सा था। “क्या सबूत है तुम्हारे पास?” उनकी आवाज शांत लेकिन इतनी पेनी थी कि मंगल भी एक पल को ठिठक गया। मंगल ने कुछ नकली स्टैंप पेपर हवा में लहराए। अनन्या ने एक नजर में ही पहचान लिया कि वह जाली भी है।

भाग 41: चुनौती का सामना

“अच्छा, तो अपने जगगा भाई का नंबर दो। मैं अभी उससे बात करती हूं।” यह सुनकर गुंडे घबरा गए। “वह तो शहर से बाहर है।” “तो फिर यह कचरे के टुकड़े मुझे मत दिखाओ।” अनन्या ने कागज छीनकर उसके मुंह पर फेंक दिए।

भाग 42: पुलिस का डर

“अब तुम्हारे पास दो रास्ते हैं। या तो चुपचाप यहां से निकल जाओ या मैं अभी फोर्स बुलाकर धोखाधड़ी, मानहानि और एक पब्लिक सर्वेंट के परिवार को धमकाने के जुर्म में तुम सबको अंदर करवा दूंगी।” पब्लिक सर्वेंट का नाम सुनते ही गुंडों के होश उड़ गए।

भाग 43: भागने का फैसला

उन्हें अंदाजा नहीं था कि वह किससे पंगा ले रहे हैं। 10 सेकंड के अंदर वह सब दुम दबाकर भाग गए। माहौल संभल तो गया लेकिन जश्न का रंग फीका पड़ चुका था। अनन्या ने दूल्हे के पिता से हाथ जोड़कर माफी मांगी और उन्हें यकीन दिलाया कि उनकी बहन बेकसूर है।

भाग 44: साजिश का पर्दाफाश

उन्होंने वादा किया कि वह इस साजिश की जड़ तक पहुंचेंगी। उस दिन अनन्या ने ठान लिया था कि भैरव सिंह ने उनकी बहन की इज्जत पर हाथ उठाकर अपनी बर्बादी को दावत दी है। ललिता की विदाई के बाद घर की खामोशी अनन्या के गुस्से को और बढ़ा रही थी।

भाग 45: कार्रवाई का आरंभ

अगले ही दिन उन्होंने सबसे पहले रामलाल को गिरफ्तार किया। सरकारी गवाह बनने का दबाव डाला। डर के बावजूद रामलाल चुप रहा। लेकिन जब उसने देखा कि अनन्या ने भैरव सिंह के दाहिने हाथ जगह-जगह पहलवान के अवैध जमीन कब्जों पर बुलडोजर चलवा दिया। करोड़ों का गैरकानूनी निर्माण मिट्टी में मिला दिया और 20 गुंडों को गिरफ्तार कर लिया।

भाग 46: रामलाल का खुलासा

तब रामलाल टूट गया। उसने भैरव सिंह के राज खोले। बताया कि एक काली डायरी है जिसमें हर रिश्वत, हर धंधे का पूरा हिसाब लिखा है। वह डायरी उसके फार्म हाउस में छिपी थी। अनन्या ने आधी रात को ऑपरेशन धर्म चलाया। बिना सायरन और रोशनी वाली पुलिस गाड़ियां फार्म हाउस पहुंची। दरवाजे तोड़े गए। गार्ड्स हथियार डालने पर मजबूर हुए।

भाग 47: भैरव का अंत

अनन्या सीधे भैरव सिंह के कमरे में पहुंची। नींद से चौंक कर वह चिल्लाया, “एसपी अनन्या, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?” अनन्या ने सर्च वारंट उसके चेहरे पर फेंकते हुए कहा, “कानून को काम करने के लिए इजाजत की जरूरत नहीं होती।” फार्म हाउस की तलाशी में करोड़ों की नकदी और वह काली डायरी बरामद हुई।

भाग 48: विजय का क्षण

अनन्या ने डायरी उठाकर ठंडी आवाज में कहा, “खेल खत्म।” एमएलए साहब भैरव सिंह उसी रात गिरफ्तार हुआ। अगले दिन मीडिया में डायरी और गवाही के सबूत पहुंचे। अदालत में रामलाल की गवाही और डायरी के पन्नों ने पूरा गिरोह सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। शहर ने बरसों बाद चैन की सांस ली।

भाग 49: ललिता का सवाल

शाम को ललिता ने छत पर अनन्या से कहा, “दीदी, मुझे आपके लिए डर लगता है।” अनन्या मुस्कुराई। उनका हाथ थामा और बोली, “मैं अकेली नहीं हूं लल्ली। मेरे साथ कानून है, सच्चाई है और तेरी दुआएं हैं।” यह वर्दी सिर्फ कपड़ा नहीं, एक कसम है। और मैंने अपनी कसम निभाई है।

भाग 50: नई सुबह

डूबते सूरज की रोशनी में उनकी वर्दी चमक रही थी। यह वर्दी अब सिर्फ वर्दी नहीं बल्कि इंसाफ और इज्जत की जीत की पहचान बन चुकी थी। अनन्या ने अपने कर्तव्यों को निभाने की ठान ली थी।

भाग 51: प्रेरणा का संदेश

तो दोस्तों, यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें हमेशा सच्चाई के साथ खड़ा रहना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों। अगर हम अपने हक के लिए आवाज उठाते हैं, तो हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए।

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