SP मैडम को आम लडकी समझ कर जब इंस्पेक्टर नें थप्पड़ मारा फिर इंस्पेक्टर के साथ जों हुवा…

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मुंबई की भीड़भाड़ वाली सड़कों पर शाम का वक्त था। बाजार की गलियों में हर तरफ रौनक थी, लोग अपनी-अपनी खरीदारी में व्यस्त थे। इसी बीच हाथ में एक लिस्ट लिए एसपी वैशाली सिंह अकेले ही बाजार की ओर बढ़ रही थीं। उनकी सादगी साफ झलक रही थी—प्रिंटेड गुलाबी कुर्ता सेट, साधारण जूते, और चेहरे पर कोई मेकअप नहीं। उनके साथ ना कोई बॉडीगार्ड था, ना कोई सुरक्षा कर्मी। वह एक आम बहन की तरह अपनी बहन तारा की शादी के लिए साड़ी खरीदने आई थीं। आसपास के दुकानदारों ने उन्हें पहचानना तक मुनासिब नहीं समझा।

वैशाली की नजर उसी पुरानी कपड़ों की दुकान पर गई, जहां वह कई बार चोरी-छिपे आ चुकी थीं। वह धीरे-धीरे दुकान के अंदर घुसीं। दुकान बड़ी नहीं थी, लेकिन चारों तरफ रंग-बिरंगी साड़ियों के थान सजे हुए थे। काउंटर पर मालिक हिसाब-किताब में उलझा था और करीब 20 साल का एक लड़का ग्राहकों को साड़ियां दिखा रहा था। वैशाली को आते देख किसी ने खास ध्यान नहीं दिया। सबको लगा कि वह कोई आम ग्राहक हैं। वह काउंटर के पास जाकर खड़ी हो गईं और लड़के से बोलीं, “भैया, मेरी बहन की शादी है। उसके लिए एक बहुत अच्छी साड़ी चाहिए। कुछ बढ़िया डिजाइन दिखाएं।”

लड़के ने बेमन से कुछ साड़ियां काउंटर पर फैला दीं। वैशाली एक-एक साड़ी को उठाकर गौर से देखने लगीं। कभी रंग पसंद नहीं आता, तो कभी बॉर्डर। उन्होंने एक साड़ी को देखकर कहा, “यह रंग बहुत हल्का है, तारा पर खिलेगा नहीं। इसका बॉर्डर बहुत पतला है, शादी के हिसाब से जचेगा नहीं।” फिर एक और साड़ी को पलट कर कहा, “अरे, यह तो बहुत ज्यादा छटक है। दुल्हन को थोड़ा सोबर दिखना चाहिए।”

SP मैडम को आम लडकी समझ कर जब इंस्पेक्टर नें थप्पड़ मारा फिर इंस्पेक्टर के  साथ जों हुवा...

आधे घंटे कब बीत गए, पता ही नहीं चला। दुकान में ग्राहकों की भीड़ बढ़ने लगी थी। लड़के के चेहरे पर झुंझलाहट साफ झलक रही थी। वहीं नंद किशोर साहू, जो दुकान के मालिक थे, अपनी मोटी ऐनक के पीछे से बार-बार वैशाली को घूर रहे थे। फिर उन्होंने रूखेपन से कहा, “सब एक से बढ़कर एक पीस हैं, मैडम जी। इनमें से कोई ले लीजिए।” लेकिन वैशाली का दिल मान नहीं रहा था। उनके लिए यह सिर्फ एक साड़ी नहीं थी, यह उनकी बहन के लिए उनका प्यार और दुलार था।

उन्होंने शांत स्वर में जवाब दिया, “मुझे कोई जल्दी नहीं है, भाई साहब। मेरी बहन की शादी का मामला है, सबसे अच्छा ही चाहिए।” नंद किशोर साहू ने लड़के को इशारा किया। लड़का बड़बड़ाते हुए तहखाने की ओर गया और कुछ ही देर में नए बंडल उठाकर ले आया। काउंटर साड़ियों से भर चुका था। वैशाली एक-एक साड़ी खोलकर देख रही थीं। नंद किशोर का पारा चढ़ता जा रहा था। लड़का धीरे से अपने मालिक के कान में फुसफुसाया, “आधे घंटे से दिमाग खराब कर रखा है, एक साड़ी तो पसंद आ नहीं रही।”

वैशाली ने उसकी बात सुन ली और एक पल को उन्हें बुरा लगा। वह चाहती तो एक मिनट में इस दुकान पर ताला लगवा सकती थीं, लेकिन आज वह अपनी पावर का इस्तेमाल नहीं करना चाहती थीं। उन्होंने लड़के की बात अनसुना कर दी। लगभग एक घंटे की माथापच्ची के बाद उनकी नजर एक गहरे मरून रंग की साड़ी पर पड़ी, जिस पर सोने के धागों से चौड़ा बॉर्डर बना था और पूरी साड़ी पर महीन कढ़ाई का काम था। वह साड़ी जैसे तारा के लिए ही बनी थी। वैशाली के चेहरे पर संतुष्टि की मुस्कान आई। उन्होंने साड़ी हाथ में लेते हुए कहा, “हां, बस यही चाहिए। इसे पैक कर दो।”

नंद किशोर साहू ने राहत की सांस ली, जैसे कोई बड़ी मुसीबत टल गई हो। लड़के ने जल्दी-जल्दी साड़ी तह करके चमकीले पैकेट में डाल दी। वैशाली ने पर्स से पैसे निकालकर दिए और पैकेट हाथ में ले लिया। उनके मन में खुशी थी, सुकून था कि उन्होंने अपनी बहन के लिए सबसे अच्छी चीज चुन ली है। वह दुकान से बाहर निकलने ही वाली थीं कि उनकी नजर पैकेट के एक कोने से झांकते धागे पर पड़ी, जो कुछ गड़बड़ था। वह रुकी, पैकेट खोला और साड़ी बाहर निकाली।

उनके दिल की धड़कन बढ़ गई। साड़ी के बॉर्डर पर एक जगह धागा टूटा हुआ था और उधड़ कर लटक रहा था। उन्होंने हल्के से उसे खींचा तो कढ़ाई की पूरी सिलाई खुलने लगी। यह एक डिफेक्टिव पीस था। वैशाली का चेहरा उतर गया। वह वापस काउंटर पर गईं और नंद किशोर साहू को दिखाते हुए कहा, “भैया, यह देखिए, इसमें तो धागा टूटा हुआ है। यह तो पूरी उधर जाएगी।” नंद किशोर ने एक नजर साड़ी पर डाली और बड़ी लापरवाही से कहा, “अरे मैडम, इतना छोटा-मोटा तो चलता है। आप ले जाइए, दर्जी से ठीक करवा लेना, कुछ नहीं होगा।”

वैशाली का गुस्सा बढ़ने लगा। उनकी आवाज थोड़ी सख्त हो गई। उन्होंने कहा, “चलता कैसे है? मैं इतने पैसे दे रही हूं। कोई फोकट में तो नहीं ले रही? मुझे ठीक साड़ी चाहिए।” नंद किशोर भी भड़क गया और कड़क आवाज में बोला, “देखिए मैडम, अब बार-बार तो नहीं बदल सकते। आपने खुद देखकर पसंद की है, अब इसमें हमारी क्या गलती?” काउंटर के पीछे खड़ा लड़का भी हंसते हुए बोला, “अरे मैडम, आपने तो सब कुछ जांच परख कर ही लिया था ना, अब नाटक क्यों कर रही हो?”

वैशाली के आत्मसम्मान को ठेस लगी। वह एक अफसर थीं, लेकिन उससे पहले एक ग्राहक। ग्राहक के साथ ऐसा बर्ताव उन्हें बर्दाश्त नहीं था। उन्होंने दृढ़ता से कहा, “सही साड़ी दो, वरना मेरे पैसे वापस करो।” नंद किशोर ने आंखें तरेर लीं और बोला, “पैसे वैसे वापस नहीं होंगे, ज्यादा ड्रामा मत करो यहां। अब तक दुकान में खड़े बाकी ग्राहक भी तमाशा देखने लगे थे। कान्हा फूंसने लगे। दुकान का माहौल गर्म हो चुका था।

वैशाली ने आवाज ऊंची की, “दुकानदार ऐसे नहीं चलता। मैंने पूरा पैसा दिया है, या तो सही कपड़े दो या पैसे वापस करो।” नंद किशोर चिल्लाया, “क्यों? बहुत बड़ी अफसर समझती हो क्या खुद को? तुम्हारे जैसे लोग रोज आते हैं, चलो भागो यहां से।” यह सुनते ही वैशाली ने गुस्से में साड़ी का पैकेट काउंटर पर पटक दिया। भीड़ बढ़ गई। लड़के ने पीछे से तीर छोड़ा, “अब शुरू हो गया इनका ड्रामा।”

वैशाली ने उसे घूरा, उनकी आंखों में वह सख्ती थी जो बड़े-बड़े अपराधियों को भी चुप करा देती थी। लेकिन यहां कोई उन्हें पहचानने वाला नहीं था। नंद किशोर साहू गुस्से में अपनी जेब से मोबाइल निकाला और चिल्लाया, “ज्यादा हंगामा मत करो, वरना मैं पुलिस को फोन करता हूं। वह बताएगी तुम्हें कि धौंस कैसे जमाते हैं।” वैशाली के चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुस्कान आई। “हां, कर लो बुला लो पुलिस को, हम भी तो देखें तुम्हारी पुलिस क्या करती है।”

नंद किशोर को लगा वह डर नहीं रही है। उसने तुरंत थाने का नंबर मिलाया और स्पीकर पर डाल दिया। “हेलो थानेदार साहब, नंद किशोर साड़ी भंडार से बोल रहा हूं। यहां एक औरत बिना वजह झगड़ा कर रही है, दुकान में हंगामा मचा रखा है। जल्दी किसी को भेजिए।” फोन करते ही भीड़ में फुसफुसाहट तेज हो गई, “अरे इसने तो पुलिस ही बुला ली।” वैशाली ने पास पड़ी पुरानी लोहे की कुर्सी उठाई और दुकान के गेट पर जाकर बैठ गई। उन्होंने आसमान की तरफ देखा और तारा का चेहरा याद आया। उसकी शादी का सपना।

लेकिन अब यह सिर्फ साड़ी की बात नहीं थी। यह उनकी आत्मसम्मान की लड़ाई बन चुकी थी। वह पीछे नहीं हट सकती थीं। वह कुर्सी पर शांति से बैठी थी जैसे किसी तूफान के आने का इंतजार कर रही हो। मन में भरोसा था, “कोई बात नहीं, पुलिस आएगी, मुझे पहचान लेगी और यह तमाशा एक मिनट में खत्म हो जाएगा।” आखिर वह इसी जिले की एसएसपी वैशाली थीं। हर थानेदार, हर दरोगा उन्हें पहचानता था। पूरा पुलिस विभाग उन्हें सलाम करता था। लेकिन शायद किस्मत को आज उनकी परीक्षा लेनी थी।

10 मिनट बाद पुलिस की पुरानी जीप धूल उड़ाती हुई दुकान के सामने रुकी। दरोगा महेंद्र चौधरी और दो सिपाही उतरे। महेंद्र चौधरी की तोंद बाहर निकली हुई थी और चेहरे पर अकड़ थी। भीड़ उन्हें देखकर किनारे हो गई। नंद किशोर दौड़कर महेंद्र के पास गया और वैशाली की तरफ इशारा करते हुए बोला, “साहब, यही है वह औरत बिना बात के झगड़ा कर रही है, हमारी दुकान का माहौल खराब कर रही है।”

दरोगा महेंद्र ने बिना सवाल किए वैशाली को घृणा भरी नजरों से देखा। वैशाली अभी भी कुर्सी पर बैठी थीं, चेहरे पर थकान, पर आंखों में उम्मीद कि अब सब ठीक होगा। महेंद्र ने गरज कर पूछा, “कौन हो तुम? क्या तमाशा लगा रखा है यहां?” वैशाली ने शांत होकर कहा, “तमीज से बात करो। मैं वैशाली सिंह हूं।”

महेंद्र अकड़ते हुए बोला, “वैशाली सिंह हो तो क्या हुआ? किसी रानी के खानदान से हो क्या?” बीच में उनकी बात काटते हुए कहा, “क्या तुम्हें दुकान में हंगामा करने का लाइसेंस मिल गया है?” वैशाली ने गहरी सांस ली, “शायद तुम्हें पता नहीं कि तुम किससे बात कर रहे हो।” महेंद्र जोर से हंसा, “हां हां, पता है, अब सबकी मां बनोगी तुम। ज्यादा अकड़ मत दिखाओ, सीधे थाने चलो, वहां तुम्हारी सारी अकड़ निकालता हूं।”

एक सिपाही आगे बढ़कर वैशाली का हाथ पकड़ने लगा। वैशाली ने घूरा, वह झिझक गया। भीड़ में खड़ी औरतें कानाफूसी कर रही थीं, “यह तो अच्छे घर की है, पर है बड़ी झगड़ालू।” नंद किशोर ने महेंद्र को कंधे से पकड़ कर दुकान के अंदर ले जाकर जेब से कुछ नोट निकाले और महेंद्र की जेब में खिसका दिए। “साहब, इसको उठा ले जाएं, यह हमारा धंधा खराब कर रही है। जो भी खर्चा होगा मैं देख लूंगा।”

महेंद्र ने नोटों को देखा, मुस्कुराया और बाहर निकला। वैशाली कुर्सी पर बैठी सोच रही थीं, “अब तक तो इसे पहचान लिया होगा, अब यह नाटक खत्म होगा।” लेकिन महेंद्र ने सिपाहियों को इशारा किया। दोनों सिपाहियों ने आगे बढ़कर वैशाली की बाहें पकड़ लीं। वैशाली चौंक गईं, “यह क्या बदतमीजी है? मेरी बात सुनो।” महेंद्र ने सिटी बजाई और कहा, “बहुत बोल लिया, अब थाने चलो। वहीं पता चलेगा कौन कितना बड़ा अफसर है।”

भीड़ में से किसी ने ताना कसा, “देखो देखो, बड़ी मैडम बनने आई थी, अब हवालात में चक्की पीसेंगी।” नंद किशोर दूर खड़ा मूंछों पर ताव देता हंस रहा था। वैशाली की आंखों में आग जल रही थी, लेकिन उस वक्त उनकी आवाज से ज्यादा भारी था कानून के रखवालों का वह हाथ जो आज एक बेकसूर को पकड़ रहा था। उन्होंने विरोध नहीं किया। जानती थीं कि अगर पहचान बताई तो यह लोग यकीन नहीं करेंगे और तमाशा बढ़ जाएगा।

जीप का दरवाजा खुला, सिपाहियों ने उन्हें लगभग ढकियाते हुए अंदर बिठा दिया। दरवाजा बंद हुआ और उनकी इज्जत, पद सब कुछ बंद दरवाजे के पीछे कैद हो गया। गाड़ी गली से बाहर निकली, नंद किशोर ने राहत की सांस ली और अपनी दुकान का शटर गिरा दिया। धंधा फिर से अपनी रफ्तार पकड़ लेगा, लेकिन वैशाली की इज्जत थाने के रास्ते पर घसीटी जा रही थी।

पुलिस जीप थाने के गेट पर रुकी। यहां बाजार की भीड़ नहीं थी, बस कुछ मुजरिमों के रिश्तेदार और पुलिस वाले थे। माहौल उदास और खामोश था। महेंद्र जीप से उतरा और सिगरेट सुलगाई। सिपाही ने जीप का दरवाजा खोला और वैशाली को बाहर निकाला। वह चुप थीं, कोई बहस या गिड़गिड़ाहट नहीं। उनकी नजर महेंद्र के चेहरे पर थी, लेकिन वह कुछ समझ नहीं पा रहा था।

महेंद्र ने धक्का देते हुए कहा, “ले चलो थाने के अंदर।” थाने में एक हेड कांस्टेबल फाइलें पलट रहा था। उसने पूछा, “साहब, यह कौन लड़की है?” महेंद्र ने घमंड से कहा, “यह बड़ी तोप बनी फिरती थी, एक दुकानदार से झगड़ा कर रही थी। ऐसे ही लोग शहर में दंगे करवाते हैं, इसे हवालात में डालो, सारी गर्मी निकल जाएगी।”

वैशाली ने एक आखिरी बार कहा, “मैं वैशाली सिंह हूं।” हेड कांस्टेबल ने बीच में टोक दिया, “नाम पता बाद में लिख लेंगे, मैडम पहले अंदर चलिए।” एक सिपाही ने भारी लोहे का गेट खोला और उन्हें हवालात में डाल दिया। अंदर सीलन भरी बदबू थी, दीवारों से पपड़ी उतर रही थी, एक टूटी चारपाई पड़ी थी। वैशाली ने गहरी सांस ली। यह वही हवालात था जिसका उन्होंने निरीक्षण किया था। आज वह खुद कैदी बनकर खड़ी थीं।

दरोगा महेंद्र ने बाहर से ताला लगाया और जोर से हंसा, “अब बनो अफसर और रानी।” हवालात की दीवारों पर उनकी परछाई कांप रही थी। मन ही मन सोच रही थीं, “कितने नीचे गिर चुके हैं ये लोग। इनकी सजा जरूर दूंगी। यह कैसा इंसाफ है जो सच और झूठ में फर्क नहीं कर सकता।”

तभी थाने में एक और दरोगा अभिषेक मिश्रा बैठा था। उम्र कम थी लेकिन ईमानदार और तेज। वह केस की फाइल देख रहा था। गेट के खटखटाने और ताले बंद होने की आवाज सुनकर उसने देखा। हवालात में लाल सूट पहनी एक औरत बैठी थी, डर या घबराहट नहीं, बल्कि वही शांति और रुतबा जो उसने कई मीटिंग्स में देखा था। उसने फाइल बंद की और झरोके से अंदर झांका। “यह कौन है? किस केस में लाई हो?” सिपाही ने हंसते हुए पूरी कहानी बताई।

अभिषेक ने नजरें हवालात की तरफ टिकाई। वैशाली ने भी नजर उठाकर उसे देखा। दोनों की आंखें मिलीं। अभिषेक का खून सूख गया। यह कोई आम महिला नहीं, पूरे जिले की एसपी वैशाली सिंह थी। उसने सिपाही पर दहाड़ा, “यह कोई मजाक नहीं, गेट खोल।” सिपाही घबरा गया, लेकिन महेंद्र ने मना किया। अभिषेक ने जोर से कहा, “मैंने कहा गेट खोल, यह पूरे जिले की एसपी वैशाली सिंह हैं, तुम्हारे जैसे 50 महेंद्र मिलकर भी इनका बाल बांका नहीं कर सकते।”

सिपाही कांपते हाथों से चाबी निकाला, ताला खोला। अभिषेक ने सलाखों के पार खड़ी वैशाली को सैल्यूट ठोका। आवाज में शर्मिंदगी और सम्मान दोनों थे। “मैडम, माफ कीजिएगा, हमसे बड़ी गलती हो गई, मैं भरपाई करता हूं।” हवालात की दीवारें अब सच को इज्जत से बाहर निकलते देख रही थीं। ताला खुला, एसपी बाहर आईं। चेहरा शांत, आंखों में तूफान। अभिषेक ने सिपाहियों और हेड कांस्टेबल को फटकार लगाई।

खबर थाने से बाहर पहुंची कि हवालात में बंद महिला पूरे जिले की एसपी है। महेंद्र का चेहरा पीला पड़ गया। माथे पर पसीने की बूंदें। वह अब भी बहादुरी दिखा रहा था, लेकिन टांगे कांप रही थीं। वह भागा, दरवाजा खोला, हवालात खुला, वैशाली बाहर थीं। पुलिस वाले खामोश थे। महेंद्र दौड़ा, पैरों में गिरा, माफी मांगी। वैशाली ने ठंडी आवाज में कहा, “तू सोचता है गिड़गिड़ाने से तेरी गलती माफ हो जाएगी? यह कुर्सी कोई सौदा नहीं, जो रिश्वत और डर से बच जाए। यह जिम्मेदारी है, और तूने उसे पैसों और झूठे अहंकार के नीचे कुचल डाला।”

महेंद्र रोया, “मैडम, रहम करें, घर वाले बच्चे भूखे मर जाएंगे। मैं कसम खाता हूं, अब कभी गलती नहीं होगी।” वैशाली ने कहा, “बस, तेरी नौटंकी मुझे और नहीं सुननी। तू माफी के लायक नहीं, आज से तू सस्पेंड है।” पूरा थाना सन्नाटे में डूब गया। महेंद्र जमीन पर गिरा, सिर पकड़कर रोया। अब कोई दलील नहीं थी।

अभिषेक ने रिपोर्ट निकाली, सस्पेंशन का आदेश लिखा। महेंद्र को पुलिस जीप में बैठाकर लाइन हाजिर कराया। उसकी अकड़ धूल हो चुकी थी। अगले दिन नंद किशोर साहू को भी नोटिस भेजा गया। ग्राहक के साथ धोखाधड़ी, झूठा केस दर्ज करवाना, प्रशासन के काम में बाधा डालना। उसकी दुकान का लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई शुरू हुई।

रात काफी हो चुकी थी। वैशाली ने वाशरूम जाकर कपड़े ठीक किए, चेहरे पर पानी के छींटे मारे। दर्द, अपमान सब कुछ अंदर समेट लिया। एक सिपाही ने कहा, “मैडम, सरकारी गाड़ी भेज देते हैं।” वैशाली ने सिर हिलाया, “नहीं, मैं अपनी कार से जाऊंगी।” वह अफसर नहीं, बस एक बहन बनना चाहती थीं।

थाने से बाहर निकलकर कार में बैठीं, आंखों में आंसू थे लेकिन बहने नहीं दिए। कुछ घंटों बाद उनकी गाड़ी शादी के घर के गेट पर रुकी। वहां शहनाई की गूंज थी, चारों तरफ खुशियों का माहौल। तारा सहेलियों से घिरी थी, चेहरे पर दुल्हन बनने की चमक। उसकी आंखें बार-बार अपनी बड़ी बहन वैशाली को ढूंढ रही थीं। वैशाली हर रस्म में तारा के साथ थीं, चुनरी ठीक करतीं, उसे छेड़कर हंसातीं। चेहरे पर शांत और प्यारी मुस्कान।

तारा ने खुशी से कहा, “दीदी, यह कितनी सुंदर है। आपने मेरे लिए सबसे अच्छी चीज चुनी है।” वैशाली मुस्कुराईं, “अरे पगली, तेरे लिए तो जान भी हाजिर है।” लेकिन उस मुस्कान के पीछे गहरा समंदर छिपा था। कल रात जो कुछ हुआ, वह बुरे सपने की तरह दिमाग में कौंध रहा था—हवालात की बदबू, महेंद्र की गिरी हुई हंसी, नंद किशोर का घमंडी चेहरा, भीड़ की चुभती निगाहें। वह अपमान पी गई थीं, लेकिन गले में अटका रहा।

वैशाली मुस्कुरा रही थीं, लेकिन मन बेचैन था। सोच रही थीं, क्या महेंद्र को माफ कर देना चाहिए? उसने अपने परिवार की कसम खाई थी कि अब ऐसा नहीं होगा, लेकिन उसकी आंखों में डर से ज्यादा अपने घर की चिंता झलक रही थी। वैशाली के दिल में सवाल उठ रहे थे, क्या मैंने सही किया? उनकी आत्मा जानती थी कि वर्दी का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

उसी वक्त तारा ने धीरे से उनका हाथ हिलाया, मुस्कुरा कर बोली, “दीदी, आप कहां खोई हुई हैं?” वैशाली चौंकीं, “कहीं नहीं, बस देख रही हूं, तेरी गुलियां आज कितनी सुंदर लग रही हैं।” उन्होंने बात टाल दी। वह अपनी बहन की जिंदगी के सबसे बड़े दिन में कड़वाहट नहीं चाहती थीं।

तारा ने पूछा, “दीदी, कल आप इतनी देर से क्यों आईं? मां बता रही थी कि आपका फोन भी नहीं लग रहा था। सब ठीक तो है ना?” वैशाली ने गहरी सांस ली, “हां सब ठीक है, बस एक जरूरी ऑफिसियल काम में फंसी थी। लेकिन देख, मैंने अपना वादा पूरा किया, तेरी साड़ी ले आई।”

रात को जब सब संगीत और नाच-गाने में डूबे थे, वैशाली अकेले छत पर गईं। ठंडी हवा में उन्होंने अभिषेक को फोन किया, “मुझे महेंद्र और नंद किशोर की पूरी जानकारी चाहिए।” अभिषेक ने भरोसा दिलाया, “सुबह तक रिपोर्ट दे दूंगा।”

अगले दिन हल्दी की रस्म के बीच फोन आया। अभिषेक ने बताया कि नंद किशोर के कई धोखाधड़ी केस दबाए गए हैं। महेंद्र एमएलए रघुवीर तिवारी का खास आदमी है, अवैध शराब, जमीन, कब्जा, वसूली करता है। वैशाली ने सब जोड़ लिया। नंद किशोर भी उसी नेटवर्क का हिस्सा था।

शाम होते ही बारात की खुशी पर साया छा गया। एक जीप से गुंडे कूदे और पंडाल के बाहर खौफ का तूफान उतर आया। उनके लीडर बलराम ने चिल्लाकर शादी रोकने को कहा, “रोको यह शादी।” उसकी आवाज में कड़वाहट थी कि संगीत बंद हो गया। पूरे पंडाल में सन्नाटा छा गया। उसने तारा पर इल्जाम लगाया कि उसने उसके भाई टिंकू से 50 लाख उधार लिए हैं और पैसे लौटाए बिना शादी करके भागना चाहती है। दूल्हे के घरवाले सक्ते में आ गए, मेहमान कानाफूसी करने लगे। तारा फूट-फूट कर रोने लगी।

वैशाली का खून खौल उठा। यह रघुवीर की घटिया चाल थी, उनकी बहन को बदनाम करने का तरीका। वह शेरनी की तरह आगे बढ़ी, आंखों में ना डर, ना घबराहट, बस सर्द गुस्सा। “क्या सबूत है तुम्हारे पास?” उसकी आवाज शांत लेकिन पैनी थी। बलराम ठिठका। नकली स्टैंप पेपर हवा में लहराए। वैशाली ने पहचान लिया, “अच्छा, तो अपने टिंकू भाई का नंबर दो, मैं उससे बात करती हूं।” गुंडे घबरे, “वह शहर से बाहर है, तो यह कचरे मत दिखाओ।” वैशाली ने कागज छीनकर उसके मुंह पर फेंक दिए।

“अब तुम्हारे पास दो रास्ते हैं, या चुपचाप यहाँ से निकल जाओ या मैं फोर्स बुलाकर धोखाधड़ी, मानहानि और धमकाने के जुर्म में तुम सबको अंदर करवा दूंगी।” पब्लिक सर्वेंट का नाम सुनते ही गुंडों के होश उड़ गए। दस सेकंड में वे सब दुम दबाकर भाग गए। माहौल संभला, लेकिन जश्न फीका पड़ चुका था।

वैशाली ने दूल्हे के पिता से हाथ जोड़कर माफी मांगी और यकीन दिलाया कि उनकी बहन बेकसूर है। उन्होंने वादा किया कि इस साजिश की जड़ तक पहुंचेंगी। उस दिन वैशाली ने ठाना कि रघुवीर ने उनकी बहन की इज्जत पर हाथ उठाया है, उसकी तबाही को दावत दी है।

तारा की विदाई के बाद घर की खामोशी वैशाली के गुस्से को बढ़ा रही थी। अगले दिन सबसे पहले नंद किशोर को गिरफ्तार किया। सरकारी गवाह बनने का दबाव डाला। डर के बावजूद नंद किशोर चुप रहा। लेकिन जब वैशाली ने रघुवीर के दाहिने हाथ टिंकू के अवैध कब्जों पर बुलडोजर चलवाया, करोड़ों का गैरकानूनी निर्माण मिट्टी में मिला दिया, 20 गुंडों को गिरफ्तार किया, तब नंद किशोर टूट गया। उसने रघुवीर के राज खोले। बताया कि एक काली डायरी है जिसमें रिश्वत और धंधे का पूरा हिसाब लिखा है। डायरी उसके फार्म हाउस में छिपी थी।

वैशाली ने आधी रात ऑपरेशन धर्म चलाया। बिना सायरन और रोशनी वाली पुलिस गाड़ियां फार्म हाउस पहुंची। दरवाजे तोड़े गए। गार्ड हथियार डालने पर मजबूर हुए। वैशाली सीधे रघुवीर के कमरे में पहुंचीं। वह नींद से चौंका, चिल्लाया, “एएसपी वैशाली, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?” वैशाली ने सर्च वारंट उसके चेहरे पर फेंका, “कानून को काम करने के लिए इजाजत की जरूरत नहीं।”

फार्म हाउस की तलाशी में करोड़ों की नकदी और काली डायरी बरामद हुई। वैशाली ने ठंडी आवाज में कहा, “खेल खत्म।” रघुवीर उसी रात गिरफ्तार हुआ। अगले दिन मीडिया में डायरी और गवाही के सबूत पहुंचे। अदालत में नंद किशोर की गवाही और डायरी के पन्नों ने पूरा गिरोह सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। शहर ने बरसों बाद चैन की सांस ली। अपराध का साम्राज्य ढह चुका था।

शाम को तारा ने छत पर वैशाली से कहा, “दीदी, मुझे आपके लिए डर लगता है।” वैशाली मुस्कुराईं, हाथ थामकर बोलीं, “मैं अकेली नहीं हूं, मेरे साथ कानून है, सच्चाई है और तेरी दुआएं हैं। यह वर्दी सिर्फ कपड़ा नहीं, एक कसम है और मैंने अपनी कसम निभाई है।”

डूबते सूरज की रोशनी में उनकी वर्दी चमक रही थी। यह वर्दी अब इंसाफ और इज्जत की जीत की पहचान बन चुकी थी।