SP मैडम को आम लडकी समझ कर जब इंस्पेक्टर नें थप्पड़ मारा फिर इंस्पेक्टर के साथ जों हुवा…

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शहर की तंग गलियों में शाम का धुंधला उतर रहा था। लोग अपनी-अपनी रफ्तार से घरों को लौट रहे थे। चाय की दुकानों से उठती भाप और गली के नुक्कड़ पर बजते ट्रांजिस्टर की आवाज मिलकर एक अलग ही माहौल बना रहे थे। इसी गली से एक साधारण सलवार कुर्ता पहने, बालों को साधारण से जुड़ा बनाएं, एक लड़की धीरे-धीरे कदम बढ़ा रही थी। कोई भी उसे देखकर नहीं कह सकता था कि वह दरअसल शहर की एसपी यानी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस थी। सीमा चौहान। सीमा ने जानबूझकर साधारण कपड़े पहन रखे थे। उसकी आदत थी कि वह अचानक बिना बताए शहर की सड़कों पर निकल पड़ती थी ताकि देख सके कि उसकी पुलिस फोर्स जनता के साथ कैसे पेश आती है। आज भी वह इसी गुप्त निरीक्षण पर निकली थी।

गली के मोड़ पर उसने देखा कि एक पुलिस चौकी है। बाहर कुछ लोग खड़े हैं और अंदर से बहस की आवाजें आ रही हैं। उसने सोचा क्यों ना यहीं से शुरुआत की जाए। वह धीरे-धीरे चौकी के अंदर गई। ड्यूटी पर मौजूद इंस्पेक्टर रघुवीर सिंह अपनी कुर्सी पर पसर कर बैठा था। उसके सामने दो गरीब मजदूर खड़े थे जिन पर चोरी का इल्जाम लगाया जा रहा था। रघुवीर ने उनकी बात सुने बिना ही डंडा उठाकर टेबल पर पटका और गरजा। “साले कबूल कर ले वरना हड्डियां तोड़ दूंगा।” सीमा ने अंदर आते ही देखा कि मजदूर बार-बार गिड़गिड़ा रहे हैं। “हुजूर, हमने कुछ नहीं किया। हमें छोड़ दीजिए।” लेकिन इंस्पेक्टर का रवैया बिल्कुल निर्दई था।

SP मैडम को आम लडकी समझ कर जब इंस्पेक्टर नें थप्पड़ मारा फिर इंस्पेक्टर के  साथ जों हुवा...

सीमा ने अपनी साधारण लड़की वाली पहचान बनाए रखते हुए धीरे से कहा, “साहब, अगर यह लोग सच कह रहे हैं, तो बेवजह इन्हें मत मारिए।” रघुवीर ने भौहे तिरछी की और उसे घूर कर बोला, “ओय तू बीच में बोलने वाली कौन है? यहां पुलिस का मामला चल रहा है। निकल जा वरना तुझे भी अंदर कर दूंगा।” सीमा ने धीमे स्वर में कहा, “मैं सिर्फ इतना कह रही हूं कि इंसाफ बिना सुने मत कीजिए।” बस इतना सुनते ही रघुवीर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने अपनी कुर्सी धक्का देकर उठाई। सीमा के पास आया और बिना कुछ सोचे समझे एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया। पूरी चौकी सन्न रह गई। मजदूर डर के मारे कांप उठे। आसपास खड़े सिपाही भी अवाक रह गए। किसी ने कभी नहीं सोचा था कि कोई इंस्पेक्टर यूं ही एक साधारण दिखने वाली लड़की पर हाथ उठा देगा।

थप्पड़ पड़ते ही सीमा की आंखों में कुछ पल को आग भड़क उठी लेकिन उसने अपने आप पर काबू रखा। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई। वह जानती थी अब असली खेल शुरू हुआ है। रघुवीर गुर्राते हुए बोला, “अब समझ आई यहां पुलिस की चौकी है। कोई नाटक घर नहीं औरत जात होकर बहादुरी दिखा रही है।” सीमा ने धीरे से सिर उठाया और उसकी आंखों में आंखें डालकर बोली, “बहादुरी और हिम्मत का मतलब शायद तुम्हें आज समझ में आएगा इंस्पेक्टर।” इंस्पेक्टर यह सुनकर जोर से हंसा। “अरे सुनो सब लोग। यह लड़की मुझे हिम्मत सिखाएगी।” उसके साथी सिपाही भी मजबूरी में हल्की हंसी-हंस दी। हालांकि वह सब भीतर से डर रहे थे।

सीमा ने पर्स से धीरे से एक कार्ड निकाला और मेज पर रख दिया। रघुवीर ने उसे उठाया और जैसे ही पढ़ा “सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस सिटी ज़ोन।” उसका चेहरा एकदम पड़ गया। उसकी सांसे तेज हो गईं। गला सूखने लगा। हाथ कांपने लगे। उसने कार्ड को दोबारा देखा। फिर सीमा के चेहरे को। अब उसे समझ में आ गया कि यह कोई साधारण लड़की नहीं बल्कि उसकी पूरी पुलिस फोर्स की मुखिया है। “साहब मैं मैं पहचान नहीं पाया।” उसकी आवाज लड़खड़ा रही थी। सीमा ने गंभीर आवाज में कहा, “पहचान तो अब हो गई लेकिन अफसोस तब हुआ जब तुम्हारा असली चेहरा सामने आ गया। गरीब बेगुनाह मजदूरों को धमका रहे थे और ऊपर से एक महिला को थप्पड़ मारने की हिम्मत। इंस्पेक्टर रघुवीर सिंह, तुम्हारा आज का दिन आखिरी दिन है इस कुर्सी पर।”