SP मैडम को आम लडकी समझ कर जब इंस्पेक्टर नें थप्पड़ मारा फिर इंस्पेक्टर के साथ जों हुवा…
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शहर की तंग गलियों में शाम का धुंधला उतर रहा था। लोग अपनी-अपनी रफ्तार से घरों को लौट रहे थे। चाय की दुकानों से उठती भाप और गली के नुक्कड़ पर बजते ट्रांजिस्टर की आवाज मिलकर एक अलग ही माहौल बना रहे थे। उसी गली से एक साधारण सलवार-कुर्ता पहने, बालों को साधारण से जुड़ा बनाएं, एक लड़की धीरे-धीरे कदम बढ़ा रही थी। कोई भी उसे देखकर नहीं कह सकता था कि वह दरअसल शहर की एसपी यानी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस थी। सीमा चौहान। सीमा ने जानबूझकर साधारण कपड़े पहने थे। उसकी आदत थी कि वह अचानक बिना बताए शहर की सड़कों पर निकल पड़ती थी ताकि देख सके कि उसकी पुलिस फोर्स जनता के साथ कैसे पेश आती है। आज भी वह इसी गुप्त निरीक्षण पर निकली थी।
गली के मोड़ पर उसने देखा एक पुलिस चौकी है। बाहर कुछ लोग खड़े हैं और अंदर से बहस की आवाजें आ रही हैं। उसने सोचा क्यों ना यहीं से शुरुआत की जाए। वह धीरे-धीरे चौकी के अंदर गई। ड्यूटी पर मौजूद इंस्पेक्टर रघुवीर सिंह अपनी कुर्सी पर पसर कर बैठा था। उसके सामने दो गरीब मजदूर खड़े थे जिन पर चोरी का इल्जाम लगाया जा रहा था। रघुवीर ने उनकी बात सुने बिना ही डंडा उठाकर टेबल पर पटका और गरजा, “साले कबूल कर ले वरना हड्डियां तोड़ दूंगा।” सीमा ने अंदर आते ही देखा कि मजदूर बार-बार गिड़गिड़ा रहे हैं, “हुजूर, हमने कुछ नहीं किया। हमें छोड़ दीजिए।” लेकिन इंस्पेक्टर का रवैया बिल्कुल निर्दयी था।
सीमा ने अपनी साधारण लड़की वाली पहचान बनाए रखते हुए धीरे से कहा, “साहब, अगर यह लोग सच कह रहे हैं, तो बेवजह इन्हें मत मारिए।” रघुवीर ने भौहे तिरछी की और उसे घूर कर बोला, “ओय तू बीच में बोलने वाली कौन है? यहां पुलिस का मामला चल रहा है। निकल जा वरना तुझे भी अंदर कर दूंगा।” सीमा ने धीमे स्वर में कहा, “मैं सिर्फ इतना कह रही हूं कि इंसाफ बिना सुने मत कीजिए।” बस इतना सुनते ही रघुवीर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने अपनी कुर्सी धक्का देकर उठाई, सीमा के पास आया और बिना कुछ सोचे समझे एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया। पूरी चौकी सन्न रह गई। मजदूर डर के मारे कांप उठे। आसपास खड़े सिपाही भी अवाक रह गए। किसी ने कभी नहीं सोचा था कि कोई इंस्पेक्टर यूं ही एक साधारण दिखने वाली लड़की पर हाथ उठा देगा।

थप्पड़ पड़ते ही सीमा की आंखों में कुछ पल के लिए आग भड़क उठी, लेकिन उसने अपने आप पर काबू रखा। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई। वह जानती थी अब असली खेल शुरू हुआ है। रघुवीर गुर्राते हुए बोला, “अब समझ आई यहां पुलिस की चौकी है। कोई नाटक घर नहीं औरत जात होकर बहादुरी दिखा रही है।” सीमा ने धीरे से सिर उठाया और उसकी आंखों में आंखें डालकर बोली, “बहादुरी और हिम्मत का मतलब शायद तुम्हें आज समझ में आएगा इंस्पेक्टर।” इंस्पेक्टर यह सुनकर जोर से हंसा, “अरे सुनो सब लोग। यह लड़की मुझे हिम्मत सिखाएगी।” उसके साथी सिपाही भी मजबूरी में हल्की हंसी-हंस दी, हालांकि वे सब भीतर से डर रहे थे।
सीमा ने पर्स से धीरे से एक कार्ड निकाला और मेज पर रख दिया। रघुवीर ने उसे उठाया और जैसे ही पढ़ा – सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस सिटी ज़ोन। उसका चेहरा एकदम पड़ गया। उसकी सांसें तेज हो गईं। गला सूखने लगा। हाथ कांपने लगे। उसने कार्ड को दोबारा देखा। फिर सीमा के चेहरे को। अब उसे समझ में आ गया कि यह कोई साधारण लड़की नहीं बल्कि उसकी पूरी पुलिस फोर्स की मुखिया है। “साहब, मैं पहचान नहीं पाया,” उसकी आवाज लड़खड़ा रही थी। सीमा ने गंभीर आवाज में कहा, “पहचान तो अब हो गई लेकिन अफसोस तब हुआ जब तुम्हारा असली चेहरा सामने आ गया। गरीब बेगुनाह मजदूरों को धमका रहे थे और ऊपर से एक महिला को थप्पड़ मारने की हिम्मत। इंस्पेक्टर रघुवीर सिंह, तुम्हारा आज का दिन आखिरी दिन है इस कुर्सी पर।”
पूरी चौकी पर खामोशी छा गई। कोई सिपाही हिल भी नहीं रहा था। सबके माथे पर पसीना था। रघुवीर घुटनों के बल गिरते हुए बोला, “मैडम माफ कर दीजिए। गुस्से में हो गया था। मुझे नहीं पता था कि आप ही हैं।” सीमा ने उसकी तरफ देखते हुए तीखे शब्दों में कहा, “तुम्हें पता नहीं था कि मैं हूं इसलिए थप्पड़ मार दिया। अगर तुम जान जाते कि मैं एसपी हूं तो चुप रहते। इसका मतलब तुम्हारी नजर में आम जनता की कोई कीमत नहीं है। यही तुम्हारी असली सोच है।” वह मजदूरों की तरफ मुड़ी और बोली, “आप लोग निडर होकर जाइए। आपके खिलाफ कोई कारवाई नहीं होगी।” मजदूर हाथ जोड़कर रोते हुए शुक्रिया कहते हुए बाहर निकल गए।
सीमा ने तुरंत फोन निकाला और कंट्रोल रूम को कॉल किया, “अभी तुरंत यहां के एसएसपी और विजिलेंस टीम को चौकी पर भेजिए। मुझे इंस्पेक्टर रघुवीर के खिलाफ कारवाई करनी है।” रघुवीर का चेहरा अब पूरी तरह उतर चुका था। उसे लग रहा था जैसे जमीन उसके पैरों के नीचे से खिसक गई हो। कुछ ही देर में गाड़ियों की आवाज गूंजने लगी। विजिलेंस की टीम और उच्च अधिकारी चौकी में घुसे। सबने देखा एसपी मैडम खड़ी हैं और इंस्पेक्टर जमीन पर घुटनों के बल बैठा है। सीमा ने आदेश दिया, “इंस्पेक्टर रघुवीर सिंह को तत्काल निलंबित किया जाए और विभागीय जांच शुरू की जाए। साथ ही उसके खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन का मामला दर्ज किया जाए।” विजिलेंस ऑफिसर ने तुरंत सलामी दी और आदेश का पालन किया। सिपाही एक-एक करके रघुवीर को पकड़ने आगे बढ़े। उसने बहुत विनती की लेकिन अब उसके शब्द किसी के कानों में नहीं जा रहे थे। उसे हथकड़ी लगाई गई और बाहर खड़ी जीप में बिठा दिया गया।
सीमा ने चौकी के बाकी स्टाफ की तरफ देखा, “तुम सब याद रखना, वर्दी का मतलब रब दिखाना नहीं होता। वर्दी का मतलब जनता की रक्षा करना है। आज से अगर किसी ने भी ऐसी हरकत की तो उसका अंजाम और भी बुरा होगा।” सिपाहियों ने एक साथ सलामी दी, “जी मैडम।” चौकी से बाहर निकलते वक्त सीमा ने आकाश की तरफ देखा। उसके गाल पर थप्पड़ का निशान अभी भी था लेकिन उसकी आंखों में संतोष था। वह जानती थी जनता का भरोसा तभी बन सकता है जब पुलिस अपने भीतर छिपे गंदे चेहरों को उजागर करें।
उस रात शहर भर में खबर फैल चुकी थी कि एक इंस्पेक्टर ने गलती से एसपी मैडम को थप्पड़ मार दिया और अब जेल में हैं। लोग चौक-चौराहों पर यही चर्चा कर रहे थे। कुछ लोग हंस रहे थे, कुछ लोग हैरान थे। लेकिन सभी के दिल में एक विश्वास जागा कि अगर एसपी मैडम खुद आम लड़की बनकर हमारे बीच उतर सकती हैं तो शायद अब न्याय सच में होगा।
रघुवीर जेल की सलाखों के बीच बैठा। उसके दिमाग में सिर्फ वही पल घूम रहा था जब उसने थप्पड़ मारा था और सामने वाली लड़की मुस्कुराते हुए खड़ी रह गई थी। अब उसे समझ में आ रहा था कि उस एक थप्पड़ ने उसकी पूरी जिंदगी बदल दी है।
सीमा अपने ऑफिस लौट आई। उसने मेज पर बैठते ही केस फाइल्स खोली और मन ही मन बोली, “यह तो बस शुरुआत है। ऐसे कई रघुवीर अभी इस सिस्टम में छुपे हैं। मुझे सबको बेनकाब करना है।” रात के सन्नाटे में जब पूरा शहर नींद की आगोश में था, सीमा चौहान अपने ऑफिस की मेज पर झुकी हुई फाइलें देख रही थी। बाहर खिड़की से आती ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी। लेकिन उसके मन में भीतर कहीं गहरी हलचल थी। दिनभर की घटना ने ना सिर्फ पुलिस महकमे को हिला कर रख दिया था बल्कि शहर के आम लोगों के दिलों में भी उम्मीद की एक नई लौ जला दी थी।
पर सीमा जानती थी यह केवल एक इंस्पेक्टर की बात नहीं है। यह उस पूरे तंत्र की बीमारी है जो जनता को दबाने में अपनी ताकत समझता है। उसने कल की घटना को याद किया। जब थप्पड़ उसके चेहरे पर पड़ा तो गुस्से की लहर भीतर उठी थी। लेकिन उसने उसे अपने संयम से दबा लिया। यही संयम उसकी सबसे बड़ी ताकत थी। उसकी सोच थी, “अगर मैं भी उसी की तरह गुस्से में जवाब देती तो फर्क ही क्या रह जाता। असली ताकत है कानून का इस्तेमाल सही समय और सही जगह पर करना।”
उसके सामने खुली फाइल में पुलिस चौकियों की रिपोर्ट पड़ी थी। कई जगह से भ्रष्टाचार और दुर्व्यवहार की शिकायतें आई थीं। सीमा ने अपनी डायरी में नोट किया, “कल से विशेष निरीक्षण अभियान शुरू करना है। हर चौकी हर थाने का दौरा करना है। छिपे हुए रघुवीरों को ढूंढकर बाहर निकालना है।” उसने पेन रखी और कुर्सी से उठकर खिड़की पर आ खड़ी हो गई। नीचे सड़क पर एक रिक्शा वाला अपने रिक्शे में सो रहा था। उसे देखकर सीमा के दिल में करुणा उमड़ आई। उसने मन ही मन कहा, “इन्हीं जैसे लोगों की रक्षा करना ही तो मेरी जिम्मेदारी है। अगर पुलिस ही इन्हें प्रताड़ित करेगी तो फिर यह किसके पास जाएंगे?”

अचानक उसके फोन की घंटी बजी। उधर से डीजीपी साहब की आवाज आई, “सीमा, बहुत अच्छा काम किया तुमने। पूरे विभाग में संदेश गया है कि अब कोई लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी। लेकिन सावधान रहना। तुम्हारे खिलाफ भी अंदरूनी राजनीति शुरू हो सकती है।” सीमा ने शांत स्वर में कहा, “सर, मुझे राजनीति से डर नहीं है। मेरा मकसद साफ है, जनता के साथ अन्याय नहीं होने देना।” फोन रखकर वह थोड़ी देर खामोश रही।
सच था, पुलिस विभाग के भीतर कई ताकतवर लोग थे जो इस बदलाव को पसंद नहीं करते थे। वे कोशिश करेंगे कि सीमा को बदनाम किया जाए या उसकी राह में रोड़े अटकाए जाएं। लेकिन सीमा ने ठान लिया था चाहे जो भी हो वह पीछे नहीं हटेगी। अगले दिन सुबह-सुबह उसने अपनी टीम को बुलाया। मीटिंग रूम में बैठे सभी अधिकारी उसकी ओर उत्सुकता से देख रहे थे। सीमा ने गंभीर स्वर में कहा, “कल की घटना आप सबको पता है। लेकिन यह कोई अलग-थलग मामला नहीं है। यह पूरे सिस्टम की बीमारी है। अब हमें मिलकर इसे खत्म करना होगा। मैं चाहती हूं कि अगले 15 दिनों में शहर की हर चौकी और हर थाने का निरीक्षण किया जाए और अगर कहीं भी भ्रष्टाचार या दुर्व्यवहार पाया गया तो तुरंत कार्यवाही होगी।”
एक अधिकारी ने धीरे से कहा, “मैडम, लेकिन इससे विभाग में असंतोष फैल सकता है। कुछ लोग आपके खिलाफ भी हो सकते हैं।” सीमा ने दृढ़ स्वर में जवाब दिया, “अगर ईमानदारी से काम करने वालों को असंतोष है तो वह मेरे साथ खड़े होंगे और अगर गलत काम करने वालों को दिक्कत है तो उन्हें हटना ही होगा।” सब चुप हो गए। मीटिंग खत्म हुई और सब अपने-अपने काम पर लग गए।
सीमा ने खुद तय किया कि वह गुप्त रूप से थानों का दौरा करेगी जैसे कल किया था। उसी दिन शाम को उसने फिर साधारण कपड़े पहने और बिना किसी को बताए शहर के दूसरे छोर की चौकी पर पहुंच गई। चौकी के बाहर भीड़ लगी थी। अंदर से रोने की आवाजें आ रही थीं। सीमा धीरे से अंदर गई। देखा एक महिला अपनी छोटी बेटी को लेकर खड़ी है और रो रही है। सामने बैठे सब इंस्पेक्टर महिला को डांट रहा था, “अगर फिर से तुम्हारा लड़का चोरी करते पकड़ा गया तो सीधा जेल भेज दूंगा। समझी?” महिला हाथ जोड़कर कह रही थी, “साहब, मेरा बेटा चोरी नहीं करता। उसे कुछ लड़कों ने फंसाया है। आप कृपा करके छोड़ दीजिए।” सब इंस्पेक्टर ने टेबल पर हाथ मारते हुए कहा, “हमारे पास सबूत है। अब तो अदालत में ही बात होगी।”
सीमा ने बीच में आकर कहा, “साहब, अगर सबूत है तो दिखाइए।” सब इंस्पेक्टर ने घूर कर सीमा को देखा, “तुम कौन हो बीच में बोलने वाली?” सीमा ने सहज भाव से कहा, “मैं आम नागरिक हूं और मेरे सामने अन्याय होगा, तो मैं चुप नहीं रह सकती।” सब इंस्पेक्टर ने क्रोध से कहा, “यहां से निकल जा वरना तुझे भी अंदर कर दूंगा।” यह सुनते ही सीमा के भीतर गुस्सा उभर आया। लेकिन उसने संयम रखा। उसने जेब से मोबाइल निकाला और वीडियो रिकॉर्डिंग शुरू कर दी। बोली, “ठीक है जो करना है करो। लेकिन यह रिकॉर्डिंग अब सोशल मीडिया पर जाएगी। तब देखेंगे जनता क्या कहती है।” यह सुनते ही सब इंस्पेक्टर हड़बड़ा गया। उसने तुरंत महिला को बाहर जाने दिया और धीरे से सीमा से बोला, “बहन जी, आप यह वीडियो डिलीट कर दीजिए। गलती हो गई।” सीमा मुस्कुराई और पर्स से अपना कार्ड निकालकर टेबल पर रख दिया। सब इंस्पेक्टर के हाथ कांपने लगे। कार्ड पढ़ते ही उसके चेहरे का रंग उड़ गया। वह कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और घबराकर बोला, “मैडम, माफ कर दीजिए। मुझे नहीं पता था कि आप हैं।”
सीमा ने ठंडे स्वर में कहा, “यह डायलॉग मैं बहुत सुन चुकी हूं। पहचान मुझे बाद में करोगे, लेकिन जनता को इंसाफ कब दोगे? यही तो सवाल है।” उसने तुरंत विजिलेंस टीम को बुलाया। थोड़ी ही देर में गाड़ियां आ गईं। थानेदार को उसी वक्त निलंबित कर दिया गया। सिपाहियों को कड़ी चेतावनी दी गई। रिक्शे वालों को छोड़ दिया गया। सीमा ने कहा, “अब से यहां कोई भी गरीब इंसाफ के लिए आएगा तो उसे धमकाया नहीं जाएगा। यह थाना जनता की रक्षा के लिए है ना कि उनके खून-पसीने से कमाई करने के लिए।” भीड़ ने बाहर खड़े होकर नारे लगाए, “एसपी मैडम जिंदाबाद।”
लेकिन जैसे-जैसे सीमा का नाम फैल रहा था उसके खिलाफ साजिशें और तेज हो रही थीं। उन साजिशों में सबसे आगे वही अधिकारी और नेता थे जिनके लिए पुलिस महकमा केवल कमाई का अड्डा था। वे अब खुलकर कहते थे, “यह औरत हमें बर्बाद कर देगी। इसे रोको वरना सब खत्म हो जाएगा।” एक रात कोतवाली के पीछे एक गुप्त बैठक हुई। वहां तीन वरिष्ठ अफसर, दो बड़े नेता और शहर का कुख्यात डॉन मौजूद था। डॉन ने सिगार का धुआं छोड़ते हुए कहा, “एसपी चौहान बहुत आगे बढ़ गई है। अब सीधा वार करना होगा। अगर यह औरत बच गई, तो आने वाले सालों में हमारी सत्ता खत्म हो जाएगी।” एक नेता ने कहा, “तो योजना यह है कि उस पर झूठा भ्रष्टाचार का आरोप लगाया जाए। कल से ही अखबारों और चैनलों में खबर छपवानी होगी कि उसने माफिया से करोड़ों लिए हैं।” एक अफसर बोला, “लेकिन जनता उस पर विश्वास करती है। बिना सबूत कोई भरोसा नहीं करेगा।” डॉन ने ठंडी मुस्कान के साथ कहा, “सबूत भी हम बनाएंगे। नकली खाते, नकली वीडियो सब तैयार कर लो।” सब ने सिर हिलाया और तय किया कि अभियान कल से शुरू होगा।
उधर सीमा को भी षड्यंत्र की गंध आ रही थी। उसके करीबी अफसर अजय ने आकर कहा, “मैडम, मुझे अंदर की खबर मिली है। वे लोग आपको फंसाने वाले हैं। कह रहे हैं कि आप पर रिश्वत लेने का आरोप लगाएंगे।” सीमा ने गहरी सांस ली और बोली, “मैं जानती थी यह दिन आएगा। लेकिन सच कभी छिपता नहीं है। हम वही करेंगे जो कानून कहता है। अगर उन्होंने जाल बुना है तो हम धागा-धागा खोलेंगे।”
अगले ही दिन अखबारों में बड़ी हेडलाइन छपी, “एसपी चौहान पर रिश्वतखोरी का आरोप।” टीवी चैनलों पर बहस होने लगी। कुछ तथाकथित विशेषज्ञ कह रहे थे, “इतनी ईमानदार दिखने वाली अफसर भी भ्रष्ट निकली।” लेकिन शहर की जनता इस खबर को मानने को तैयार नहीं थी। लोग चौक-चौराहों पर कहते, “नहीं यह सब झूठ है। हमने अपनी आंखों से देखा है। मैडम ने हमें इंसाफ दिलाया है। वह हमें बेच नहीं सकती।”
सीमा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। पत्रकारों से भरे हॉल में उसने सीधे कहा, “यह आरोप झूठे हैं। जो लोग मुझसे डरते हैं, वही मुझे गिराने के लिए ऐसे हथकंडे अपना रहे हैं। मैं खुद विजिलेंस जांच की मांग कर रही हूं। अगर एक भी आरोप सच निकला, तो मैं अपनी कुर्सी छोड़ दूंगी।” उसके इस आत्मविश्वास ने जनता के दिल और जीत लिए। भीड़ ने नारे लगाए, “हमारे साथ कौन? एसपी चौहान।” लेकिन षड्यंत्रकारियों ने हार नहीं मानी। उन्होंने सीमा पर हमला करने की योजना बनाई।
एक रात जब सीमा अपने ऑफिस से लौट रही थी तभी उसकी गाड़ी पर गोलियां चलाई गईं। गाड़ी का शीशा टूट गया। ड्राइवर घायल हो गया लेकिन सीमा बाल-बाल बच गई। वह गाड़ी से उतरी और बिना डरे चिल्लाई, “निकालो हथियार। देखती हूं कौन है।” हमलावर भाग खड़े हुए। मीडिया में यह खबर और फैल गई, “ईमानदार एसपी पर जानलेवा हमला।” जनता का गुस्सा भड़क उठा। हजारों लोग सड़कों पर उतर आए और नारे लगाने लगे, “एसपी मैडम पर हमला नहीं सहेंगे।” सरकार पर दबाव बढ़ा।
मुख्यमंत्री ने सीमा को बुलाकर कहा, “आप पर हमला गंभीर बात है। हम आपकी सुरक्षा बढ़ा देंगे। लेकिन आप चाहें तो ट्रांसफर ले सकती हैं।” सीमा ने दृढ़ आवाज में कहा, “सर, भागना मेरे खून में नहीं है। मैं इसी शहर में रहकर इन्हें सबक सिखाऊंगी। यही मेरी लड़ाई है।”
सीमा ने अपने तरीके से जांच शुरू कर दी। उसने अजय और अपनी विशेष टीम को आदेश दिया, “हर सुराग जुटाओ। मुझे पता करना है कि हमला किसने किया।” धीरे-धीरे सबूत मिलने लगे। फोन कॉल रिकॉर्ड, बैंक ट्रांजैक्शन, सीसीटीवी फुटेज सब ने मिलकर यह साबित कर दिया कि इसके पीछे वही नेता, डॉन और अफसरों का गठजोड़ था। सीमा ने फाइल तैयार की और सीधे मुख्यमंत्री को सौंप दी। बोली, “अब फैसला आपके हाथ में है। अगर कारवाई नहीं हुई तो मैं जनता के सामने सारा सच रख दूंगी।”
मुख्यमंत्री चुप हो गए। उन्हें पता था अगर सीमा बोल पड़ी तो पूरा राज्य हिल जाएगा। मजबूरन आदेश जारी हुआ। उस डॉन को गिरफ्तार किया गया। नेताओं पर सीबीआई जांच बैठाई गई और भ्रष्ट अफसरों को निलंबित कर दिया गया। पूरे शहर में खुशियों की लहर दौड़ गई। लोग मिठाई बांटने लगे। महिलाओं ने कहा, “अब हमें सच में विश्वास है कि हमारी आवाज सुनी जाती है।” बच्चों ने स्कूल की दीवारों पर लिखा, “थैंक यू एसपी मैडम।”

सीमा चौहान अपने ऑफिस में बैठी थी। खिड़की से बाहर बारिश हो रही थी। उसने अपनी डायरी खोली और लिखा, “आज की जीत सिर्फ मेरी नहीं है। यह जनता की जीत है। यह उन मजदूरों, उन महिलाओं, उन छात्रों की जीत है जिन्हें हमेशा दबाया गया। और यह शुरुआत है। जब तक इस सिस्टम से गंदगी खत्म नहीं होगी, मेरी लड़ाई जारी रहेगी।” उसने कलम रखी और बाहर आसमान की ओर देखा। बिजली चमक रही थी, लेकिन उसके दिल में शांति थी।
उसी वक्त अजय अंदर आया और बोला, “मैडम, जनता बाहर आपका इंतजार कर रही है।” सीमा बाहर आई तो देखा सैकड़ों लोग खड़े हैं। सब ने हाथ जोड़कर उसका स्वागत किया। किसी ने कहा, “मैडम आप हमारी बहन हैं।” किसी ने कहा, “आप हमारी बेटी हो।” सीमा की आंखें नम हो गईं। उसने हाथ उठाकर कहा, “यह लड़ाई अकेली मेरी नहीं है, हम सबकी है। अगर आप सब साथ हैं तो कोई ताकत हमें हरा नहीं सकती।” भीड़ ने एक स्वर में नारा लगाया, “सीमा चौहान जिंदाबाद। जनता की एसपी जिंदाबाद।”
उस पल सीमा ने महसूस किया कि इंसाफ की राह कठिन जरूर है, लेकिन जब जनता साथ खड़ी हो तो कोई ताकत उस राह को रोक नहीं सकती। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, जैसे कह रही हो, “थप्पड़ से शुरू हुई यह कहानी अब न्याय की आवाज बन चुकी है।” और इस तरह सीमा चौहान की जंग ने शहर को नया सबक दिया कि वर्दी का मतलब रब नहीं जिम्मेदारी है, और ताकत का मतलब डराना नहीं, इंसाफ दिलाना है।
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