SP मैडम को आम लड़की समझकर, नशे में चूर इंस्पेक्टर ने कर दिया कांड 😱 फिर जो हुआ…

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एसपी किरण सिंह – एक आम औरत, एक फौलादी अफसर

प्रस्तावना

सुबह के 6 बजे थे। शहर की पॉश कॉलोनी में सरकारी बंगले का पिछला दरवाजा धीरे से खुला। बाहर निकली किरण सिंह – जिले की एसपी, उम्र 32 साल। आज वह अफसर नहीं, एक आम औरत बनकर निकली थी। साधारण लाल सलवार कमीज, सादी सैंडल, बाल जुड़ा, हाथ में दूध का डिब्बा। कोई पर्स, कोई रिवॉल्वर, कोई सुरक्षा नहीं। बस 5 मिनट के लिए आम औरत बनना चाहती थीं। उन्हें क्या पता था कि यही 5 मिनट उनकी पूरी जिंदगी और सिस्टम का सबसे बड़ा इम्तिहान बन जाएंगे।

गली का मोड़ – पहली चुनौती

गली के नुक्कड़ तक सब ठीक था। लेकिन मुख्य सड़क के मोड़ पर पुलिस की जीप खड़ी थी। उसके पास तीन पुलिस वाले – हवलदार रामबाबू, सिपाही दीपक और कांस्टेबल सुरेश। तीनों रात की गश्त के बाद देसी ठेके पर ‘पूजा’ कर चुके थे। नशे में चूर, वर्दी में मगर इंसानियत से दूर।

रामबाबू की नजर किरण पर पड़ी – अकेली औरत, सुबह-सुबह, दूध का डिब्बा। नशेड़ी दिमाग ने हिसाब लगाया। “अरे मैडम, कहां जा रही हैं इतनी सुबह?” किरण ने शांति से जवाब दिया, “दूध लेने जा रही हूं।” दीपक ने भद्दी सीटी मारी, “हमें भी पिलाओ मैडम!” किरण ने घूरकर देखा, “रास्ता दीजिए, देर हो रही है।” दीपक को लगा, मामूली औरत अकड़ दिखा रही है।

रामबाबू ने बेहूदगी शुरू की, “कोई नेतावेता की रखैल होगी जो इतनी अकड़ में है।” यह शब्द किरण के कानों में शीशे सा उतर गया। गुस्सा उबल रहा था, पर उन्होंने खुद को रोका। आज वह एसपी नहीं, आम औरत हैं। देखना चाहती थीं, वर्दी वाले अपनी ताकत का कितना गलत इस्तेमाल करते हैं।

अपमान और गिरफ्तारी

किरण ने तमीज से बात करने की कोशिश की। “आप लोग वर्दी में हैं, तमीज से पेश आइए।” रामबाबू रास्ता रोककर खड़ा हो गया, “चल पहचान दिखा अपनी।” किरण ने कहा, “मेरे पास कोई पहचान नहीं है।” दीपक ने ठहाका लगाया, “बिना पहचान घूम रही है, केस बन गया। रात भर का धंधा करके आ रही है।”

सुरेश ने रोकने की कोशिश की, “उस्ताद, जाने दो ना।” लेकिन रामबाबू ने उसे झिड़क दिया। “यह जो ज्यादा तेवर दिखाती हैं, इन्हीं का इलाज जरूरी है।” रामबाबू ने किरण की तरफ हाथ बढ़ाया, “या तो यहीं पहचान दे या थाने चल।” किरण का गुस्सा सातवें आसमान पर था। “हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी मुझे छूने की? मैं एक नागरिक हूं।”

दीपक ने जबरदस्ती हाथ पकड़ लिया। “थाने ले चलते हैं, वहां इंस्पेक्टर साहब के सामने सारी हेकड़ी निकल जाएगी।” किरण ने ठान लिया – थाने चलूंगी, देखती हूं वहां क्या होता है।

थाने का अपमान

जीप में जबरन बैठाया गया। दूध का डिब्बा सड़क पर गिर गया। थाने में मुंशी सो रहा था। दीपक ने कहा, “एक मैडम है, ज्यादा जुबान चला रही थी, पूछताछ करनी है।” किरण को रिकॉर्ड रूम में बंद कर दिया गया। अंधेरा, टूटी कुर्सियां, एक छोटी सी खिड़की। अपमान और गुस्से से आंखें जल रही थीं। लेकिन किरण ने खुद को संभाला। सोच लिया – आज अगर एसपी ना भी होती, तो भी इन लोगों को सबक सिखाती।

कुछ मिनट बाद रामबाबू और दीपक अंदर आए। “अब बताएंगी आप कौन हैं? बड़ी तेज जुबान है आपकी।” दीपक ने धमकी दी, “जो भी कमाई की है उसमें से थोड़ा हिस्सा हमें दे दो, छोड़ देंगे। नहीं तो रात भर का केस बनेगा। कोर्ट कचहरी के चक्कर काटती रहोगी।”

किरण ने ठंडे स्वर में कहा, “तुम्हें पता नहीं है कि तुम किससे बात कर रहे हो।” दीपक ने ताली बजाई, “फिल्म की हीरोइन है। कौन सी फिल्म चल रही है बे उस्ताद? सिंघम?” रामबाबू ने नियत साफ कर दी, “या तो चुपचाप ₹5,000 निकाल या फिर…” उसने किरण के कंधे की तरफ हाथ बढ़ाया।

किरण ने एक नजर कमरे के कोने में दौड़ाई – छत पर सीसीटीवी कैमरा। शायद चलता हो, शायद नहीं। लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी। बस अपनी नजरें कैमरे पर टिका दीं।

तीन घंटे का इंतजार

रामबाबू और दीपक बदतमीजी की हद पार कर रहे थे। गंदे मजाक, भद्दे इशारे। किरण बस खड़ी थी, कैमरे को देख रही थी। एक घंटा, दो घंटे, तीन घंटे बीत गए। अब सुबह के 9 बजे थे। इंस्पेक्टर मनोहर थाने में दाखिल हुआ। उसे रोज का मामला लगा। तभी सिटी कंट्रोल रूम से डीएसपी का फोन आया – “एसपी मैडम का फोन सुबह 6 बजे से नॉट रीचेबल है, आखिरी लोकेशन तुम्हारे थाने के पास मिली है।”

मनोहर का दिल धक से हुआ। “अज्ञात महिला सुबह 7 बजे जुबान लड़ाई थी, रिकॉर्ड रूम है…” मनोहर भागा, रिकॉर्ड रूम का ताला खोला। अंदर किरण सिंह खड़ी थी। शांत, लेकिन आंखें जल रही थीं। मनोहर पहचान गया – एसपी मैडम!

सिस्टम की सफाई

किरण बाहर निकली, “मुंशी, सीसीटीवी मॉनिटर कहां है?” कंप्यूटर ऑन हुआ, पिछले 3 घंटे की रिकॉर्डिंग प्ले हुई। सब कुछ साफ – कैसे जीप से धकेला गया, कैसे रिकॉर्ड रूम में बंद किया गया, कैसे बदतमीजी हुई। किरण ने फुटेज सेव की, पेन ड्राइव में कॉपी की।

“इंस्पेक्टर मनोहर, तुम सस्पेंड हो अभी इसी वक्त।” डीएसपी, महिला आयोग, मीडिया – सबको फोन किया। अगले 15 मिनट में थाना छावनी बन गया। मीडिया, अफसर, कैमरे। रामबाबू, दीपक, सुरेश तीनों को हथकड़ी लगाकर जमीन पर बिठा दिया गया।

किरण सिंह का बयान

किरण ने माइक लिया, “आज मैं दूध लेने निकली थी। एक आम नागरिक बनकर यह देखने कि जिस शहर की मैं एसपी हूं, क्या वहां की औरतें सुबह 6 बजे सुरक्षित हैं? और मुझे मेरा जवाब मिल गया।”

“यह तीन लोग सिर्फ पुलिस वाले नहीं हैं, यह वह दीमक हैं जो वर्दी को खोखला कर रहे हैं। अगर मैं सच में कोई आम औरत होती, तो तुम उसकी इज्जत का सौदा करते, धमकाते, रिकॉर्ड रूम में बंद कर देते।”

“यह सबक सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं है, हर वर्दी वाले के लिए है। आज अगर मैं एसपी नहीं होती, तो शायद यही दरिंदगी किसी और महिला के साथ होती।”

तीनों को सस्पेंड किया गया, एफआईआर दर्ज हुई। मीडिया ने बयान को ब्रेकिंग न्यूज़ बना दिया। सुरेश बोला, “मैडम मैंने तो उस्ताद को रोकने की कोशिश की थी।” किरण ने कहा, “बुराई को ना रोकना भी उतना ही बड़ा गुनाह है।”

सिस्टम का विरोध

किरण सिंह अपने बंगले लौटीं। चाय नहीं मिली थी, लेकिन पूरे सिस्टम को कड़क चाय पिला दी थी। अगले दिन दफ्तर में मातम जैसा सन्नाटा था। नमस्कार, जय हिंद, गुड मॉर्निंग – आवाजें बहुत थीं, लेकिन आंखों में आंखें डालने वाला कोई नहीं था। यह इज्जत नहीं, खौफ था। एक लेडी अफसर जिसने अपने ही भाइयों को फंसा दिया।

दोपहर में डीएम साहब का फोन आया, “किरण, 376 अटेम्प्ट टू रेप का चार्ज कुछ ज्यादा नहीं हो गया? वह लोग नशे में थे, बदतमीजी की, लेकिन यह चार्ज तो उनका पूरा खानदान तबाह कर देगा।”

किरण ने कहा, “सर, अगर आज मैं एसपी नहीं होती और मेरे पास सीसीटीवी का सबूत नहीं होता, तो वह मेरे साथ क्या करते? और अगर वह कर गुजरते, तो क्या आप तब भी यही कहते कि नशे में थे?”

डीएम साहब बोले, “बात डिपार्टमेंट की इज्जत की है। तुमने मीडिया को बुला लिया, डीएसपी को बुला लिया। पूरे महकमे की थूथू हो रही है।” किरण ने कहा, “मोरल तब डाउन होना चाहिए जब वर्दी पहनकर कोई औरत को छेड़े। मेरा काम क्राइम खत्म करना है, चाहे वह वर्दी के अंदर हो या बाहर।”

साजिश और लड़ाई

रामबाबू और दीपक ने अपनी वर्दी खोकर अब किरण की इज्जत पर कीचड़ उछालने की योजना बनाई। “हमें बस यह साबित करना है कि मैडम दूध लेने नहीं, किसी और काम से निकली थी। उसका कैरेक्टर ढीला है।” मीडिया को भी घसीटा गया। झूठे गवाह, पैसों की गड्डी, बिकाऊ पत्रकार – सब मिल गए।

पर किरण ने भी मोर्चा संभाला। अपने सबसे भरोसेमंद हवलदार शर्मा को कहा, “शहर में सबसे बिकाऊ पत्रकार कौन है? रामबाबू-दीपक किन-किन लोगों से मिल रहे हैं?” वर्मा नामक पत्रकार को बुलाया, बटन कैमरा दिया, सब रिकॉर्ड होना चाहिए।

प्रेस कॉन्फ्रेंस – असली जीत

अगली सुबह प्रेस कॉन्फ्रेंस में किरण ने वर्मा वाली रिकॉर्डिंग प्ले कर दी। ऑडियो-वीडियो में सबकुछ साफ – रामबाबू की गाली, दीपक की गड्डी, झूठे गवाह। “यह मेरी इज्जत पर हमले की पहली फर् थी, अब दूसरी फर् सबूतों के साथ छेड़छाड़, लोक सेवक को बदनाम करने की साजिश और न्याय प्रक्रिया में बाधा डालने की है।”

“अरेस्ट देम!” अब उन पर क्रिमिनल कांस्पिरेंसी का चार्ज भी लगा। मीडिया टूट पड़ा। किरण सिंह चुपचाप बाहर निकली। आज भी सुबह की चाय नहीं मिली थी, लेकिन सिस्टम की वह गंदी नाली साफ कर दी थी जिसकी बदबू बरसों से सबको परेशान कर रही थी।

कहानी का संदेश

एक आम औरत बनकर निकली एसपी किरण सिंह ने पूरे सिस्टम को आईना दिखा दिया। वर्दी और आम आदमी के बीच का फासला बस एक सुबह, एक मोड़ और तीन गलत पुलिस वालों जितना ही है। इज्जत बचाने के लिए लड़ना जरूरी है, चाहे लड़ाई कितनी भी मुश्किल हो।

समाप्त