SP मैडम को भिखारी समझ सबने मजाक बनाया लेकिन हकीकत सामने आते ही सबके होश उड़ गए…
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साहस का सामना’

भाग 1: एक शाम की शुरुआत
मुंबई की वह शाम कुछ अलग ही थी। बाहर जोरदार बारिश हो रही थी। पुलिस कमिश्नर के ऑफिस की खिड़की से बाहर देखते हुए, केवल पानी और गाड़ियों की लाल-पीली बत्तियाँ नजर आ रही थीं। अंदर अपने केबिन में बैठी थीं एएसपी अंजलि राठौर। उनका नाम ही काफी था अपराधियों के पसीने छुड़ाने के लिए। पुलिस विभाग में लोग उन्हें “लेडी सिंघम” कहते थे। लेकिन अंजलि को इन नामों से कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह बस अपना काम जानती थी।
भाग 2: फरियादियों की कहानी
अंजलि अपने टेबल पर रखी एक फाइल पढ़ रही थी। तभी दरवाजे पर एक हल्की सी दस्तक हुई। अंजलि ने बिना सिर उठाए कहा, “कम इन।” हवलदार पाटिल अंदर आया। वह थोड़ा हिचकिचा रहा था। “मैडम, एक औरत आई है। बहुत रो रही है। कह रही है आपसे ही मिलना है। मैंने कहा, कल आना, पर वह हिलने को तैयार नहीं है।”
अंजलि ने कहा, “फरियादी को कभी दरवाजे से मत लौटाओ। भेजो उन्हें।” कुछ ही पलों में एक बूढ़ी औरत अंदर आई। उसकी उम्र करीब 60 से 65 साल होगी। साड़ी जगह-जगह से फटी हुई थी। पानी से तर-बतर। आंखों में ऐसा डर था जैसे उसने मौत को करीब से देखा हो। उसका नाम सावित्री था।
भाग 3: सावित्री की दास्तान
सावित्री अंदर आते ही अंजलि के पैरों की तरफ लपकी। अंजलि ने तुरंत अपनी कुर्सी छोड़ी और उसे पकड़ लिया। “अरे, यह क्या कर रही है मां? जी उठिए, यहां बैठिए।” अंजलि ने उसे कुर्सी पर बैठाया। खुद अपने हाथों से पानी का गिलास दिया। सावित्री के हाथ इतने कांप रहे थे कि पानी छलक कर फर्श पर गिर गया।
अंजलि ने बहुत प्यार से पूछा, “शांत हो जाओ मां जी। पहले सांस लो। मैं यहीं हूं। बताओ क्या हुआ?” सावित्री ने कहा, “अनर्थ हो गया। घोर पाप हो रहा है। भगवान के घर में शैतान बैठे हैं। मेरी मदद करो। वरना वह बच्चियां मर जाएंगी।”
अंजलि भी हैरान गई। “कौन बच्चियां? कहां की बात कर रही हैं आप?” सावित्री ने कहा, “नारी छाया सुधार गृह, शहर के बाहर जो बना है। मैं वहां सफाई का काम करती हूं। दुनिया को लगता है वह अनाथ और बेसहारा लड़कियों का आसरा है, पर वह आसरा नहीं, नर्क है।”
भाग 4: नारी छाया सुधार गृह का सच
सावित्री ने बताया कि वहां जो भी नई लड़की आती है, जिसका कोई वारिस नहीं होता या जो दिमागी तौर पर थोड़ी कमजोर होती है, वह उसे अपने कमरे में बुलाता है। “वह वहां सुधार गृह नहीं, वैशालय चला रहा है। लड़कियों को नशा दिया जाता है। अगर कोई लड़की मना करे, तो उसे पागलखाने के वार्ड में डाल देते हैं। बिजली के झटके देते हैं। कल रात एक 19 साल की लड़की जिसका नाम मुन्नी था, उसने फांसी लगा ली। लेकिन उन लोगों ने पुलिस को नहीं बताया। रात के अंधेरे में उसकी लाश को पीछे के नाले में फेंकवा दिया। मैंने अपनी आंखों से देखा है मैडम।”
भाग 5: अंजलि का संकल्प
अंजलि का खून खौल उठा। नारी छाया सुधार गृह, यह नाम उसने सुना था। कई बड़े नेता और बिजनेसमैन वहां डोनेशन देते थे। अंजलि ने कड़क आवाज में कहा, “पाटिल, गाड़ी निकालो और टीम को तैयार रहने को बोलो।” लेकिन अगले ही पल अंजलि रुक गई।
उन्होंने सावित्री की तरफ देखा। अगर वह अभी पुलिस फोर्स के साथ वहां जाती हैं, तो क्या होगा? जगन माथुर बहुत चालाक है। उसके पास बड़े लोगों का पावर है। वह सबूत मिटा देगा। अंजलि ने गहरी सांस ली। “पाटिल, रुको। अभी नहीं होगी।”
भाग 6: योजना का निर्माण
पाटिल हैरान था। “मैडम, शेर का शिकार करना है तो जाल बिछाना होगा।” अंजलि ने कहा, “अगर हम वर्दी में गए तो वह संभल जाएंगे। हमें उनके बीच जाना होगा। उनके जैसा बनकर।”
अंजलि ने अपने हुलिए को पूरी तरह बदल दिया। उसने अपने बालों को गंदा किया, एक पुरानी मैली कुचैली साड़ी पहनी, और चेहरे पर कालिख लगाई। उसने अपना नया नाम रखा, कमली। एक मानसिक रूप से बीमार लावारिस औरत।
भाग 7: कमली का नाटक
अंजलि ने एक बस स्टैंड पर पागलों जैसी हरकतें करनी शुरू की। लोग डर के मारे भागने लगे। थोड़ी देर में पुलिस की जीप आई। दो महिला हवलदारों ने बड़ी मुश्किल से कमली को काबू में किया। उसे थाने लाया गया। वहां के इंस्पेक्टर ने जब देखा कि इसका कोई घर बार नहीं है और दिमागी हालत ठीक नहीं है, तो उसने वहीं किया जो अंजलि चाहती थी।
भाग 8: सुधार गृह में प्रवेश
अंजलि को सुधार गृह की वैन में बैठाया गया। वहां का माहौल बाहर से बिल्कुल अलग था। अंजलि ने देखा कि वहां की दीवारों पर भद्दे चित्र लगे थे। जगन माथुर, जो उम्र में 50 के पार था, अपनी कुर्सी पर बैठकर शराब पी रहा था।
भाग 9: जगन माथुर का असली चेहरा
जगन ने कहा, “आओ, आओ कमली। वहां दरवाजे पर क्यों खड़ी हो? डरो मत। मैं कोई भूत नहीं हूं।” अंजलि ने कहा, “मुझे जाने दो।” जगन ने कहा, “करना तो पड़ेगा। प्यार से करेगी तो मजे में रहेगी।”
जगन ने अंजलि के कंधे को जोर से जकड़ लिया। अंजलि ने एक पल के लिए अपनी सांस रोकी और कहा, “बस बहुत हुआ, अब तेरा खेल खत्म जगन।”
भाग 10: अंजलि का साहस
जैसे ही जगन ने अंजलि के कंधे पर हाथ रखा और बदतमीजी करने की कोशिश की, अंजलि ने उसे एक जोरदार झटका दिया। जगन माथुर दर्द से करा उठा और दो कदम पीछे लड़खड़ाया। अंजलि ने कहा, “तू क्या खरीदेगा? मुझे तेरी औकात नहीं है।”
इंस्पेक्टर सिंह की नजरें अंजलि पर पड़ीं। वह हकलाया, “कौन है तू?” अंजलि ने कहा, “मैं वो हूं जो तेरी बर्बादी का परवाना लेकर आई हूं।”
भाग 11: पुलिस की कार्रवाई

अंजलि ने तुरंत अपने अधिकारियों को बुलाया और इंस्पेक्टर सिंह और उसके साथियों के खिलाफ कार्रवाई की। उन्होंने कहा, “हमारी वर्दी का मतलब यह नहीं है कि हम दूसरों को परेशान करें। हमें कानून का पालन करना चाहिए।”
भाग 12: नारी छाया सुधार गृह का बदलाव
अंजलि ने अपने अधिकारियों को आदेश दिया कि वे बुजुर्ग की मदद करें और उसके ठेले को वापस करें। काजल ने कहा, “आप चिंता मत कीजिए। मैं हमेशा आपके साथ हूं।”
भाग 13: अंजलि की जीत
अंजलि ने अपने काम में न केवल अपनी पहचान बनाई बल्कि समाज में भी एक मिसाल कायम की। उसने साबित किया कि प्यार और सम्मान से बड़ी कोई चीज नहीं होती।
भाग 14: अंत
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि प्यार और सम्मान के साथ जीना ही असली जीवन है। अंजलि और आर्यन की कहानी हमारे लिए एक प्रेरणा है कि हमें हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए और अपने अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।
काजल ने साबित किया कि एक महिला न केवल अपने करियर में सफल हो सकती है, बल्कि समाज में भी बदलाव ला सकती है। उनकी कहानी हमें यह याद दिलाती है कि सच्चा प्यार और सम्मान हमेशा जीतता है।
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