तलाक, मेरे पति ने मुझे खाली हाथ जाने दिया, आधे साल बाद एक अप्रत्याशित कॉल के कारण उन्हें मुझे 1 करोड़ रुपये ट्रांसफर करने पड़े…
तलाक के बाद एक करोड़ का पलटवार
जिस दिन मैंने तलाक के कागज़ात पर दस्तख़त किए, राघव ने मुस्कुराकर कहा था, “शुक्र मनाओ कि मैं तुम्हें चुपचाप जाने दे रहा हूँ। घर मेरा है, कार मेरी है, बच्चे भी मेरे पास रहेंगे। तुम्हारे पास अब कुछ नहीं बचा।”
मैं अनिका हूँ, 32 साल की, मुंबई की एक निजी कंपनी में अकाउंटेंट थी। राघव से मेरी शादी को तीन साल हो चुके थे। शादी के बाद मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी, बच्चों की परवरिश और घर की जिम्मेदारी संभाल ली। लेकिन घर, गाड़ी, बैंक खाते—सब राघव के नाम थे। मैं उसके भरोसे ही ज़िन्दगी जी रही थी।
तीन साल बाद मुझे पता चला कि राघव के कई अफेयर चल रहे हैं। जब मैंने सवाल किया, उसने बेरुखी से जवाब दिया, “तलाक चाहिए तो दस्तख़त कर दो, सब कुछ मेरा है।”
अदालत ने भी यही फैसला सुनाया—घर, गाड़ी, बच्चा, सब राघव को मिल गया। मेरे हिस्से में सिर्फ़ कुछ कपड़े, थोड़ी बचत और टूटा दिल आया। मैं नागपुर अपने माता-पिता के पास लौट गई। कई रातें रोते हुए गुज़ारीं। माँ ने एक दिन कहा, “अब रोने से क्या होगा? खड़ी हो जाओ, तुम स्कूल में सबसे होशियार थीं।”
माँ की बात ने मुझे झकझोर दिया। मैंने खुद को फिर से खड़ा किया—डिजिटल मार्केटिंग का कोर्स किया, छोटे-मोटे फ्रीलांस काम किए। धीरे-धीरे आत्मविश्वास लौटा।
तीन महीने बाद, कॉलेज की दोस्त प्रिया से मिली। उसने मुझे एक स्टार्टअप ग्रुप से मिलवाया, जहाँ तलाकशुदा महिलाएँ अपनी ज़िन्दगी फिर से शुरू कर रही थीं। वहाँ मैंने डिजिटल फोरेंसिक, डेटा सिक्योरिटी जैसे विषय सीखे।
एक दिन, पुराने फोन में राघव और उसकी प्रेमिका के बीच हुए चैट्स और डॉक्युमेंट्स दिखे। उनमें कई संवेदनशील बातें थीं—जीएसटी चोरी, नकली इनवॉइस, ऑफ-द-बुक लेन-देन।
मेरी अकाउंटेंट वाली प्रवृत्ति जाग उठी। शादी के वक्त मैं उसकी दुकान के अकाउंट्स संभालती थी, मेरे पास पुरानी एक्सेल फाइलें, इनवॉइस, स्टेटमेंट्स थे। सब मिला कर मुझे समझ आ गया कि उसके पास टैक्स चोरी के पक्के सबूत हैं।
मैंने सबूत इकट्ठा किए, प्रिया से सलाह ली। उसने कहा, “तुम ये रिपोर्ट इनकम टैक्स, जीएसटी इंटेलिजेंस, या ईओडब्ल्यू को दे सकती हो।”
मैंने राघव को फोन किया। उसने मजाक उड़ाया, “गलत नंबर डायल किया है?”
मैंने शांति से एक पीडीएफ़ भेजी—जिसमें सारे सबूत थे। साथ में एक वाक्य लिखा, “24 घंटे में 1 करोड़ ट्रांसफर करो, वरना ये सब एजेंसियों को भेज दूँगी।”
दस मिनट बाद उसका कांपता हुआ फोन आया, “तुम ब्लैकमेल कर रही हो?”
मैं मुस्कुराई, “नहीं, बस याद दिला रही हूँ—क़ीमत चुकानी पड़ती है, पैसे में या आज़ादी में।”
24 घंटे बाद, मेरे खाते में एक करोड़ रुपये थे। कोई माफ़ी नहीं, कोई संदेश नहीं। बस रकम—उस ज़िन्दगी की कीमत जिसे उसने बेरहमी से कुचला था।
मैंने पैसे खुद पर खर्च नहीं किए। कुछ माता-पिता को भेजे, कुछ तलाकशुदा महिलाओं के स्टार्टअप फंड में दान किए। बाकी बैंक में जमा कर दिए—याद दिलाने के लिए कि मैं टूटी नहीं, बस मजबूत हो गई।
मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं बदला लूँगी। लेकिन कभी-कभी ज़िन्दगी में पलटवार ज़रूरी होता है, ताकि लोग अपनी हदें जान सकें। राघव जेल नहीं गया, लेकिन मुझे यकीन है कि वह फिर कभी किसी महिला का अपमान करने की हिम्मत नहीं करेगा—खासकर उस पत्नी का, जिसे उसने समझा था कि उसके पास कुछ नहीं है।
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