दिवाली की रात एक अरबपति की खोई हुई बेटी सड़क पर दीये बेचती मिली। दिल को छू लेने वाली…
दिवाली की दोपहर थी। पूरा शहर रौनक में डूबा हुआ था। हर तरफ दुकानें सजी थीं। मिठाइयों की खुशबू हवा में फैली थी और लोग खुशियों के इंतजाम में लगे थे। लेकिन उसी भीड़भाड़ के बीच सड़क के किनारे सूरज की तेज धूप में तपती जमीन पर अपनी पुरानी टोकरी में मिट्टी के दिए सजाए बैठी थी एक छोटी सी बच्ची। उसकी उम्र मुश्किल से 10 साल रही होगी। फटे पुराने कपड़ों में लिपटी, चेहरा धूल और पसीने से भरा। वो बार-बार सड़क पर गुजरते लोगों को देखती। हर चेहरे में उम्मीद तलाश रही थी कि शायद कोई रुक जाए। शायद कोई उसके दिए खरीद ले। शायद आज की रात उसे भी दो वक्त का खाना नसीब हो जाए। वह भी अपने घर पर दिवाली मना पाए।
भाग 2: उम्मीद की किरण
वो हर आने-जाने वाले से कहती, “दिए ले लो। अच्छे दिए हैं। ₹5 के दो दिए हैं।” उसकी धीमी सी आवाज भीड़ में खो जाती। लोग गुजरते रहे। कोई हंस दिया, कोई झिड़क कर चला गया। लेकिन वह फिर भी मुस्कुराती रही। जैसे उसे उम्मीद हो कि यह नहीं तो कोई और हमारे दिए जरूर खरीदेगा। कभी-कभी वह अपना पसीना पोंछती और सामने रखे दियों को ठीक करती। वो दियों को ऐसे सहलाती जैसे वह दिए ही उसके सब कुछ हो। जैसे हर दिया उसकी अपनी उम्मीद का टुकड़ा हो।
भाग 3: टूटा हुआ सपना
एक बच्चा पास से भागता हुआ गुजरा। उसकी टोकरी से एक दिया गिर गया और टूट गया। वो कुछ नहीं बोली। बस टूटा हुआ दिया उठाया। उसे देखती रही और फिर धीरे से बुदबुदाई, “तू भी टूटा जैसे मैं टूटी हूं।” फिर उसने टूटे हुए टुकड़े अपने झोले में रख लिए। शायद उसे हर टूटी चीज में अपना अक्स दिखता था। पास ही मिठाई की दुकान से आवाज आई, “भैया, 2 किलो जलेबी देना।” उसने वहां देखा और वह अनजाने में मुस्कुरा दी। लेकिन उसी पल पेट से एक हल्की सी कराह निकली जो भूख की आवाज थी।
भाग 4: संघर्ष का सफर
वह अपनी झोली में हाथ डालती है और दो सूखे चने निकालकर खाने लगती है और पानी की तलाश में इधर-उधर देखने लगती है। पास के नल पर जाकर पानी पीती है। ठंडा नहीं था मगर उसे जैसे अमृत लग रहा था। लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। हर कोई किसी काम में व्यस्त था। किसी के हाथ में गिफ्ट, किसी के हाथ में मिठाई और उसी भीड़ में वह बच्ची जो किसी की नजर में थी ही नहीं। कभी-कभी कोई महिला उसके दिए पर नजर डालती कहती, “बेटा, यह तो बहुत महंगे हैं।” तो वह जल्दी से जवाब देती, “नहीं मैडम, आप जितना देंगी उतने में ले जाइए।” पर फिर भी वह दिए वहीं रह जाते।
भाग 5: उम्मीद की रात
सड़क का कोना धीरे-धीरे धूल और धूप से भर रहा था। उसके पैरों के नीचे जमीन जल रही थी। लेकिन वह बैठी रही क्योंकि उसे उम्मीद थी कि शाम होते-होते शायद कुछ दिए बिक जाएंगे और वह भी इस बार एक दिया अपने लिए जला पाएगी। करीब 4:00 बजे का समय था। शहर की सड़कें भीड़ से भरी थीं। तभी एक काली गाड़ी धीरे-धीरे उसके सामने आकर रुकी। गाड़ी से एक आदमी उतरा। सूट पहने, देखने में कोई बड़ा बिजनेसमैन लग रहा था। वह मार्केट दिवाली के लिए सामान खरीदने आया था।
भाग 6: पहचान का एहसास
उसने इधर-उधर दुकानों को देखा। लेकिन तभी उसकी नजर उस बच्ची पर पड़ी जो दिए बेचने में लगी थी। वो उसके पास गया और उसके पास जाकर बैठ गया। उसने पूछा, “बेटा, दिए कितने के हैं?” बच्ची ने सिर उठाया। मुस्कुराई और बोली, “साहब, ₹5 के दो दिए हैं। पर अगर आप चार भी देंगे तो भी चलेगा।” आदमी मुस्कुराया। पर कुछ पल बाद उसका चेहरा बदल गया। उसकी नजर उस बच्ची के चेहरे पर ठहर गई। जैसे कुछ पहचानने की कोशिश कर रहा हो।
भाग 7: अतीत की यादें
वो दियों की बजाय उसके चेहरे को देख रहा था। उसकी आंखों को, उसके गालों पर जमी धूल को, उसकी मुस्कान को और फिर कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया। वो सोचने लगा, “यह आंखें, यह चेहरा, यह मुस्कान ऐसा क्यों लग रहा है जैसे मैं इसे पहले कहीं देख चुका हूं?” उसके सीने में पुरानी यादों का तूफान उठने लगा। कुछ छवियां, कुछ हंसी की आवाजें और एक छोटी बच्ची जो उसकी गोद में हंसती थी, वह पल जिस दिन वह खो गई थी, जिस दिन उसकी दुनिया उजड़ गई थी।
भाग 8: टूटे सपनों की कहानी
लेकिन नहीं, वो सोच झटक देता है। “नहीं, यह कैसे हो सकता है? वो तो सालों पहले चली गई थी।” वो धीरे से गाड़ी के पास लौटने लगा। लेकिन पीछे से एक छोटी सी आवाज आई, “साहब, एक दिया ले लीजिए ना। अपने घर की रोशनी बढ़ जाएगी।” विक्रम रुक गया। उसके कदमों की रफ्तार थम गई। वह पलट कर देखता है। बच्ची मुस्कुरा रही थी, लेकिन उसकी आंखों में थकान थी।
भाग 9: एक पुरानी पहचान
तभी कुछ हुआ। एक दिया उसके हाथ से गिरा और मिट्टी में टूट गया। वो बच्ची झुककर उसे उठाने लगी और उसकी कलाई से एक पुरानी टूटी हुई चैन लटक रही थी। जिस पर नाम खुदा था “आर्या।” विक्रम के हाथ कांपने लगे। उसकी आंखें चौड़ी हो गई। वो उस नाम को देखता रह गया। “आर्या,” वो नाम जिसे उसने पिछले आठ सालों से हर मंदिर, हर अनाथालय और हर अखबार में ढूंढा था। उसके होंठ कांप उठे। “नहीं, यह कैसे हो सकता है?”
भाग 10: उम्मीद का दीप
धीरे-धीरे सूरज ढलने लगा था। लेकिन विक्रम मल्होत्रा के दिल के भीतर अंधेरा गहराने लगा था। उसकी निगाहें उस छोटी बच्ची की कलाई पर टिकी थीं। वही टूटी हुई चैन जिस पर लिखा था “आर्या।” वो नाम जो उसके सीने में जख्म बनकर धड़कता था। विक्रम के होंठों से आवाज तक नहीं निकल रही थी। वो कुछ कहने को बढ़ा पर गला सूख गया। वो बस उस बच्ची को देखता रहा जो टूटा हुआ दिया उठाकर उसे झाड़ रही थी। जैसे वह किसी टूटी हुई उम्मीद को फिर से जोड़ रही हो।
भाग 11: यादों का जाल
वो पल विक्रम के लिए किसी सपने जैसा था। कभी ऐसा लगता जैसे वह सच में उसकी आर्या है। कभी लगता शायद यह किसी और की बच्ची हो। लेकिन दिल के भीतर कुछ कह रहा था, “यही है। यही मेरी आर्या है।” वह बच्ची फिर से मुस्कुराई। “साहब, यह दिया ले लीजिए ना। मोल नहीं दूंगी। बस आप जलाइएगा तो मुझे अच्छा लगेगा।” विक्रम ने थरथराते हाथों से जेब में हाथ डाला। नोट निकालना चाहा। पर जेब से एक पुराना फोटो गिर पड़ा।
भाग 12: पुरानी यादें
जिसे वह हमेशा अपने पास रखता था। जिसमें एक छोटी बच्ची हंस रही थी। वो फोटो की ओर देखता रहा और फिर उस बच्ची की ओर चेहरा, आंखें, मुस्कान सब एक जैसे। उसकी सांसें भारी हो गईं। उसने कुछ कहा नहीं। बस दिया खरीदा और कुछ कदम दूर जाकर खड़ा हो गया। दूर से उसे देखता रहा। बच्ची अब अपने सारे दिए सजाकर लोगों को बुला रही थी। “दिए ले लो। लक्ष्मी जी के लिए सस्ते दिए।” कभी उसकी आवाज थकान में बदल जाती।

भाग 13: संघर्ष की कहानी
वो बच्ची कुछ खा नहीं पाई थी। सुबह से बिना खाए काम कर रही थी। पर उसके चेहरे पर मुस्कान बनी रही क्योंकि वह जानती थी आज की कमाई से शायद उसकी झोपड़ी में भी एक दिया जल पाएगा। विक्रम के मन में सवालों का तूफान उठने लगा। “अगर यह वही आर्या है तो इतने साल वो कहां थी? कैसे जिंदा बची और यहां तक कैसे पहुंची?” वह सोचता रहा। पर जवाब किसी अंधेरे में छिपे थे।
भाग 14: नई दिशा
वह बच्ची अब दिए समेट रही थी। कई दिए बिके नहीं थे। फिर भी उसने मुस्कुराकर उन्हें एक थैले में रखा और धीरे-धीरे सड़क के किनारे बनी पुरानी गलियों की तरफ बढ़ चली। विक्रम की निगाहें उसका पीछा करने लगीं। उसके कदम खुद-ब-खुद उस दिशा में बढ़ने लगे जहां वह बच्ची जा रही थी। फटी साड़ी का कोना हवा में उड़ रहा था और सड़क के दोनों तरफ जले हुए दियों की लौ बुझती जा रही थी।
भाग 15: एक नई पहचान
वो बच्ची एक पुराने पुल के नीचे पहुंची। लेकिन विक्रम मेहता सड़क के उस पार चुपचाप खड़ा होकर सब देखने लगा। पुल के नीचे एक बूढ़ी औरत बैठी थी। चेहरे पर झुर्रियाएं, हाथों में सुई धागा। वो बच्ची उसके पास दौड़कर बोली, “मां, आज मैंने कुछ पैसे कमाए हैं।” बूढ़ी औरत मुस्कुराई। उसने बच्ची के सिर पर हाथ फेरा। “तू बहुत मेहनती है आर्या। भगवान तुझे बहुत खुश रखे।” वो नाम सुनकर विक्रम जैसे पत्थर हो गया। उसकी आंखों में आंसू छलक आए थे। पर कुछ बोल नहीं सका।
भाग 16: जुदाई का दर्द
रात गहराती जा रही थी। वो बच्ची अब उस बूढ़ी औरत के साथ बैठी थी। दोनों मिलकर दिए जला रहे थे। बूढ़ी औरत ने कहा, “इस दिवाली इन दियों की लौ की तरह तेरी जिंदगी में भी खुशियां आ जाएं।” बच्ची ने मासूमियत से पूछा, “अम्मा, मेरी मां कैसी थी?” अम्मा की आंखें भीग गईं। उसने बस आसमान की ओर देखा और बोली, “तेरी मां बहुत अच्छी थी बेटी। अगर वह जिंदा होती, तो आज तेरे ऊपर नाज करती।”
भाग 17: पुनर्मिलन की रात
विक्रम की सांसे थम सी गईं। वह दियों की टिमटिमाहट में उस लड़की के चेहरे पर अपनी पत्नी का चेहरा देख रहा था। वही मासूमियत, वही आंखें जैसे वक्त ने उसे मिटाया नहीं बस छिपा दिया था। वो रात बाकी रातों जैसी नहीं थी। उस रात विक्रम मल्होत्रा की दुनिया जैसे फिर से सांस लेने लगी थी। सालों से जिस आवाज, जिस चेहरे, जिस नाम को वो यादों में ढूंढता फिर रहा था, वो अब उसके सामने जिंदा खड़ी थी।
भाग 18: यादों का सफर
मिट्टी में सनी थकी हुई पर उसी मुस्कान के साथ आर्या। वो जानता था यह कोई सपना नहीं हो सकता। यह वही बच्ची थी जो 8 साल पहले उसकी बाहों से छीन गई थी। उसे वह रात याद आई। 8 साल पहले की वो रात जब एक रोड एक्सीडेंट में उसकी पत्नी और बेटी कार में थे। बारिश तेज थी। कार नदी में गिर गई थी। वह सिर्फ अपनी पत्नी की लाश तक पहुंच पाया था। बेटी कहीं नहीं मिली थी। पुलिस ने कहा था शायद नदी का बहाव उसे बहा ले गया।
भाग 19: सवालों का तूफान
लेकिन अब वह बच्ची वही आर्या थी। उसके मन में कई सवाल थे। “वो यहां कैसे पहुंची और इस बूढ़ी औरत के साथ क्यों रह रही है?” कुछ देर बाद विक्रम खुद को रोक नहीं पाया। धीरे-धीरे वो सड़क पार कर आर्या के पास पहुंचा। उसके जूतों की हल्की आवाज सुनकर आर्या ने पलट कर देखा और मासूमियत से मुस्कुराई। “अरे, आप तो वही अंकल हो ना जो मेरे दिए खरीद कर ले गए थे।”
भाग 20: एक नई शुरुआत
विक्रम की आंखों से एक आंसू फिसल पड़ा। वो कुछ कह नहीं पाया। बस सिर हिलाकर बोला, “हां, वही अंकल हूं।” फिर थोड़ी हिचकिचाहट के साथ उसने पूछा, “अम्मा, तुम कौन हो? और यह बच्ची तुम्हें कहां मिली थी?” बूढ़ी औरत ने नजरें झुका लीं। कुछ पल चुप रही। फिर बोली, “वह दिन मुझे आज भी याद है। तूफान, बारिश और वह टूटी हुई कार नदी में तैर रही थी।”
भाग 21: अतीत की छाया
विक्रम का दिल धड़क उठा। बूढ़ी औरत आगे बोली, “मैंने इस बच्ची को पानी में बहते देखा था। बेहोश थी। मैं उसे किनारे ले आई। जब होश आया, इसे कुछ याद नहीं था। मैं इसे छोड़ नहीं सकती थी तो अपने पास रख लिया। मेरे खुद के कोई बच्चे नहीं थे।” विक्रम के आंसू अब रुक नहीं रहे थे। उसके होंठ कांप रहे थे। “तो इसका असली नाम आर्या मल्होत्रा है। मेरी बेटी।”
भाग 22: अद्भुत संयोग
बूढ़ी औरत ने चौंक कर उसे देखा। “क्या कहा आपने?” विक्रम ने कांपती आवाज में कहा, “हां, मैं इसका पिता हूं। मैं इसको 8 साल से ढूंढ रहा हूं। हर जगह, हर कोने में।” विक्रम ने आर्या से कहा, “बेटा, मैं तेरा पिता हूं और मैं तुझे लेने आया हूं। तू मेरे साथ घर पर चल।” आर्या ने मिट्टी में हाथ फेरते हुए धीरे से कहा, “अंकल, आप अच्छे हो पर मैं आपके साथ नहीं जाऊंगी।”
भाग 23: दर्द भरी सच्चाई
विक्रम ने चौंक कर पूछा, “क्यों बेटा?” आर्या की मासूम आवाज में कहा, “क्योंकि सब पहले प्यार करते हैं फिर मारते हैं। सब कहते हैं हम तुम्हारे अपने हैं पर बाद में छोड़ जाते हैं।” वो बोलते-बोलते रो पड़ी। विक्रम का दिल चीर गया। उसने कांपते हाथों से अपनी जेब से एक पुराना लॉकेट निकाला जिसमें उसकी पत्नी और उनकी छोटी बच्ची की तस्वीर थी।
भाग 24: एक पिता की पुकार
वह लॉकेट आर्या के सामने रख दिया। आर्या ने उसे देखा। उसमें वही चेहरा था आर्या का चेहरा। विक्रम अब खुद को रोक नहीं पाया। वह घुटनों पर बैठ गया। आंसुओं में भीगी आवाज में बोला, “आर्या, तू मेरी बेटी है। तू कहे तो हम डीएनए टेस्ट करवा लेते हैं। पर मुझसे इतना वादा कर तू अब मुझसे दूर मत जाना।” बूढ़ी अम्मा हैरान थी। आर्या अविश्वास में थी। उसे लगा जैसे यह कोई सपना है।
भाग 25: एक नई शुरुआत
बच्ची ने हां कह दी। विक्रम बच्ची और बूढ़ी मां को गाड़ी में बिठाकर अस्पताल की ओर चल दिए। कार में बैठते ही बच्ची खिड़की से बाहर देखने लगी। उसकी आंखों में डर भी था और एक अजीब सी उम्मीद भी। रास्ते भर विक्रम उसे देखते रहे। उनकी आंखों में सिर्फ एक ही ख्वाहिश थी। जल्द से जल्द यह साबित हो जाए कि वह सच में उनकी आर्या है।
भाग 26: सच्चाई का सामना
जैसे ही कार अस्पताल के गेट पर रुकी, बच्ची ने धीमे से विक्रम का हाथ पकड़ लिया। “अगर मैं आपकी बेटी निकली तो आप मुझे कभी छोड़ोगे तो नहीं?” विक्रम की आंखें भर आईं। उन्होंने उसका माथा चूम कर कहा, “बेटा, अगर तू मेरी आर्या निकली तो मैं तुझे कभी अपनी नजरों से दूर नहीं जाने दूंगा। और अगर तू मेरी आर्या नहीं भी निकली तब भी तुझे बेटी बनाकर रखूंगा।”
भाग 27: एक नई पहचान
बच्ची की आंखों से फिर से आंसू छलक पड़े। वह पहली बार अपने दिल से मुस्कुराई। विक्रम ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “अब जो भी होगा, हम साथ मिलकर झेलेंगे।” अस्पताल में टेस्ट के लिए सैंपल दिए गए। विक्रम का दिल धड़कनों से बाहर निकल रहा था। घड़ी की हर सुई उनके लिए सदियों जैसी लग रही थी। आखिरकार रिपोर्ट हाथ में आई। डॉक्टर ने फाइल खोली। मुस्कुराया और कहा, “मिस्टर विक्रम, बधाई हो। यह बच्ची सचमुच आपकी ही बेटी है।”
भाग 28: खुशी का आंसू
यह सुनते ही विक्रम की आंखों से झरझर आंसू बह निकले। उन्होंने बच्ची को कसकर गले से लगा लिया। “आर्या, मेरी गुड़िया, तू सच में मेरी बेटी है।” बच्ची भी रोते हुए उनके सीने से लिपट गई। वो दिवाली की रात जिसमें आर्या अपने छोटे से ठेले पर दिए बेच रही थी। वह रात अब उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी रोशनी बन चुकी थी।
भाग 29: एक नए सफर की शुरुआत
क्योंकि उस रात एक बेटी ने अपने पिता को पाया था और एक पिता ने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी कमी को पूरा किया था। दियों की रोशनी में वह दोनों एक दूसरे को देख रहे थे। कोई शब्द नहीं थे, बस आंसू थे जो सालों की जुदाई को धो रहे थे। कभी-कभी किस्मत भी दिए की तरह होती है। जलती तो मिट्टी में है पर रोशनी आसमान तक जाती है। और उस रात एक खोई हुई बेटी की रोशनी ने एक टूटी हुई जिंदगी को फिर से जीना सिखा दिया।
अंत
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