आत्मसम्मान की मिसाल: साक्षी की कहानी
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में साक्षी नाम की एक लड़की रहती थी। उसका परिवार साधारण था – पिता रामनिवास शर्मा एक सरकारी क्लर्क थे, माँ गृहिणी थीं और एक छोटा भाई था। साक्षी बचपन से ही पढ़ाई में तेज थी। वह हमेशा अपने पिता को कहते सुनती थी, “बेटी, पढ़-लिखकर कुछ बनना है, ताकि दुनिया में सिर ऊँचा कर सको।” साक्षी के मन में एक सपना था – वह जज बनना चाहती थी।
स्कूल के दिनों में ही साक्षी ने ठान लिया था कि वह कानून की पढ़ाई करेगी। हर शाम वह किताबों में डूबी रहती, और माँ उसकी चाय बनाकर लाती। पिता उसकी हिम्मत बढ़ाते। लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। कई बार फीस भरने के लिए पिता को कर्ज लेना पड़ता। साक्षी ने कभी हार नहीं मानी। उसने अपने स्कूल में टॉप किया और स्कॉलरशिप पाकर शहर के कॉलेज में दाखिला लिया।
कॉलेज में उसकी मुलाकात आदित्य से हुई। आदित्य एक होनहार छात्र था, लेकिन उसका परिवार संपन्न था। दोनों की दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई। साक्षी को आदित्य के परिवार से डर था – क्या वे एक साधारण परिवार की लड़की को स्वीकारेंगे? लेकिन आदित्य ने भरोसा दिलाया, “साक्षी, तुम्हारा आत्मविश्वास ही तुम्हारी असली पहचान है।”
कॉलेज खत्म होते-होते दोनों ने शादी का फैसला किया। आदित्य के माता-पिता ने पहले विरोध किया, लेकिन आदित्य के जिद और साक्षी की प्रतिभा के आगे उन्हें झुकना पड़ा। शादी के बाद साक्षी अपने ससुराल आ गई। शुरू-शुरू में सब ठीक था। साक्षी ने कानून की पढ़ाई जारी रखी। आदित्य उसका साथ देता, उसकी हिम्मत बढ़ाता।
लेकिन समय के साथ हालात बदलने लगे। आदित्य का बिजनेस डूब गया। घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी। साक्षी ने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया, ताकि घर का खर्च चल सके। आदित्य तनाव में रहने लगा और धीरे-धीरे उसका व्यवहार बदल गया। वह साक्षी पर गुस्सा करने लगा, छोटी-छोटी बातों पर ताने मारता। एक दिन जब साक्षी ने परीक्षा की तैयारी के लिए देर तक पढ़ाई की, आदित्य ने उसे अपमानित किया, “तुम्हारे कारण मेरा जीवन बर्बाद हो गया।”
साक्षी को बहुत दुख हुआ। उसने माँ को फोन किया, माँ ने कहा, “बेटी, मुश्किलें सबके जीवन में आती हैं। लेकिन कभी अपने आत्मसम्मान से समझौता मत करना।” साक्षी ने माँ की बात गांठ बाँध ली।
कुछ महीने बाद आदित्य ने शराब पीना शुरू कर दिया। घर में रोज झगड़े होने लगे। एक रात आदित्य ने साक्षी को धक्का दे दिया। साक्षी गिर पड़ी और उसके हाथ में चोट आ गई। उस रात साक्षी ने फैसला किया – अब और नहीं। उसने अगले दिन अपने पिता को बुलाया और मायके लौट आई। आदित्य ने माफी माँगी, लेकिन साक्षी ने साफ कह दिया, “जहाँ आत्मसम्मान नहीं, वहाँ रिश्ता नहीं।”
मायके में साक्षी ने फिर से अपनी पढ़ाई शुरू की। उसने जज बनने की तैयारी शुरू की। दिन-रात मेहनत करती, ट्यूशन पढ़ाती, माँ की देखभाल करती और छोटे भाई को स्कूल भेजती। दो साल तक उसने बिना रुके तैयारी की। आखिरकार उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा में उसने टॉप किया। घर में खुशी की लहर दौड़ गई। पिता ने गले लगाकर कहा, “बेटी, आज तुमने साबित कर दिया कि मेहनत और आत्मसम्मान की कोई कीमत नहीं होती।”
साक्षी की पोस्टिंग एक छोटे जिले में सिविल जज के रूप में हुई। वहाँ उसने कई गरीबों और महिलाओं को न्याय दिलाया। उसकी ईमानदारी और निष्पक्षता की चर्चा पूरे जिले में होने लगी। लोग कहते, “अगर जज हो तो साक्षी जैसी।”
एक दिन उसके कोर्ट में एक केस आया – एक बुजुर्ग दंपत्ति की जमीन पर कब्जे का। आरोपी कोई और नहीं, बल्कि आदित्य था। साक्षी के दिल में पुराने जख्म उभर आए, लेकिन उसने अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिया। वह अब सिर्फ एक पत्नी नहीं, एक जज थी। उसने केस सुना, सबूत देखे, और निष्पक्ष फैसला सुनाया – जमीन पीड़ित दंपत्ति को लौटाई जाए, आदित्य पर जुर्माना लगे और संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई हो।
फैसले के बाद आदित्य ने कोर्ट रूम में कहा, “साक्षी, क्या तुम मुझे माफ नहीं कर सकती?” साक्षी ने शांत स्वर में कहा, “माफ करना मेरा धर्म है, लेकिन न्याय मेरा कर्तव्य है। आज मैं तुम्हारी पत्नी नहीं, एक जज हूँ।”
उस दिन से साक्षी की कहानी पूरे राज्य में मिसाल बन गई। लोग कहते, “आत्मसम्मान सबसे बड़ा धन है।” साक्षी ने साबित कर दिया कि कठिनाइयाँ चाहे कितनी भी हों, अगर हिम्मत और आत्मसम्मान हो तो हर मंजिल पाई जा सकती है।
कुछ समय बाद साक्षी ने गरीब बच्चों के लिए एक फाउंडेशन शुरू किया, जहाँ वह उन्हें मुफ्त में पढ़ाती और कानून की जानकारी देती। उसकी प्रेरणा से कई लड़कियाँ जज, वकील और अफसर बनीं। साक्षी की माँ ने एक दिन कहा, “बेटी, तूने साबित कर दिया कि औरत कमजोर नहीं, सबसे मजबूत है।”
सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्तों में प्यार जरूरी है, लेकिन आत्मसम्मान उससे कहीं ज्यादा जरूरी है। अगर कभी जीवन में ऐसा मोड़ आए जहाँ आत्मसम्मान और रिश्ते के बीच चुनना पड़े, तो हमेशा आत्मसम्मान को चुनिए। यही असली ताकत है, यही सच्ची पहचान है।
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