एक साहसी लड़के की कहानी: आरव और रोते हुए बच्चे की मदद

गर्मी की एक तपती सुबह, 15 साल का आरव मेहता स्कूल के लिए देर से भाग रहा था। वह इतिहास की कक्षा के लिए समय पर पहुंचने की कोशिश कर रहा था, क्योंकि उसे पता था कि प्रोफेसर विवेक शर्मा उसकी तीसरी देरी को माफ नहीं करेंगे। पसीना उसकी माथे से बह रहा था और दिल तेजी से धड़क रहा था। तभी अचानक, उसकी नजर एक कार पर पड़ी, जिसमें एक बच्चा रो रहा था।

आरव ने कार के पास जाकर देखा। बच्चे का चेहरा टमाटर की तरह लाल हो गया था, और वह घुटन में सांस लेने की कोशिश कर रहा था। उसके छोटे-छोटे हाथ शीशे पर मार रहे थे। आरव की धड़कनें तेज हो गईं। “यह कार किसकी है?” उसने चारों ओर देखा, लेकिन कोई मदद के लिए आगे नहीं आया। बेकरी में भीड़ थी, लेकिन किसी ने भी बच्चे की मदद करने की कोशिश नहीं की।

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आरव ने दरवाजे का हैंडल खींचा, लेकिन वह बंद था। घबराहट में, उसने पास खड़े एक बड़े पत्थर पर नजर डाली। बिना सोच-विचार किए, उसने पत्थर उठाया और कार के पीछे के शीशे पर फेंक दिया। शीशा टूट गया, और आरव ने बच्चे को बाहर निकालने के लिए दरवाजा खोला। बच्चे का शरीर गर्म था, और वह बेहोश सा लग रहा था। “तुम ठीक हो जाओगे,” उसने बच्चे को अपनी बाहों में उठाते हुए कहा।

आरव ने अस्पताल की ओर दौड़ना शुरू किया, उसके पैर जैसे शीशे के बने लग रहे थे। गर्मी उसे थका रही थी, लेकिन वह रुका नहीं। “हिम्मत रखो, बस थोड़ा और,” उसने खुद को सांत्वना दी। जब वह आपातकालीन कक्ष के दरवाजे पर पहुंचा, तो वह ठोकर खाकर अंदर चला गया। “कृपया मदद करो!” उसने चिल्लाया। उसकी आवाज कांप रही थी, और सभी लोग उसकी ओर मुड़ गए।

एक नर्स ने उसे देखा और तुरंत बच्चे को लेकर इमरजेंसी में भाग गई। आरव की सांसें तेज थीं, और वह वहीं खड़ा रहा। उसे चिंता हो रही थी कि क्या उसने सही किया। क्या बच्चा ठीक होगा? कुछ ही देर में, डॉ. संजय वर्मा ने आरव के पास आकर कहा, “तुमने सही काम किया। बच्चे की जान बचाई है।”

आरव को राहत मिली, लेकिन उसके मन में सवाल थे। “क्या उसके माता-पिता मिल गए?” उसने पूछा। नर्स ने कहा कि वे कोशिश कर रहे हैं। आरव ने सोचा, “क्या कोई अपने बच्चे को भूल सकता है?” उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है।

कुछ समय बाद, पुलिस आई और आरव से पूछताछ की। इंस्पेक्टर राजीव मल्होत्रा ने उसकी बहादुरी की सराहना की। “तुमने जो किया, वह बहुत साहसिक था,” उन्होंने कहा। आरव ने सिर झुका लिया। उसे लगा कि उसने कुछ खास नहीं किया।

अचानक, बच्चे के माता-पिता अस्पताल पहुंचे। वे चिंतित और घबराए हुए थे। आरव ने उन्हें देखा और उसके मन में गुस्सा उमड़ आया। “आपने अपने बच्चे को कैसे छोड़ दिया?” उसने पूछा। बच्चे के पिता ने कहा, “मुझे लगा कि मेरी पत्नी उसे निकाल चुकी है।” यह सुनकर आरव को गहरा दुख हुआ।

डॉ. नीलिमा ने माता-पिता को समझाया कि यह एक भयानक गलती थी, लेकिन अब उन्हें सीखने की जरूरत है। आरव ने महसूस किया कि यह परिवार अब कभी पहले जैसा नहीं होगा।

कुछ दिनों बाद, आरव को अस्पताल बुलाया गया। वहां उसे बच्चे के माता-पिता ने धन्यवाद दिया। “आपने हमारी जिंदगी बचाई,” मां ने कहा, उनकी आंखों में आंसू थे। आरव ने कहा, “मैंने वही किया जो कोई भी करता।” लेकिन अंदर से वह जानता था कि उसने एक बड़ा काम किया है।

अंत में, आरव ने सीखा कि कभी-कभी, एक छोटी सी कार्रवाई भी किसी की जिंदगी बदल सकती है। उसने महसूस किया कि उसकी बहादुरी ने न केवल एक बच्चे की जान बचाई, बल्कि उसे भी एक नया दृष्टिकोण दिया। अब वह जानता था कि हर किसी की जिम्मेदारी होती है, और कभी-कभी, हमें साहस दिखाना पड़ता है।

इस घटना ने आरव को न केवल एक हीरो बनाया, बल्कि उसे यह भी सिखाया कि मानवता की सेवा करना सबसे बड़ा कार्य है।