इज्जत का असली मतलब — रोहन और सिमरन की कहानी

कहानी का सार

12 साल का दुबला-पतला रोहन अपनी 7 महीने की बहन सिमरन को गोद में लिए चुप कराने की कोशिश कर रहा है। घर में गरीबी का माहौल है, लेकिन पिता संजय शर्मा शहर के बड़े व्यापारी हैं। एक दिन संजय अपने बेटे को पुरानी कमीज-पायजामा पहनाकर, एटीएम कार्ड देकर बैंक भेजते हैं — “जाओ, ₹1000 निकालो, सिमरन के लिए दूध और घर के लिए राशन ले आना।”

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रोहन बैंक पहुंचता है, लेकिन उसके मैले कपड़े और छोटी बहन देखकर उसे गार्ड रोकता है, ताने मारता है। अंदर जाकर भी कैशियर और बैंक मैनेजर उसका मजाक उड़ाते हैं, उसे झूठा और भिखारी समझकर बाहर निकाल देते हैं। पूरे बैंक में कोई उसकी मदद नहीं करता, बल्कि तमाशा देखता है।

बाहर बैठा रोहन टूट जाता है, लेकिन तभी उसके पिता संजय शर्मा चमचमाती कार से आते हैं, बेटे को उठाते हैं और बैंक में दाखिल होते हैं। जैसे ही लोग पहचानते हैं कि ये शहर के सबसे बड़े व्यापारी हैं, माहौल बदल जाता है। संजय बैंक मैनेजर को अपना खाता दिखाते हैं — ₹12200 करोड़ बैलेंस!
वो कहते हैं, “मेरे बेटे को तुमने सिर्फ उसके कपड़ों और हालत देखकर बेइज्जत किया। आज मैं अपना सारा पैसा इस बैंक से निकाल रहा हूं।”

पूरे बैंक में सन्नाटा छा जाता है। सोशल मीडिया पर यह घटना वायरल हो जाती है, न्यूज़ चैनल्स पर हेडलाइन बनती है — “बच्चे को भिखारी समझकर निकाला, पिता ने 1200 करोड़ का अकाउंट बंद कर दिया।”
बैंक की साख गिर जाती है, क्लाइंट्स अकाउंट बंद करने लगते हैं। शहर में हर जगह एक ही चर्चा — इज्जत पैसों से नहीं, इंसानियत से मिलती है।

सीख और संदेश

किसी की इज्जत उसकी हालत या कपड़ों से नहीं, उसके इंसान होने से होती है।
समाज में भेदभाव और तंगदिली सबसे बड़ी बीमारी है।
दौलत और ताकत का मतलब दूसरों को छोटा दिखाना नहीं, बल्कि उन्हें ऊपर उठाना है।
बच्चों को सिखाना चाहिए — गुस्से से नहीं, इज्जत से जवाब देना।
एक छोटी घटना पूरे सिस्टम को हिला सकती है।

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मिलते हैं अगली कहानी में।
जय हिंद!