इंटरव्यू देने जा रहे लड़के की कहानी – इंसानियत और मोहब्बत की मिसाल

बिहार के आरा जिले का एक दुबला-पतला लड़का, रवि कुमार, दिल्ली जाने वाली विक्रमशिला एक्सप्रेस के भीड़ भरे डिब्बे में बैठा था। उसका चेहरा थका हुआ था, लेकिन आंखों में आईपीएस अफसर बनने का सपना चमक रहा था। यह सपना सिर्फ उसका नहीं, बल्कि उसके बूढ़े पिता, मां और भाई-बहनों की अधूरी ख्वाहिशों का भी था।

रवि के पास बस एक छोटा सा बैग था, जिसमें कपड़े, पैसे और टिकट रखा था। सबसे जरूरी चीज थी उसका इंटरव्यू कॉल लेटर, जिसे वह अपनी शर्ट की जेब में संभालकर रखता था। रात गहराई और रवि नींद में डूब गया। सिरहाने उसका बैग रखा था।

सुबह जब ट्रेन दिल्ली के करीब पहुंच रही थी, टीटी ने टिकट मांगा। रवि ने घबराकर बैग देखा, तो चैन टूटी हुई थी और सारा पैसा व टिकट गायब थे। रवि की आवाज कांप रही थी, “सर मेरा बैग चोरी हो गया है। उसमें टिकट और पैसे थे।”
टीटी ने तिरछी नजर से देखा और कहा, “यह तो रोज का बहाना है। टिकट दिखाओ वरना अगले स्टेशन पर आरपीएफ के हवाले कर दूंगा।”
रवि ने कांपते हाथों से अपनी जेब से इंटरव्यू लेटर निकाला, “सर, यह देखिए, मेरा यूपीएससी इंटरव्यू है। अगर मैं समय पर नहीं पहुंचा, तो सब खत्म हो जाएगा।”
टीटी पर कोई असर नहीं पड़ा। उसने सख्ती से कहा, “यह सब कहानियां सुनने का समय नहीं है। या तो जुर्माना भरो या नीचे उतरो।”

रवि की आंखें छलक पड़ीं। वह भीड़ से मदद की उम्मीद में देखने लगा, लेकिन किसी ने हाथ नहीं बढ़ाया। तभी भीड़ में से एक आत्मविश्वासी आवाज गूंजी, “रुकिए! यह लड़का सच कह रहा है।”
सबकी नजरें घूम गईं। खिड़की के पास एक लड़की बैठी थी, नीले दुपट्टे में साधारण सलवार-कुर्ता पहने। चेहरा मासूम था, लेकिन आंखों में दृढ़ता थी। उम्र मुश्किल से 22-23 साल।
टीटी ने पूछा, “आप जानती हैं इसे?”
लड़की ने बिना झिझक कहा, “नहीं, लेकिन इसकी आंखों में मैं सच्चाई देख सकती हूं। इसका सपना पटरी पर नहीं उतरना चाहिए। जुर्माना और टिकट का पैसा मैं दूंगी।”

पूरे डिब्बे में खामोशी छा गई। रवि की आंखें लड़की पर टिक गईं। आंसू और कृतज्ञता एक साथ छलक आए। लड़की ने अपने छोटे से पर्स से पैसे निकाले और टीटी को थमा दिए। टीटी ने रसीद काटी और चला गया। भीड़ फिर अपने काम में लग गई, लेकिन रवि वहीं बैठा रह गया। लड़की ने खिड़की से बाहर देखा और कुछ पल बाद रवि से मुस्कान दी, “अब चैन से सांस लो, तुम्हारा टिकट सुरक्षित है।”

रवि के गले से शब्द नहीं निकल रहे थे। आंखें भर आईं। वह फुसफुसाया, “अगर आप नहीं होती तो मेरी जिंदगी यही खत्म हो जाती। आप मेरी परी हैं।”
लड़की मुस्कुराई, “परी नहीं, बस इंसान हूं। इंसान होकर किसी का सपना बचाना अगर मुमकिन हो तो करना चाहिए।”

रवि ने पहली बार गौर से उसे देखा। साधारण कपड़े, साधारण रूप, लेकिन आंखों में साफ रोशनी। उसने हिम्मत जुटाई, “मेरा नाम रवि कुमार है। मैं आरा जिले के हरिपुर गांव से हूं। यूपीएससी इंटरव्यू देने जा रहा हूं। मेरा बैग चला गया, लेकिन अब आपके कारण मैं दिल्ली पहुंच पाऊंगा।”
लड़की ने कहा, “मेरा नाम स्नेहा है। मैं भी दिल्ली जा रही हूं अपनी पढ़ाई के लिए। देखो, सपनों को बचाने के लिए पैसे से ज्यादा जरूरी है हिम्मत। तुम्हारे अंदर वह है।”

इंटरव्यू देने जा रहे लड़के का चोरी हुआ बैग… अजनबी लड़की ने मदद की, फिर जो हुआ | Heart touching story

कुछ ही देर में ट्रेन अलीगढ़ स्टेशन पहुंची। स्नेहा को वहीं उतरना था। उसने जाते-जाते रवि को ₹500 का नोट पकड़ाया, “इसे रख लो, दिल्ली में काम आएगा।”
रवि ने हाथ जोड़कर कहा, “नहीं, आपने पहले ही बहुत कर दिया।”
स्नेहा की आंखें चमकीं, “इसे कर्ज मत समझो, इसे एक दोस्त की दुआ मान लो। और अगर कभी बड़ा अफसर बनो तो किसी और के लिए यही करो। तभी समझूंगी मेरा पैसा लौट आया।”
रवि की आंखों से आंसू निकल पड़े। उसने कांपते हाथों से नोट लिया और वादा किया, “हां, मैं वादा करता हूं।”

ट्रेन चली पड़ी। स्नेहा भीड़ में गुम हो गई, लेकिन उसकी मुस्कान और शब्द रवि के दिल पर हमेशा के लिए लिख गए। जब ट्रेन दिल्ली स्टेशन पर पहुंची, रवि के पास सिर्फ इंटरव्यू कॉल लेटर और वही ₹500 का नोट था।

दिल्ली उसके लिए सपनों का शहर था, लेकिन उतना ही कठोर भी। रवि ने स्टेशन के पास सस्ती धर्मशाला में ठहरने का इंतजाम किया। जेब लगभग खाली हो गई। दिन भर पैदल चलता, भूख लगती तो गुरुद्वारे में लंगर खा लेता। कई बार रात को बस सूखी रोटी और पानी से पेट भरता। लेकिन उसकी आंखों में जलता सपना उसे हर कठिनाई भुला देता।

रात भर पढ़ाई करता, कॉल लेटर को बार-बार देखता। कभी हार मानने लगता तो स्नेहा की बातें याद आ जातीं—”सपनों को बचाने के लिए हिम्मत चाहिए, और तुम्हारे पास वो है।”

आखिर वो दिन आ गया। यूपीएससी का इंटरव्यू। रवि सस्ती सी शर्ट पहनकर बोर्ड के सामने पहुंचा। दिल धड़क रहा था, लेकिन भीतर एक अजीब सी शांति थी। सवालों की बौछार शुरू हुई—प्रशासन, समाज, अपराध, राजनीति हर विषय पर। रवि ने आत्मविश्वास से जवाब दिए। उसकी आवाज में ईमानदारी थी और आंखों में संघर्ष की गवाही।

इंटरव्यू खत्म हुआ। रवि ने बाहर आकर गहरी सांस ली। दिन बीते, नतीजे का इंतजार लंबा लग रहा था।
परिणाम आया तो हरिपुर गांव में जैसे दिवाली मन गई। रवि ने ना सिर्फ यूपीएससी पास किया, बल्कि शानदार रैंक हासिल की। अब वह आईपीएस अफसर बनने जा रहा था। गांव में जश्न था। पिता की आंखों में गर्व के आंसू थे, मां ने बेटे को गले लगाया, “तूने हमारी गरीबी नहीं, इज्जत लौटा दी।”

लेकिन रवि का दिल एक चेहरे को ढूंढ रहा था—नीले दुपट्टे वाली लड़की, स्नेहा। उसकी कही बात रवि के दिल पर लिखी थी—”अगर कभी बड़ा अफसर बनो तो किसी और के लिए यही करो।”

रवि ने मसूरी की नेशनल पुलिस अकादमी में ट्रेनिंग पूरी की। पहली बार वर्दी पहनकर आईने के सामने खड़ा हुआ तो आंखों से आंसू छलक पड़े। उसे लगा जैसे उसके माता-पिता की सारी तकलीफें दूर हो गईं।

पोस्टिंग मिली। रवि जहां भी गया, लोगों ने उसे गरीबों का सहारा और अपराधियों का खौफ माना। उसने रिश्वत नहीं ली, जुर्म से समझौता नहीं किया और इंसाफ को सबसे ऊपर रखा। घर भी बदल गया—झोपड़ी की जगह पक्का मकान, बहनों की अच्छे घर में शादी, छोटे भाई को कॉलेज में दाखिला। लेकिन रवि के दिल में एक कमी थी—स्नेहा कहां है?

साल बीतते गए। एक दिन किस्मत ने मोड़ लिया। रवि की ट्रांसफर दिल्ली में हो गई। अब वह एसपी था। एक शाम कार्यक्रम से लौटते वक्त उसकी नजर सड़क किनारे एक बुक स्टॉल पर पड़ी। वहां किताबों के ढेर में एक लड़की ग्राहकों से बात कर रही थी। चेहरा थका हुआ, लेकिन आंखों में वही चमक थी। रवि का दिल जोर से धड़का—वही आंखें, वही नीला दुपट्टा, वही स्नेहा।

रवि ने हिचकते हुए आवाज लगाई, “स्नेहा!”
लड़की मुड़ी, कुछ पल के लिए सब रुक गया। उसकी आंखों में हैरानी थी, होठ कांप रहे थे।
रवि वही ट्रेन वाला। दोनों की आंखों से आंसू छलक पड़े। भीड़ भरी सड़क पर दो अनजान लोग फिर से मिल गए।

स्नेहा ने बताया, उसके पिता का देहांत हो गया था, परिवार टूट गया, हालात ने उसे किताबों की दुकान लगाने पर मजबूर कर दिया। पढ़ाई छूट गई, सपने अधूरे रह गए। रवि ने उसकी बात चुपचाप सुनी। दिल में दर्द की लहर उठी। जिस लड़की ने उसका सपना बचाया था, आज खुद संघर्ष कर रही थी।

रवि ने दृढ़ स्वर में कहा, “नहीं स्नेहा, तुम आधे रास्ते पर नहीं रुकोगी। तुम्हारे सपने भी पूरे होंगे, यह मेरा वादा है।”
उस रात रवि ने ठान लिया—अब वह स्नेहा की दुनिया बदल देगा। अगले हफ्ते उसने सबसे पहला कदम उठाया—उस छोटी सी दुकान को बड़े आधुनिक बुक स्टोर में बदल दिया। नई किताबें, रोशनी, और दुकान के ऊपर बड़े अक्षरों में लिखा गया—**स्नेहा बुक हाउस**।

स्नेहा ने पहली बार उस बदले हुए स्टोर में पहुंचकर खुशी और हैरानी से आंसू बहाए। “रवि, मैं तो बस किताबों के पन्ने पलट रही थी, तुमने मेरी जिंदगी की किताब ही बदल दी।”
रवि मुस्कुराया, “स्नेहा, तुम्हारी छोटी सी मदद ने मेरी तकदीर बदल दी थी, आज यह सब लौटाना मेरा फर्ज है।”

रवि यहीं नहीं रुका। उसने स्नेहा की अधूरी पढ़ाई फिर से शुरू करवाने का इंतजाम किया, अच्छे कॉलेज में दाखिला दिलवाया। शुरू में स्नेहा झिझकी, “रवि, अब उम्र निकल रही है, पढ़ाई का क्या फायदा?”
रवि ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा, “सपनों की कोई उम्र नहीं होती। तुमने मुझे सपनों पर यकीन करना सिखाया है, अब मैं तुम्हें तुम्हारे सपनों तक पहुंचते देखना चाहता हूं।”

धीरे-धीरे स्नेहा की जिंदगी बदलने लगी—दुकान चल निकली, पढ़ाई का नया सफर शुरू हुआ, और उसकी मुस्कान लौट आई। दोनों के बीच अपनापन और गहरा होता चला गया।

महीनों बीते। एक शाम रवि ने उसे पुराने रेलवे स्टेशन पर बुलाया, वही प्लेटफार्म, वही पटरी जहां से उनकी कहानी शुरू हुई थी। वहां खड़े होकर उसने स्नेहा का हाथ थामा, “स्नेहा, उस दिन मैंने तुमसे वादा किया था कि बड़ा अफसर बनकर किसी की मदद करूंगा। लेकिन मेरी सबसे पहली मदद तुम्हारे लिए होनी चाहिए थी। आज मैं वह वादा पूरा कर रहा हूं, लेकिन अब मैं एक और वादा करना चाहता हूं—जिंदगी भर का। क्या तुम मेरे साथ इस सफर में रहोगी?”

स्नेहा की आंखों से आंसू बह निकले। उसने कांपते होठों से कहा, “रवि, मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक छोटी सी मदद मुझे इतना बड़ा तोहफा दे जाएगी। हां, मैं तुम्हारे साथ रहूंगी, हमेशा।”

उस रात स्टेशन की पटरियों पर गूंजती ट्रेन की सीटी उनके दिलों की गवाही बन गई। भीड़ में खड़े लोग ताली बजा रहे थे। रवि और स्नेहा की आंखों से बहते आंसू इंसानियत और मोहब्बत की जीत की मिसाल बन गए।

कुछ ही समय बाद उनकी शादी हुई। गांव से लेकर शहर तक हर कोई यही कहता रहा—देखो, एक टिकट की मदद ने दो जिंदगियां जोड़ दी। यही होती है असली मोहब्बत, यही होती है इंसानियत।

**सीख:**
यह कहानी सिर्फ एक लव स्टोरी नहीं, इंसानियत और कृतज्ञता की मिसाल है। एक छोटी सी मदद भी किसी की जिंदगी बदल सकती है। जब मदद के साथ दिल भी जुड़ जाए, वही रिश्ता मोहब्बत का सबसे खूबसूरत रूप बन जाता है।

**अगर आप होते उस ट्रेन में, क्या किसी अनजान की मदद करते?
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