एक रात का सफर: जब न्याय ने भिखारी का रूप धारण किया
मध्य रात्रि थी। बारिश की ठंडी बूंदें गिर रही थीं और शहर की सड़कें सुनसान थीं। एक भिखारी, पुराने फटे कपड़ों में, गंदे चेहरे और अजीब चमकती आंखों के साथ पुलिस चौकी के दरवाजे पर खड़ा था। उसके हाथों में एक कटोरा था, पैरों में टूटी चप्पलें। हर कोई उसे देखकर या तो दया करता या घृणा। लेकिन किसी को नहीं पता था कि यह भिखारी दरअसल जिले का सबसे बड़ा अधिकारी – जिलाधिकारी राजेश कुमार था।
राजेश ने अपने जीवन में गरीबी और अन्याय दोनों देखे थे। बचपन में उसके पिता को पुलिसवालों ने बेवजह पीटा था, और उसी दिन उसने वादा किया था कि बड़ा होकर वह गरीबों की मदद करेगा। अब जब वह डीएम बन चुका था, तो उसके पास लगातार शिकायतें आती थीं कि पुलिस गरीबों के साथ बुरा व्यवहार करती है, उन्हें पीटती है, उनसे पैसे मांगती है। लेकिन जांच में हमेशा पुलिसवाले बच निकलते थे।
राजेश ने असली सच्चाई जानने के लिए एक योजना बनाई। उसने खुद को भिखारी के रूप में बदलने का फैसला किया। उसने भिखारियों के कपड़े, उनकी चाल-ढाल, बोलने का तरीका, सब कुछ सीखा। अपने कपड़ों में गंदगी, तेल, प्याज-लहसुन की बदबू लगाई, चेहरे को गंदा किया, आवाज बदल ली। जेब में एक छोटा रिकॉर्डर छुपाया और रात के 11 बजे पुलिस चौकी पहुंच गया।
चौकी के गेट पर दो सिपाही खड़े थे। राजेश ने कांपती आवाज में कहा, “साहब, बहुत ठंड है। एक कोना मिल जाए रात बिताने के लिए।” सिपाही ने उसे दुत्कार दिया, धक्का दिया और धमकी दी कि अगर नहीं गया तो लाठी से पीटेंगे। राजेश लड़खड़ाया पर गिरा नहीं। तभी इंस्पेक्टर शर्मा बाहर आया, उसने राजेश को घृणा से देखा और पेट में लात मार दी। राजेश दर्द से दोहरा हो गया, लेकिन अपनी पहचान नहीं बताई।
रात भर राजेश को मार-पीट, अपमान, गालियों और अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ा। उसे फर्श पर बैठाया गया, सुबह तक वहीं रहने को कहा गया। फिर उसे थाने की सफाई और शौचालय धोने का काम दिया गया। खाने को बासी रोटी और गंदा पानी मिला। हर बार पुलिसवाले उसका मजाक उड़ाते, गालियां देते।
रात के दौरान एक बूढ़ा पानी मांगने आया, तो उसे धक्का देकर गिरा दिया गया और उस पर गंदा पानी फेंक दिया गया। एक बच्चा भूख से तड़पता आया, तो उसे तमाचा मारकर भगा दिया गया। राजेश सब देखता रहा, उसका गुस्सा बढ़ता गया, लेकिन उसने संयम रखा।
सुबह हुई। इंस्पेक्टर शर्मा ने राजेश से कहा, “पहले मेरे जूते चाट, तब जाने दूंगा।” यह अपमान की आखिरी हद थी। राजेश ने धूल झाड़ी, कमर सीधी की, और अपनी असली आवाज में बोला, “अब बहुत हुआ। अब खेल खत्म।” सभी पुलिसवाले हैरान रह गए। राजेश ने अपना पहचान पत्र निकाला, “मैं तुम्हारा डीएम हूं।”
पूरा थाना सन्नाटे में डूब गया। राजेश ने पुलिस महानिरीक्षक को फोन किया, सभी वरिष्ठ अधिकारी तुरंत थाने पहुंचे। राजेश ने पूरी रात की रिकॉर्डिंग दिखाई, हर अन्याय का सबूत पेश किया। निरीक्षक शर्मा, उपनिरीक्षक वर्मा और दोषी सिपाहियों को निलंबित कर गिरफ्तार किया गया। मीडिया में खबर फैली, पूरे प्रदेश में हलचल मच गई।
राजेश ने आदेश दिए, “हर थाने में सीसीटीवी कैमरे लगेंगे, हर शिकायत की गुप्त जांच होगी, और मैं हर महीने अलग-अलग भेष में निरीक्षण करूंगा।” गरीबों के साथ सम्मानजनक व्यवहार अनिवार्य किया गया। कुछ महीनों में ही थाने की तस्वीर बदल गई। अब गरीबों को सम्मान मिलता था, उनकी शिकायतें सुनी जाती थीं।
राजेश ने अपने अनुभव को “एक रात का सफर” नामक किताब में लिखा, जो देशभर में लोकप्रिय हुई। प्रशासनिक अकादमियों में पढ़ाई जाने लगी। राजेश ने साबित कर दिया कि सत्ता का असली मतलब सेवा है, अत्याचार नहीं। आज भी लोग उस रात को याद करते हैं जब न्याय ने भिखारी का रूप धारण किया और अन्याय का सामना किया। बदलाव हमेशा एक व्यक्ति से शुरू होता है, और राजेश ने दिखा दिया कि नेक इरादे हों तो एक रात भी पूरे सिस्टम को बदल सकती है।
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