एक अरबपति अपनी होने वाली बहू की परीक्षा लेने के लिए भिखारी का वेश धारण करता है – कहानी क्या होगी?

कहते हैं कि इंसान की परख सिर्फ दो सूरतों में होती है। या तो जब उसके पास सब कुछ हो या जब उसके पास कुछ भी ना हो। लेकिन जो इंसान सब कुछ खोकर भी अपनी इंसानियत ना खोए, उसकी कीमत दुनिया की कोई दौलत नहीं लगा सकती। यह कहानी है प्रिया की। प्रिया जो मुंबई की उन अनगिनत बस्तियों में से एक में रहती थी, जहां आसमान तो दिखता था, लेकिन उम्मीद की धूप कम ही पहुंचती थी।

प्रिया का जीवन

प्रिया एक छोटी सी फूलों की दुकान पर काम करती थी। उसकी उंगलियां सुबह से शाम तक गेंदे और गुलाब पिरोती रहतीं। लेकिन उसकी अपनी जिंदगी कांटों से भरी थी। घर पर उसकी मां थी जो बिस्तर से उठ नहीं सकती थी। प्रिया की कमाई का हर एक पैसा, उसकी मेहनत का हर एक कतरा, बस मां की दवाइयों और दो वक्त की रोटी में खर्च हो जाता था। उसके पास कीमती लिबास नहीं थे, लेकिन उसके पास एक कीमती दिल था। एक ऐसा दिल जो दूसरों का दर्द समझता था क्योंकि उसने खुद दर्द को बहुत करीब से जिया था।

रतन सिंघानिया का साम्राज्य

इसी शहर के दूसरे सिरे पर बादलों को छूते सिंघानिया एंपायर के आलीशान दफ्तर में बैठते थे रतन सिंघानिया। एक ऐसा नाम जिसके एक इशारे पर बाजार उठते और गिरते थे। रतन ने अपनी जिंदगी में सिर्फ एक ही चीज सीखी थी—पैसा कमाना और उसे पकड़ कर रखना। उन्होंने शून्य से शुरुआत की थी और आज वह एक अरबपति थे। लेकिन इस सफर में वह शायद यह भूल गए थे कि पैसे से ज्यादा कीमती भी कुछ होता है। वह लोगों पर नहीं, उनकी हैसियत पर भरोसा करते थे।

रोहन की प्रेम कहानी

उनका इकलौता बेटा था रोहन। रोहन जो अपने पिता की दौलत के साए में पला बढ़ा। लेकिन उसका दिल दौलत की चमक से अंधा नहीं हुआ था। रोहन की जिंदगी का सबसे खूबसूरत सच प्रिया थी। वह प्रिया से एक आर्ट एक्सिबिशन में मिला था, जहां प्रिया फूल सजाने आई थी। रोहन ने प्रिया को अपनी असलियत नहीं बताई थी। प्रिया उसे बस एक छोटी सी कंपनी में काम करने वाला आम लड़का समझती थी। दोनों का प्यार सादगी और सच्चाई की नींव पर खड़ा था।

रतन का निर्णय

एक दिन रोहन ने हिम्मत जुटाकर अपने पिता को प्रिया के बारे में बताने का फैसला किया। वह नहीं जानता था कि यह फैसला प्रिया की जिंदगी की सबसे बड़ी परीक्षा की शुरुआत बनने वाला था। रतन सिंघानिया जो यह मानते थे कि हर गरीब इंसान की नजर सिर्फ उनकी तिजोरी पर है, अपने बेटे के मुंह से एक गरीब लड़की का नाम सुनकर सन्न रह गए। उन्होंने फैसला किया कि वह इस सोने की चिड़िया पकड़ने वाली लड़की को खुद सबक सिखाएंगे।

रतन का जाल

अगले दिन रतन सिंघानिया ने अपनी योजना को अंजाम दिया। अरबों की सल्तनत का मालिक जिसने कभी अपने इतालवी जूतों पर धूल की एक परत भी बर्दाश्त नहीं की थी, आज फटे पुराने मैले कुचैले कपड़ों में था। उसके चेहरे पर नकली गंदगी और बालों में सफेद पाउडर लगाकर उसे एक लाचार बेबस बूढ़े भिखारी का रूप दिया गया। उसकी आंखों में वह सूनापन था जो जिंदगी की हर उम्मीद खो चुका हो। वह उस मंदिर की सीढ़ियों पर जाकर बैठ गया जहां से प्रिया रोज शाम को अपनी दुकान बंद करके घर लौटती थी।

प्रिया की दया

प्रिया दिन भर की थकान से चूर अपनी छोटी सी कमाई को आंचल में बांधे मंदिर के पास से गुजरी। उसकी चाल में तेजी थी। उसे घर पहुंचकर मां को दवा देनी थी। आज कमाई भी कम हुई थी और उसके माथे पर चिंता की लकीरें गहरी थीं। वह बस सीढ़ियों से उतरने ही वाली थी कि उसकी नजर उस कांपते हुए बूढ़े भिखारी पर पड़ी। रतन ने अपनी सदी हुई आवाज में जिसे उसने जानबूझकर कमजोर और दर्द भरा बना लिया था, खांसते हुए कहा, “बेटी, दो दिन से कुछ नहीं खाया। भगवान तेरा भला करेगा। बस पानी या एक रोटी का टुकड़ा।”

प्रिया एक पल को रुकी। उसकी आंखों ने उस बूढ़े आदमी के दर्द को तोला। फिर उसकी नजर अपने आंचल में बंधे उन चंद सिक्कों और नोटों पर गई। यह पैसे उसकी मां की एक दिन की दवा थे। एक पल के लिए उसका दिल धड़का। अगर वह यह पैसे दे देगी तो कल मां की दवा का क्या होगा? यह वही कशमकश थी जो हर उस इंसान के दिल में उठती है जिसके पास देने के लिए अपनी जरूरत से ज्यादा कुछ नहीं होता।

प्रिया का निर्णय

उसने अपनी आंखें बंद की और एक गहरी सांस ली। फिर उसने अपने आंचल की गांठ खोली। उसने उसमें से आधे पैसे निकाले और पास की दुकान से एक पानी की बोतल और दो रोटियां खरीदी। वह वापस उस भिखारी के पास आई और बहुत नरमी से बोली, “बाबा, यह लीजिए। आप पहले थोड़ा पानी पी लीजिए।” उसने अपने हाथों से बोतल का ढक्कन खोला और पानी उस बूढ़े आदमी की ओर बढ़ाया।

रतन सिंघानिया जो इस नफरत भरी दुनिया में सिर्फ लेनदेन जानता था, हक्का बक्का रह गया। वह उम्मीद कर रहा था कि लड़की उसे दुत्कार कर चली जाएगी या नजरअंदाज कर देगी। लेकिन प्रिया ने ना सिर्फ उसे खाना दिया बल्कि उसके बैठने का तरीका देखकर बोली, “बाबा, आपको ठंड लग रही है?” उसने अपने कंधे पर रखा अपना पुराना धागों वाला शॉल निकाला और उस भिखारी के कंधों पर डाल दिया। “मेरे पास बस यही है। आप यह रख लीजिए। रात में ओस पड़ती है।” वह मुस्कुराई।

रतन की योजना

एक ऐसी मुस्कान जिसमें अपनी गरीबी की कोई शर्म नहीं थी। सिर्फ देने का सुकून था। रतन की आंखें फटी रह गईं। यह लड़की, जिसने अपनी मां की दवा के पैसे और अपना इकलौता शॉल एक अनजान भिखारी को दे दिया। रतन का दिमाग चकरा गया। यह उसके बिछाए जाल में पहली ऐसी हरकत थी जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन उसका शातिर दिमाग मानने को तैयार नहीं था।

“यह सिर्फ दिखावा है,” उसने खुद से कहा। “शायद यह सबकी मदद करती है। मुझे कुछ ऐसा करना होगा जिससे इसका असली लालच बाहर आए। यह परीक्षा अभी खत्म नहीं हुई है। यह तो बस शुरुआत है।”

अगली शाम की योजना

अगली शाम प्रिया फिर उसी रास्ते से गुजरी। उसके चेहरे पर आज थकान ज्यादा थी। मां की तबीयत रात में बिगड़ गई थी और डॉक्टर ने कुछ महंगी दवाइयां लिखी थीं। उसने अपनी सोने की छोटी सी बाली जो उसकी मां ने उसे दी थी, बेचने का मन बना लिया था। उसका दिल भारी था लेकिन कदम थके हुए। उसी मंदिर की सीढ़ी पर वह बूढ़ा भिखारी रतन सिंघानिया बैठा था। बदन पर वहीं प्रिया का दिया हुआ शॉल लपेटे।

प्रिया ने उसे देखा और एक पल को रुकी। आज उसके पास देने के लिए पैसे नहीं थे। लेकिन उसने अपने झोले से एक गेंदे के फूल की छोटी सी माला निकाली जो बिकने से रह गई थी। “बाबा,” उसने धीरे से कहा, “आज पैसे नहीं हैं पर यह भगवान का फूल रख लीजिए।” रतन ने कांपते हाथों से फूल लिया।

रतन का चालाकी

वह कुछ कहने ही वाला था कि तभी उसकी पहले से तय योजना के अनुसार नजर सीढ़ियों के कोने में पड़ी एक चीज पर गई। एक काला चमड़े का बटुआ। “अरे,” रतन ने हैरानी का नाटक किया। “बेटी, देख वहां क्या पड़ा है?” प्रिया की नजर उस बटुए पर गई। वह झिझकी लेकिन फिर बटुए को उठा लिया। जैसे ही उसने उसे खोला उसकी आंखें खुली रह गईं।

बटुए में ₹2000 के नोटों की कई गड्डियां थीं। कम से कम ₹500 होंगे। साथ में कोई पहचान पत्र नहीं था। बस पैसे थे। प्रिया का दिल जोर से धड़का। ₹500 यह रकम उसकी जिंदगी बदल सकती थी। मां का पूरा इलाज, घर का किराया सब। एक पल के लिए उसके हाथ कांप गए। रतन सिंघानिया की तेज आंखें एक बाज की तरह प्रिया के चेहरे के हर भाव को पढ़ रही थीं। यही है। उसने मन में सोचा। अब निकलेगा असली लालच।

प्रिया का नैतिकता

कोई इतना पैसा नहीं ठुकरा सकता। बूढ़े भिखारी की आवाज में एक अजीब सी खुशी भरते हुए रतन बोला, “देखा बेटी, भगवान ने हमारी सुन ली। कल तूने मेरी मदद की। आज देख ऊपर वाले ने हमें कितना कुछ दे दिया। यह हमारी किस्मत है। तू इसमें से आधा रख ले। जा अपनी मां का इलाज कर। किसी को पता नहीं चलेगा। यह भगवान का इनाम है तेरे लिए।”

प्रिया ने एक नजर उन नोटों पर डाली और फिर उस बूढ़े भिखारी के लालची दिखते चेहरे पर। उसके मन में उसकी मां का बीमार चेहरा कौंधा। लेकिन फिर उसकी अंतरात्मा ने उसे झकझोरा। उसने एक गहरी सांस ली और बटुए को बंद कर दिया। “नहीं, बाबा,” उसकी आवाज दृढ़ थी। हालांकि थोड़ी कांप रही थी। “यह हमारा नहीं है। यह किसी की मेहनत की कमाई है। जो इसे खोया होगा वह कितना परेशान होगा। यह भगवान का इनाम नहीं। यह हमारी नियत की परीक्षा है।”

रतन का झटका

रतन सन्न रह गया। “पागल है क्या लड़की?” वह चिढ़कर बोला। “किसको वापस करेगी? कोई नाम पता नहीं है। यह हमें मिला है। रख ले।” प्रिया ने दृढ़ता से सिर हिलाया। “नहीं, मैं इसे मंदिर के पुजारी जी को दे दूंगी। वह घोषणा करवा देंगे। जिसका होगा वह आ जाएगा। अगर हम यह पैसा रख लेंगे, तो हम में और एक चोर में क्या फर्क रह जाएगा। मैं अपनी मां का इलाज पाप के पैसों से नहीं करवा सकती।”

वह मुड़ी और सीधे मंदिर के दफ्तर की ओर चल पड़ी। रतन सिंघानिया जो भिखारी के वेश में था, उसे जाते हुए देखता रहा। उसके सीने में एक अजीब सी हलचल हो रही थी। यह घबराहट नहीं थी। यह सदमा था। पहली बार उसकी दौलत, उसकी चाल, उसका जहर एक ऐसी लड़की के सामने हार गया था जिसके पास फूटी कौड़ी नहीं थी।

रतन का पछतावा

यह लड़की, वह बुदबुदाया। “यह आम नहीं है।” उसका सम्मान पहली बार उसके अहंकार पर भारी पड़ रहा था। लेकिन जिद अभी बाकी थी। उसने फैसला किया अब आखिरी परीक्षा होगी। इस बार भिखारी बनकर नहीं बल्कि अरबपति रतन सिंघानिया बनकर।

प्रिया ने जब वह बटुआ मंदिर के पुजारी को सौंपा तो उसके दिल से एक बड़ा बोझ उतर गया। पुजारी ने उसकी ईमानदारी की बहुत सराहना की। लेकिन प्रिया के लिए यह सिर्फ उसका फर्ज था। वह भारी मन से घर लौटी। मां की दवा के पैसे अब उसके पास नहीं थे। रात भर वह अपनी मां के पास बैठी। गीले कपड़े से उनकी पट्टियां बदलती रही और मन ही मन भगवान से प्रार्थना करती रही कि कोई रास्ता दिखाए।

रतन का नया रूप

अगली सुबह वह अपनी फूलों की दुकान पर बैठी गेंदे के हार गूंथ रही थी। इन्हीं ख्यालों में डूबी हुई। तभी एक चीज ने सड़क पर चलते लोगों का ध्यान भटका दिया। एक चमचमाती काली Mercedes, ऐसी गाड़ी जो इस गली में शायद ही कभी आई हो। सीधे आकर उसकी छोटी सी दुकान के सामने रुकी। प्रिया ने हैरानी से सिर उठाया।

गाड़ी में से एक सूट बूट पहने ड्राइवर उतरा और पीछे का दरवाजा खोला। प्रिया की आंखें चौंधिया गईं। एक दूसरा बेहद महंगा सूट पहने आदमी बाहर निकला। उसने काले चश्मे लगाए हुए थे। वह आदमी सीधे प्रिया के पास आया। “क्या आप प्रिया हैं?” उसकी आवाज में अधिकार था। प्रिया ने घबराते हुए हां में सिर हिलाया।

“जी, मैंने कुछ आपको मिस्टर रतन सिंघानिया ने अपने दफ्तर में बुलाया।” प्रिया का दिल धड़क गया। रतन सिंघानिया। यह नाम तो उसने सिर्फ अखबारों में पढ़ा था। शहर का सबसे बड़ा उद्योगपति। लेकिन मुझे क्यों? क्या मैंने कोई गलती की? उसे लगा शायद कल वाले बटुए का कोई मामला है। हो सकता है वह बटुआ उनका हो।

प्रिया का सामना

“आपको वहां पहुंचकर पता चल जाएगा। कृपया हमारे साथ चलिए।” प्रिया डर और घबराहट के बीच उस आदमी के साथ गाड़ी में बैठ गई। आधे घंटे बाद वह एक ऐसी इमारत के सामने खड़ी थी जो शीशे और स्टील से बनी थी और आसमान को छू रही थी। सिंघानिया एंपायर उसे सबसे ऊपर वाले फ्लोर पर ले जाया गया। वह एक ऐसे दफ्तर में दाखिल हुई जो उसके पूरे घर से भी बड़ा था। सामने एक विशालकाय मेज के पीछे एक महंगी कुर्सी पर वह शख्स बैठा था। रतन सिंघानिया।

प्रिया ने उन्हें में देखा और एक पल को ठिटकी। इन आंखों को इन तेज भेदती हुई आंखों को उसने कहीं देखा था। लेकिन कहां? “बैठो।” रतन की आवाज गहरी और ठंडी थी। प्रिया सहम कर बैठ गई। रतन ने कुछ देर उसे घूर कर देखा और फिर अपनी दराज से एक चेक बुक निकाली। “मैं तुम्हें जानता हूं।” रतन ने कहा और “मैं यह भी जानता हूं कि तुम मेरे बेटे रोहन से मिलती हो।”

प्रिया की दुविधा

प्रिया के पैरों तले जमीन खिसक गई। रोहन उसका रोहन जो खुद को एक छोटी सी कंपनी का मैनेजर बताता था। वह इस सल्तनत का वारिस है। उसका सिर चकरा गया। उसे लगा जैसे रोहन ने उसे धोखा दिया है। “मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं।” रतन ने एक ब्लैंक चेक प्रिया की तरफ खिसकाया। “मुझे पता है तुम जैसी लड़कियों क्या चाहती हो। कल मंदिर की सीढ़ियों पर 500 लौटाकर तुमने बहुत अच्छा नाटक किया। तुमने सोचा होगा कि छोटी रकम को ठुकराकर रोहन के जरिए तुम मेरी पूरी जायदाद पर कब्जा कर लोगी।”

प्रिया की आंखों में आंसू भर आए। यह अपमान था। “यह रहा ब्लैंक चेक।” रतन सिंघानिया ने कहा। “इसमें अपनी कीमत भरो—10 लाख, 1 करोड़, 10 करोड़, जितनी रकम तुम्हें मेरे बेटे से दूर रहने के लिए चाहिए भर लो। यह रकम लो और इसी वक्त मेरे बेटे की जिंदगी और इस शहर से दफा हो जाओ।”

प्रिया का उत्तर

यह प्रिया की जिंदगी की आखिरी और सबसे कठिन परीक्षा थी। एक तरफ वह प्यार था जिसने उसे धोखा दिया था और दूसरी तरफ इतनी दौलत थी जो उसकी मां की जिंदगी बचा सकती थी। रतन सिंघानिया मुस्कुराया। उसे यकीन था कि दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं जिसे वह खरीद नहीं सकता। प्रिया के कानों में रतन सिंघानिया के शब्द झर की तरह घुल रहे थे। रोहन का धोखा और अब यह यह अपमान।

एक पल के लिए उसे लगा कि वह टूट कर वहीं गिर जाएगी। उसकी आंखों के सामने मां का बीमार चेहरा और फिर रोहन का मुस्कुराता हुआ चेहरा घूम गया। दोनों ने उसे छला था। एक ने अपनी पहचान छिपाकर और दूसरा उसकी गरीबी का मजाक उड़ाकर। लेकिन फिर आंसुओं के उस धुंधलके में कुछ साफ हुआ। प्रिया ने अपनी नम आंखें उठाई और रतन सिंघानिया के चेहरे को घूर कर देखा।

प्रिया का साहस

वह ठंडी बेरहम आंखें, वह अधिकार, वह आवाज—”कल मंदिर की सीढ़ियों पर,” प्रिया ने धीरे से दोहराया। उसके दिमाग में बिजली कौंधी। “500! आपको कैसे पता कि मैंने 500 लौटाए? मैंने तो सिर्फ पुजारी जी को दिए थे।” रतन सिंघानिया एक पल को ठिटका। “मेरे—मेरे आदमी…”

“नहीं,” प्रिया की आवाज कांपी। लेकिन इस बार डर से नहीं बल्कि एक कड़वी सच्चाई के एहसास से। “वह भिखारी, वह लाचार, बूढ़ा आदमी, वह आप थे।” रतन सिंघानिया अपनी महंगी कुर्सी पर जम गया। उसका चेहरा जो हमेशा सत्ता और अहंकार से दमकता था, पहली बार पीला पड़ा। उसका सबसे बड़ा दांव उलटा पड़ गया था। वह पकड़ा गया था।

प्रिया की आंखों से आंसू बह निकले। लेकिन अब यह बेबसी के नहीं बल्कि गुस्से और दया के थे। “आप इतने गिर गए मिस्टर सिंघानिया,” वह बोली। उसकी आवाज में एक अजीब सी ताकत थी। “एक अरबपति जिसने अपनी बहू की परीक्षा लेने के लिए भिखारी का रूप धारण किया।” उसने उस ब्लैंक चेक को उठाया। “आप सोचते हैं आप इस कागज के टुकड़े से मेरी कीमत लगाएंगे। मेरी ईमानदारी खरीदेंगे।”

प्रिया का फैसला

“मुझे पैसों की जरूरत है,” उसने सिसकते हुए कहा, “इतनी जरूरत कि मैं शायद बयां भी नहीं कर सकती। मेरी मां बिस्तर पर है। लेकिन आप जैसे अमीर लोग कभी नहीं समझेंगे कि हम गरीबों के पास जब पैसे नहीं होते, तब भी हमारे पास कुछ होता है। उसे जमीर कहते हैं।”

रतन का मुंह खुला का खुला रह गया। “आप अरबपति होकर भी इतने कंगाल हैं कि आपको एक लड़की का प्यार परखने के लिए भेष बदलना पड़ा। आपको लगा मैं आपके पैसे पर मरती हूं।” प्रिया ने अपनी जगह से खड़ी हो गई। उसका सारा डर हवा हो गया। “बाबा,” उसने लगभग फुसफुसाते हुए कहा, “वह भिखारी, वह लाचार, बूढ़ा आदमी, वह आप थे।”

रतन का पछतावा

रतन सिंघानिया अपनी महंगी कुर्सी पर जम गया। उसका चेहरा जो हमेशा सत्ता और अहंकार से दमकता था, पहली बार पीला पड़ा। “मैं—मैं भिखारी का रूप धारण करके तुम्हारी परीक्षा लेने गया था। लेकिन असलियत यह है कि मैं अपनी ही इंसानियत की परीक्षा में फेल हो गया।” उन्होंने प्रिया की तरफ देखा। उनकी आंखों में वह ठंडक नहीं बल्कि एक अजीब सी नमी थी।

“मैं अरबपति होकर भी कंगाल हूं। मेरी दौलत मुझे यह नहीं सिखा पाई कि जमीर क्या होता है।” वह तुमने मुझे सिखाया। “जब तुमने मुझे अपना वह शॉल दिया था। उस रात उस भिखारी को ठंड नहीं लग रही थी। ठंड तो मेरे दिल में जमी थी। जो तुम्हारी अच्छाई ने पिघला दी।”

एक नई शुरुआत

“जब तुमने वह 500 लौटाए तब मैंने जाना कि अमीरी पैसे में नहीं, नियत में होती है।” रतन ने रोहन की तरफ देखा। “और आज जब तुमने यह चेक फाड़ा, तुमने मुझे मेरी असली औकात दिखा दी।” रतन सिंघानिया ने अपने हाथ जोड़े। यह वह पल था जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

“अगर हो सके तो इस बूढ़े अंधे हो चुके बाप को माफ कर देना। रोहन ने तुम्हें नहीं चुना है। मैंने अपने बेटे के लिए तुम जैसी बहू को चुना है।” प्रिया स्तब्ध खड़ी थी। यह सब क्या हो रहा था? लेकिन रतन की आवाज भर आ गई। “शायद अब बहुत देर हो चुकी है।”

प्रिया ने उन दोनों की तरफ देखा। “मेरी मां,” वह सिर्फ इतना कह पाई। “मेरी मां अकेली है। मुझे जाना होगा।” वह किसी की नहीं रुकी। वह उस आलीशान दफ्तर से बाहर निकल गई। पीछे छोड़ गई एक टूटे हुए बेटे को और एक ऐसे अरबपति को जो आज अपनी जिंदगी में पहली बार हारा था।

निष्कर्ष

प्रिया उस आलीशान इमारत से बाहर निकलकर नंगे पैर दौड़ती हुई अपनी बस्ती की तरफ भागी। उसका दिल हजारों टुकड़ों में बंटा हुआ था। रोहन का झूठ, रतन सिंघानिया का घिनौना खेल और सबसे बढ़कर उसकी मां की बिगड़ती हालत। वह हाफती हुई जब अपनी झोपड़ी के दरवाजे पर पहुंची, तो उसने जो देखा, उससे उसकी सांसे रुक गईं।

अंदर दो नर्सें थीं। और एक जानीमानी डॉक्टर डॉ. वर्मा, शहर की सबसे बड़ी हार्ट स्पेशलिस्ट उसकी मां के सिरहाने खड़ी थी। मां की सांसे उखड़ नहीं रही थीं। वह शांति से सो रही थी और उनके हाथ में एक ड्रिप लगी थी। कमरे में दवाइयों की वह महक थी जो प्रिया आज तक खरीद नहीं पाई थी।

प्रिया का नया जीवन

“यह सब क्या है?” प्रिया ने कांपते हुए पूछा। “आपको किसने बुलाया? मेरे पास पैसे नहीं हैं।” डॉ. वर्मा मुस्कुराई। “चिंता मत कीजिए प्रिया जी। आपकी मां अब खतरे से बाहर हैं। उन्हें तुरंत देखभाल की जरूरत थी और आपके सारे बिल किसी ने चुका दिए हैं।”

“किसने?” प्रिया ने हैरानी से पूछा। तभी उसकी झोपड़ी के संकरे दरवाजे पर दो साए खड़े हुए। रतन सिंघानिया और रोहन। वे उस आलीशान Mercedes में नहीं आए थे। वे एक साधारण गाड़ी से आए थे और पैदल चलकर उस कीचड़ भरी गली से होते हुए उसके दरवाजे तक पहुंचे थे।

रतन का बदलाव

रतन के महंगे जूतों पर कीचड़ लगा था। लेकिन आज उन्हें इसकी परवाह नहीं थी। प्रिया की आंखों में गुस्सा भर आया। “यह क्या है? मेरी मां को खरीद कर आप मेरा जमीर खरीदना चाहते हैं?”

रतन सिंघानिया ने सिर झुका लिया। वह अरबपति जो दुनिया को अपने इशारों पर नचाता था, आज एक गरीब लड़की की चौखट पर मुजरिम की तरह खड़ा था। “नहीं बेटी,” उनकी आवाज जो हमेशा हुकुम चलाती थी, आज पहली बार कांप रही थी। “मैं—मैं भिखारी का रूप धारण करके तुम्हारी परीक्षा लेने गया था। लेकिन असलियत यह है कि मैं अपनी ही इंसानियत की परीक्षा में फेल हो गया।”

प्रिया का निर्णय

“मैं अरबपति होकर भी कंगाल हूं। मेरी दौलत मुझे यह नहीं सिखा पाई कि जमीर क्या होता है। वह तुमने मुझे सिखाया। जब तुमने मुझे अपना वह शॉल दिया था। उस रात उस भिखारी को ठंड नहीं लग रही थी। ठंड तो मेरे दिल में जमी थी। जो तुम्हारी अच्छाई ने पिघला दी।”

“जब तुमने वह 500 लौटाए तब मैंने जाना कि अमीरी पैसे में नहीं, नियत में होती है।” रतन ने रोहन की तरफ देखा। “और आज जब तुमने यह चेक फाड़ा, तुमने मुझे मेरी असली औकात दिखा दी।”

प्रिया का माफ करना

रतन सिंघानिया ने अपने हाथ जोड़े। “यह वह पल था जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। अगर हो सके तो इस बूढ़े अंधे हो चुके बाप को माफ कर देना। रोहन ने तुम्हें नहीं चुना है। मैंने अपने बेटे के लिए तुम जैसी बहू को चुना है।”

प्रिया स्तब्ध खड़ी थी। यह सब क्या हो रहा था? लेकिन रतन की आवाज भर आ गई। “शायद अब बहुत देर हो चुकी है।” प्रिया ने उन दोनों की तरफ देखा। “मेरी मां,” वह सिर्फ इतना कह पाई। “मेरी मां अकेली है। मुझे जाना होगा।”

वह किसी की नहीं रुकी। वह उस आलीशान दफ्तर से बाहर निकल गई। पीछे छोड़ गई एक टूटे हुए बेटे को और एक ऐसे अरबपति को जो आज अपनी जिंदगी में पहली बार हारा था।

निष्कर्ष

प्रिया उस आलीशान इमारत से बाहर निकलकर नंगे पैर दौड़ती हुई अपनी बस्ती की तरफ भागी। उसका दिल हजारों टुकड़ों में बंटा हुआ था। रोहन का झूठ, रतन सिंघानिया का घिनौना खेल और सबसे बढ़कर उसकी मां की बिगड़ती हालत।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि इंसानियत और ईमानदारी सबसे बड़ी दौलत होती है। चाहे इंसान के पास कितना भी धन या दौलत हो, सच्ची खुशी और संतोष केवल इंसानियत में ही है। प्रिया ने अपनी ईमानदारी और दया से यह साबित कर दिया कि असली अमीरी पैसे में नहीं, बल्कि दिल में होती है।

Play video :