वो होटल में खाना खा रही थी अचानक उसकी नज़र सड़क पर खड़े एक भूखे और कमजोर बुजुर्ग पर पड़ी, फिर उसने
कहानी: पुनरुत्थान – एक भूखे की आंख से बदली दुनिया
जयपुर का गुलाबी शहर, शाही भव्यता और आधुनिकता का गजब मेल। उसी शहर के सबसे पॉश इलाके में था द हेरिटेज पैलेस – आलीशान, फाइव स्टार होटल, जहां मखमली पर्दों, संगमरमरी फर्श, क्रिस्टल के गिलासों में अमीरी आराम से बहती। दीवारों पर राजस्थानी चित्र, हवा में इत्र, गोल गिलासों में ठंडा पानी, चांदी की थालियों में लज़ीज़ पुआ, दाल-बाटी, लाल मांस। यहां आम आदमी के लिए कोई जगह नहीं थी।
इसी होटल में एक दोपहर, 25-वर्षीय अनन्या अपनी दोस्त रिया के साथ लंच करने आई। अनन्या, नामी टेक्स्टाइल बिज़नेसमैन विक्रम सिंह की इकलौती बेटी, लंदन रिटर्न फैशन डिज़ाइनर, आत्मविश्वासी, महत्वाकांक्षी – मगर दादाजी के नेकी वाले संस्कारों से जमीनी।
खिड़की के पास बैठी, दोस्तों के साथ खाने का आनंद लेती अनन्या की नजर अचानक शीशे के उस पार फुटपाथ पर पड़ती है। वहां खड़ा था एक बूढ़ा, करीब 70-75 साल का, हड्डियों का ढांचा, धूल-धूसरित फटे कपड़े, नंगे पैर धूप पर। उसकी आंखों में हसरत थी – एक-टक होटल के भीतर सजे पकवानों को देखती। उन आंखों में भीख नहीं, कुछ पाने की भूख थी, बस मौका नहीं।
अनन्या का हाथ रुक गया – उसके दादाजी की वह बात दिमाग में गूंज उठी, “बेटा, असली पूजा भूखे के पेट में निवाला डालना है। वह एक बार कर सको, वही सबसे बड़ा तीर्थ है।”
रिया ने टोककर कहा, “ऐसे तो रोज़ दिखते हैं। छोड़, खाना खा।” लेकिन अनन्या के लिए खाना अब बेस्वाद हो गया था। उसने वेटर को बुलाया – “क्या आप बाहर वाले बुजुर्ग को अंदर बुला सकते हैं?” वेटर घबराया, “न-न, मैडम, वह भिखारी है, हमारे अन्य कस्टमर क्या कहेंगे?” अनन्या ने स्पष्ट कहा – “मेरी प्रतिष्ठा किसी भूखे की इज्जत से छोटी नहीं। बुलाइए, वरना मैं खाना पैक करवाकर बाहर उनके साथ खाऊंगी।” अब होटल में हड़कंप मच गया। कहीं बदनामी न हो, इसलिए मैनेजर ने घबराकर बुजुर्ग को अंदर बुलवाया।
रामलाल बाबा ज्यों-त्यों, हैरानी और आशंका के साथ अंदर आए। हर आंख उन्हें घूर रही थी। अनन्या खुद बोली – “आइए बाबा जी, मेरे साथ टेबल पर बैठिए।” बुजुर्ग कांपते हाथों से बैठे, पहली बार किसी ने इतने सम्मान से बुलाया था। खुद अपने हाथ से अनन्या ने ठंडा पानी पिलाया, थाली में बाटी, चूरमा, सब्जी परोसी। उनकी आंखों से आंसू छूट पड़े – यह सिर्फ पेट की भूख नहीं थी, वर्षों से मिले अपमान की जगह मिला इज्जत का सुकून था।
खाते-खाते, अनन्या ने उनका हाल पूछा। कहानी सुनकर वह दहल गई — रामलाल बाबा कभी बगरू गांव के मशहूर कारीगर थे, लकड़ी की नक्काशी में माहिर, उनके बनाए खिलौने, संदूकें, दरवाजे पूरे इलाके में नामी हुआ करते थे। वक्त बदला, मशीनें आईं, बेटों ने कस्बा छोड़ दिया। अकेले, काम से बेकार, बीमारी और घाटे में घर नीलाम, औजारों की पोटली लेकर शहर आये – मगर यहां हुनर की कद्र न मिली, भूखे सोते, फिर भी कभी भीख न मांगी।
खाना खत्म होने के बाद, अनन्या ने बाबा जी से कहा – “मेरे साथ घर चलिए। यहां आपकी जरूरत है।” उसने रामलाल को अपने बंगले में ले जाकर मां को पूरी कहानी सुनाई। मां की भी आंखें भर आईं। “बाबा जी, हमारे लिए सौभाग्य है कि आप हमारे घर आए।”
रामलाल बाबा नए कपड़ों, साफ बिस्तर, इज्जत में रात सोए। लेकिन अनन्या जानती थी, रामलाल बाबा की असली भूख सम्मान और हुनर को ज़िंदा करने की है। उसने अपने डिजाईनिंग ज्ञान और फैमिली बिज़नेस के संसाधनों के बल पर, अगला कदम उठाया – जयपुर और आसपास के गाँवों में घूम-घूमकर ऐसे सैकड़ों कारीगरों की खोज शुरू की, जिनका हुनर गुमनामी और गरीबी में दबा था।
खेेले – कुम्हार, बुनकर, चित्रकार, लुहार – सब भूले-बिसरे, ताने सुनते, पर अपने काम में लगे। इन सबकी झिझक और शक को अनन्या की सच्चाई, इज्जत, और उम्मीद ने बदलना शुरू किया। पैसों का इंतज़ाम कर पुरानी बंद फैक्ट्री को वर्कशॉप में बदला, जिसे नाम दिया – “पुनरुत्थान”।
यह जगह केवल काम की नहीं, पहचान की, स्वाभिमान की थी। रामलाल बाबा सबसे वरिष्ठ कारीगर – गुरु बनकर नई पीढ़ी को नक्काशी सिखाने लगे। अनन्या ने सभी को साथ कर उनके पारंपरिक डिजाइनों को मॉडर्न टच दिया, उनकी कृतियों को कैटलॉग, वेबसाइट, और अपने पापा के विदेशी संपर्कों के ज़रिए एक्सपोर्ट मार्केट तक पहुंचाया। “पुनरुत्थान” अब एक बड़ा ब्रांड, शोहरत और ऑर्डर्स के ढेर, सब कारीगरों के चेहरों पर नई उमंग, बच्चों के स्कूल, घरों में खुशियां, पेट भरा, आत्मसम्मान लौटा।
एक साल बाद, अनन्या और रामलाल बाबा फिर द हेरिटेज पैलेस लौटी – इस बार मेंहमान नहीं, रोल मॉडल के रूप में। वही मैनेजर दौड़ा आकर बाबा के पैर छूने लगा, “माफ कीजिए, पहचान नहीं पाए।” होटल के लोग, जिनके लिए पिछली बार रामलाल बस “भिखारी” थे, आज “गेस्ट ऑफ ओनर” बन गए।
अनन्या ने बाहर देखते हुए सोचा – “आज फिर कोई रामलाल बाबा भूखा, अपमानित न रहे, यही मेरी कमाई है।”
सीख: एक छोटी-सी पर सच्चे दिल से की गई नेकी, किसी भूखे के मान, अध्यात्म और हुनर को जीवनभर के लिए बदल सकती है। और जब इंसान समाज के भुला दिए गए चेहरों का हाथ थामता है, तो वह न सिर्फ उनकी, बल्कि पूरी पीढ़ी की तकदीर बदल देता है।
अगर अनन्या की इस इंसानियत और रामलाल बाबा की कहानी ने आपकी आत्मा को छुआ, तो इस कहानी को साझा करें – ताकि दुनिया को अहसास हो कि नेकी और करुणा सबसे बड़ा धन है।
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