जिलाधिकारी अनीता शर्मा और उनकी मां की कहानी

जिले की सबसे प्रभावशाली अधिकारी डीएम अनीता शर्मा अपनी वृद्ध मां के इलाज के लिए अस्पताल पहुंची थीं। लेकिन अस्पताल के गेट पर डॉक्टर, नर्स और स्टाफ ने उन्हें और उनकी कमजोर मां को गरीब और भिखारी समझ लिया। बेरहमी से धक्के देकर बाहर निकाल दिया गया। एक नर्स चीखी, “तुम जैसों के लिए यह हॉस्पिटल नहीं है। तुम्हारी औकात कहां है इलाज कराने की? कहीं और जाओ, पैसे हैं तो दिखाओ, वरना रहने दो। इनकी उम्र तो निकल चुकी, अब फायदा क्या?”

अनीता स्तब्ध खड़ी थीं। उनकी मां की सांसें भारी पड़ रही थीं और भीड़ उनकी बेबसी का मूक गवाह बनी रही। लेकिन जब अनीता ने अपनी असली पहचान जाहिर की, तो हॉस्पिटल ही नहीं, पूरा शहर थर्रा उठा।

सुबह का समय था। जिलाधिकारी अनीता शर्मा अपने दफ्तर में कागजों के ढेर में डूबी थीं। उन्हें क्या पता था कि आज का दिन उनकी जिंदगी का सबसे कठिन पल ला सकता है। उनकी मां, जिनकी उम्र 70 पार कर चुकी थी, रोज की तरह सब्जी लेने बाजार निकलीं। चलना मुश्किल था, हर कदम धीरे-धीरे सहारे के बिना। वह सब्जी मंडी तक पहुंचीं, लेकिन अचानक भीड़ के बीच उनकी तबीयत बिगड़ गई। दिल का दौरा पड़ा और वह धूप में जमीन पर गिर पड़ीं। शरीर बेजान सा हो गया।

आधा घंटा बीत गया। लोग आते-जाते रहे, ठेले वाले सामान बेचते रहे। कुछ ने रुककर देखा, कुछ ने सिर हिलाया, लेकिन कोई मदद को आगे नहीं बढ़ा। ना पानी दिया, ना उठाया, ना एंबुलेंस बुलाई। इंसानियत जैसे गायब हो गई थी और भीड़ सिर्फ तमाशबीन बनी रही।

उसी भीड़ में एक युवक रवि ने मोबाइल निकाला और वीडियो बनाने लगा। उसने वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दिया—कैप्शन था: “यह दादी आधे घंटे से बेहोश पड़ी है। किसी को रहम नहीं, ना पानी, ना अस्पताल। किसकी मां होंगी बेचारी।”

वीडियो वायरल हुआ और अनीता के मोबाइल पर आ धमका। वीडियो देखते ही उनका दिल बैठ गया, आंखें नम हो आईं। दर्द से भरी चीख के साथ उन्होंने कहा, “हे भगवान, यह तो मेरी मां है!” वे तुरंत कुर्सी से उठीं, इंस्पेक्टर से बस इतना कहा, “मैं जा रही हूं,” और अपनी नीली जीप में बैठकर तेजी से बाजार की ओर दौड़ पड़ीं।

बाजार पहुंचकर अनीता ने अपनी मां को गोद में उठाया। बोतल से पानी पिलाया, चेहरे पर छींटे मारे। कुछ पल बाद मां की आंखें खुलीं। अनीता ने गुस्से से भीड़ को घूरा और बोलीं, “आप लोगों में इंसानियत बची भी है या नहीं? एक औरत धूप में बेहोश पड़ी रही और किसी ने दया नहीं दिखाई। बस तमाशा देखते रहे। आप सब इंसान के नाम पर धब्बा हैं।”

भीड़ में सन्नाटा छा गया। सबके चेहरे शर्म से झुक गए। अनीता मां को लेकर घर लौटीं और बोलीं, “मां, मैं आपको तुरंत हॉस्पिटल ले जा रही हूं।” उन्होंने एंबुलेंस को फोन लगाया, वर्दी उतारकर साधारण सलवार सूट पहना और मां को लेकर जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पहुंचीं।

अस्पताल में उन्होंने सीधे डॉक्टर राजेश से गुहार लगाई, “डॉक्टर साहब, मेरी मां की हालत बहुत खराब है। कृपया तुरंत इलाज शुरू करें।”
लेकिन डॉक्टर राजेश ने बिना देखे बेरुखी से कहा, “यहां इलाज नहीं हो पाएगा। इन्हें कहीं और ले जाओ। अच्छा होगा कोशिश करो।”

अनीता की आवाज दर्द और गुस्से से कांप रही थी। “डॉक्टर साहब, यह जिले का सबसे बड़ा अस्पताल है। इसीलिए मैं यहां आई। मां की जान खतरे में है। पैसों की चिंता ना करें, जितना खर्च होगा दूंगी।”
डॉक्टर ने ठंडी हंसी हंसते हुए कहा, “तुम दोगी? तुम्हारे पास इतने पैसे कहां से आएंगे कि यहां इलाज करवा सको। सुनो, अगर खुद को बेच दो, तब भी इनका इलाज नहीं होगा। तुम जैसे लोगों के पास तो खाने के पैसे भी नहीं होंगे।”

अनीता का खून खौल उठा। चेहरा लाल हो गया, लेकिन उन्होंने खुद को संभाला। गहरी सांस लेकर बोलीं, “मैं गरीब हूं या अमीर, इससे आपका क्या? आपका काम इलाज करना है। मैंने कहा ना, पैसों की फिक्र मत करें। बस मां का इलाज शुरू करें, वरना पछताएंगे।”

डॉक्टर ने तंज कसा, “अच्छा, अगर मैं ना करूं तो पछताऊंगा? मैं तुम्हारा क्या बंद हुआ हूं? बकवास बंद करो, घर जाओ।”

अनीता के हाथ कांपने लगे। वह खामोश खड़ी रहीं, आंखों में आंसू और चेहरे पर गुस्सा साफ था। फिर धीरे से पर्स खोला, सरकारी पहचान पत्र निकाला और डॉक्टर के सामने रखा।
“पहले यह देखो, फिर बोलो टाइम नहीं है।”

कार्ड देखते ही डॉक्टर राजेश के पसीने छूट गए। चेहरा पीला पड़ गया। कांपती आवाज में बोला, “सॉरी मैडम, मुझसे बड़ी गलती हो गई। मुझे नहीं पता था आप डीएम अनीता शर्मा हैं। मैं तुरंत इलाज शुरू करवाता हूं। चिंता मत कीजिए।”

डॉक्टर स्टाफ को दौड़ाने लगा। अनीता की मां को स्ट्रेचर पर ले जाया गया। नर्सें दवाइयां लाने दौड़ पड़ीं। अनीता बाहर खड़ी थीं, शांत दिख रही थीं, लेकिन अंदर गुस्सा भरा था। मन ही मन सोच रही थीं, “यह लोग सरकारी अस्पताल में गरीबों के साथ ऐसा करते हैं। सरकार इन्हें तनख्वाह इंसानियत के लिए देती है, मगर यह तो अमीरों की चापलूसी में लगे हैं।”

कुछ देर बाद नर्स आई, “मैडम, आपकी मां अब ठीक हैं, लेकिन एक हफ्ता यहां रहना होगा।”
अनीता मां के पास गईं, उनकी हालत बेहतर थी। मां को गले लगाकर दोनों फूट-फूट कर रो पड़ीं।

अनीता के मन में आग जल रही थी। वह सोच रही थीं, “अगर मैं डीएम ना होती तो मां शायद जिंदा ना रहती। गरीबों के साथ रोज ऐसा होता होगा। यह अन्याय नहीं चलेगा।”

अगले दो दिन और दो रातें उन्होंने मां के साथ अस्पताल में बिताईं। तीसरे दिन थाने से कॉल आया, “मैडम, जरूरी मीटिंग है।”
अनीता ने कहा, “ठीक है, लेकिन ज्यादा देर नहीं रुकूंगी, मां की तबीयत ठीक नहीं।”
मीटिंग के बाद छह घंटे में वे वापस अस्पताल लौटीं। एक हफ्ते बाद अनीता मां को लेकर घर लौटीं। मां की हालत स्थिर थी, लेकिन अनीता का गुस्सा शांत नहीं हुआ।

कुछ दिनों बाद उन्होंने फैसला लिया। थाने गईं, इंस्पेक्टर और हवलदारों को साथ लेकर अस्पताल पहुंचीं। सभी डॉक्टरों और स्टाफ को एक जगह बुलाकर बोलीं,
“आप लोगों की वजह से ना जाने कितने गरीबों की जान गई होगी। सरकार आपको तनख्वाह इंसानियत के लिए देती है, मगर आप अमीरों की चापलूसी और गरीबों को अपमानित करते हैं। एक हफ्ते पहले आपने मेरी मां के साथ जो किया वो हर गरीब के साथ होता है। आपको किसने हक दिया कि आप औकात दिखाएं? किसी को बाहर निकालें? मैं ऐसी कार्रवाई करूंगी कि आप जिंदगी भर याद रखेंगे।”

डॉक्टरों के चेहरे डर से भर गए। सबसे बड़े डॉक्टर ने हाथ जोड़कर कहा, “मैडम, माफ करें। हमसे गलती हो गई। आगे से हर मरीज का इलाज करेंगे, चाहे पैसे हो या ना हो।”

अनीता का गुस्सा पिघलने का नाम नहीं ले रहा था। “आप कितनी भी माफी मांग लें, मैं नहीं मानूंगी। ना जाने कितने गरीबों ने यहां अपमान सहा, कितनी जाने गईं। मैं ऐसा फैसला लूंगी कि कोई मरीज अपमानित ना हो।”

डॉक्टर घबरा गए। हाथ जोड़कर बोले, “मैडम, हमें माफ करें। हम सुधर जाएंगे। हर मरीज को बराबर देखेंगे। एक मौका दीजिए।”

अनीता ने सोचते हुए कहा, “ठीक है, इस बार माफ करती हूं। लेकिन यह मेरी आखिरी चेतावनी है। अगर किसी गरीब की शिकायत आई, किसी के साथ बदतमीजी हुई या इलाज में लापरवाही हुई तो कोई भी यहां काम नहीं करेगा। मैं सबको नौकरी से निकाल दूंगी।”

स्टाफ चुप हो गया, चेहरे शर्म और डर से झुक गए। अनीता ने इंस्पेक्टर को इशारा किया, “चलो,” और वहां से निकल गईं।

उस दिन के बाद अस्पताल की तस्वीर बदल गई। डॉक्टरों ने समझ लिया कि जिंदगी हर इंसान के लिए बराबर कीमती है, चाहे अमीर हो या गरीब। उन्होंने रवैया बदला और हर मरीज को इंसानियत की नजर से देखना शुरू किया।

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