SP मैडम सादे कपड़े में पानी पूरी खा रही थी महिला दरोगा ने साधारण महिला समझ कर बाजार में मारा थप्पड़

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जयपुर दिल्ली हाईवे की तरह ही, बरेली जिले में भी एक ऐसी कहानी सामने आई, जिसने पुलिस महकमे और आम जनता दोनों के दिलों को हिला कर रख दिया। यह कहानी है नैना राठौर की, जो हाल ही में बरेली की एसपी बनी थीं। फाइलों में उनका रिकॉर्ड सख्ती और ईमानदारी की मिसाल था, लेकिन असली परीक्षा तो तब हुई जब उन्होंने अपनी वर्दी उतार कर आम नागरिक बनकर सड़कों पर कदम रखा।

नैना राठौर तीन दिन तक ऑफिस में फाइलों के बीच बैठी रहीं, पुराने मामलों को समझा और अफसरों से मिलीं। हर कोई उन्हें यकीन दिला रहा था कि जिले में सब ठीक है, लेकिन नैना जानती थीं कि असली सच फाइलों में नहीं, सड़कों पर होता है। उन्होंने तय किया कि अब वह फाइलों के पीछे नहीं, अपनी आंखों से हकीकत देखेंगी।

SP मैडम सादे कपड़े में पानी पूरी खा रही थी महिला दरोगा ने साधारण महिला समझ  कर बाजार में मारा थप्पड़

शाम के करीब पांच बजे, बादलों से घिरे आसमान के नीचे, नैना ने अपनी पुलिस वर्दी उतार दी। उन्होंने पीला कुर्ता, काली सलवार और काला दुपट्टा पहना, बालों को सादगी से बांधा और महंगी घड़ी की जगह एक पुरानी घड़ी पहन ली। पर्स में कुछ रुपए, मोबाइल और आईडी कार्ड बेहद अंदर की जेब में रखकर वह अपने बंगले से निकलीं। गेट पर खड़े सिपाही ने उन्हें सैल्यूट करने को हाथ उठाया, लेकिन साधारण कपड़ों में देखकर थोड़ी हिचकिचाहट हुई। नैना ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं बस यूं ही बाहर टहलने जा रही हूं।”

नैना ने एक ऑटो रिक्शा रोका और नरम आवाज में पूछा, “भैया, किला बाजार चलोगे?” ऑटो वाला मुस्कुरा कर बोला, “हां जी, बैठिए।” ऑटो के चलते हुए, नैना ने शहर की असली धड़कन महसूस की। सरकारी गाड़ियों के काले शीशों के पीछे से शहर का यह दृश्य कभी नहीं दिखता था। ट्रैफिक, शोर-गुल, लोगों की भीड़ में वह एक आम नागरिक की तरह महसूस कर रही थीं।

किला बाजार बरेली का सबसे व्यस्त इलाका था। छोटी-बड़ी दुकानें, ठेले, खरीदारों की भीड़ और हवा में मिट्टी की ताजी खुशबू। बारिश के बाद की ताजी मिट्टी की खुशबू ने माहौल को और भी जीवंत बना दिया था। नैना ने ठेले पर खड़े एक अधेड़ उम्र के आदमी पर नजर डाली, जिसका नाम राम लहरिया था। उसके चेहरे पर मेहनत और चिंता की गहरी लकीरें थीं। वह बड़ी सफाई और सलीके से पानी पूरी परोस रहा था। नैना को बचपन की यादें ताजा हो गईं, जब वह पानी पूरी बहुत पसंद करती थीं।

नैना ठेले के पास गई और मुस्कुराते हुए बोली, “एक प्लेट लगाना भैया।” राम लहरिया ने सिर हिलाया और कहा, “हां बिटिया, अभी देता हूं।” उसने सूजी के कुरकुरे गोलगप्पे निकाले, उनमें आलू-चने का मसाला भरा और चटपटे पानी में डुबोकर नैना की तरफ बढ़ा दिया। नैना ने पहला गोलगप्पा खाया और मन ही मन कहा, “वाह, क्या स्वाद है।” वह दूसरा खाने ही वाली थी कि अचानक बाजार में पुलिस की जीप आई।

जीप के रुकते ही पूरा बाजार सन्नाटे में डूब गया। दुकानदार अपने ठेले सजाने लगे। जीप से चार पुलिस वाले उतरे—तीन पुरुष और एक महिला। महिला सब इंस्पेक्टर अर्चना चौहान थीं, जो अपने इलाके में दबंग और तेज तर्रार छवि के लिए जानी जाती थीं। लंबा कद, काला चश्मा, कड़क वर्दी और हाथ में मजबूत डंडा। वह बाजार की ओर बढ़ीं, जैसे पूरी थाने की मालिक हों।

अर्चना चौहान की नजर राम लहरिया के ठेले पर पड़ी। वह डंडे से ठेले को ठकठकाने लगीं और बोलीं, “ओए राम लहरिया, निकाल आज का हफ्ता, जल्दी निकाल।” राम लहरिया डर के मारे कांपते हुए बोला, “मैडम, आज कमाई नहीं हुई, बारिश हो रही थी, दुकान देर से लगी। कल पक्का दे दूंगा।” अर्चना ने उसकी बात सुनी और जोर से हंस पड़ी, पर उसकी हंसी में दया नहीं, अपमान था। “कमाई नहीं हुई तो क्या मैं मान लूं? ये जो लोग तेरे ठेले पर खड़े थे, ये सब फ्री में खा रहे थे क्या? नाटक मत कर।” उसने फिर धमकाते हुए कहा, “पुलिस का हफ्ता फिक्स है।”

राम लहरिया लगभग रोने लगा, कांपती आवाज में कहा, “मैडम, सच कह रहा हूं, घर में बच्ची की तबीयत खराब है, दवा भी ले जानी है।” यह सुनकर अर्चना का गुस्सा और बढ़ गया। उसने डंडे से ठेले को जोर से धक्का दिया। गोलगप्पे, मसालों के बर्तन और पानी के मटके सड़क पर बिखर गए। चटपटे पानी की धारें सड़क पर बहने लगीं, जैसे राम लहरिया की बेबसी और आंसू बनकर फैल रही हों। राम लहरिया अपनी उजड़ती दुकान को देखकर बस खड़ा रह गया।

नैना थोड़ी दूर खड़ी यह सब देख रही थीं। उनका खून खौल उठा। उन्होंने अपने हाथ में पकड़ा हुआ गोलगप्पे का दोना कसकर पकड़ लिया। वह देख रही थीं कि कैसे वर्दी का रोब एक गरीब की रोजी रोटी कुचल रहा था। भीड़ चुपचाप तमाशा देख रही थी, किसी की हिम्मत कुछ कहने की नहीं थी। नैना अब और बर्दाश्त नहीं कर सकीं। उन्हें पता था कि अगर वह चुप रहीं तो अपनी ही नजरों में गिर जाएंगी।

उनके कानों में पिता की आवाज गूंजने लगी, “जब जुल्म करने वाला गुनाह करता है, उससे बड़ा गुनाहगार वह होता है जो चुपचाप खड़ा सब देखता है।” नैना ने गहरी सांस ली और कदम बढ़ाए। उनके कदमों में डर नहीं, बल्कि शांति और दृढ़ता थी। वह सीधे अर्चना चौहान के सामने खड़ी हो गईं।

अर्चना और उसके सिपाही चौंक गए। एक साधारण लड़की की यह हिम्मत देखकर वे दंग थे। नैना ने सख्त आवाज में कहा, “एक्सक्यूज मी, ऑफिसर।” अर्चना ने कड़क लहजे में पूछा, “क्या है?” नैना ने सड़क पर बिखरे सामान की तरफ इशारा किया और कहा, “आप इनसे किस कानून के तहत पैसे वसूल रही हैं? आपको किसने हक दिया कि आप इनकी रोजी-रोटी बर्बाद करें?”

अर्चना का अहंकार तिलमिला उठा। उसने चिल्लाकर कहा, “तू कौन होती है मुझसे सवाल करने वाली? बड़ी आई वकील तेरे बाप का ठेला है क्या?” एक सिपाही ने आगे बढ़कर नैना को धमकाने की कोशिश की, “लड़की, चलती बन यहां से, वरना थाने ले जाकर तेरी अक्ल ठिकाने लगा देंगे।” लेकिन नैना अपनी जगह से नहीं हिली। उसकी आंखें अर्चना की आंखों में थीं, जहां डर नहीं, बल्कि चुनौती थी।

नैना ने कहा, “मैं इस देश की एक आम नागरिक हूं और मुझे यह सवाल पूछने का पूरा हक है। आप वर्दी में हैं, कानून की रक्षक हैं, भक्षक नहीं। इंडियन पीनल कोड के किस सेक्शन में लिखा है कि पुलिस किसी गरीब से हफ्ता वसूलेगी?” यह सुनकर अर्चना और भी गुस्से में आ गईं। वह सोचने लगीं कि यह लड़की ज्यादा पढ़ी-लिखी है और उसे कानून सिखा रही है।

गुस्से में अर्चना ने अपना हाथ उठाया और नैना के गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। थप्पड़ की आवाज पूरे बाजार में गूंज गई। चारों तरफ सन्नाटा छा गया। नैना का सिर झटके से एक तरफ घूम गया, कान में सनसनाहट हुई, गाल पर जलन थी। यह थप्पड़ सिर्फ गाल पर नहीं, उनकी वर्दी पर, उनके पद पर और कानून पर पड़ा था।

अर्चना ने तुच्छता से कहा, “यह है मेरे कानून का सेक्शन। अब दफा हो यहां से, वरना दूसरा गाल भी लाल कर दूंगी।” भीड़ में फुसफुसाहट शुरू हो गई। कुछ लोगों को नैना के लिए बुरा लग रहा था, कुछ सोच रहे थे कि पुलिस से पंगा लेना ठीक नहीं।

राम लहरिया की आंखों में आंसू आ गए। उसे लगा कि उसकी वजह से एक बेगुनाह लड़की को मार खानी पड़ी। नैना ने अपना चेहरा सीधा किया। गाल पर पांच उंगलियों के निशान थे, लेकिन उसकी आंखों में गुस्सा या दर्द नहीं, बल्कि ठंडक थी—वैसी ठंडक जैसी तूफान से पहले की हवा में होती है।

उसने अर्चना के साथ खड़े सिपाहियों और भीड़ को देखा। फिर पर्स खोला और अंदर से एक कार्ड निकाला। अर्चना और उसके साथी सोच रहे थे कि शायद अब वह पैसे निकालकर ठेले वाले को देगी। लेकिन नैना ने पर्स की अंदर की जेब से एक गहरा नीला कार्ड निकाला, जिस पर सुनहरे अक्षरों में अशोक स्तंभ बना था।

कार्ड पर लिखा था, “नैना राठौर, आईपीएस, पुलिस अधीक्षक, जिला बरेली।” यह पढ़ते ही अर्चना का रंग उड़ गया। वह समझ गई कि जिस लड़की को उसने थप्पड़ मारा था, वह बरेली की सबसे बड़ी पुलिस अफसर थी।

अर्चना के हाथ से डंडा छूटकर गिर गया। उसकी सारी अकड़, गुरूर हवा हो गया। उसके हाथ-पैर कांपने लगे। बाकी तीन सिपाही भी डर के मारे एक-दूसरे को देख रहे थे। पूरा बाजार सन्नाटे में डूब गया।

अर्चना घुटनों के बल जमीन पर बैठने की कोशिश करने लगी। “मैम, मुझे माफ कर दीजिए, मैंने आपको पहचाना नहीं, मैम प्लीज माफ कर दीजिए,” वह एक ही सांस में बोली। उसकी आवाज में अब सिर्फ डर था।

नैना ने सख्त आवाज में कहा, “खड़ी हो जाओ। तुमने मुझे नहीं पहचाना, इसलिए थप्पड़ मारा। अगर पहचान पाती तो सलाम करती। यही तुम्हारी दिक्कत है। तुम्हारी वफादारी कानून से नहीं पद से है। तुम वर्दी की इज्जत नहीं करती, सिर्फ रैंक से डरती हो।”

फिर ठंडे स्वर में बोली, “तुम्हें पता नहीं था, इसलिए तुम जैसे लोग वर्दी पहनकर वर्दी को गंदा कर रहे हो। आज एक गरीब से वसूली कर रही हो, कल किसी की इज्जत का सौदा भी कर लोगी। तुम जैसी पुलिस इस विभाग पर कलंक हो।”

नैना ने पर्सनल मोबाइल निकाला और कंट्रोल रूम को फोन किया। “किला बाजार में तुरंत पीसीआर, वैन और एसएओ भेजो। तुम चारों को अभी से सस्पेंड किया जाता है। एक्सटॉर्शन, अवैध वसूली, पब्लिक सर्वेंट ड्यूटीज का दुरुपयोग और नागरिक पर हाथ उठाने के आरोप में चार्जशीट तैयार होगी।”

कुछ ही मिनटों में पुलिस की गाड़ियां सायरन बजाती हुई बाजार में पहुंचीं। एसएचओ ने नैना को गाल पर थप्पड़ के निशान के साथ देखा तो हैरान रह गया। उन्होंने कांपते हुए सैल्यूट किया। नैना ने आदेश दिया, “इन चारों को यहां से ले जाइए और कार्रवाई शुरू कीजिए।”

कल तक जो पुलिस वाले बाजार में राज करते थे, आज वे मुजरिमों की तरह सिर झुकाए जीप में बैठे थे। नैना ने अर्चना से कहा, “यह थप्पड़ मुझे नहीं, इस वर्दी को लगा है। इसका सम्मान वापस लाना मुझे आता है।”

पुलिस गाड़ियां चली गईं, बाजार में खामोशी थी, लेकिन अब डर की नहीं, सम्मान की खामोशी। नैना ने ठेले वाले राम लहरिया की तरफ देखा, जिसकी आंखों में अब कृतज्ञता के आंसू थे। उसने उसकी हथेली पर ₹500 का नोट रखा, “यह मेरी तरफ से है, आपकी बेटी की दवाई के लिए।”

नैना ने भीड़ से कहा, “आप सब गवाह हैं कि आज क्या हुआ। डरिए मत, पुलिस आपकी सुरक्षा के लिए है, लूटने के लिए नहीं। अगर कोई वर्दी वाला रिश्वत मांगे या धमकाए, आवाज उठाइए। मैं आपके साथ हूं।”

वह धीरे-धीरे भीड़ से बाहर निकल गई, अब वह सिर्फ एक आम लड़की नहीं, बरेली के लोगों के लिए उम्मीद की किरण बन गई थी।

उस रात जब नैना अपने बंगले आई, आईने में अपना चेहरा देखा। गाल पर हल्का निशान था, लेकिन दर्द नहीं, सुकून था। उसे लगा कि आज उसने अपनी वर्दी का कर्ज चुका दिया है।

यह खबर पूरे जिले में फैल गई। पुलिस महकमे में नैना की सख्ती और ईमानदारी की चर्चा होने लगी। भ्रष्ट पुलिस वालों के दिलों में खौफ बैठ गया, और पुराने ईमानदार अफसरों के चेहरों पर उम्मीद की चमक आई।

अगले दिन पुलिस लाइन में माहौल बदला हुआ था। नैना ऑफिस पहुंची, हर कोई सावधान था, हर सैल्यूट में इज्जत थी। नैना जानती थी कि यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई, लेकिन सही कदमों से बदलाव आना शुरू हो गया है।

कुछ दिन बाद विधायक रामनारायण तिवारी ने नैना को फोन किया। उसने मामले को ठंडा करने की कोशिश की, लेकिन नैना ने साफ कहा, “गलती और गुनाह में फर्क होता है। गरीब को लूटना और वर्दी पहनकर नागरिक पर हाथ उठाना गुनाह है। गुनहगार को सजा मिलेगी।”

नैना ने विभागीय जांच के लिए ईमानदार इंस्पेक्टर शमशेर सिंह को नियुक्त किया, जो सिस्टम से लड़ने वाला पहला साथी था। उन्होंने मिलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान शुरू किया। वसूली के लिए बदनाम थानों पर छापे मारे, दोषियों को सस्पेंड किया।

राम लहरिया को धमकाने वालों को भी पकड़वाया गया। नैना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जनता को भरोसा दिलाया कि पुलिस उनकी सुरक्षा करेगी, भ्रष्ट पुलिस वालों के खिलाफ हेल्पलाइन जारी की।

धीरे-धीरे बरेली की गलियों में फिर से चहल-पहल लौट आई। राम लहरिया का ठेला अब भी वहीं था, लेकिन उसके चेहरे पर सुकून था। बच्चे बेफिक्र खेल रहे थे, लोग शिकायतें दर्ज कराने आने लगे थे।

नैना ने खिड़की से बाहर देखा और खुद से कहा, “शायद बदलाव धीरे आता है, लेकिन जब आता है तो कभी पीछे नहीं जाता। एक ईमानदार फैसला किसी की पूरी जिंदगी बदल सकता है।”

नैना अब सिर्फ एक अफसर नहीं, मिसाल बन चुकी थी। क्योंकि जब सच्चाई की लौ जलती है, अंधेरा खुद-ब-खुद पीछे हट जाता है।

यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चाई और हिम्मत से कोई भी भ्रष्टाचार खत्म किया जा सकता है। एक आम नागरिक की तरह चलकर, एक अफसर ने दिखाया कि कानून का असली सम्मान क्या होता है। नैना राठौर की यह कहानी बरेली के लिए उम्मीद और न्याय की नई सुबह लेकर आई।

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