ये फेरीवाले की नाव मत चढ़ो… नीचे छेद है!” — गरीब बच्चे ने चिल्लाकर कहा सब हसने लगे | Story

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“फेरीवाले की नाव में छेद और गरीब बच्चे की चेतावनी”

नदी किनारे का खूबसूरत दिन

दोपहर के करीब 2 बजे का समय था। सूरज अपनी पूरी तेज चमक के साथ आसमान में था। नदी का पानी सूरज की रोशनी में चमक रहा था। नदी के किनारे का नज़ारा बहुत ही खूबसूरत था। वहां पिकनिक मनाने आए परिवार और बच्चे, रिश्तेदार और दोस्त, सभी मौज-मस्ती में डूबे हुए थे।

नदी के किनारे एक बड़ी नाव खड़ी थी। यह नाव फेरीवाले विक्रम की थी। विक्रम को अपनी नाव और अपने काम पर बहुत गर्व था। वह अपने ग्राहकों को नदी के बीच की सैर कराता था। उस दिन भी उसकी नाव पर चढ़ने के लिए लोग लाइन में लगे हुए थे।

लेकिन तभी, एक 12-13 साल का दुबला-पतला लड़का, गोपाल, नंगे पांव दौड़ता हुआ वहां पहुंचा। उसके हाथ में एक पुरानी रबर की चप्पल थी। उसका चेहरा डर से सफेद हो चुका था और वह जोर-जोर से चिल्ला रहा था, “इस नाव में मत चढ़ो! नीचे छेद है। यह नाव डूब जाएगी। सब डूब जाएंगे।”

गरीब बच्चे की चेतावनी

गोपाल की आवाज में डर और सच्चाई थी। लेकिन उसके फटे पुराने कपड़े और गंदे चेहरे को देखकर वहां खड़े लोग उसकी बात को मजाक समझने लगे।

“अरे हट! तुझे क्या पता नाव के बारे में?” एक आदमी ने हंसते हुए कहा।
“तू तो कूड़ा बिनने वाला है। तुझे नाव की क्या समझ?” दूसरे ने मजाक उड़ाया।

विक्रम, जो कि एक मोटा और घमंडी आदमी था, भीड़ की हंसी में शामिल हो गया। उसने भी गोपाल को दुत्कारते हुए कहा, “मेरी नाव सबसे बेहतरीन है। तू क्या जानता है नावों के बारे में?”

गोपाल ने फिर भी हार नहीं मानी। उसने चिल्लाकर कहा, “मैंने देखा है। इस नाव में छेद है। नीचे से पानी आ रहा है। प्लीज किसी को मत चढ़ने दो।”

लेकिन विक्रम के गुंडेनुमा कर्मचारियों ने गोपाल की बात को गंभीरता से नहीं लिया। उन्होंने गोपाल को पकड़कर धक्का दिया। वह पत्थरों पर गिर पड़ा। उसकी कोहनी छिल गई और पैर में चोट लग गई।

गोपाल की जिंदगी की सच्चाई

गोपाल एक गरीब बच्चा था। उसकी मां बीमार थी और हमेशा बिस्तर पर रहती थी। वह बस कभी-कभी पानी या खाना मांगती थी। उसके पिता उन्हें छोड़कर चले गए थे। घर की सारी जिम्मेदारी गोपाल के कंधों पर थी।

हर दिन वह नदी किनारे जाता, कचरा बीनता, पुरानी बोतलें और रस्सियां उठाकर बेचता। इसी काम से वह अपनी मां और छोटी बहन का पेट पालता था।

गोपाल पढ़ा-लिखा नहीं था, लेकिन जिंदगी की किताब ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया था। उसकी मां ने उसे हमेशा यह सिखाया था कि अगर कोई डूब रहा हो, तो उसे बचाने की पूरी कोशिश करना।

नाव में सवार 35 लोग

विक्रम की नाव में 35 लोग सवार हो चुके थे। बच्चे, बुजुर्ग और परिवार के लोग खुश होकर नाव में बैठ गए। विक्रम ने रस्सी खोली और नाव को नदी के बीच की सैर पर ले जाने लगा।

गोपाल, जो किनारे पर गिरा पड़ा था, अपने दर्द को भूलकर फिर से चिल्लाया, “प्लीज, नाव में मत जाओ। नीचे से पानी आ रहा है।”

लेकिन इस बार उसकी आवाज नाव तक नहीं पहुंची। गोपाल का दिल तेजी से धड़कने लगा। वह जानता था कि अगर उसने कुछ नहीं किया, तो नाव डूब जाएगी और 35 लोग अपनी जान गंवा देंगे।

गोपाल की बहादुरी

गोपाल ने बिना देर किए फैसला किया। वह दौड़ता हुआ पास की पुलिस चौकी पहुंचा। वहां तीन पुलिसवाले चाय पी रहे थे। गोपाल ने हांफते हुए कहा, “साहब, नाव में छेद है। नाव डूबने वाली है। प्लीज, जल्दी मदद कीजिए।”

पुलिसवालों ने पहले उसकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन वहां मौजूद एक बूढ़े कांस्टेबल हरीश सिंह ने उसकी आंखों में झांककर देखा।

“इस बच्चे की आंखों में डर है। यह झूठ नहीं बोल रहा,” हरीश सिंह ने कहा।

उन्होंने तुरंत रेस्क्यू बोट तैयार करवाई और गोपाल को साथ लेकर नदी की ओर रवाना हो गए।

नाव में पानी भरना शुरू

उधर, विक्रम की नाव नदी के बीच पहुंच चुकी थी। अचानक नाव के पिछले हिस्से से पानी अंदर आने लगा। पहले सभी ने इसे नजरअंदाज किया। लेकिन पानी तेजी से भरने लगा।

लोग घबरा गए। “बचाओ! बचाओ! नाव डूब रही है!” लोग चिल्लाने लगे। माताएं अपने बच्चों को कसकर पकड़ने लगीं। बुजुर्गों के चेहरे डर से सफेद पड़ गए।

विक्रम और उसके कर्मचारी घबरा गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें।

रेस्क्यू बोट का पहुंचना

ठीक उसी समय, हरीश सिंह की रेस्क्यू बोट वहां पहुंच गई। उन्होंने सबको शांत करने की कोशिश की। “सब लोग शांत रहें। सबसे पहले बच्चों को बाहर निकालें।”

एक-एक करके सभी 35 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया। जब आखिरी व्यक्ति नाव से बाहर आया, तो नाव पूरी तरह पानी में डूब चुकी थी।

गोपाल बना हीरो

किनारे पर पहुंचने के बाद सब लोग गोपाल के पास आए। एक महिला ने रोते हुए कहा, “बेटा, अगर तू नहीं होता, तो हम सब मर जाते।”

धीरे-धीरे सब लोग गोपाल के पास आकर उसे धन्यवाद कहने लगे।

गोपाल की तारीफ और नई जिंदगी

कुछ ही देर में जिला अधिकारी वहां पहुंचे। उन्होंने गोपाल को अपने पास बुलाया और कहा, “तुमने जो किया, वह असाधारण है। तुम्हें जिला बहादुरी पुरस्कार दिया जाएगा। तुम्हारी पढ़ाई और तुम्हारी मां का इलाज अब सरकार करवाएगी।”

वहां मौजूद भीड़ तालियों से गूंज उठी। गोपाल की आंखों में आंसू थे। पहली बार किसी ने उसे कूड़ा बीनने वाले बच्चे के रूप में नहीं, बल्कि एक हीरो के रूप में देखा था।

विक्रम की माफी

विक्रम, जो अब तक शर्मिंदा खड़ा था, गोपाल के पास आया और बोला, “मुझे माफ कर दे। मैंने तुझे मारा और तुझे नजरअंदाज किया। लेकिन तूने मेरी और सबकी जान बचाई।”

गोपाल ने शांत स्वर में कहा, “गलती किसी से भी हो सकती है। लेकिन जान दोबारा नहीं मिलती।”

सच्ची हिम्मत उम्र नहीं देखती

गोपाल की कहानी यह सिखाती है कि सच्ची बहादुरी उम्र, शिक्षा या स्थिति पर निर्भर नहीं करती। गोपाल भले ही गरीब था, लेकिन उसका दिल और सोच दोनों बड़े थे।

“सच्ची हिम्मत उम्र नहीं देखती।”

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