जब car शो-रूम के मालिक को गरीब समझकर निकाला बाहर… कुछ देर बाद जो हुआ सब दंग रह गए!

सुबह के ठीक 10:45 पर शहर के सबसे आलीशान कार शोरूम, इंपीरियल मोटर्स के बाहर एक बुजुर्ग आदमी धीरे-धीरे चलता हुआ पहुंचा। सफेद कुर्ता पायजामा, कंधे पर पुराना कपड़े का झोला और आंखों में शांति। शोरूम की कांच की दीवारों के पीछे चमचमाती नई गाड़ियां रखी थीं। BMW, Honda, Mercedes, सब कीमत करोड़ों में। जैसे ही बुजुर्ग अंदर गए, गार्ड ने तुरंत रास्ता रोक लिया।

“अरे बाबा, आप यहां कैसे आ गए? बाहर पार्किंग में बैठ जाइए। अंदर सिर्फ ग्राहक आते हैं।”

बुजुर्ग ने मुस्कुरा कर कहा, “बेटा, मैं ग्राहक ही तो हूं। अंदर मैनेजर से मिलना है। एक कार देखनी है।”

गार्ड ने साथ खड़े दूसरे सिक्योरिटी से हंसते हुए कहा, “सुना बाबा कार खरीदने आए हैं। कौन सी साइकिल वाली?” दोनों हंस पड़े। बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा। बस वहीं शांत मुस्कान रखी और बोले, “बेटा, तुम हंसे या रोए पर मैं अंदर जाऊंगा।”

भाग 2: पहली मुलाकात

तभी अंदर से एक तेज आवाज आई, “क्या हंगामा मचा रखा है बाहर?” आवाज थी कृतिका सिंह, शोरूम की सीनियर सेल्स एग्जीक्यूटिव। वो हाई हील, ब्लैक सूट और टैबलेट पकड़े हुए निकली। उन्होंने बुजुर्ग को सिर से पैर तक देखा और हल्का सा ताना मारा, “बाबा, यह शोरूम कार बेचता है, चाय नहीं। आपको शायद गलत जगह आना था।”

बुजुर्ग ने विनम्रता से कहा, “नहीं बेटी, मैं सही जगह आया हूं। मुझे यहां की सबसे महंगी कार देखनी है।”

कृतिका हंसी नहीं रोक पाई। “ओह रियली, हमारे पास सबसे महंगी कार ऑनरेलिस X9 है। कीमत 3.5 करोड़। आप कैश में देंगे या चेक से?”

बुजुर्ग ने कहा, “पेमेंट की चिंता मत करो। पहले कार दिखा दो।” कृतिका ने अपने साथी विक्रम से कहा, “जरा कार कवर हटा दो। हमारे वीआईपी ग्राहक दर्शन करना चाहते हैं।”

विक्रम मुस्कुराया और बोला, “मैडम, यह मजाक है क्या? यह आदमी तो लगता है फुटपाथ से चला आया है।” कृतिका ने कहा, “हां, पर थोड़ा टाइम पास करने में क्या बुराई है?” दोनों हंसते हुए कार के पास गए और कवर हटाया।

भाग 3: कार की चमक

कार की बॉडी चमक उठी। बुजुर्ग ने उसे गौर से देखा। फिर धीरे से कहा, “इसकी इंजन साउंड मुझे सुननी है।” विक्रम झुंझलाया, “बाबा, यह कोई लोकल गाड़ी नहीं है। इसमें बैठना भी मना है। यह शोपीस है।”

बुजुर्ग बोले, “तुम्हारे मालिक से मिलवाओ। वही बात समझेंगे।” कृतिका ने झुंझलाते हुए कहा, “ओह गॉड, अब यह मालिक से भी मिलना चाहते हैं।” फिर रिसेप्शन पर जाकर फोन उठाया।

“सर, एक बूढ़ा आदमी आया है। कह रहा है वह ऑनरेलिस X9 खरीदना चाहता है। शायद मजाक कर रहा है।” फोन के उस पार से आवाज आई, “मजाक करने दो। थोड़ी देर में खुद चला जाएगा।” यह आवाज थी अभिषेक मेहरा, शोरूम का जनरल मैनेजर, एक अहंकारी सेल्स ड्रिवन आदमी जो लोगों को उनके कपड़ों से आंकता था।

कृतिका ने फोन रखा और बुजुर्ग से बोली, “मैनेजर साहब बिजी हैं। आप किसी और दिन आइए।”

बुजुर्ग ने कहा, “मुझे आज ही मिलना है। जरूरी बात है।” विक्रम ने हंसकर कहा, “जरूरी बात यह है कि आपको यहां से जाना चाहिए। बाबा, बाहर पानी रखे हैं। पी लीजिए।” इतना कहकर वह दोनों अंदर चले गए।

भाग 4: एक नई उम्मीद

बुजुर्ग कुछ पल वहीं खड़े रहे। फिर पास की कुर्सी पर बैठ गए। थोड़ी देर बाद एक छोटा सा लड़का, लगभग 25 साल का, उनके पास आया। नाम था रवि तिवारी, नया जूनियर सेल्समैन। रवि ने पूछा, “बाबा, सब आपको डांट क्यों रहे हैं? आपको कुछ चाहिए क्या?”

बुजुर्ग मुस्कुराए। “बस तुम्हारे मैनेजर से मिलना है बेटा।” रवि ने कहा, “ठीक है, मैं कोशिश करता हूं।” वो भागा-भागा मैनेजर के ऑफिस में गया।

“सर, बाहर एक बुजुर्ग हैं। कहते हैं कार खरीदनी है। मैंने देखा वो गरीब लगते हैं।”

भाग 5: पहचान की कमी

पर बाद में सच्चाई है। अभिषेक ने आंखें उठाई। “रवि, तुम नए हो। यहां हर महीने 100 लोग ऐसे आते हैं। तुम्हारा काम है असली खरीदार पहचानना। अब जाओ और उसे बाहर भेजो।”

रवि ने झिझकते हुए कहा, “पर सर अगर वह सच में…”

अभिषेक ने बीच में काटा, “इनफ! डोंट आर्ग्यू, डू योर जॉब।” रवि बाहर आया। बुजुर्ग अब भी शांत बैठे थे। उसने धीरे से कहा, “बाबा, उन्होंने कहा आप बाद में आइए। वह अभी बिजी हैं।”

बुजुर्ग ने सिर हिलाया। “ठीक है। बेटा, जब समय सही होगा तब मुलाकात खुद हो जाएगी।” रवि ने हैरानी से पूछा, “आपका नाम क्या है?”

बुजुर्ग ने मुस्कुरा कर कहा, “नाम जानने का वक्त अभी नहीं आया बेटा।” और इतना कहकर उन्होंने अपनी झोली से एक छोटा सा सीलबंद लिफाफा निकाला। रवि से बोले, “यह अपने मैनेजर को देना। लेकिन जब वह अकेले हो।”

भाग 6: एक अनमोल संदेश

रवि ने लिफाफा लिया। “क्या इसमें?” बुजुर्ग ने कहा, “जवाब उसमें मिलेगा। बस दे देना।” रवि कुछ समझ नहीं पाया। लेकिन जब उसने बुजुर्ग की आंखों में देखा, तो अजीब सी गहराई महसूस हुई। जैसे वह कोई आम आदमी नहीं, कुछ और ही हैं। वह लिफाफा उसके हाथ में भारी लगने लगा।

रवि ने वह सीलबंद लिफाफा सावधानी से अपनी शर्ट की जेब में रखा। शोरूम के अंदर अब भी वही गहमागहमी थी। नए ग्राहक, चाय की ट्रे, चमकते टायर और सेल्स की बातें। लेकिन रवि का ध्यान अब कहीं और था। हर बार जब उसकी उंगलियां उस लिफाफे को छूती, उसे लगता जैसे उसमें कुछ बड़ा छिपा है।

भाग 7: सच की खोज

करीब आधे घंटे बाद शोरूम थोड़ा शांत हुआ। अभिषेक मेहरा अपने केबिन में अकेले था। रवि ने हिम्मत जुटाई और अंदर चला गया। “सर?”

“हां, रवि, अब क्या हुआ?” अभिषेक ने बिना सिर उठाए जवाब दिया। “वो जो बुजुर्ग थे ना, उन्होंने यह लिफाफा आपको देने को कहा है। बोले थे अकेले में देना।”

अभिषेक ने मुस्कुरा कर कहा, “क्यों, इसमें क्या लिखा है? दान का आवेदन?” फिर लिफाफा ले लिया। सील तोड़ी। अंदर सिर्फ एक सफेद शीट थी। उस पर नीले इंक से कुछ पंक्तियां टाइप की हुई थीं।

“प्रिय श्री अभिषेक मेहरा, आज आपके व्यवहार से मैंने बहुत कुछ समझा। कल सुबह 10:00 बजे मैं ओरिलियस ग्रुप के हेड ऑफिस में मिलूंगा। वहां तय होगा कि इंपीरियल मोटर्स का भविष्य किसके हाथ में रहेगा। एस शेखावत।”

भाग 8: पहचान का संकट

अभिषेक का चेहरा तुरंत सख्त हो गया। उसने दोबारा नाम पढ़ा। “एस शेखावत।” उसका माथा सिकुड़ गया। यह नाम कहीं सुना है? वह बुदबुदाया। अचानक उसे याद आया, ओरिलियस ग्रुप वही कंपनी थी जिसके फ्रेंचाइज पर यह पूरा शोरूम चल रहा था और एस शेखावत वही शख्स थे जो इस ब्रांड के फाउंडिंग डायरेक्टर में से एक थे लेकिन पिछले कई सालों से पब्लिक में दिखाई नहीं दिए थे।

अभिषेक ने झटके से इंटरकॉम उठाया, “कृतिका, जल्दी मेरे केबिन में आओ।” कुछ सेकंड में कृतिका अंदर पहुंची। “क्या हुआ सर?”

भाग 9: संकट की घड़ी

अभिषेक ने उसे लिफाफा थमाया। “पढ़ो। यह पता है, यह वही बुजुर्ग थे जो सुबह आए थे और यह नाम शेखावत। क्या तुम समझती हो इसका मतलब?”

कृतिका ने पढ़ा और चेहरा फीका पड़ गया। “सर, मतलब वो हमारे…”

“हां,” अभिषेक ने टेबल पर हाथ मारा। “वो हमारे फ्रेंचाइज ओनर में से एक हैं और हमने उन्हें बाहर बैठा दिया।”

कृतिका की आवाज कांप गई। “अब क्या करेंगे सर? अगर उन्होंने रिपोर्ट कर दी तो…”

अभिषेक ने गहरी सांस ली। “कुछ नहीं होगा। अभी तक उन्होंने सिर्फ चेतावनी दी है। कल तक मैं सब ठीक कर दूंगा।”

कृतिका बोली, “पर कैसे? जो लोग ऊपर तक पहुंचते हैं, वह हर झटका झेलना जानते हैं। कल जब वह आएंगे, मैं सॉरी बोल दूंगा। थोड़ा इमोशनल ड्रामा, थोड़ा फ्लैटरिंग, सब ठीक हो जाएगा।”

कृतिका ने सिर हिलाया। “लेकिन सर, अगर उन्होंने सीधा कॉर्पोरेट टीम को बोल दिया…”

अभिषेक ने मुस्कुराया। “तब भी मेरे पास एक प्लान है। उनके उम्रदराज होने का फायदा उठाया जा सकता है। अगर उन्होंने कोई क्लेम किया तो मैं कह दूंगा कि कोई फेक आदमी उनका नाम इस्तेमाल कर रहा था। पुरानी ट्रिक है, काम करेगी।”

भाग 10: सच की आवाज

कृतिका चुप हो गई। वह जानती थी सर का कॉन्फिडेंस कई बार अहंकार की हद पार कर जाता है। इसी बीच, रवि बाहर खड़ा सब सुन रहा था। वह अंदर नहीं गया पर दरवाजे की ओठ में हर शब्द उसके कानों में पड़ा। उसे अंदर से गुस्सा आया। उसने सोचा, “इन लोगों ने कल भी गलती की थी और आज भी झूठ से ढकने की कोशिश कर रहे हैं।”

रात को रवि घर नहीं गया। वो शोरूम के पीछे वाले छोटे ऑफिस में ही रुका। कंप्यूटर पर बैठकर उसने ओरिलियस ग्रुप की वेबसाइट खोली। फिर कांटेक्ट बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स सेक्शन में जाकर एक ईमेल लिखा।

“सब्जेक्ट: अबाउट मिस्टर एस शेखावत के इंपीरियल मोटर्स में आने का अनुरोध।”

“प्रिय सर, आज एक बुजुर्ग व्यक्ति आए थे जो खुद को श्री शेखावत बताते हैं। स्टाफ ने उनके साथ अनुचित व्यवहार किया। उन्हें शोरूम से लगभग बाहर निकाल दिया गया। मैं यह मेल इसलिए लिख रहा हूं ताकि सच आपके सामने पहुंचे।”

रवि तिवारी, जूनियर सेल्स एग्जीक्यूटिव। उसने मेल भेज दी। दिल धड़क रहा था पर आत्मा हल्की लग रही थी।

भाग 11: नए सिरे से शुरुआत

अगली सुबह 10:00 बजे शोरूम के गेट पर वही बुजुर्ग फिर आए। पर इस बार अकेले नहीं थे। चार गाड़ियां पीछे रुकीं। काले सूट पहने कुछ अधिकारी उतरे। गार्ड सन्न रह गया। कृतिका और विक्रम के चेहरे से रंग उड़ गया। और अभिषेक मेहरा, जिसकी मुस्कान कल तक इतनी तेज थी, अब उसके होंठ सूख गए थे।

बुजुर्ग सीधे अंदर आए और बोले, “श्री अभिषेक मेहरा कहां है?” उनकी आवाज में अब कोई नरमी नहीं थी। वह आवाज आदेश थी। पूरा शोरूम खामोश था। कांच की दीवारों में सिर्फ उनके कदमों की आवाज गूंज रही थी।

भाग 12: सामना

अभिषेक धीरे-धीरे अपने केबिन से निकला। चेहरे पर बनावटी मुस्कान चिपकाए हुए। “नमस्ते सर,” उसने जल्दी से हाथ जोड़ते हुए कहा। “कल जो हुआ वह एक गलतफहमी थी सर। स्टाफ को…”

शेखावत ने हाथ उठाकर रोक दिया। “गलती सिर्फ स्टाफ की नहीं, मेहरा साहब, गलती आपके चरित्र की थी।”

अभिषेक सकपका गया। “सर, मैं कसम खाकर कहता हूं…”

“कसमें बाद में खाना,” शेखावत की आवाज और गहरी हो गई। “पहले यह बताइए, जब कोई आदमी साधारण कपड़ों में आता है तो आप उसे ग्राहक नहीं मानते?”

कृतिका और विक्रम एक कोने में खड़े सब सुन रहे थे। कृतिका के गले में पसीना उतर आया था।

भाग 13: असली पहचान

शेखावत आगे बढ़े और शोरूम के बीचोंबीच रुक गए। “यह वही शोरूम है जिसे मैंने 20 साल पहले शुरू किया था। तब यहां सिर्फ दो गाड़ियां थीं और पांच लोग। हमने एक सपना देखा था कि ग्राहक चाहे किसी हालत में आए, उसे सम्मान मिलेगा। लेकिन अब…”

उन्होंने ठहर कर अभिषेक की तरफ देखा। “अब यहां सिर्फ अहंकार बिक रहा है।”

अभिषेक की आवाज कांपने लगी। “सर, प्लीज, हमें एक मौका दे दीजिए। कल का दिन सच में बहुत बुरा था।”

“हां,” शेखावत बोले, “लेकिन बुरे दिन इंसान को पहचानने का काम करते हैं और कल मैंने तुम्हें पहचान लिया।”

भाग 14: CCTV फुटेज

इसी बीच उनके साथ आए अधिकारी ने फाइल टेबल पर रखी। “सर, हमने कल की पूरी CCTV फुटेज देखी है। सब कुछ रिकॉर्ड में है।”

अभिषेक के चेहरे का रंग उड़ गया। कृतिका की सांस अटक गई।

“शेखावत बोले, मैंने वीडियो देखा है। तुम लोग हंस रहे थे। ताने मार रहे थे और एक बुजुर्ग ग्राहक को बैठने तक नहीं दिया गया। क्या यह है तुम्हारा ब्रांड वैल्यू?”

अभिषेक ने सिर झुका लिया। “सर, मैं मानता हूं मुझसे गलती हुई। मैं नहीं…”

भाग 15: सच्चाई का सामना

शेखावत ने बीच में कांटा। “अब गलती मानने का वक्त नहीं। अब जवाब देने का वक्त है।” उन्होंने पीछे खड़े रवि की ओर इशारा किया। “आओ बेटा।”

रवि चौंका। धीरे-धीरे आगे बढ़ा। शेखावत ने मुस्कुरा कर कहा, “यही है वह लड़का जिसने मुझे झूठ से नहीं, सच से मिलवाया। जिसने मेरी बेइज्जती छिपाने की कोशिश नहीं की, बल्कि मुझे सच्चाई बताई।”

पूरा स्टाफ स्तब्ध था। कृतिका फुसफुसाई, “रवि ने मेल किया था।”

भाग 16: असिस्टेंट मैनेजर

शेखावत ने अभिषेक की ओर देखा। “जानते हो मेहरा, तुम्हारे शोरूम में सबसे निचले पद पर बैठा इंसान ही सबसे ऊंचा निकला। आज से इंपीरियल मोटर्स की मैनेजमेंट स्ट्रक्चर बदल दी जा रही है। अभिषेक मेहरा, आप सस्पेंड किए जाते हैं तत्काल प्रभाव से।”

अभिषेक हक्का बक्का रह गया। “सर, प्लीज, मेरी फैमिली है। मेरा करियर…”

“तुम्हारा करियर नहीं खत्म हो रहा,” शेखावत शांत स्वर में बोले। “बस अब तुम्हें असली काम समझना होगा। अब तुम अगले 6 महीने सर्विस सेक्शन में काम करोगे। गाड़ियों की धूल साफ करोगे। ग्राहकों की चाय लाओगे और सीखोगे कि असली इज्जत क्या होती है।”

भाग 17: नए सिरे से शुरुआत

शोरूम में सन्नाटा फैल गया। कृतिका की आंखों में आंसू थे। शेखावत ने उसकी तरफ देखा और कहा, “तुम, मिस कृतिका, तुम्हें एक और मौका दिया जा रहा है। लेकिन याद रखना, अगर अगली बार किसी ग्राहक को उसके कपड़ों से आंका गया तो तुम बाहर होगी।”

कृतिका ने सिर झुका कर कहा, “सॉरी सर, मैं समझ गई हूं।” फिर शेखावत ने रवि की तरफ रुख किया। “रवि, तुमने सच की कीमत चुकाई नहीं बल्कि कमाई है। आज से तुम इस शोरूम के असिस्टेंट मैनेजर हो।”

रवि की आंखें फैल गईं। “स-साहब, मैं तो नया हूं।”

“हां,” शेखावत मुस्कुराए। “लेकिन तुम्हारे पास वह है जो यहां किसी के पास नहीं। इंसानियत।”

भाग 18: सच्चाई की कीमत

कृतिका ने धीरे से कहा, “रवि, तुमने जो किया वो कोई नहीं कर पाता।”

रवि ने जवाब दिया, “मैंने बस वही किया जो सही लगा।”

शेखावत ने आखिरी बार अभिषेक की ओर देखा। “याद रखो मेहरा, ब्रांड की असली कीमत कारों में नहीं होती, बल्कि उन हाथों में होती है जो उन्हें सम्मान से छूते हैं।”

उन्होंने अपनी छड़ी उठाई और दरवाजे की ओर बढ़ गए। हर कदम की आवाज शोरूम की फर्श पर गूंज रही थी। मानो हर गूंज कह रही हो, “इंसानियत की गाड़ी सबसे आगे चलती है।”

भाग 19: बदलाव का संकेत

तीन हफ्ते बीत चुके थे। शोरूम का माहौल अब पहले जैसा नहीं था। हर कोई थोड़ा ज्यादा विनम्र, थोड़ा ज्यादा सतर्क हो गया था। इंपीरियल मोटर्स का बोर्ड अब और भी चमकने लगा था। पर अब उसकी चमक सिर्फ कारों से नहीं, बल्कि रवि की ईमानदारी से थी।

रवि अब असिस्टेंट मैनेजर था। कर्मचारी उसे सर कहने लगे थे। लेकिन वह हमेशा मुस्कुरा कर कहता, “अरे सर, मत बोलो, रवि ही ठीक है।” वो हर सुबह सबसे पहले आता, शोरूम की लाइट्स ऑन करता और वहीं पुरानी जगह पर 5 मिनट खड़ा रहता जहां शेखावत साहब बैठे थे। उसके लिए वह जगह अब किसी मंदिर से कम नहीं थी।

भाग 20: नई जिम्मेदारी

एक दिन कृतिका आई और बोली, “रवि, आज तुम्हें ओरिलियस हेड ऑफिस से बुलावा आया है।”

रवि थोड़ा चौंका। “मुझे किस लिए?”

कृतिका बोली, “बस उन्होंने कहा है कि मिस्टर शेखावत खुद मिलना चाहते हैं।”

कांच की ऊंची बिल्डिंग जहां हर दरवाजा अपने आप खुलता था। रवि ने कभी इतना बड़ा ऑफिस नहीं देखा था। रिसेप्शनिस्ट ने कहा, “मिस्टर रवि तिवारी, सर आपका इंतजार कर रहे हैं।”

वो अंदर गया। शेखावत साहब वहीं थे। सफेद कुर्ते में, लेकिन अब उनके सामने एक मोटी फाइल थी और कई चार्ट्स।

“आओ रवि,” उन्होंने कहा। “कैसे हो?”

“जी सर, अच्छा हूं। सब ठीक चल रहा है।”

भाग 21: नई शुरुआत

शेखावत ने मुस्कुरा कर कहा, “मुझे हर हफ्ते रिपोर्ट मिलती है और तुम्हारे नाम के आगे हमेशा एक ही शब्द लिखा होता है, ‘सच्चाई’।”

रवि झेंप गया। “सर, मैं बस अपना काम कर रहा हूं।”

शेखावत ने कुर्सी से टेक लगाई। “रवि, तुम्हें एक बात बतानी है। मैंने फैसला किया है कि अब मैं धीरे-धीरे रिटायर हो जाऊंगा।”

रवि चौका। “क्या? पर सर, बिना आपके तो…”

शेखावत ने मुस्कुरा कर कहा, “हर इंजन को एक दिन रुकना होता है बेटा। लेकिन जरूरी है कि गाड़ी चलते रहे।”

उन्होंने फाइल उसकी ओर बढ़ाई। “यह मेरे ट्रस्ट की फाइल है, ऑनरेलियस फाउंडेशन। मैं चाहता हूं तुम इसमें डायरेक्टर इंचार्ज के तौर पर काम शुरू करो।”

भाग 22: नई पहचान

रवि के होंठ सूख गए। “सर, मैं लेकिन मैं तो एक सेल्समैन था।”

“था,” शेखावत ने कहा, “अब तुम एक मिसाल हो और कंपनी को मिसालें चाहिए, सिर्फ मैनेजर नहीं।”

रवि की आंखें नम हो गईं। उसने बस इतना कहा, “मैं वादा करता हूं सर, कभी झूठ के आगे नहीं झुकूंगा।”

शेखावत ने सिर हिलाया। “मुझे पता है, इसलिए तो तुम चुने गए हो।”

भाग 23: एक नई दिशा

अभिषेक अब सर्विस सेक्शन में था। ग्राहकों की गाड़ियों पर डस्टर चला रहा था। कभी-कभी दूसरे स्टाफ उसकी तरफ देखकर मुस्कुराते पर वह अब कुछ नहीं कहता था। वह चुपचाप काम करता। हर गलती को सुधारने की कोशिश करता।

एक दिन रवि सर्विस एरिया में गया। “अभिषेक सर…”

अभिषेक चौका। “किसने हफ्तों बाद उसे सर कहा था।”

“मैं बस यह कहना चाहता था,” रवि बोला, “कि मैं आपकी जगह नहीं ले रहा। मैं बस वही कर रहा हूं जो आपने मुझे सिखाया। काम में लगन रखो।”

अभिषेक ने उसकी तरफ देखा। आंखों में हल्की नमी थी। “रवि, उस दिन अगर तुम सच ना बोलते, तो मैं कभी अपनी गलती नहीं देख पाता। तुमने मुझे गिराया नहीं, जगाया है।”

भाग 24: एक नई शुरुआत

रवि मुस्कुराया। “फिर तो हम दोनों ने कुछ सीखा।”

अभिषेक बोला, “हां, एक बात जरूर सीखी। कपड़े नहीं, किरदार पहचानो।” दोनों ने हाथ मिलाया। कृतिका पास खड़ी थी। उसकी आंखों में भी एक सुकून था।

रात को रवि जब बाहर निकला तो पार्किंग में एक कार खड़ी थी। काली पुरानी लेकिन चमकदार। वो वही कार थी जिसमें शेखावत साहब उस दिन पहली बार आए थे। उसके बोनट पर एक छोटा सा लिफाफा रखा था।

रवि ने उठाया। अंदर सिर्फ एक लाइन लिखी थी, “जब दुनिया तुम्हें पहचानने लगे, तब भी वही बने रहना जो तब था जब कोई नहीं जानता था।”

एस शेखावत। रवि मुस्कुराया। लिफाफा जेब में रखा और आसमान की तरफ देखा। जहां सितारे भी मानो कह रहे थे, “सच की गाड़ी कभी रुकती नहीं।”

भाग 25: अंत में

इस तरह, रवि ने न केवल अपने जीवन को बदला, बल्कि दूसरों के लिए भी एक प्रेरणा बन गया। सच और ईमानदारी की ताकत ने उसे उस ऊंचाई पर पहुंचाया जहां वह कभी सोच भी नहीं सकता था।

इंपीरियल मोटर्स अब एक नई पहचान के साथ आगे बढ़ रहा था, जहां हर ग्राहक को सम्मान दिया जाता था। और यह सब संभव हुआ एक बुजुर्ग की सच्चाई और एक छोटे से लड़के की हिम्मत से।

यही कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चाई और ईमानदारी हमेशा जीतते हैं, चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों।

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