वाराणसी: घर से उठी रहस्यमयी बदबू, मालिक ने बुलाए मिस्त्री और ईंटों के पीछे मिला खौफ़नाक राज़

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वाराणसी की दीवार: बदबू के पीछे छिपा सच

वाराणसी की एक पुरानी गली, जहाँ लाल ईंटों का मिश्रा परिवार का घर पीढ़ियों से खड़ा था। गर्मियों की तपती धूप और गंगा से उठती नमी ने पूरे शहर को जैसे बोझिल बना दिया था। इसी घर में रहते थे स्कूल मास्टर राजीव मिश्रा, उनकी पत्नी कमला देवी और उनका 17 साल का बेटा अंकित। परिवार सादा था, लेकिन मोहल्ले में अक्सर डरावनी कहानियां और गुप्त बातें सुनाई देती थीं। मिश्रा परिवार इन बातों को कभी गंभीरता से नहीं लेता था।

एक दिन अचानक घर के एक कोने से अजीब सी सड़ांध उठने लगी। कमला देवी ने सोचा शायद कोई चूहा मर गया होगा, लेकिन बदबू बढ़ती गई। धूपबत्ती, नमक, नींबू सब आज़माया, पर गंध कम होने के बजाय पूरे घर में फैल गई। रात होते-होते यह बदबू इतनी तेज हो गई कि कोई ठीक से सांस भी नहीं ले पा रहा था। राजीव जी खिड़कियाँ खोलते, छत पर जाते, मगर कोई राहत नहीं मिली। तीन-चार दिन बाद अब यह गंध हर कमरे में फैल चुकी थी। कमला देवी ने चिंता जताई—यह साधारण बात नहीं है। राजीव जी ने दीवार के उस हिस्से पर हाथ रखा, वहाँ से गंध सबसे ज्यादा आ रही थी। दीवार ठंडी थी, लेकिन भीतर से अजीब सा एहसास हो रहा था।

अंकित, जो रहस्य खोजने का शौकीन था, बोला—पिताजी, दीवार के अंदर कुछ हो सकता है। शायद पुरानी चीजें या कोई और वजह। कमला देवी ने बेटे को डांटा, अशुभ बातें मत सोचो। मगर अंकित को लग रहा था यह बदबू किसी बड़ी कहानी की शुरुआत है। पड़ोसियों ने भी शिकायत करनी शुरू कर दी। शर्मा जी बोले, मिश्रा जी, आपके घर से अजीब गंध आ रही है। अगर यह फैलती रही तो सबको परेशानी होगी। राजीव जी को शर्मिंदगी हुई, लेकिन अब उनका मन भी घबरा रहा था।

रात को अंकित ने खिड़की से बाहर देखा और मां से पूछा—अम्मा, क्या यह वही घर नहीं है जिसके बारे में दादी ने कहा था कि पहले इसके मालिक अचानक गायब हो गए थे? कमला देवी चुप हो गईं। दरअसल, इस घर के अतीत में एक परछाईं थी। मोहल्ले में शालिनी नाम की एक औरत की चर्चा होती थी, जो 20 साल पहले अचानक गायब हो गई थी। लोग कहते थे, वह यहीं रहती थी, फिर एक दिन उसका कोई अता-पता नहीं मिला।

राजीव जी ने बात काटते हुए कहा—अफवाहें फैलाने से कुछ नहीं होगा। कल किसी मिस्त्री को बुलाते हैं, दीवार तोड़ कर देखेंगे। कमला देवी घबरा उठीं, मगर अंकित की आँखों में चमक थी। उसके लिए यह रहस्य था। अगले दिन रमेश यादव नामक कारीगर को बुलाया गया। रमेश ने दीवार पर हथौड़ा ठोका। भीतर से खोखली आवाज आई। राजीव जी बोले—तोड़ो, अब रहस्य नहीं चाहिए।

हथौड़े की पहली चोट के साथ ही ईंटें कांप उठीं, बदबू और तेज हो गई। अंकित ने नाक पर कपड़ा बांध लिया, कमला देवी आंगन की ओर चली गईं। पड़ोसी बाहर से झांकने लगे। जैसे-जैसे ईंटें गिरती गईं, बदबू का झोंका सबको पीछे धकेलता रहा। आखिरकार दीवार का एक हिस्सा ढह गया। अंधेरा सा खोखला कक्ष नजर आया। जैसे ही हवा भीतर गई, बदबू का सैलाब फैल गया। रमेश ने टॉर्च निकाली और भीतर रोशनी डाली। सभी की सांसें थम गईं। दीवार के अंदर धूल और मकड़ी के जालों के बीच एक आकृति दिख रही थी—हड्डियों का ढांचा, कपड़े के चिथड़े, पीतल की चूड़ी और टूटा हुआ कंगन।

कमला देवी घबराकर बोलीं—हे भगवान, यह कैसी गंध है? लगता है कुछ मर गया है। अंकित का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने पहली बार मौत को इतने करीब से देखा था। उसे दादी की बातें याद आईं—क्या यह वही शालिनी है? राजीव जी ने गहरी सांस ली, उनका चेहरा पीला पड़ गया। अब यह मामला सिर्फ उनके घर का नहीं रहा। रमेश बोला—मिश्रा जी, यह साधारण हादसा नहीं है। दीवार के अंदर लाश छिपाना अपराध है। आपको रिपोर्ट करनी चाहिए।

कुछ ही देर में मोहल्ले में खबर फैल गई। लोग दरवाजे पर जुटने लगे। कोई कह रहा था—कहीं यह शालिनी तो नहीं? राजीव जी ने सबको शांत रहने को कहा और पुलिस को सूचना दी। पुलिस आने तक घर का माहौल भारी बना रहा। बदबू, फुसफुसाहट और अंकित की बेचैन आँखें सब मिलकर यह एहसास करवा रही थीं कि मिश्रा परिवार की जिंदगी अब कभी पहले जैसी नहीं रहेगी।

पुलिस के सायरन की आवाज ने पूरे मोहल्ले को हिला दिया। इंस्पेक्टर अरविंद सिंह पहुँचे। उन्होंने भीड़ को हटाया। दीवार के खोखले हिस्से में टॉर्च डाली। हड्डियों का ढांचा, पीतल की चूड़ी और टूटा कंगन बाहर निकाला। कमला देवी का चेहरा पीला हो गया। राजीव जी बोले—इंस्पेक्टर साहब, हमें नहीं पता यह सब कैसे हमारे घर में आया। अरविंद सिंह बोले—मिश्रा जी, अब यह हत्या का केस हो सकता है। जब तक जांच पूरी नहीं होती, घर सील रहेगा।

अंकित की नजर उस कंगन पर थी। उसे दादी की बातें याद आईं—शालिनी के हाथ में हमेशा वही चूड़ियाँ रहती थीं। क्या यह उसी की निशानी है? उसने पुलिस वालों को देखा, उनके लिए यह सिर्फ एक मामला था। लेकिन अंकित के लिए यह एक कहानी थी जिसमें दर्द और रहस्य दोनों छिपे थे। पड़ोसियों में खुसर-पुसर शुरू हो गई थी—शालिनी का पति भी अचानक शहर छोड़ गया था। तब भी पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की थी।

मिश्रा परिवार को पास ही के रिश्तेदार के घर जाना पड़ा। कमला देवी ने कहा—यह घर अब अशुभ हो गया है। राजीव जी बोले—सत्य से भागकर शांति नहीं मिलती। अंकित के भीतर बेचैनी थी। उसे लगा पुलिस सच को गंभीरता से नहीं खोजेगी। वह पुराने अखबारों की दुकान पर गया। घंटों धूल भरे पन्ने पलटे। उसे एक पुराना समाचार मिला—वाराणसी की महिला शालिनी अचानक लापता। पुलिस असमर्थ। उसमें लिखा था कि शालिनी ने स्थानीय नेता हरिनारायण शुक्ला के खिलाफ संपत्ति विवाद में आवाज उठाई थी। उसके बाद ही वह गायब हो गई।

अंकित ने यह खबर कॉपी में चिपका ली। अब उसे लगने लगा कि वह किसी अदृश्य धागे को पकड़कर धीरे-धीरे अतीत की परतें खोल रहा है। शाम को जब वह लौटा तो मोहल्ले में अफवाहें फैल चुकी थीं। कोई कहता—शालिनी किसी जमींदार से झगड़ गई थी। कोई कहता—उसे अपशगुन मानकर घर से निकाल दिया गया था। अंकित सब सुनता रहा। उसे एहसास हुआ कि असली सच्चाई अब भी दीवारों के भीतर कैद है।

एक रात अंकित अकेले छत पर बैठा। गंगा किनारे से आती ठंडी हवा में भी उसे वही बदबू महसूस हो रही थी। उसने आसमान की ओर देखा—अगर यह सचमुच शालिनी है तो मैं जानना चाहता हूँ आपके साथ क्या हुआ था। कोई तो होगा जिसने आपको यह सजा दी और वह रहस्य अब छिपा नहीं रहेगा।

अगले कुछ दिनों तक पुलिस औपचारिकताओं में उलझी रही। अखबारों में छोटी सी खबर छपी। मगर जल्द ही नई राजनीतिक घटनाओं ने उस खबर को दबा दिया। मोहल्ले के लोग शुरू में उत्साहित थे, फिर यह बस गपशप का विषय बन गया। लेकिन अंकित के लिए यह जुनून बन चुका था। वह हर रोज पुराने अखबार पढ़ने चला जाता। एक दिन उसने देखा—शालिनी के गुम होने के समय का एक और समाचार था, जिसमें लिखा था कि स्थानीय नेता शुक्ला उस दौर में बेहद प्रभावशाली थे। लेख में बस इतना लिखा था कि शालिनी ने उनके खिलाफ आवाज उठाई थी, फिर वह गायब हो गई।

घर लौटकर उसने यह बात पिताजी को बताई। लेकिन राजीव जी ने सख्ती से कहा—अंकित, यह काम तुम्हारे लिए नहीं है। हमें पुलिस पर भरोसा करना चाहिए। कमला देवी भी घबरा गईं। मगर अंकित ने मन ही मन ठान लिया था—अगर वह चुप रहा तो यह रहस्य हमेशा दबा रहेगा।

एक शाम वह मोहल्ले के बुजुर्ग दयालु काका से मिलने गया। दयालु काका बोले—शालिनी ने शुक्ला के खिलाफ आवाज उठाई थी, लेकिन उस दौर में कौन उनकी ताकत के सामने खड़ा हो सकता था? पुलिस भी उन्हीं के इशारे पर काम करती थी। फिर एक रात शालिनी गायब हो गई। उसके पति को धमकी मिली और वह भी शहर छोड़कर भाग गया। सब लोग चुप्पी साध गए।

अंकित के दिल में बिजली सी कौंध गई। उसने पूछा—काका, क्या आपको यकीन है कि दीवार में मिली लाश वही शालिनी की है? काका बोले—मोहल्ले की औरतें कहती हैं कि शालिनी के हाथ में हमेशा वही पीतल की चूड़ियाँ रहती थीं। अगर वही दीवार में मिली है तो और कौन हो सकती है?

अंकित देर रात तक यह सब सोचता रहा। उसकी आँखों में डर भी था और गुस्सा भी। अगर यह सच है तो इसका मतलब एक बड़ी साजिश को जानबूझकर दबाया गया। अगले दिन वह पुलिस स्टेशन गया। इंस्पेक्टर अरविंद सिंह ने हँसते हुए कहा—बेटा, यह काम बच्चों का नहीं है। हमें हमारे काम करने दो। अंकित को साफ समझ आ गया कि पुलिस भी सच्चाई को आगे नहीं बढ़ाना चाहती।

शाम को मोहल्ले में कुछ अनजाने लोग उसके घर के पास खड़े फुसफुसा रहे थे। उन्होंने अंकित की ओर देखकर धीमे से कहा—जिज्ञासा कभी-कभी जानलेवा साबित होती है। अंकित का खून जम सा गया। उसने महसूस किया कि वह किसी ऐसे खेल में उतर चुका है जिसमें उसके परिवार की सुरक्षा दांव पर है।

अब मिश्रा परिवार पर अदृश्य बादल मंडराने लगे थे। कभी देर रात कोई परछाईं खिड़की के पास से गुजर जाती। कमला देवी बेटे को समझाती—अंकित, बाहर ज्यादा मत निकला करो। मगर अंकित की बेचैनी बढ़ गई थी। एक रात दो आदमी उसका रास्ता रोकते हैं—जितनी उम्र बाकी है उतनी चैन से जीना चाहता है तो अपनी जिज्ञासा छोड़ दे। वरना… उनकी आंखों की धमकी साफ थी। अंकित ने जवाब दिया—अगर सच्चाई इतनी ही खतरनाक है तो उसे सामने आना ही चाहिए।

अब मोहल्ला भी दो हिस्सों में बँट गया था। कुछ लोग मिश्रा परिवार का समर्थन करने लगे, कुछ नाराज थे। अंकित ने अपनी डायरी और अखबार की कतरनों की कॉपी बनाकर सुरक्षित जगह रख दी। उसने एक दोस्त को भरोसे में लेकर सब बताया। दोस्त ने कहा—अगर तेरे पास इतना सबूत है तो इसे अखबार वालों तक पहुंचा। तभी दबाव बनेगा।

अंकित ने हिम्मत करके सबूतों को अखबार तक पहुंचाया। रिपोर्टर सुमित त्रिपाठी ने उसकी बात सुनी। अंकित ने फाइल उसके सामने रख दी—यह सब शालिनी देवी की गुमशुदगी और दीवार से मिली लाश से जुड़ा है। इसमें बड़े नाम शामिल हैं। सुमित ने पन्ने पलटे और कहा—अगर यह सच है, तो बहुत बड़ी खबर है। लेकिन खतरा भी बहुत है। अंकित ने दृढ़ता से कहा—अगर हम डर कर चुप रहे तो कोई भी सच्चाई सामने नहीं आएगी।

रिपोर्ट छपते ही शहर में हलचल मच गई। लेकिन मिश्रा परिवार पर दबाव कई गुना बढ़ गया। घर पर पत्थर फेंके गए, खिड़की के शीशे टूटे। राजीव जी बोले—अब हमें बहुत सावधान रहना होगा। यह सीधे सत्ता और आम आदमी की लड़ाई है। मगर अंकित पीछे हटने को तैयार नहीं था।

एक दिन अंकित ने ठान लिया—सिर्फ सुन-सुनकर काम नहीं चलेगा, उसे ठोस सबूत ढूंढना ही होगा। वह उस जगह गया जहाँ शालिनी और उसका पति रहते थे। हवेली अब खंडहर थी। वहां उसे एक संदूक मिला, जिसमें पुराने पत्र और एक डायरी थी। डायरी में लिखा था—अगर मेरे साथ कुछ भी हो जाए तो समझना कि यह किसी साधारण दुश्मनी का परिणाम नहीं है। हरिनारायण शुक्ला की छाया इस मोहल्ले पर मंडरा रही है।

अंकित के हाथ कांप उठे। यह शालिनी की आखिरी गवाही थी। तभी दो आदमी अंदर आए, मगर अंकित छिप गया। संदूक खाली देखकर वे चले गए। अंकित ने डायरी को कसकर सीने से लगा लिया।

उसने पत्रकार सुमित को डायरी और सबूत सौंप दिए। सुमित बोले—अब यह मामला बहुत बड़ा हो चुका है। मैं इसे दिल्ली तक पहुंचाऊंगा। मगर तुम्हें छिपकर रहना होगा।

अगले दिन अखबार ने फ्रंट पेज पर वह हलफनामा और शालिनी की डायरी के पन्ने छाप दिए। पूरा शहर हिल गया। अब मामला वाराणसी से निकलकर लखनऊ और दिल्ली तक पहुंच गया। विपक्षी पार्टियां भी इसे मुद्दा बनाने लगीं। शुक्ला गुट बुरी तरह बौखला उठा। उन्होंने मिश्रा परिवार पर हमला किया, मगर मोहल्ले के लोग अंकित के साथ खड़े हो गए। मीडिया और पुलिस के दबाव में सीबीआई जांच शुरू हुई। पुराने गवाहों को बुलाया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुष्टि की कि दीवार में मिली लाश शालिनी की ही थी। सबूत इतने मजबूत थे कि अदालत को भी झुकना पड़ा। महीनों की सुनवाई के बाद हरिनारायण शुक्ला और उसके आदमियों को दोषी करार दिया गया।

शहर में जश्न का माहौल था। मोहल्ले की औरतें कमला देवी के घर आकर बोलीं—बहन, तुम्हारे बेटे ने हमें नई उम्मीद दी है। अब हम डरकर नहीं रहेंगे। राजीव जी गर्व से बेटे को देख रहे थे। अंकित की आँखों में आंसू थे, मगर वह मुस्कुरा रहा था। उसने धीमी आवाज में कहा—शालिनी देवी की आत्मा अब चैन से सो सकेगी।

अब मिश्रा परिवार का घर साहस और सच्चाई का घर बन चुका था। लोग दूर-दूर से आते, दीवार को देखते और कहते—यहीं से सच बाहर निकला था। अंकित अब पूरे समाज के लिए प्रतीक बन चुका था—साहस, न्याय और सच्चाई का। गंगा किनारे सूरज डूबते समय वह सोचता—यह लड़ाई सिर्फ शालिनी के लिए नहीं थी, यह हर उस इंसान के लिए थी जो डर कर चुप रहा। अब उसकी कहानी हर जगह सुनाई जाती है, तो शायद कोई और नौजवान भी तय करेगा कि वह चुप नहीं रहेगा।

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