एक युवा जुगाड़ू लड़के ने एक ऐसी मशीन बनाई जिसने उसकी किस्मत बदल दी – जो लोग उसका मजाक उड़ाते थे…
क्या होता है जब दुनिया आपकी काबिलियत को पागलपन समझे? क्या होता है जब आपके हुनर को लोग सिर्फ कबाड़ का खेल समझकर आपका मजाक उड़ाएं? यह कहानी एक ऐसे लड़के की है, जिसके हाथ में किताबें नहीं, बल्कि पाने और पेचकस जमते थे। गांव के लोग उसे “जुगाड़ू इंजीनियर” कहकर हंसते थे। उसके मां-बाप उसके भविष्य को लेकर चिंता में डूबे रहते थे और दोस्त उसे अपने साथ रखने में भी शर्म महसूस करते थे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि जिस लड़के को वे नाकारा समझ रहे हैं, उसी के दिमाग में एक दिन पूरे गांव की उम्मीदों का सूरज उगने वाला है।
गांव का माहौल
गंगा नदी के किनारे बसे एक छोटे से गांव रामपुर में जिंदगी की रफ्तार बहुत धीमी थी। सुबह की शुरुआत पक्षियों की चहचहाट और खेतों की ओर जाते किसानों के बैलों की घंटियों से होती थी। दिन भर लोग पसीने से अपनी किस्मत लिखते और शाम को बरगद के पेड़ के नीचे चौपाल पर बैठकर एक-दूसरे का सुख-दुख बांटते थे। इसी गांव में श्यामलाल का छोटा सा कच्चा-पक्का घर था। श्यामलाल एक मेहनती किसान थे, जिनका जीवन अपनी 2 बीघा जमीन और परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमता था। उनकी पत्नी कमला एक साधारण, ममतामय स्त्री थी, जिसकी सारी खुशियां अपने पति और बच्चों में ही थीं।
राजू का जुनून
इन दोनों की जिंदगी की सबसे बड़ी चिंता और सबसे बड़ा प्यार था उनका इकलौता बेटा राजू। राजू कोई 17-18 साल का दुबला-पतला सा लड़का था, लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी। वह पढ़ाई में बिल्कुल भी रुचि नहीं रखता था। स्कूल में जब मास्टर जी इतिहास और भूगोल के पाठ पढ़ाते, तो राजू अपनी कॉपी के पिछले पन्ने पर किसी मशीन का चित्र बना रहा होता। उसके लिए अक्षरों और आंकड़ों की दुनिया से कहीं ज्यादा दिलचस्प थी पुर्जों, तारों और औजारों की दुनिया।
राजू का असली स्कूल तो उसके घर के पिछवाड़े में था। वहां एक टिन की टूटी-फूटी छत के नीचे उसका वर्कशॉप था, जिसे वह कबाड़खाना कहता था। टूटी हुई साइकिलें, पुराने रेडियो के हिस्से, ट्रैक्टर के बेकार पड़े पुर्जे, जंग लगे पाइप, बिजली के तार और ना जाने क्या-क्या। गांव में किसी का कुछ भी खराब होता, तो वह कबाड़ में फेंकने से पहले एक बार राजू को जरूर दे जाता। राजू के लिए यह कबाड़ किसी खजाने से कम नहीं था।
गांव वालों की उपेक्षा
राजू घंटों तक इन चीजों के साथ खोया रहता, उन्हें खोलता, जोड़ता और कुछ नया बनाने की कोशिश करता। उसने अपनी मां के लिए साइकिल के पहिए और एक पुरानी मोटर से एक ऐसी मथनी बना दी थी, जिससे मिनटों में मक्खन निकल आता था। उसने अपने पिता के लिए कुएं से पानी खींचने का एक ऐसा जुगाड़ बनाया था जिसमें एक पुराने गियर बॉक्स का इस्तेमाल करके बहुत कम ताकत में बाल्टी ऊपर आ जाती थी।
लेकिन गांव वालों के लिए यह सब सिर्फ एक तमाशा था। वे राजू की बनाई चीजों को देखकर हंसते और उसे प्यार से पर एक ताने वाले अंदाज में कहते, “अरे, यह तो हमारा जुगाड़ू इंजीनियर है।” यह नाम राजू के सीने में किसी तीर की तरह चुभता था। वह इंजीनियर बनना चाहता था, पर जुगाड़ू नहीं।
परिवार का दबाव
राजू के पिता श्यामलाल परेशान रहते। वह एक पारंपरिक किसान थे, जिनके लिए इज्जत की जिंदगी का मतलब थी अच्छी खेती या कोई सरकारी नौकरी। उन्हें राजू का यह कबाड़ से खेलना समय की बर्बादी लगता। वह अक्सर उसे डांटते, “बेटा, कब तक इन खिलौनों से खेलेगा? तेरी उम्र के लड़के शहर जाकर कमाने की सोच रहे हैं और तू है कि इस कूड़े के ढेर से ही नहीं निकलना चाहता।”
कमला, राजू की मां, चुपचाप अपने बेटे के जुनून को समझती थी। जब श्यामलाल राजू को डांटते, तो वह बीच-बचाव करती। जब राजू अपने काम में इतना खो जाता कि खाना पीना भूल जाता, तो वह अपने हाथ से निवाला बनाकर उसे खिलाती। वह ज्यादा कुछ नहीं कहती थी, पर उसकी आंखों में अपने बेटे के लिए एक विश्वास था।
विपत्ति का आना
वक्त अपनी रफ्तार से चलता रहा। राजू ने जैसे तैसे 12वीं पास तो कर ली, पर इतने कम नंबरों से कि किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला मिलना नामुमकिन था। अब वह पूरी तरह से अपने वर्कशॉप का ही होकर रह गया था। गांव वालों के ताने और बढ़ गए थे और पिता की चिंता गहरी हो गई थी। राजू अब लोगों से और भी कट गया था।
फिर वो साल आया जब मानसून ने अपने सबसे भयानक रूप दिखाया। बारिश की बूंदें तपती जमीन के लिए राहत बनकर आईं, लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी। बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। गांव के पास से गुजरने वाली गंगा नदी, जो हमेशा शांत और निर्मल बहती थी, अब उफान पर थी।
आपदा का सामना
एक रात कयामत आ गई। नदी का बांध, जो सालों से कमजोर हो चुका था, पानी के बेहिसाब दबाव को झेल नहीं पाया और टूट गया। सोते हुए गांव को पता भी नहीं चला कि मौत का सैलाब उनकी ओर बढ़ रहा है। पानी एक दहाड़ते हुए राक्षस की तरह गांव में घुस आया। कच्ची झोपड़ियों को ताश के पत्तों की तरह बहा ले गया।
चारों तरफ चीखपकार मच गई। लोग अपने बच्चों और जरूरी सामान को लेकर ऊंची जगहों की ओर भागने लगे। कुछ ही घंटों में पूरा रामपुर गांव एक विशाल झील में तब्दील हो चुका था। गांव का संपर्क बाहर की दुनिया से पूरी तरह कट गया था।
राजू की प्रेरणा
इसी निराशा और लाचारी के माहौल में, राजू ने सब कुछ देखा। उसका घर भी पानी में डूबा था, लेकिन उसकी आंखों में निराशा नहीं थी। वह पानी को देख रहा था, लेकिन एक अलग नजर से। वह गांव की ढलान, पानी के बहाव और उसके जमाव के कोण को अपने दिमाग में नाप रहा था।
अचानक उसकी आंखों में एक चमक आई। वह तेजी से उठा और पानी में छपाक से कूद गया। उसकी मां ने आवाज दी, “राजू, कहां जा रहा है?” पर उसने कोई जवाब नहीं दिया। वह कमर तक पानी में चलता हुआ अपने घर की ओर जा रहा था।
राजू का मकसद कुछ और था। उसका वर्कशॉप, जो घर के पिछवाड़े में थोड़ी ऊंचाई पर था, अभी भी पानी से बचा हुआ था। वहां पहुंचकर उसने कबाड़ के खजाने में से पुराना डीजल इंजन निकाला।
जुगाड़ की तैयारी
वह बड़े-बड़े लोहे के पाइप, एक पुरानी बैलगाड़ी का चेस, कई साइकिलों की जंजीरें और गियर लेकर आया। जब गांव वालों ने उसे यह सब करते देखा तो कुछ लोग हंसने लगे। सुरेश ने ताना कसा, “देखो, पागल को देखो! पूरा गांव डूब रहा है और इसे अपना कबाड़ बटोरने की पड़ी है।”
राजू ने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया। वह अगले तीन दिन और तीन रात तक बिना सोए काम करता रहा। उसकी मां कमला चुपके से उसके लिए रोटी और पानी ले आती। राजू के हाथ छिल गए थे, आंखों के नीचे काले गड्ढे पड़ गए थे, लेकिन उसके चेहरे पर एक जुनून था।
मशीन का निर्माण
राजू ने उस पुराने डीजल इंजन को ठीक करने में जुट गया। उसने पुरजे-पुरजे को खोला, साफ किया और अपनी जुगाड़ से उसे फिर से जोड़ दिया। उसने बैलगाड़ी के चेस पर एक बड़ा सा ढांचा खड़ा किया और एक ऐसा जटिल सिस्टम बनाया, जिसमें डीजल इंजन एक बड़े से पंखे को घुमाता जो पानी को तेजी से खींचकर पाइप के जरिए बाहर फेंकता।
राजू को पता था कि अकेला इंजन इतने बड़े पानी के सैलाब को नहीं निकाल पाएगा। उसे और ताकत चाहिए थी। यहीं पर उसने अपना सबसे बड़ा जुगाड़ लगाया। उसने साइकिल की जंजीरों और पेड़ों का इस्तेमाल करके एक ऐसा सिस्टम बनाया, जिसे 10 लोग एक साथ चला सकते थे।
सफलता की ओर
चौथे दिन की सुबह, वह मशीन तैयार थी। वह देखने में बहुत भद्दी और अजीब सी लग रही थी। अब सबसे बड़ी चुनौती थी इस भारी भरकम मशीन को गांव के सबसे निचले हिस्से तक ले जाना और लोगों को इसे चलाने के लिए राजी करना।
राजू ने सरपंच के पास जाकर कहा, “सरपंच जी, मैंने पानी निकालने की एक मशीन बनाई है। मुझे 10 मजबूत आदमियों की जरूरत है।” पूरी पंचायत में एक जोरदार ठहाका गूंज उठा। सुरेश ने कहा, “यह कबाड़ तुम मशीन कहते हो? इसका दिमाग खराब हो गया है।”
राजू की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने कहा, “बस एक मौका दीजिए। अगर यह मशीन काम नहीं की, तो आप मुझे जो सजा देंगे, मैं मंजूर करूंगा।” उसकी आवाज में आत्मविश्वास था।
एक नई शुरुआत
सरपंच राजी हो गए। 25 लोग मिलकर उस भारी मशीन को खींचते हुए गांव के सबसे गहरे हिस्से तक लाए। राजू ने 10 लोगों को समझाया कि कैसे पैडल चलाना है, कैसे लीवर खींचना है। फिर राजू ने डीजल इंजन के हैंडल में रस्सी लपेटी और अपनी पूरी ताकत से खींचा।
इंजन खांसा, काला धुआं उगला और फिर एक कान फाड़ देने वाले शोर के साथ चालू हो गया। राजू चिल्लाया, “अब शुरू हो जाओ!” 10 लोगों ने एक साथ पैडल मारने और लीवर खींचने शुरू किए। मशीन कांपने लगी।
फिर एक चमत्कार हुआ। मशीन से जुड़े लंबे और मोटे पाइप के मुंह से गंदे पानी की एक मोटी धार निकली और जोरदार रफ्तार से गांव के बाहर गिरने लगी। धार इतनी तेज थी कि उसे देखकर सब दंग रह गए।
गांव की एकता
एक पल की खामोशी के बाद, पूरे गांव में जयकारे का शोर गूंज उठा। लोगों ने राजू को अपने कंधों पर उठा लिया। जो लोग कल तक उसे पागल और जुगाड़ू कह रहे थे, आज उनकी आंखों में राजू के लिए सम्मान और कृतज्ञता के आंसू थे।
यह सिर्फ पानी निकालने का काम नहीं था; यह गांव की खोई हुई एकता और हिम्मत को वापस पाने का एक उत्सव बन गया था। 5 दिन और 5 रात तक वह मशीन बिना रुके चलती रही। धीरे-धीरे पानी का स्तर कम होने लगा।

राजू की पहचान
पांचवें दिन की शाम तक गांव लगभग पूरी तरह से सूख चुका था। पीछे रह गई थी बस कीचड़, तबाही के निशान और एक नौजवान लड़के की कामयाबी की अविश्वसनीय कहानी। राजू अब गांव का हीरो था। सरपंच ने पंचायत बुलाकर उसे सम्मानित किया।
पर इस शोहरत का राजू पर कोई असर नहीं हुआ। वह पहले की तरह ही शांत और विनम्र था। लेकिन यह कहानी रामपुर गांव में ही खत्म नहीं होनी थी। इस घटना की खबर पास के शहर तक पहुंची। आलोक शर्मा नाम का एक युवा और उत्साही पत्रकार, जो हमेशा आम लोगों की खास कहानियों की तलाश में रहता था, इस खबर को सुनकर खुद को रोक नहीं पाया।
नई संभावनाएं
आलोक ने राजू से बात की, गांव वालों से मिला और उस अद्भुत मशीन को अपनी आंखों से देखा। वह राजू की सादगी और उसकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुआ। आलोक ने एक भावुक और प्रेरणादायक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था “कबाड़ से गांव बचाने वाला नंगे पांव का इंजीनियर।”
यह लेख देश के एक बड़े अखबार में छपा और देखते ही देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। हजारों मील दूर चीन के शंघाई शहर में एक मल्टीनेशनल एग्रोटेक कंपनी के सीईओ, मिस्टर लीवे, अपने आलीशान ऑफिस में बैठे हुए थे।
वैश्विक पहचान
मिस्टर ली ने जब आलोक का लेख पढ़ा, तो वह अपनी कुर्सी से उछल पड़े। राजू का वह हाइब्रिड डिजाइन, जिसमें इंजन और इंसानी ताकत को एक साथ जोड़ा गया था, एक ऐसी चीज थी जिसके बारे में उनकी करोड़ों की तनख्वाह वाले इंजीनियरों ने कभी सोचा तक नहीं था।
मिस्टर ली ने अपने सबसे बड़े अधिकारी को बुलाया और कहा, “इस लड़के को ढूंढो। मुझे यह हीरा अपनी कंपनी में चाहिए।” कुछ हफ्ते बाद, रामपुर की धूल भरी सड़कों पर एक चमचमाती विदेशी गाड़ी आकर रुकी।
राजू का नया सफर
गाड़ी से दो लोग उतरे। एक चीनी और एक भारतीय, जो दुभाषिए का काम कर रहा था। उन्होंने राजू का घर पूछा। जब वे श्यामलाल और कमला के छोटे से आंगन में पहुंचे, तो वे घबरा गए।
दुभाष्य ने बताया कि वे चीन की एक बहुत बड़ी कंपनी से आए हैं और वे राजू को एक नौकरी का प्रस्ताव देना चाहते हैं। उन्होंने जो प्रस्ताव रखा, उसे सुनकर पूरे आंगन में सन्नाटा छा गया। शंघाई में उनकी रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैब में नौकरी, एक ऐसी तनख्वाह जिसके बारे में श्यामलाल ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।
राजू, श्यामलाल और कमला किसी को भी अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था। चीन, एक अनजान देश, एक अनजानी भाषा। कमला डर गई, लेकिन श्यामलाल की आंखों में आज एक नई चमक थी।
सपनों की उड़ान
राजू के सामने उसकी पूरी जिंदगी घूम गई। गांव वालों के ताने, सुरेश का मजाक, पिता की डांट, मां के आंसू और बाढ़ की वह पांच रातें। यह सिर्फ एक नौकरी नहीं थी; यह उसके सपनों को और उसके जुनून को मिला सम्मान था।
उसने एक गहरी सांस ली और अपनी मां की ओर देखा। कमला की आंखों में डर के साथ-साथ गर्व भी था। राजू ने धीरे से पर एक मजबूत आवाज में कहा, “मैं तैयार हूं।”
उस दिन के बाद की कहानी बहुत तेजी से आगे बढ़ी। राजू का पासपोर्ट बना, वीजा लगा और कुछ ही महीनों में वह दिन आ गया जब उसे जाना था। पूरा गांव उसे विदा करने के लिए उमड़ पड़ा था।
अंतिम विदाई
सरपंच ने उसे माला पहनाई। सुरेश ने आगे बढ़कर उससे हाथ मिलाया और कहा, “मुझे माफ कर देना राजू, मैंने तुम्हें कभी नहीं समझा।”
राजू हवाई जहाज में बैठा था। उसने खिड़की से बाहर देखा। नीचे जमीन पर छोटे-छोटे घर और खेत दिख रहे थे। उसने अपनी आंखें बंद की। उसे अपना कबाड़ का वर्कशॉप, अपनी मां के हाथ की रोटी और अपने गांव की मिट्टी की खुशबू याद आई।
लेकिन उसे पता था कि एक नई दुनिया, एक नया आसमान उसका इंतजार कर रहा था। उसकी जुगाड़ ने उसकी किस्मत पलट दी थी और अब वह एक असली इंजीनियर बनने जा रहा था।
निष्कर्ष
तो दोस्तों, यह थी राजू की कहानी। एक ऐसे लड़के की जिसने साबित कर दिया कि असली प्रतिभा किसी डिग्री या सर्टिफिकेट की मोहताज नहीं होती। वह तो बस एक मौके की तलाश में रहती है। यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें किसी के भी जुनून या शौक को कम नहीं समझना चाहिए। क्योंकि क्या पता कौन सा जुगाड़ कब किसकी किस्मत बदल दे।
हमारे आसपास भी न जाने कितने राजू अपनी पहचान की तलाश में हैं। जरूरत है तो बस उन्हें पहचानने और सराहने की। अगर राजू की इस कहानी ने आपके दिल में एक उम्मीद की लौ जलाई है, तो इस वीडियो को एक लाइक जरूर करें। हमें कमेंट्स में बताइए कि क्या आप भी अपने आसपास किसी ऐसे जुगाड़ू इंजीनियर को जानते हैं?
इस कहानी को अपने दोस्तों और परिवार के साथ ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि यह प्रेरणा हर उस इंसान तक पहुंचे, जो अपने सपनों को पूरा करने की ज़िद लिए बैठा है। और ऐसी ही और दिल को छू लेने वाली सच्ची कहानियों के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना ना भूलें। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
Play video :
News
Veteran Bollywood Actress Madhumati Die*s At 87,Kareena Kapoor got emotional!
Veteran Bollywood Actress Madhumati Die*s At 87,Kareena Kapoor got emotional! . . A Legend Departs: Veteran Actress and Dance Guru…
Sad News! Superstar Salman khan admitted to Hospital in Critical Condition after Brain Aneurysm!
Sad News! Superstar Salman khan admitted to Hospital in Critical Condition after Brain Aneurysm! . . 💔 Superstar Salman Khan…
Rajasthan News : जैसलमेर बस हादसे में पहली FIR दर्ज, बस मालिक और ड्राइवर पर लापरवाही का आरोप
Rajasthan News : जैसलमेर बस हादसे में पहली FIR दर्ज, बस मालिक और ड्राइवर पर लापरवाही का आरोप . ….
Amitabh Bachchan, Aishwaya Rai crying at Pankaj Dheer’s last moment Funeral as he Died in cancer!
Amitabh Bachchan, Aishwaya Rai crying at Pankaj Dheer’s last moment Funeral as he Died in cancer! . . 💔 The…
Khabardar: Jaisalmer में 21 जिंदा जले, Jaipur में RTO की मिलीभगत से बन रहीं मौत की बसें | Aajtak
Khabardar: Jaisalmer में 21 जिंदा जले, Jaipur में RTO की मिलीभगत से बन रहीं मौत की बसें | Aajtak ….
Mahabharat ‘Karn’ Pankaj Deer Passed Away | Pankaj Dheer died at the age of 68
Mahabharat ‘Karn’ Pankaj Deer Passed Away | Pankaj Dheer died at the age of 68 . . The Indian cinema…
End of content
No more pages to load






