मैं तुम्हारे पिता के इलाज के लिए एक करोड़😱 दूँगा पर उसके बदले मेरे साथ चलना होगा फिर जो हुआ..

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शहर की भीड़भाड़ वाली सड़क पर ट्रैफिक के शोर में एक लड़की हाथ फैलाए खड़ी थी। उसका नाम काव्या था। कॉलेज की पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी क्योंकि उसके पिता अचानक बीमार पड़ गए थे। डॉक्टर ने बताया था कि ऑपरेशन के लिए ₹1 लाख रुपये चाहिए होंगे, और अगर अगले तीन दिनों में पैसे जमा नहीं हुए तो पिता की जान खतरे में पड़ सकती है। यह सुनकर काव्या के आंखों के सामने अंधेरा छा गया। उसने बैंक के दरवाजे खटखटाए, रिश्तेदारों को फोन किया, दोस्तों से मदद मांगी, लेकिन किसी ने भी उसका साथ नहीं दिया। सबके जवाब एक जैसे थे, “हम खुद मुश्किल में हैं।” काव्या कुछ भी नहीं कर पाई। उसकी मां कई साल पहले गुजर चुकी थी, और अब उसके पिता ही उसकी पूरी दुनिया थे, जो बिस्तर पर पड़े सांसों के लिए लड़ रहे थे।

हर घंटे डॉक्टर का चेहरा सख्त होता जा रहा था। हर बार वह यही कहता कि अगर पैसे नहीं आए तो हम कुछ नहीं कर पाएंगे। यह सुनकर काव्या का दिल कांप जाता। वह घर से निकलती, आंखों में आंसू लिए सड़क के किनारे खड़ी हो जाती और आने-जाने वालों से कहती, “भैया मेरी मदद कर दो, मेरे पापा को बचा लीजिए।” लेकिन लोगों के पास वक्त नहीं था। कोई मोबाइल में व्यस्त था, कोई हॉर्न बजा रहा था, कोई उसे देखकर हंस देता और आगे बढ़ जाता। कई बार लोग उसे ठग समझकर बुरा भला कह देते। किसी ने उसके हाथ से सिक्का छीन लिया, किसी ने कहा कि अब लोग एक्टिंग करके पैसे मांगते हैं। पर किसी ने यह नहीं देखा कि उसकी आंखों में नकलीपन नहीं था, बल्कि सच्चा दर्द था।

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सूरज की धूप में खड़ी वह धीरे-धीरे झुलस रही थी। उसके बाल बिखरे हुए थे, कपड़े पुराने और आंखें सूजी हुई थीं। लेकिन उसके चेहरे पर एक उम्मीद थी कि शायद कोई तो रुकेगा, शायद कोई दिल वाला मिलेगा जो उसकी बात सुनेगा, कि किसी तरह पापा बच जाएं। वह हर सिक्का जोड़ती, हर रुपए को संभालती, हर दिन उम्मीद करती कि शायद आज कोई फरिश्ता आएगा और उसकी तकदीर बदल देगा। लेकिन आज तक उसे बस धूल मिली थी और ताने मिले थे। फिर भी उसने खुद से वादा किया कि वह आखिरी सांस तक कोशिश करती रहेगी। चाहे दुनिया उसे कुछ भी समझे, पर वह जानती थी कि किसी बेटी का अपने पिता से बड़ा रिश्ता कोई नहीं होता।

एक दिन जब काव्या उसी सड़क पर खड़ी थी, सूरज की तपिश उसके चेहरे को झुलसा रही थी और पैरों के नीचे जलता हुआ डामर उसकी मजबूरी का मजाक उड़ा रहा था, तभी एक बड़ी काली गाड़ी उसके सामने आकर रुकी। गाड़ी से उतरा आर्यन मल्होत्रा, एक जाना माना बिजनेस टकून, शहर का सबसे सफल और चर्चित आदमी। उसके आसपास हमेशा मीडिया रहती थी, पर आज वह अकेला था। उसने उस लड़की को देखा जो फटे पुराने कपड़ों में खड़ी थी, धूल से सनी हुई बालों की लट्टें चेहरे पर चिपकी थीं, लेकिन उसकी आंखों में वह चमक थी जो किसी उम्मीद से भरी थी।

आर्यन कुछ पल उसे देखता रहा, फिर धीरे से बोला, “तुम्हारा नाम क्या है?” लड़की ने कांपते हुए जवाब दिया, “काव्या।” उसने पूछा, “क्यों भीख मांग रही हो?” और काव्या की आंखों से आंसू गिर पड़े। उसने रोते हुए कहा, “मेरे पापा अस्पताल में हैं। उनके इलाज के लिए ₹1 लाख चाहिए। कोई मदद नहीं कर रहा। मैं पिछले तीन दिन से सड़क पर हूं, लेकिन अब तक कुछ नहीं मिला।”

आर्यन ने गहरी सांस ली। उसकी आंखों में कुछ सोचने जैसा था। उसने जेब से पैसे निकाले और कहा, “यह रखो और कल से सड़क पर मत आना।” काव्या ने नोटों की तरफ देखा, फिर सिर झुका लिया और बोली, “साहब, इतना काफी नहीं होगा। ऑपरेशन बहुत महंगा है। यह तो सिर्फ एक दिन का खर्च है।” आर्यन ने उसकी आंखों में देखा, फिर बोला, “पैसे नहीं, मैं तुम्हें एक मौका दूंगा। ईमानदारी से कर सको तो तुम्हारे पिता का इलाज मेरा जिम्मा।” काव्या कुछ पल चुप रही, फिर धीरे से बोली, “मैं सब कुछ करूंगी। बस मेरे पापा को बचा लीजिए।”

अगले दिन आर्यन ने उसे अपने ऑफिस बुलाया। वहां का माहौल देखकर वह डर गई। वहां हर कोई सूट पहने व्यस्त था। उसकी सादगी सबको अजीब लगी। लेकिन आर्यन ने उसे आश्वस्त किया और कहा, “तुम्हें किसी चीज की चिंता नहीं करनी है। बस मेहनत से रहना।” उसने उसे रिसेप्शन पर बैठाया जहां उसे आने वाले लोगों से बात करनी थी, फोन उठाना और मेहमानों को संभालना था। शुरुआत में वह घबरा जाती, गलती हो जाती, लेकिन धीरे-धीरे उसने सब कुछ सीख लिया।

हर दिन वह सुबह ऑफिस आती और शाम को अस्पताल जाकर अपने पिता को देखती। हर बार उनके माथे पर हाथ रखकर कहती, “पापा अब सब ठीक हो जाएगा।” आर्यन उसके जज्बे को देखकर हैरान था। उसने कभी इतनी ईमानदार लड़की नहीं देखी थी, जो खुद भूखी रह जाए पर दूसरों के लिए सच्चाई से काम करे। कई बार उसने देखा कि काव्या ऑफिस की कैंटीन में सबके बाद खाना खाती ताकि बाकी के लोग आराम से खा सकें। धीरे-धीरे ऑफिस के लोग भी उसकी इज्जत करने लगे। वह अब किसी पर बोझ नहीं बल्कि मिसाल बन चुकी थी।

एक दिन आर्यन ने देखा कि काव्या पूरे दिन बिना कुछ खाए काम करती रही। उसने पूछा, “काव्या, तुम ठीक हो?” उसने मुस्कुराकर कहा, “हाँ, बस थोड़ा थक गई हूं, लेकिन मेरे पापा ठीक हो जाएंगे तो मैं सब ठीक कर लूंगी।” उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन मुस्कान अभी भी थी। अगले ही हफ्ते आर्यन ने बिना कुछ बताए अस्पताल जाकर उसके पिता के सारे बिल चुका दिए और डॉक्टर से कहा कि अब इलाज रुकना नहीं चाहिए।

जब काव्या अस्पताल पहुंची तो डॉक्टर ने कहा, “अब चिंता की जरूरत नहीं। आपके पिता की सर्जरी सफल रही है। खर्च का इंतजाम किसी आर्यन मल्होत्रा ने किया है।” काव्या सुनते ही रो पड़ी। उसके घुटने जमीन पर टिक गए। उसने भगवान को देखा और कहा, “आज भी इंसानियत जिंदा है।”

अगले दिन वह ऑफिस पहुंची तो आर्यन उसके कैबिन में बैठा था। उसने कहा, “काव्या, तुम्हारे पिता अब बिल्कुल सुरक्षित हैं। तुम्हें अब सड़क पर नहीं आना पड़ेगा। तुम्हें अब अपने सपनों की जिंदगी जीनी चाहिए।” काव्या के होठ कांपने लगे। उसने कहा, “आपने मुझे जो दिया है वह सिर्फ पैसे नहीं बल्कि जिंदगी है। मैं कैसे शुक्रिया कहूं?” आर्यन ने कहा, “शुक्रिया की जरूरत नहीं। बस वादा करो कि अब तुम कभी हार नहीं मानोगी।” वह सिर हिलाकर बोली, “नहीं सर, अब कभी नहीं।”

उस दिन से उसकी जिंदगी बदल गई। लेकिन उस शाम की सड़क की धूल अब भी उसके दिल में थी। उसे याद था कैसे लोगों ने उसे ठुकराया था और कैसे एक अजनबी ने उसकी दुनिया बदल दी थी। उसने खुद से कहा कि जब भी मैं किसी को सड़क पर देखूंगी तो उसे कभी अनदेखा नहीं करूंगी क्योंकि मुझे पता है वह भी किसी अपने के लिए लड़ी होगी। जिंदगी ने उसे झुकाया जरूर था, पर तोड़ा नहीं। और आर्यन ने उसे सिखाया कि किसी की मजबूरी पर दया नहीं करनी चाहिए, बल्कि उसे अवसर देना चाहिए ताकि वह खुद अपनी जिंदगी बना सके।

अपने ऑफिस में काव्या ने धीरे-धीरे हर काम सीखा। झाड़ू लगाई, फाइलें करीने से रखीं, ऑफिस की मेज साफ की। जब कोई पूछता कि तुम इतना क्यों करती हो, तो बस इतना कहती, “मेरे पापा को ठीक होना है, मुझे मेहनत करनी ही होगी।” उसकी ईमानदारी देखकर लोग उसे सम्मान देने लगे। कंपनी के सीनियर ने कहा, “हमें तुम्हारे जैसे कर्मठ लोगों की जरूरत है।” आर्यन रोज उसे देखता और सोचता कि कैसे एक लड़की जिसने कभी कंप्यूटर नहीं छुआ था, अब पूरी आत्मविश्वास के साथ अकाउंट संभाल रही है।

धीरे-धीरे उसने रिसेप्शन का काम भी संभाल लिया। अब आने वाले मेहमानों का स्वागत वही करती थी। उसकी मुस्कान में सादगी थी, लेकिन दिल में ताकत थी। आर्यन को उसमें अपनी कंपनी की असली पहचान दिखने लगी। उसने कई बार चाहा कि काव्या को बताए कि उसके पिता के इलाज का खर्च उसने पहले ही चुका दिया है, पर वह चाहता था कि काव्या को यह एहसास खुद अपने हक से मिले।

कुछ दिनों बाद अस्पताल से फोन आया। डॉक्टर ने बताया कि उसके पिता की सर्जरी सफल रही है और अब वह खतरे से बाहर हैं। काव्या की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले। वह तुरंत अस्पताल भागी और अपने पिता के गले लग गई। उसके पिता की आवाज कांप रही थी। उन्होंने कहा, “बेटी, आज समझ आया कि हर अमीर दिल का गरीब नहीं होता। कुछ लोग भगवान के भेजे हुए फरिश्ते होते हैं, जिनकी मदद में कोई स्वार्थ नहीं होता।” उसने उनके हाथ थामे और बोली, “पापा, आज अगर मैं सड़कों पर होती तो शायद आप यहां नहीं होते। लेकिन एक इंसान ने मुझे गिरने नहीं दिया।” उसके पिता ने सिर पर हाथ रखा और कहा, “बेटा, अब कभी किसी से डरना नहीं। जिंदगी तुम्हें फिर कभी रुलाए तो याद रखना, तुमने उस अंधेरे से खुद निकलकर रोशनी बनाई है।”

अगली सुबह जब वह ऑफिस लौटी तो सबने ताली बजाकर उसका स्वागत किया। किसी ने फूल दिया, किसी ने कहा, “अब तुम्हारे पापा ठीक हैं, तो अब तुम मुस्कुराओ।” आर्यन दूर से खड़ा सब देख रहा था और मुस्कुरा रहा था। उसे लगा उसकी मेहनत और विश्वास सफल हो गया है। उसने सोचा कि असली बदलाव तब होता है जब किसी की मजबूरी को अवसर में बदल दिया जाए। और काव्या ने वही कर दिखाया। वह अब सिर्फ एक कर्मचारी नहीं बल्कि मिसाल बन चुकी थी, जिसने सिखाया कि गरीबी इंसान को छोटा नहीं करती, हिम्मत और सच्चाई उसे सबसे बड़ा बना देती है।

कुछ महीनों बाद जब मौसम ने करवट बदली और ठंडी हवा शहर की सड़कों को छू रही थी, काव्या उसी रास्ते से गुजर रही थी जहां कभी उसने अपने पिता के इलाज के लिए भीख मांगी थी। वही फुटपाथ, वही टूटी दीवारें, वही धूल-धूसरित सड़क। लेकिन इस बार हालात बदल चुके थे। उसके कदमों में अब डर नहीं, आत्मविश्वास था। उसने हल्के नीले रंग की साड़ी पहनी थी, हाथ में फाइलें थीं, बाल सलीके से बंधे हुए थे और आंखों में एक चमक थी जो बता रही थी कि उसने जिंदगी को हराया नहीं बल्कि उसे जीत लिया है।

वह उसी जगह कुछ पल के लिए रुकी जहां वह कभी हाथ फैलाकर मदद मांगती थी। उसे वह ठंडी रातें याद आईं जब कोई टुकड़ा रोटी भी नहीं देता था, जब पिता की खांसी सुनकर वह पूरी रात जागती थी और खुद को कोसती थी कि वह कुछ नहीं कर पा रही। आंखों में हल्की नमी थी, पर होठों पर मुस्कान थी, एक जीत की मुस्कान। तभी पीछे से एक गाड़ी धीरे-धीरे रुकी, वही गाड़ी जिससे एक बार आर्यन उतरा था जब उसने उसे सड़क पर रोते हुए देखा था।

आर्यन बाहर आया। उसकी आंखों में गर्व और स्नेह दोनों थे। उसने कहा, “कभी-कभी जिंदगी हमें गिराती है ताकि हम उठना सीख सकें। क्योंकि जो जमीन पर गिरता है, वही आसमान को देखना सीखता है।” काव्या ने हल्की सी मुस्कान के साथ उसकी तरफ देखा। उसकी आंखों में कृतज्ञता और सम्मान दोनों थे। उसने जवाब दिया, “और कभी-कभी कोई अजनबी फरिश्ता बनकर हमारी दुनिया बदल देता है। वह बिना कुछ मांगे सिर्फ दिल से मदद करता है और हमें खुद पर यकीन दिला देता है।”

आर्यन ने उसकी फाइलें थामते हुए कहा, “अब तुम्हें किसी की मदद की जरूरत नहीं। अब तुम खुद किसी की जिंदगी बदल सकती हो।” उस पल काव्या ने आसमान की ओर देखा। उसकी आंखों में अपने पिता की यादें थीं जिन्होंने उसे सिखाया था कि मजबूरी इंसान को तोड़ती नहीं, गढ़ती है। हवा उसके बालों को छूती हुई चली गई और सूरज की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ी जैसे किस्मत ने खुद उसकी मेहनत को सलाम किया हो।

सड़क के किनारे वही बच्चे खेल रहे थे जो कभी उसे देखकर डर जाते थे। आज वही बच्चे उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा रहे थे, जैसे पहचान गए हों कि यह वही लड़की है जिसने हार मानने से इंकार कर दिया था। कैमरा धीरे-धीरे ऊपर उठता है। आसमान में नीले रंग की विशालता के बीच एक सुकून भरी धुन बजने लगती है और पीछे से आवाज आती है, “पैसे से नहीं, इंसानियत से कोई अमीर बनता है। कुछ लोग नोटों से नहीं, नेकियों से पहचान बनाते हैं।” और फिर दृश्य धुंधला होता है। लेकिन काव्या की मुस्कान अब भी वहां रहती है, जैसे वह बता रही हो कि अगर नियत सच्ची हो तो किस्मत भी झुक जाती है।

हर मजबूरी का अंत होता है।