जिंदगी से जूझ रहे पति के लिए डॉक्टर की शर्त मान ली… फिर जो हुआ, इंसानियत हिला गई | Emotional story

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जिंदगी से जूझ रहे पति के लिए डॉक्टर की शर्त मान ली… फिर जो हुआ, इंसानियत हिला गई

लखनऊ की तंग गलियों में प्रिया और अखिलेश का छोटा सा घर था। दोनों अपनी छोटी-सी दुनिया में बेहद खुश थे। अखिलेश मजदूरी करता था, प्रिया घर संभालती थी, और दो छोटे बच्चों की किलकारियाँ उनके आँगन को गुलज़ार रखती थीं। लेकिन किस्मत कब बदल जाए, किसी को पता नहीं।

एक सुबह अखिलेश काम पर जाने के लिए तैयार ही हो रहा था कि अचानक उसके सीने में तेज़ दर्द उठा। सांसें फूलने लगीं, और वह बेहोश होकर गिर पड़ा। घर में अफरातफरी मच गई। प्रिया ने पड़ोसियों की मदद से अखिलेश को लखनऊ के बड़े अस्पताल में भर्ती कराया। डॉक्टरों ने कई टेस्ट किए और गंभीर आवाज़ में कहा, “मरीज की हालत बेहद नाजुक है। इलाज लंबा चलेगा और खर्च लगभग पंद्रह लाख रुपए आएगा।” प्रिया के चेहरे का रंग उड़ गया। उसके पास इतने पैसे कहाँ थे? उसने घर बेचने की कोशिश की, लेकिन कोई दस लाख से ज़्यादा देने को तैयार नहीं था। उम्मीद की हर डोरी टूटती चली गई।

अस्पताल के कॉरिडोर में बैठी प्रिया बार-बार भगवान से दुआ कर रही थी, “अब मैं क्या करूँ? अगर अखिलेश को कुछ हो गया तो मेरे बच्चों का क्या होगा?” तभी वार्डबॉय ने आकर बताया कि डॉक्टर साहब ने बुलाया है। प्रिया कांपते कदमों से डॉक्टर के केबिन में गई तो देखा, वह डॉक्टर कोई और नहीं बल्कि उसका पुराना सहपाठी रवि था। वही रवि, जिसे प्रिया ने कॉलेज के दिनों में ठुकरा दिया था। अब वही रवि बड़े अस्पताल का नामी डॉक्टर बन गया था।

रवि ने फाइल बंद की और गहरी सांस लेकर बोला, “प्रिया, तुम्हारे पति की हालत बहुत खराब है। तुम्हें पंद्रह लाख की जरूरत है और तुम्हारे पास कोई रास्ता नहीं है। अगर चाहो तो मैं सारा खर्च उठा सकता हूँ, लेकिन तुम्हें मेरी एक शर्त माननी होगी।” प्रिया घबरा गई, “कौन सी शर्त?” रवि ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “तुम्हें मेरे साथ एक दिन होटल में बिताना होगा। उसके बाद तुम्हारे पति का इलाज मेरी जिम्मेदारी।” प्रिया के रगों में खून जम गया। उसने गुस्से में कहा, “रवि, तुम ऐसी घटिया बात कैसे कर सकते हो? मैं शादीशुदा हूँ, ऐसा कभी नहीं कर सकती।” रवि ने ठंडी आवाज़ में कहा, “कोई जबरदस्ती नहीं है। फैसला तुम्हारे हाथ में है। मना कर दो तो अपने पति को घर ले जाओ और उसकी मौत का इंतजार करो। अगर उसकी जान बचानी है तो शर्त मान लो।”

प्रिया अस्पताल के एक कोने में बैठकर फूट-फूट कर रोने लगी। उसके सामने दो रास्ते थे—एक तरफ उसकी इज्जत और आत्मसम्मान था, दूसरी तरफ पति की जिंदगी और बच्चों का भविष्य। उसने भगवान से दुआ की, “हे भगवान, मैं टूट रही हूँ। लेकिन अगर मैंने पति को खो दिया तो सब बिखर जाएगा। क्या करूँ?” उसी रात प्रिया ने अपने जीवन का सबसे बड़ा और सबसे दर्दनाक फैसला लिया।

अगली सुबह रवि की कार उसे होटल के गेट तक लेकर आई। प्रिया के कदम लड़खड़ा रहे थे। आंखों में आँसू और दिल में तूफान था। वह बार-बार खुद से कह रही थी, “मैं पाप नहीं कर रही। मैं मजबूरी में हूँ। मैं अपने पति की जान बचा रही हूँ।” होटल के कमरे में रवि ने कहा, “डरो मत। तुम्हारी हालत देखकर मुझे मजा आ रहा है। कभी तुमने मेरी गरीबी का मजाक उड़ाया था। आज तुम्हें एहसास हो कि ताकत किसे कहते हैं।” प्रिया ने सिर झुका लिया, आंखें बंद कर लीं। तीन-चार घंटे ऐसे बीते जैसे सालों का बोझ एक पल में ढह गया हो। रवि ने उसका शरीर नहीं छुआ, लेकिन शब्दों से उसकी आत्मा को बार-बार घायल किया। “देखो, तुम्हारी इज्जत कितनी सस्ती है, बस पंद्रह लाख की।” ये शब्द उसके कानों में तीर की तरह चुभते रहे।

शाम को वह होटल से बाहर निकली, चेहरे पर पल्लू डालकर आँसू पोंछे, और सीधे अस्पताल पहुँची। अगले ही दिन से अखिलेश का इलाज शुरू हुआ। ऑपरेशन, दवाइयाँ, हर जगह बिल जमा हुआ, और हर पर्ची पर पेड़ की मोहर लगी थी। अखिलेश की हालत धीरे-धीरे सुधरने लगी। कुछ हफ्तों बाद वह होश में आया, मुस्कुराते हुए प्रिया का हाथ पकड़कर बोला, “प्रिया, तुम कितनी मजबूत हो। मुझे यकीन है तुमने ही पैसे का इंतजाम किया होगा। तुमने मेरी जान बचा ली।” प्रिया की आंखें भर आईं। उसने कांपती आवाज़ में झूठ बोल दिया, “हाँ अखिलेश, मैंने अपने बॉस से उधार ले लिया है।” अखिलेश ने उसकी आँखों में देखा, “तुम मेरी सबसे बड़ी दौलत हो प्रिया।” लेकिन प्रिया का दिल अंदर से चिल्ला रहा था, “काश अखिलेश तुम जान पाते कि तुम्हारी जान बचाने के लिए मैंने कैसी आग से गुजर कर खुद को राख बना लिया।” उस रात उसने भगवान से दुआ की, “हे प्रभु, अब यह राज हमेशा राज ही रहे। मेरे पति का भरोसा कभी ना टूटे।”

कुछ हफ्तों बाद जब अखिलेश ठीक होकर घर लौटा, तो घर में खुशियों का त्योहार लौट आया। लेकिन प्रिया के दिल का राज हर पल उसे चुभ रहा था। वह चाहती थी कि यह दर्द सिर्फ उसके सीने में ही दबा रहे, कभी बाहर ना आए। लेकिन किस्मत कहाँ चैन लेने देती है। एक सुबह, गली के बाहर एक चमचमाती कार आकर रुकी। कार से उतरा वही चेहरा—डॉक्टर रवि। प्रिया का दिल धड़क उठा। रवि सीधे घर के अंदर आया और अखिलेश के सामने बोला, “अखिलेश जी, आपको शायद पता नहीं, लेकिन आपकी पत्नी प्रिया से मैं बहुत प्यार करता हूँ। मैं चाहता हूँ कि आप उसे तलाक दे दें ताकि मैं उससे शादी कर सकूं। मैं उसे वह सुख और आराम दे सकता हूँ जो आप कभी नहीं दे पाए।”

अखिलेश का चेहरा लाल पड़ गया। “यह क्या बकवास है? तुम कौन होते हो मेरे घर में आकर ऐसी बातें करने वाले?” प्रिया, यह आदमी तुम्हें कैसे जानता है?” प्रिया की सांसे थम गईं। उसकी चुप्पी ने अखिलेश के मन में तूफान खड़ा कर दिया। “बोलो प्रिया!” अखिलेश चीखा। रवि ने कहा, “अखिलेश जी, आपके इलाज का पूरा खर्च मैंने उठाया, लेकिन यूं ही नहीं। मैंने प्रिया से एक वादा लिया था और उसने वह वादा पूरा किया। जिस दिन मैं और यह होटल में मिले थे, उसी दिन से यह मेरी है।” अखिलेश की आँखों में खून उतर आया। उसने रवि का कॉलर पकड़ लिया, “मेरी पत्नी के बारे में एक शब्द और मत कहना। निकल जाओ यहाँ से वरना अच्छा नहीं होगा।” प्रिया रोते हुए बीच में आ गई, “अखिलेश, प्लीज हाथ छोड़ दो। यह सब मेरी गलती है। मैंने मजबूरी में किया, तुम्हारी जान बचाने के लिए। हमारे घर को टूटने से बचाने के लिए मैंने अपने आप को दांव पर लगा दिया।” अखिलेश हक्का-बक्का रह गया। उसकी आवाज टूटी हुई थी, “तो तुमने मुझे बचाने के लिए अपनी इज्जत बेच दी प्रिया? क्या मैं इतना कमजोर था कि तुमने मुझसे यह बात छुपाई?” प्रिया फूट-फूट कर रो रही थी, “अखिलेश, मैंने अपनी मर्यादा नहीं तोड़ी। उसने मुझे सिर्फ अपमानित किया, मुझे गिरते हुए देखना चाहता था। पर मैं गिरी नहीं। मैंने सिर्फ तुम्हारी जान बचाने के लिए यह सब सहा।”

अखिलेश की आँखों से आँसू बहने लगे। वह समझ नहीं पा रहा था कि अपने दर्द पर भरोसा करे या पत्नी की मजबूरी पर। रवि जाते-जाते बोला, “प्रिया, मेरा ऑफर अभी भी खुला है। अगर चाहो तो मुझे याद करना।” रवि के जाने के बाद घर का आंगन किसी श्मशान की तरह शांत हो गया। अखिलेश कुर्सी पर सिर झुकाए बैठा था और प्रिया उसके पैरों के पास रो-रो कर गिड़गिड़ा रही थी, “अखिलेश, मुझसे गलती हुई। लेकिन मैंने यह सब तुम्हारी जान बचाने के लिए किया। मैंने कभी तुम्हें धोखा नहीं दिया, बस मजबूरी ने मुझे घुटनों पर ला दिया।” अखिलेश बोला, “प्रिया, मुझे तुम पर भरोसा था। लेकिन आज वो भरोसा हिल गया है। तुम्हारा दर्द मैं समझता हूँ, तुम्हारी मजबूरी भी समझता हूँ। लेकिन यह जख्म मेरे सीने में हमेशा रहेगा।”

शाम होते ही पंचायत बुलाई गई। चौपाल पर लोग इकट्ठा हुए, सवालों की बौछार होने लगी। “प्रिया ने गांव की इज्जत मिट्टी में मिला दी है। अखिलेश अगर मर्द हो तो ऐसी औरत को घर से निकाल दो।” अखिलेश ने भीड़ की तरफ देखा, “चुप रहो सब। मेरी पत्नी ने मेरी जान बचाने के लिए यह सब सहा है। उसने कोई गुनाह नहीं किया। उसकी मजबूरी का मजाक मत उड़ाओ। अगर कोई उंगली उठाएगा तो पहले मुझे जवाब देना होगा।” भीड़ शांत हो गई। तभी प्रिया की बचपन की सहेली नेहा आगे आई, “सच यही है कि प्रिया ने कोई गलत काम नहीं किया। रवि ने उसकी मजबूरी का फायदा उठाकर उसे अपमानित किया, लेकिन वो गिरी नहीं। उसने सिर्फ पति की जान बचाई। अगर हम उसे दोषी ठहराएं तो दोष इंसानियत का होगा, प्रिया का नहीं।” मुखिया ने कहा, “हमें माफ करना, असली गुनहगार रवि है जिसने इंसानियत को शर्मसार किया। प्रिया का त्याग हम सबके लिए सबक है।”

गांव के लोग एक-एक करके प्रिया और अखिलेश से माफी मांगने लगे। प्रिया रो रही थी, लेकिन इस बार उसके आँसू शर्म और दर्द के नहीं, बल्कि राहत और सम्मान के थे। उस रात अखिलेश ने प्रिया का हाथ पकड़ा और आंगन में तारों की ओर देखते हुए कहा, “प्रिया, हमें अब नई शुरुआत करनी है। तूने मेरी जान बचाई है, मैं तेरे भरोसे को कभी टूटने नहीं दूंगा।” प्रिया की आँखों में चमक थी। उसने सोचा, यही असली जीत है—जब मजबूरी में लिए गए फैसले भी पतिपति के रिश्ते को तोड़ने के बजाय और मजबूत कर देते हैं।

मजबूरी किसी का गुनाह नहीं होती। असली गुनाह वह है जब कोई इंसान किसी की बेबसी का सौदा करने की कोशिश करे।

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