कहानी: हालात ने मासूम को अपराधी बना दिया, लेकिन एक ईमानदार अफसर ने बदल दी किस्मत

सूरज की तपती धूप में 12 साल का आरव अपनी 10 महीने की बहन को गोद में लिए शहर की भीड़भाड़ वाली सड़क पर भीख मांग रहा था। माता-पिता की मौत के बाद दोनों भाई-बहन एक-दूसरे का सहारा थे। फटी कमीज, गंदी चप्पल और सूखा गला – लेकिन आंखों में उम्मीद की चमक थी।

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एक दिन, अचानक उसकी छोटी बहन की तबीयत बिगड़ गई। बुखार, खांसी और बेहोशी। आरव घबरा गया। मदद की आस में उसने एक अमीर व्यापारी के पैर पकड़ लिए – “साहब, मेरी बहन की जान बचा लीजिए!” आसपास भीड़ जमा हो गई। व्यापारी ने अनमने मन से ₹500 का चेक थमा दिया – “पास के बैंक में जाकर पैसे ले लेना।”

आरव अपनी बहन को गोद में लिए बैंक पहुंचा। शानदार इमारत, एसी की ठंडक, चमकदार कपड़े पहने कर्मचारी – सब उसकी गरीबी पर सवाल उठा रहे थे। उसने चेक काउंटर पर दिया, लेकिन कैशियर और बाकी कर्मचारी उस पर शक करने लगे। “यह चेक चोरी का है!” – बैंक मैनेजर ने पुलिस बुला ली।

तीन पुलिस वाले आए – राजीव, दिनेश, अक्षय। बिना कोई जांच किए आरव को अपराधी मान लिया। उसकी बहन बेहोश थी, लेकिन किसी ने दया नहीं दिखाई। गार्ड ने धक्का देकर बाहर निकालने की कोशिश की। भीड़ तमाशा देख रही थी, कुछ लोग वीडियो बना रहे थे।

इसी बीच, डीएम राधिका शर्मा वहां पहुंचीं। उनकी तेज नजरों ने सच्चाई भांप ली। उन्होंने पूरी स्थिति समझी, चेक की जांच करवाई – चेक असली था, व्यापारी के खाते में रकम भी थी। राधिका शर्मा ने बैंक मैनेजर, पुलिस वालों और गार्ड को फटकार लगाई – “गरीब होना कोई अपराध नहीं! न्याय सबका अधिकार है।”

उन्होंने तुरंत चेक क्लियर करवाया, आरव को पैसे दिलवाए और उसकी बहन को अस्पताल भिजवाया। बैंक मैनेजर, कैशियर, गार्ड और तीनों पुलिस वालों पर कार्रवाई हुई – निलंबन, विभागीय जांच और नौकरी से निकालना।

इस घटना ने पूरे शहर को हिला दिया। लोगों ने जाना कि भेदभाव की कोई जगह नहीं है, और न्याय अमीर-गरीब सभी का हक है। डीएम राधिका शर्मा की ईमानदारी और इंसानियत ने एक मासूम की जिंदगी बदल दी।

सीख:

गरीबी अपराध नहीं है।
न्याय सबका अधिकार है।
समाज की जिम्मेदारी है कि हर मासूम को इंसाफ मिले।
सच्चा अफसर वही है, जो हालात से नहीं, इंसानियत से फैसले लेता है।

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मिलते हैं एक नई प्रेरणादायक कहानी में!