कहानी: हरि ओम शर्मा की नई शुरुआत

परिचय

दिल्ली की गर्मी अपने चरम पर थी। जून का महीना था और चांदनी चौक की गलियों में उमस और भीड़ एक साथ थकाने वाली थी। तंग सड़कों पर स्कूटर, ठेले, रिक्शे और पैदल लोग आपस में टकराते झुंझलाते आगे बढ़ रहे थे। इसी भीड़ के बीच एक थकान में डूबा बूढ़ा व्यक्ति अपने फटे हुए कुर्ते और मैले लुंगी में एक मिठाई की दुकान के सामने खड़ा था। यह दुकान थी “लता स्वीट्स एंड स्नैक्स”, इलाके की सबसे महंगी और नामी दुकान, जहां रईस परिवारों की गाड़ियां रुकती थीं।

बूढ़े की आंखें सीधे समोसों पर टिकी थीं। होठ सूखे थे, लेकिन नजरों में एक चमक थी, शायद भूख की, शायद कुछ और गहरी। तभी अंदर से एक कड़ी आवाज आई, “अबे हट, यहां से गंध फैलाएगा क्या?” दुकान की मालकिन, लता, उम्र 55 के आसपास, भारी मेकअप और सुनहरी चूड़ियों से लदी, कड़ी निगाहों से देख रही थी। “तेरे जैसे लोगों से ही तो ग्राहक डरते हैं। चल भाग यहां से, वरना पुलिस बुला लूंगी।”

हरि ओम की कहानी

बूढ़ा कुछ बोलने ही वाला था कि खांसते खांसते दोहरा हो गया। उसके चेहरे से पसीना टपक रहा था। सांसें भारी हो चुकी थीं। तभी सड़क के उस पार से एक युवती दौड़ती हुई आई। “बस कीजिए, मैडम! इंसानियत भी कोई चीज होती है। इतनी गर्मी में अगर कोई बूढ़ा आदमी खड़ा है तो क्या वह चुराने आया है?” यह थी अन्या राव, उम्र 25, एक स्थानीय कपड़े की फैक्ट्री में काम करती थी। उसकी साड़ी हल्की फटी हुई थी लेकिन साफ, चेहरा थका हुआ लेकिन दृढ़।

अन्या ने बिना हिचकिचाहट बूढ़े का हाथ पकड़ा और धीरे-धीरे उसे सड़क के किनारे बनी एक बेंच की ओर ले गई। भीड़ छंटने लगी, और दुकान वाली बड़बड़ाते हुए अंदर चली गई। “बाबा, पानी लीजिए,” अन्य ने अपने झोले से पानी की बोतल निकाली। बूढ़े ने कांपते हाथों से बोतल ली और छोटी-छोटी चुस्कियों में पीने लगा। चेहरे पर एक संतोष की रेखा उभर आई।

“आपका नाम क्या है?” अन्या ने पूछा। “बाबा, मैं हरि ओम शर्मा,” उन्होंने धीमी आवाज में कहा। “कोई घर नहीं है आपका?” “था, बहुत समय पहले,” फिर चुप्पी। अन्या थोड़ी देर उसे देखती रही। फिर बोली, “मेरे पास ज्यादा नहीं है, लेकिन मेरा घर पास ही है। मां है, छोटा भाई है रोहन। अगर चाहें तो कुछ दिन हमारे साथ रह सकते हैं।”

बूढ़े ने कुछ पल उसकी ओर देखा। आंखों में जैसे कुछ डूबा हुआ था। फिर धीरे से सिर हिलाया। राजघाट कॉलोनी दिल्ली का एक पुराना, थोड़ा जर्जर इलाका, लेकिन मोहल्ले में अपनापन था। वहां एक छोटा सा दो कमरे का घर था अन्या का। दीवारें धूप से झुलसी हुई, छत टीन की। अंदर प्रवेश करते ही सावित्री अम्मा सामने मिलीं। सफेद साड़ी पहने, माथे पर लाल बिंदी और हाथों में आटे से सनी चूड़ियां।

“कौन है बेटी?” मां ने पूछा। “मां, यह हरि ओम बाबा है। गर्मी में सड़क पर बेहोश हो रहे थे। कोई सुनने को तैयार नहीं था। मैंने सोचा कुछ दिन हमारे साथ रह लें।” सावित्री अम्मा कुछ क्षण चुप रहीं। फिर सिर हिलाया, “ठीक है। भूख लगी है बाबा। खाना बना रही हूं। हाथ मुंह धो लीजिए पहले।”

नए रिश्ते की शुरुआत

रोहन भी बाहर निकला। पतला दुबला, चश्मा लगाए। 12वीं का छात्र। “दीदी, यह कौन है?” “हमारे नए मेहमान,” अन्या ने कहा। बाबा मुस्कुराए, पहली बार पूरे चेहरे से। रोहन ने हाथ जोड़कर नमस्ते किया। “बाबा, आप आराम कीजिए। मैं पंखा ठीक कर देता हूं।”

हरि ओम बाबा उस रात बिस्तर पर नहीं लेटे। वह बरामदे में बैठे रहे, हाथ में एक पुरानी तस्वीर लिए। उस तस्वीर में एक महिला थी, जिसकी गोद में एक नवजात बच्चा था। पीछे एक आलीशान बंगला था, जिसके नाम की पट्टी पढ़ी जा सकती थी “शर्मा भवन, ग्रेटर कैलाश, दिल्ली।” उनके चेहरे से आंसू टपक रहे थे। उन्होंने तस्वीर को छाती से लगा लिया।

अन्या ने खिड़की से यह सब देखा। वह कुछ कहने वाली थी पर रुक गई। उस रात उसे पहली बार एहसास हुआ कि इस बूढ़े की खामोशी के पीछे बहुत गहरी कहानी छिपी है। राजघाट की उस छोटी सी गली में जीवन भले ही सादा था, पर दिलों में अपनापन और रिश्तों में गर्माहट थी। हरि ओम बाबा जो कभी एक आलीशान जीवन के स्वामी रहे थे, अब उसी गली के एक साधारण से घर में अपने जीवन के सबसे शांत लेकिन सबसे सच्चे दिनों की शुरुआत कर रहे थे।

सावित्री अम्मा ने उनके लिए घर के एक कोने में पुरानी लकड़ी की चारपाई बिछा दी। उस पर एक पतला गद्दा और मुलायम सी रजाई रख दी गई। कमरे में पंखा था जो धीमी आवाज में घूमता था, पर उसमें एक लोरी सी थी। एक अपनापन जो एयर कंडीशन के ठंडेपन में कभी महसूस नहीं होता। पहली सुबह हरि ओम जल्दी उठ गए। बरामदे में बैठकर उन्होंने उगते सूरज को देखा। ऐसा सूरज जिसे उन्होंने सालों तक शीशे की खिड़की से देखा था। अब पहली बार उसकी गर्माहट को महसूस किया।

परिवार का नया स्वरूप

जब अन्या उठी तो वह उन्हें तुलसी में पानी डालते हुए देख हैरान हुई। “बाबा, आप इतनी सुबह जाग गए?” “बेटी, नींद अब वैसी नहीं आती। पर यह सुबह बड़ी सुकून देती है।” रसोई से खटरपटर की आवाज आने लगी। सावित्री अम्मा आलू परांठा बना रही थी। “बाबा, चाय में चीनी कम लेंगे या ज्यादा?” “जो आप देती हैं, वही अमृत लगता है,” उन्होंने मुस्कुराकर कहा।

नाश्ते के बाद रोहन कॉलेज के लिए निकलने को तैयार हुआ। जाते-जाते उसने हरि ओम को प्रणाम किया और कहा, “बाबा, आज मैथ्स का टेस्ट है। थोड़ा डर लग रहा है।” “डर मत बेटा। सिर्फ सवालों को दोस्त समझकर हल करना सीख। और अगर चाहो तो रात को मैं पढ़ा सकता हूं।” बाबा ने कहा। रोहन पहले चौंका, फिर बोला, “आप मैथ्स? कभी सारा बिजनेस कैलकुलेशन खुद करते थे।”

बेटा, रोहन मुस्कुराया। “तो आज से आप मेरे ट्यूटर हैं।” दिन चढ़ता गया। अन्या फैक्ट्री चली गई और बाबा ने समय बिताया। घर के छोटे-छोटे कामों में, पंखे की सफाई, पुरानी अलमारी का ताला ठीक करना और आंगन में उगी तुलसी को थोड़ा खाद डालना। दोपहर में सावित्री अम्मा ने उन्हें मूंग की दाल और चावल परोसे।

रिश्तों की मजबूती

जब उन्होंने पहला कौर मुंह में डाला, कुछ पल आंखें बंद रखी। बहुत दिन हो गए थे, ऐसा खाना खाए। यह सिर्फ दाल-चावल नहीं बेटी, यह मां की ममता है। शाम को अन्या वापस आई। थकी हुई लेकिन मुस्कुराती हुई। बाबा ने दरवाजा खोला और जैसे घर की रोशनी फिर से लौट आई हो। “आज काम कैसा रहा?” “थका हूं लेकिन मन हल्का है क्योंकि यहां घर है और आप हैं।”

रात को रोहन और बाबा ने साथ बैठकर गणित के सवाल हल किए। बाबा ने उसे सिर्फ उत्तर नहीं बताए, बल्कि सोचने का तरीका सिखाया। “बेटा, जिंदगी भी सवालों की तरह होती है। कभी सरल, कभी जटिल। पर अगर ध्यान से देखो, हर सवाल का एक हल होता है।” धीरे-धीरे पूरे मोहल्ले में खबर फैलने लगी कि राव परिवार ने एक भूखे बूढ़े को सहारा दिया है।

कुछ ने तारीफ की, कुछ ने कानाफूसी की। मगर सावित्री अम्मा ने एक दिन पड़ोसन से साफ शब्दों में कह दिया, “हमारे घर में जो आता है, वह मेहमान नहीं भगवान होता है।” हरि ओम बाबा अब मोहल्ले के बच्चों में मशहूर हो गए थे। कोई उन्हें “बाबाजी” कहता, कोई “दादू”। वे सबको कहानियां सुनाते, कभी परियों की, कभी अपने जीवन की।

हालांकि पहचान छिपाकर, लेकिन सबसे प्यारी कहानी थी एक राजा जो अपनी बेटी के बिना सब कुछ भूल गया था। एक शाम जब पूरा घर खाने की मेज पर बैठा था, बाबा ने अचानक पूछा, “तुम लोग रोज एक साथ खाना खाते हो?” अन्या ने मुस्कुराकर कहा, “हां, यही तो दिन का सबसे अच्छा हिस्सा होता है।”

हरि ओम का अतीत

बाबा की आंखें नम हो गईं। “बहुत साल हो गए, किसी के साथ बैठकर खाना खाए। और किसी ने बिना मतलब के साथ बैठाया हो।” अचानक एक दिन बाबा थोड़े बीमार लगने लगे। खांसी बढ़ गई थी। चलना भी मुश्किल हो रहा था। रोहन उन्हें डॉक्टर के पास ले गया। “उन्हें आराम की जरूरत है। उम्र के हिसाब से दिल थोड़ा कमजोर है,” डॉक्टर ने कहा।

घर लौटते समय बाबा ने अपनी जेब से एक छोटी सी डायरी निकाली और उसमें कुछ लिखा। उस पन्ने पर सिर्फ एक वाक्य था: “मेरे जीवन की दूसरी शुरुआत इस छोटे से घर में हुई, जहां फिर से किसी ने मुझे नाम से नहीं, प्यार से पहचाना।”

राजघाट की गलियों में अब हरि ओम बाबा के नाम से कोई अजनबी नहीं था। मोहल्ले के बच्चे उनकी कहानियों के दीवाने थे और घर में वे जैसे एक दादा बन चुके थे। लेकिन अन्या को यह बात खटकती थी कि बाबा अक्सर रात को देर तक जागते रहते। बरामदे में बैठकर एक तस्वीर को अपलक निहारते रहते।

एक रात जब बिजली चली गई और सब अंधेरे में थे। अन्या पानी लेने के लिए उठी। चलते-चलते उसकी नजर बरामदे में बैठे बाबा पर पड़ी। हल्के चांदनी में उनका चेहरा गहरा और थका हुआ लग रहा था। उनके हाथों में वही पुरानी तस्वीर थी। एक जवान औरत की गोद में नवजात बच्चा, पीछे सफेद बंगला और उस पर लिखा नाम “शर्मा भवन”।

अन्या धीरे से उनके पास गई। “बाबा, आप रोज इस तस्वीर को इतने ध्यान से क्यों देखते हैं?” हरिओम ने सिर उठाकर उसकी तरफ देखा। कुछ क्षण चुप रहने के बाद बोले, “यह मेरी बेटी थी, माधवी, और यह बच्चा उसका बेटा, मेरा नाती। पर अब वे दोनों नहीं हैं।”

अतीत का सामना

अन्या ठिठक गई। “क्या हुआ था उन्हें?” हरि ओम की आवाज कांपने लगी। “एक कार एक्सीडेंट में सब कुछ चला गया। मैं सिर्फ एक घंटे लेट था अस्पताल पहुंचने में, और उस 1 घंटे ने सब बदल दिया।”

उन्होंने तस्वीर को और कसकर सीने से लगा लिया। “मैंने पैसा कमाया, इज्जत कमाई, लेकिन बेटी को नहीं बचा पाया। उसके जाने के बाद घर में घुटता रहा। वहां सिर्फ दीवारें थीं। कोई आवाज नहीं, कोई सांस नहीं।”

अन्या चुपचाप बैठ गई। कुछ भी कहना व्यर्थ लगा। फिर उन्होंने कहा, “जब मैंने अपने सारे अंगरक्षकों को मना करके निकल गया, फटे कपड़े पहने। सिर्फ एक लाठी और यह तस्वीर लेकर। कई लोगों ने भगा दिया। कुछ ने मारा भी। पर उस दिन तुमने मुझे बैठने दिया। पानी दिया। बिना कुछ पूछे अपने घर ले आई।”

नई जिंदगी की शुरुआत

राजघाट की उस छोटी सी गली में जीवन भले ही सादा था, पर दिलों में अपनापन और रिश्तों में गर्माहट थी। हरि ओम बाबा जो कभी एक आलीशान जीवन के स्वामी रहे थे, अब उसी गली के एक साधारण से घर में अपने जीवन के सबसे शांत लेकिन सबसे सच्चे दिनों की शुरुआत कर रहे थे।

सावित्री अम्मा ने उनके लिए घर के एक कोने में पुरानी लकड़ी की चारपाई बिछा दी। उस पर एक पतला गद्दा और मुलायम सी रजाई रख दी गई। कमरे में पंखा था जो धीमी आवाज में घूमता था, पर उसमें एक लोरी सी थी। एक अपनापन जो एयर कंडीशन के ठंडेपन में कभी महसूस नहीं होता।

पहली सुबह हरि ओम जल्दी उठ गए। बरामदे में बैठकर उन्होंने उगते सूरज को देखा। ऐसा सूरज जिसे उन्होंने सालों तक शीशे की खिड़की से देखा था। अब पहली बार उसकी गर्माहट को महसूस किया। जब अन्या उठी तो वह उन्हें तुलसी में पानी डालते हुए देख हैरान हुई।

“बाबा, आप इतनी सुबह जाग गए?” “बेटी, नींद अब वैसी नहीं आती। पर यह सुबह बड़ी सुकून देती है।” रसोई से खटरपटर की आवाज आने लगी। सावित्री अम्मा आलू परांठा बना रही थी। “बाबा, चाय में चीनी कम लेंगे या ज्यादा?” “जो आप देती हैं, वही अमृत लगता है,” उन्होंने मुस्कुराकर कहा।

परिवार के साथ

नाश्ते के बाद रोहन कॉलेज के लिए निकलने को तैयार हुआ। जाते-जाते उसने हरि ओम को प्रणाम किया और कहा, “बाबा, आज मैथ्स का टेस्ट है। थोड़ा डर लग रहा है।” “डर मत बेटा। सिर्फ सवालों को दोस्त समझकर हल करना सीख। और अगर चाहो तो रात को मैं पढ़ा सकता हूं।” बाबा ने कहा।

रोहन पहले चौंका, फिर बोला, “आप मैथ्स? कभी सारा बिजनेस कैलकुलेशन खुद करते थे।” “बेटा,” रोहन मुस्कुराया। “तो आज से आप मेरे ट्यूटर हैं।” दिन चढ़ता गया। अन्या फैक्ट्री चली गई और बाबा ने समय बिताया। घर के छोटे-छोटे कामों में, पंखे की सफाई, पुरानी अलमारी का ताला ठीक करना और आंगन में उगी तुलसी को थोड़ा खाद डालना।

दोपर में सावित्री अम्मा ने उन्हें मूंग की दाल और चावल परोसे। जब उन्होंने पहला कौर मुंह में डाला, कुछ पल आंखें बंद रखी। बहुत दिन हो गए थे, ऐसा खाना खाए। यह सिर्फ दाल-चावल नहीं बेटी, यह मां की ममता है। शाम को अन्या वापस आई। थकी हुई लेकिन मुस्कुराती हुई।

बाबा ने दरवाजा खोला और जैसे घर की रोशनी फिर से लौट आई हो। “आज काम कैसा रहा?” “थका हूं लेकिन मन हल्का है क्योंकि यहां घर है और आप हैं।” रात को रोहन और बाबा ने साथ बैठकर गणित के सवाल हल किए। बाबा ने उसे सिर्फ उत्तर नहीं बताए, बल्कि सोचने का तरीका सिखाया।

“बेटा, जिंदगी भी सवालों की तरह होती है। कभी सरल, कभी जटिल। पर अगर ध्यान से देखो, हर सवाल का एक हल होता है।” धीरे-धीरे पूरे मोहल्ले में खबर फैलने लगी कि राव परिवार ने एक भूखे बूढ़े को सहारा दिया है। कुछ ने तारीफ की, कुछ ने कानाफूसी की।

समाज की प्रतिक्रिया

लेकिन सावित्री अम्मा ने एक दिन पड़ोसन से साफ शब्दों में कह दिया, “हमारे घर में जो आता है, वह मेहमान नहीं भगवान होता है।” हरि ओम बाबा अब मोहल्ले के बच्चों में मशहूर हो गए थे। कोई उन्हें “बाबाजी” कहता, कोई “दादू”। वे सबको कहानियां सुनाते, कभी परियों की, कभी अपने जीवन की।

हालांकि पहचान छिपाकर, लेकिन सबसे प्यारी कहानी थी एक राजा जो अपनी बेटी के बिना सब कुछ भूल गया था। एक शाम जब पूरा घर खाने की मेज पर बैठा था, बाबा ने अचानक पूछा, “तुम लोग रोज एक साथ खाना खाते हो?” अन्या ने मुस्कुराकर कहा, “हां, यही तो दिन का सबसे अच्छा हिस्सा होता है।”

बाबा की आंखें नम हो गईं। “बहुत साल हो गए, किसी के साथ बैठकर खाना खाए। और किसी ने बिना मतलब के साथ बैठाया हो।” अचानक एक दिन बाबा थोड़े बीमार लगने लगे। खांसी बढ़ गई थी। चलना भी मुश्किल हो रहा था। रोहन उन्हें डॉक्टर के पास ले गया। “उन्हें आराम की जरूरत है। उम्र के हिसाब से दिल थोड़ा कमजोर है,” डॉक्टर ने कहा।

घर लौटते समय बाबा ने अपनी जेब से एक छोटी सी डायरी निकाली और उसमें कुछ लिखा। उस पन्ने पर सिर्फ एक वाक्य था: “मेरे जीवन की दूसरी शुरुआत इस छोटे से घर में हुई, जहां फिर से किसी ने मुझे नाम से नहीं, प्यार से पहचाना।”

नई पहचान

राजघाट की गलियों में अब हरि ओम बाबा के नाम से कोई अजनबी नहीं था। मोहल्ले के बच्चे उनकी कहानियों के दीवाने थे और घर में वे जैसे एक दादा बन चुके थे। लेकिन अन्या को यह बात खटकती थी कि बाबा अक्सर रात को देर तक जागते रहते। बरामदे में बैठकर एक तस्वीर को अपलक निहारते रहते।

एक रात जब बिजली चली गई और सब अंधेरे में थे। अन्या पानी लेने के लिए उठी। चलते-चलते उसकी नजर बरामदे में बैठे बाबा पर पड़ी। हल्के चांदनी में उनका चेहरा गहरा और थका हुआ लग रहा था। उनके हाथों में वही पुरानी तस्वीर थी। एक जवान औरत की गोद में नवजात बच्चा, पीछे सफेद बंगला और उस पर लिखा नाम “शर्मा भवन”।

अन्या धीरे से उनके पास गई। “बाबा, आप रोज इस तस्वीर को इतने ध्यान से क्यों देखते हैं?” हरिओम ने सिर उठाकर उसकी तरफ देखा। कुछ क्षण चुप रहने के बाद बोले, “यह मेरी बेटी थी, माधवी, और यह बच्चा उसका बेटा, मेरा नाती। पर अब वे दोनों नहीं हैं।”

अतीत का सामना

अन्या ठिठक गई। “क्या हुआ था उन्हें?” हरि ओम की आवाज कांपने लगी। “एक कार एक्सीडेंट में सब कुछ चला गया। मैं सिर्फ एक घंटे लेट था अस्पताल पहुंचने में, और उस 1 घंटे ने सब बदल दिया।”

उन्होंने तस्वीर को और कसकर सीने से लगा लिया। “मैंने पैसा कमाया, इज्जत कमाई, लेकिन बेटी को नहीं बचा पाया। उसके जाने के बाद घर में घुटता रहा। वहां सिर्फ दीवारें थीं। कोई आवाज नहीं, कोई सांस नहीं।”

अन्या चुपचाप बैठ गई। कुछ भी कहना व्यर्थ लगा। फिर उन्होंने कहा, “जब मैंने अपने सारे अंगरक्षकों को मना करके निकल गया, फटे कपड़े पहने। सिर्फ एक लाठी और यह तस्वीर लेकर। कई लोगों ने भगा दिया। कुछ ने मारा भी। पर उस दिन तुमने मुझे बैठने दिया। पानी दिया। बिना कुछ पूछे अपने घर ले आई।”

नई जिंदगी की शुरुआत

राजघाट की उस छोटी सी गली में जीवन भले ही सादा था, पर दिलों में अपनापन और रिश्तों में गर्माहट थी। हरि ओम बाबा जो कभी एक आलीशान जीवन के स्वामी रहे थे, अब उसी गली के एक साधारण से घर में अपने जीवन के सबसे शांत लेकिन सबसे सच्चे दिनों की शुरुआत कर रहे थे।

सावित्री अम्मा ने उनके लिए घर के एक कोने में पुरानी लकड़ी की चारपाई बिछा दी। उस पर एक पतला गद्दा और मुलायम सी रजाई रख दी गई। कमरे में पंखा था जो धीमी आवाज में घूमता था, पर उसमें एक लोरी सी थी। एक अपनापन जो एयर कंडीशन के ठंडेपन में कभी महसूस नहीं होता।

पहली सुबह हरि ओम जल्दी उठ गए। बरामदे में बैठकर उन्होंने उगते सूरज को देखा। ऐसा सूरज जिसे उन्होंने सालों तक शीशे की खिड़की से देखा था। अब पहली बार उसकी गर्माहट को महसूस किया। जब अन्या उठी तो वह उन्हें तुलसी में पानी डालते हुए देख हैरान हुई।

“बाबा, आप इतनी सुबह जाग गए?” “बेटी, नींद अब वैसी नहीं आती। पर यह सुबह बड़ी सुकून देती है।” रसोई से खटरपटर की आवाज आने लगी। सावित्री अम्मा आलू परांठा बना रही थी। “बाबा, चाय में चीनी कम लेंगे या ज्यादा?” “जो आप देती हैं, वही अमृत लगता है,” उन्होंने मुस्कुराकर कहा।

परिवार के साथ

नाश्ते के बाद रोहन कॉलेज के लिए निकलने को तैयार हुआ। जाते-जाते उसने हरि ओम को प्रणाम किया और कहा, “बाबा, आज मैथ्स का टेस्ट है। थोड़ा डर लग रहा है।” “डर मत बेटा। सिर्फ सवालों को दोस्त समझकर हल करना सीख। और अगर चाहो तो रात को मैं पढ़ा सकता हूं।” बाबा ने कहा।

रोहन पहले चौंका, फिर बोला, “आप मैथ्स? कभी सारा बिजनेस कैलकुलेशन खुद करते थे।” “बेटा,” रोहन मुस्कुराया। “तो आज से आप मेरे ट्यूटर हैं।” दिन चढ़ता गया। अन्या फैक्ट्री चली गई और बाबा ने समय बिताया। घर के छोटे-छोटे कामों में, पंखे की सफाई, पुरानी अलमारी का ताला ठीक करना और आंगन में उगी तुलसी को थोड़ा खाद डालना।

दोपर में सावित्री अम्मा ने उन्हें मूंग की दाल और चावल परोसे। जब उन्होंने पहला कौर मुंह में डाला, कुछ पल आंखें बंद रखी। बहुत दिन हो गए थे, ऐसा खाना खाए। यह सिर्फ दाल-चावल नहीं बेटी, यह मां की ममता है। शाम को अन्या वापस आई। थकी हुई लेकिन मुस्कुराती हुई।

बाबा ने दरवाजा खोला और जैसे घर की रोशनी फिर से लौट आई हो। “आज काम कैसा रहा?” “थका हूं लेकिन मन हल्का है क्योंकि यहां घर है और आप हैं।” रात को रोहन और बाबा ने साथ बैठकर गणित के सवाल हल किए। बाबा ने उसे सिर्फ उत्तर नहीं बताए, बल्कि सोचने का तरीका सिखाया।

“बेटा, जिंदगी भी सवालों की तरह होती है। कभी सरल, कभी जटिल। पर अगर ध्यान से देखो, हर सवाल का एक हल होता है।” धीरे-धीरे पूरे मोहल्ले में खबर फैलने लगी कि राव परिवार ने एक भूखे बूढ़े को सहारा दिया है। कुछ ने तारीफ की, कुछ ने कानाफूसी की।

समाज की प्रतिक्रिया

लेकिन सावित्री अम्मा ने एक दिन पड़ोसन से साफ शब्दों में कह दिया, “हमारे घर में जो आता है, वह मेहमान नहीं भगवान होता है।” हरि ओम बाबा अब मोहल्ले के बच्चों में मशहूर हो गए थे। कोई उन्हें “बाबाजी” कहता, कोई “दादू”। वे सबको कहानियां सुनाते, कभी परियों की, कभी अपने जीवन की।

हालांकि पहचान छिपाकर, लेकिन सबसे प्यारी कहानी थी एक राजा जो अपनी बेटी के बिना सब कुछ भूल गया था। एक शाम जब पूरा घर खाने की मेज पर बैठा था, बाबा ने अचानक पूछा, “तुम लोग रोज एक साथ खाना खाते हो?” अन्या ने मुस्कुराकर कहा, “हां, यही तो दिन का सबसे अच्छा हिस्सा होता है।”

हरि ओम का अतीत

बाबा की आंखें नम हो गईं। “बहुत साल हो गए, किसी के साथ बैठकर खाना खाए। और किसी ने बिना मतलब के साथ बैठाया हो।” अचानक एक दिन बाबा थोड़े बीमार लगने लगे। खांसी बढ़ गई थी। चलना भी मुश्किल हो रहा था। रोहन उन्हें डॉक्टर के पास ले गया। “उन्हें आराम की जरूरत है। उम्र के हिसाब से दिल थोड़ा कमजोर है,” डॉक्टर ने कहा।

घर लौटते समय बाबा ने अपनी जेब से एक छोटी सी डायरी निकाली और उसमें कुछ लिखा। उस पन्ने पर सिर्फ एक वाक्य था: “मेरे जीवन की दूसरी शुरुआत इस छोटे से घर में हुई, जहां फिर से किसी ने मुझे नाम से नहीं, प्यार से पहचाना।”

नई पहचान

राजघाट की गलियों में अब हरि ओम बाबा के नाम से कोई अजनबी नहीं था। मोहल्ले के बच्चे उनकी कहानियों के दीवाने थे और घर में वे जैसे एक दादा बन चुके थे। लेकिन अन्या को यह बात खटकती थी कि बाबा अक्सर रात को देर तक जागते रहते। बरामदे में बैठकर एक तस्वीर को अपलक निहारते रहते।

एक रात जब बिजली चली गई और सब अंधेरे में थे। अन्या पानी लेने के लिए उठी। चलते-चलते उसकी नजर बरामदे में बैठे बाबा पर पड़ी। हल्के चांदनी में उनका चेहरा गहरा और थका हुआ लग रहा था। उनके हाथों में वही पुरानी तस्वीर थी। एक जवान औरत की गोद में नवजात बच्चा, पीछे सफेद बंगला और उस पर लिखा नाम “शर्मा भवन”।

अन्या धीरे से उनके पास गई। “बाबा, आप रोज इस तस्वीर को इतने ध्यान से क्यों देखते हैं?” हरिओम ने सिर उठाकर उसकी तरफ देखा। कुछ क्षण चुप रहने के बाद बोले, “यह मेरी बेटी थी, माधवी, और यह बच्चा उसका बेटा, मेरा नाती। पर अब वे दोनों नहीं हैं।”

अतीत का सामना

अन्या ठिठक गई। “क्या हुआ था उन्हें?” हरि ओम की आवाज कांपने लगी। “एक कार एक्सीडेंट में सब कुछ चला गया। मैं सिर्फ एक घंटे लेट था अस्पताल पहुंचने में, और उस 1 घंटे ने सब बदल दिया।”

उन्होंने तस्वीर को और कसकर सीने से लगा लिया। “मैंने पैसा कमाया, इज्जत कमाई, लेकिन बेटी को नहीं बचा पाया। उसके जाने के बाद घर में घुटता रहा। वहां सिर्फ दीवारें थीं। कोई आवाज नहीं, कोई सांस नहीं।”

अन्या चुपचाप बैठ गई। कुछ भी कहना व्यर्थ लगा। फिर उन्होंने कहा, “जब मैंने अपने सारे अंगरक्षकों को मना करके निकल गया, फटे कपड़े पहने। सिर्फ एक लाठी और यह तस्वीर लेकर। कई लोगों ने भगा दिया। कुछ ने मारा भी। पर उस दिन तुमने मुझे बैठने दिया। पानी दिया। बिना कुछ पूछे अपने घर ले आई।”

नई जिंदगी की शुरुआत

राजघाट की उस छोटी सी गली में जीवन भले ही सादा था, पर दिलों में अपनापन और रिश्तों में गर्माहट थी। हरि ओम बाबा जो कभी एक आलीशान जीवन के स्वामी रहे थे, अब उसी गली के एक साधारण से घर में अपने जीवन के सबसे शांत लेकिन सबसे सच्चे दिनों की शुरुआत कर रहे थे।

सावित्री अम्मा ने उनके लिए घर के एक कोने में पुरानी लकड़ी की चारपाई बिछा दी। उस पर एक पतला गद्दा और मुलायम सी रजाई रख दी गई। कमरे में पंखा था जो धीमी आवाज में घूमता था, पर उसमें एक लोरी सी थी। एक अपनापन जो एयर कंडीशन के ठंडेपन में कभी महसूस नहीं होता।

पहली सुबह हरि ओम जल्दी उठ गए। बरामदे में बैठकर उन्होंने उगते सूरज को देखा। ऐसा सूरज जिसे उन्होंने सालों तक शीशे की खिड़की से देखा था। अब पहली बार उसकी गर्माहट को महसूस किया। जब अन्या उठी तो वह उन्हें तुलसी में पानी डालते हुए देख हैरान हुई।

“बाबा, आप इतनी सुबह जाग गए?” “बेटी, नींद अब वैसी नहीं आती। पर यह सुबह बड़ी सुकून देती है।” रसोई से खटरपटर की आवाज आने लगी। सावित्री अम्मा आलू परांठा बना रही थी। “बाबा, चाय में चीनी कम लेंगे या ज्यादा?” “जो आप देती हैं, वही अमृत लगता है,” उन्होंने मुस्कुराकर कहा।

परिवार के साथ

नाश्ते के बाद रोहन कॉलेज के लिए निकलने को तैयार हुआ। जाते-जाते उसने हरि ओम को प्रणाम किया और कहा, “बाबा, आज मैथ्स का टेस्ट है। थोड़ा डर लग रहा है।” “डर मत बेटा। सिर्फ सवालों को दोस्त समझकर हल करना सीख। और अगर चाहो तो रात को मैं पढ़ा सकता हूं।” बाबा ने कहा।

रोहन पहले चौंका, फिर बोला, “आप मैथ्स? कभी सारा बिजनेस कैलकुलेशन खुद करते थे।” “बेटा,” रोहन मुस्कुराया। “तो आज से आप मेरे ट्यूटर हैं।” दिन चढ़ता गया। अन्या फैक्ट्री चली गई और बाबा ने समय बिताया। घर के छोटे-छोटे कामों में, पंखे की सफाई, पुरानी अलमारी का ताला ठीक करना और आंगन में उगी तुलसी को थोड़ा खाद डालना।

दोपर में सावित्री अम्मा ने उन्हें मूंग की दाल और चावल परोसे। जब उन्होंने पहला कौर मुंह में डाला, कुछ पल आंखें बंद रखी। बहुत दिन हो गए थे, ऐसा खाना खाए। यह सिर्फ दाल-चावल नहीं बेटी, यह मां की ममता है। शाम को अन्या वापस आई। थकी हुई लेकिन मुस्कुराती हुई।

बाबा ने दरवाजा खोला और जैसे घर की रोशनी फिर से लौट आई हो। “आज काम कैसा रहा?” “थका हूं लेकिन मन हल्का है क्योंकि यहां घर है और आप हैं।” रात को रोहन और बाबा ने साथ बैठकर गणित के सवाल हल किए। बाबा ने उसे सिर्फ उत्तर नहीं बताए, बल्कि सोचने का तरीका सिखाया।

“बेटा, जिंदगी भी सवालों की तरह होती है। कभी सरल, कभी जटिल। पर अगर ध्यान से देखो, हर सवाल का एक हल होता है।” धीरे-धीरे पूरे मोहल्ले में खबर फैलने लगी कि राव परिवार ने एक भूखे बूढ़े को सहारा दिया है। कुछ ने तारीफ की, कुछ ने कानाफूसी की।

समाज की प्रतिक्रिया

लेकिन सावित्री अम्मा ने एक दिन पड़ोसन से साफ शब्दों में कह दिया, “हमारे घर में जो आता है, वह मेहमान नहीं भगवान होता है।” हरि ओम बाबा अब मोहल्ले के बच्चों में मशहूर हो गए थे। कोई उन्हें “बाबाजी” कहता, कोई “दादू”। वे सबको कहानियां सुनाते, कभी परियों की, कभी अपने जीवन की।

हालांकि पहचान छिपाकर, लेकिन सबसे प्यारी कहानी थी एक राजा जो अपनी बेटी के बिना सब कुछ भूल गया था। एक शाम जब पूरा घर खाने की मेज पर बैठा था, बाबा ने अचानक पूछा, “तुम लोग रोज एक साथ खाना खाते हो?” अन्या ने मुस्कुराकर कहा, “हां, यही तो दिन का सबसे अच्छा हिस्सा होता है।”

हरि ओम का अतीत

बाबा की आंखें नम हो गईं। “बहुत साल हो गए, किसी के साथ बैठकर खाना खाए। और किसी ने बिना मतलब के साथ बैठाया हो।” अचानक एक दिन बाबा थोड़े बीमार लगने लगे। खांसी बढ़ गई थी। चलना भी मुश्किल हो रहा था। रोहन उन्हें डॉक्टर के पास ले गया। “उन्हें आराम की जरूरत है। उम्र के हिसाब से दिल थोड़ा कमजोर है,” डॉक्टर ने कहा।

घर लौटते समय बाबा ने अपनी जेब से एक छोटी सी डायरी निकाली और उसमें कुछ लिखा। उस पन्ने पर सिर्फ एक वाक्य था: “मेरे जीवन की दूसरी शुरुआत इस छोटे से घर में हुई, जहां फिर से किसी ने मुझे नाम से नहीं, प्यार से पहचाना।”

नई पहचान

राजघाट की गलियों में अब हरि ओम बाबा के नाम से कोई अजनबी नहीं था। मोहल्ले के बच्चे उनकी कहानियों के दीवाने थे और घर में वे जैसे एक दादा बन चुके थे। लेकिन अन्या को यह बात खटकती थी कि बाबा अक्सर रात को देर तक जागते रहते। बरामदे में बैठकर एक तस्वीर को अपलक निहारते रहते।

एक रात जब बिजली चली गई और सब अंधेरे में थे। अन्या पानी लेने के लिए उठी। चलते-चलते उसकी नजर बरामदे में बैठे बाबा पर पड़ी। हल्के चांदनी में उनका चेहरा गहरा और थका हुआ लग रहा था। उनके हाथों में वही पुरानी तस्वीर थी। एक जवान औरत की गोद में नवजात बच्चा, पीछे सफेद बंगला और उस पर लिखा नाम “शर्मा भवन”।

अन्या धीरे से उनके पास गई। “बाबा, आप रोज इस तस्वीर को इतने ध्यान से क्यों देखते हैं?” हरिओम ने सिर उठाकर उसकी तरफ देखा। कुछ क्षण चुप रहने के बाद बोले, “यह मेरी बेटी थी, माधवी, और यह बच्चा उसका बेटा, मेरा नाती। पर अब वे दोनों नहीं हैं।”

अतीत का सामना

अन्या ठिठक गई। “क्या हुआ था उन्हें?” हरि ओम की आवाज कांपने लगी। “एक कार एक्सीडेंट में सब कुछ चला गया। मैं सिर्फ एक घंटे लेट था अस्पताल पहुंचने में, और उस 1 घंटे ने सब बदल दिया।”

उन्होंने तस्वीर को और कसकर सीने से लगा लिया। “मैंने पैसा कमाया, इज्जत कमाई, लेकिन बेटी को नहीं बचा पाया। उसके जाने के बाद घर में घुटता रहा। वहां सिर्फ दीवारें थीं। कोई आवाज नहीं, कोई सांस नहीं।”

अन्या चुपचाप बैठ गई। कुछ भी कहना व्यर्थ लगा। फिर उन्होंने कहा, “जब मैंने अपने सारे अंगरक्षकों को मना करके निकल गया, फटे कपड़े पहने। सिर्फ एक लाठी और यह तस्वीर लेकर। कई लोगों ने भगा दिया। कुछ ने मारा भी। पर उस दिन तुमने मुझे बैठने दिया। पानी दिया। बिना कुछ पूछे अपने घर ले आई।”

नई जिंदगी की शुरुआत

राजघाट की उस छोटी सी गली में जीवन भले ही सादा था, पर दिलों में अपनापन और रिश्तों में गर्माहट थी। हरि ओम बाबा जो कभी एक आलीशान जीवन के स्वामी रहे थे, अब उसी गली के एक साधारण से घर में अपने जीवन के सबसे शांत लेकिन सबसे सच्चे दिनों की शुरुआत कर रहे थे।

सावित्री अम्मा ने उनके लिए घर के एक कोने में पुरानी लकड़ी की चारपाई बिछा दी। उस पर एक पतला गद्दा और मुलायम सी रजाई रख दी गई। कमरे में पंखा था जो धीमी आवाज में घूमता था, पर उसमें एक लोरी सी थी। एक अपनापन जो एयर कंडीशन के ठंडेपन में कभी महसूस नहीं होता।

पहली सुबह हरि ओम जल्दी उठ गए। बरामदे में बैठकर उन्होंने उगते सूरज को देखा। ऐसा सूरज जिसे उन्होंने सालों तक शीशे की खिड़की से देखा था। अब पहली बार उसकी गर्माहट को महसूस किया। जब अन्या उठ