Shaadi Mein Hua Dhoka | Patli Ladki Ke Badle Aayi Moti Ladki, Dekh Ke Dulha Hua Pareshan

नाजिया की जीत: दर्द, संघर्ष और सच्ची मोहब्बत की कहानी”

1. पहली रात का धोखा

खालिद की आंखों में आज एक अजीब सी चमक थी। दिल में एक मीठी बेचैनी थी, क्योंकि आज उसकी शादी की रात थी – वही रात जिसका वह बरसों से सपना देख रहा था। उसकी दुल्हन अनाया, गांव की सबसे सुंदर लड़की, आज उसकी बाहों में होगी। अनाया के लिए उसने अपने परिवार, दौलत और रुतबे का सहारा लिया था। रिश्ता तय करने में उसके पिता ने भारी मेहर, बड़े-बड़े वादे और लंबी बैठकों के बाद ही हामी भरी थी। शादी पूरे गांव में चर्चा का विषय बन गई थी।

लंबे थकाऊ दिन के बाद जब सारी रस्में पूरी हो गईं, खालिद अपने कमरे की तरफ बढ़ा। उसकी धड़कनें तेज थीं। कमरे में दुल्हन पलंग पर बैठी थी, घूंघट से चेहरा ढका हुआ। खालिद धीरे से पास गया, नरम आवाज में बोला – “आखिरकार मेरी अनाया…” लेकिन जैसे ही उसने घूंघट उठाया, उसका सांस गले में अटक गया। यह चेहरा अनाया का नहीं था! सामने बैठी लड़की नाजिया थी – अनाया की बड़ी बहन, भारी जिस्म वाली, बिल्कुल अनजान।

खालिद दो कदम पीछे हट गया, गुस्से में गरजा – “तुम कौन हो?” नाजिया की आंखों से मोतियों जैसे आंसू गिर रहे थे। कांपती आवाज में बोली, “मैं नाजिया हूं, अनाया की बड़ी बहन।” खालिद का गुस्सा भड़क उठा – “अनाया कहां है? मैंने उसका हाथ मांगा था!” नाजिया टूटती आवाज में बोली, “धोखा सिर्फ आपको नहीं मिला, मुझे भी मिला है। अनाया किसी और से मोहब्बत करती थी, एक गरीब लड़के से। जब आप दौलत और रुतबे के साथ आए, हमारे पिता को यह सौदा फायदेमंद लगा। अनाया ने इंकार किया, कहा वह मर जाएगी मगर आपके साथ निकाह नहीं करेगी। लेकिन किसी ने उसकी फरियाद नहीं सुनी। शादी से एक दिन पहले वह भाग गई अपने महबूब के साथ, एक खत छोड़ गई कि वो कभी वापस नहीं आएगी।”

खालिद को लगा जैसे जमीन उसके पांव से खिसक गई हो। उसने पूछा, “और तुम? तुमने क्यों हामी भरी?” नाजिया के आंसू तेज हो गए। “क्योंकि मैं भी कैद थी। पिता ने कहा, ‘तुम बड़ी हो, मोटी हो। तुम्हें कौन मांगेगा? यह हमारे खानदान का आखिरी मौका है।’ उन्होंने मुझे मजबूर किया कि मैं अनाया का लिबास पहनूं, उसकी जगह बैठूं और चुप रहूं।”

नाजिया ने सीधे उसकी आंखों में देखा। “मैं जानती हूं मैं वो नहीं जिसे आप चाहते थे। लेकिन मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था। अगर आपने मुझे वापस भेज दिया तो वह मुझे मार डालेंगे। मेरी इज्जत बचा लीजिए। अल्लाह आपको इसका सिला देगा। मैं आपकी बीवी नहीं, आपकी खादिमा बनकर रह लूंगी। बस मुझे पनाह दे दीजिए।”

कमरा खामोश हो गया। खालिद पत्थर की तरह खड़ा रहा। फिर उसकी आवाज आई, तेज और सख्त – “आज रात तुम इस कमरे से बाहर नहीं जाओगी। लेकिन खुश मत होना। समझ लो मैंने यह तुम्हारी खातिर नहीं किया। यह सब मैंने सिर्फ अपने लिए किया है। मैं पूरे गांव को यह तमाशा देखने नहीं दूंगा कि शादी की रात खालिद को कैसे धोखा मिला। तुमने कहा था नौकरानी बन जाऊंगी, तो बस वही समझो। लेकिन एक बात याद रखना, तुम मेरी बीवी कहलाओगी, पर मैं तुम्हें कभी अपनी बीवी नहीं मानूंगा।”

2. नई सुबह, नई जंग

सुबह की पहली किरण के साथ दरवाजा खुला। खालिद की मां रबाब नाश्ते की ट्रे लेकर कमरे में दाखिल हुई। उसने नाजिया को देखा, पहचान गई – “यह अनाया नहीं है, यह तो उसकी बड़ी बहन है। है ना?” खालिद ने तुरंत बात संभाल ली – “हां मां, यह नाजिया है, और यही मेरी पसंद है।” उसने नाजिया के कंधे पर हाथ रखा, “हमने अनाया का रिश्ता मांगा था, मगर मुझे मालूम हुआ कि वह अभी काबिल नहीं। मुझे एक समझदार, सलीकेदार औरत चाहिए थी और मुझे वह नाजिया में मिली।”

खालिद ने धोखे को फैसला बना दिया और खुद को दूरदर्शी इंसान साबित किया। रबाब ने लंबी सांस ली – “अच्छा किया मेरे बेटे। अक्ल मर्द का असली गहना है। हुस्न तो हवा की तरह बदलता है।” वह चली गई। खालिद दरवाजे तक गया, लेकिन जाते-जाते बोला – “गलतफहमी में मत रहना, मैंने यह सब तुम्हारी वजह से नहीं किया। मैंने अपना नाम बचाया है उस बदनामी से जो तुम लेकर आई हो। इस घर में रहोगी मगर एक नौकरानी की तरह, समझौते की बीवी नहीं।”

आंगन में रबाब खड़ी थी, चेहरा मुस्कान से खाली, आंखें चाकू जैसी नुकीली। “तो तुम हो वह समझदार लड़की।” लहजा तंज से लिपटा हुआ। “आज चाचा और मौसी तुम्हें देखने आएंगे। किसी चीज में कमी नहीं होनी चाहिए। रसोई, सफाई, बैठक की साज-सज्जा सब तुम्हारी जिम्मेदारी है।”

नाजिया के होंठ कांपे। यह उसकी शादी की पहली सुबह थी, जिस सुबह दुल्हन दुल्हन होती है, लेकिन वह समझ गई – रबाब बदला ले रही थी। रसोई में कदम रखते ही उसे अपना पुराना घर याद आया, जहां वह कभी काम के लिए हाथ नहीं उठाती थी। लेकिन आज उसके हाथ भी थे और मजबूरी भी। उसने चाकू उठाया, हाथ कांप रहे थे। प्याज की परतें गिर रही थी, आंसू साथ बहते जा रहे थे।

रबाब की आवाज तीर की तरह चली – “इस तरह चाकू पकड़ती हैं दुल्हनें या फिर यह भी कोई नाटक है ताकि काम से बच सको?” नाजिया घबरा गई। फिर आटा गूंथने लगी, पानी ज्यादा डाल दिया, आटा चिपचिपा हो गया। रबाब हंस पड़ी – “रोटी बनाना भी नहीं आता। तुम्हारे बाप ने तुम्हें कुछ सिखाया नहीं सिवाय इसके कि अच्छी अदाकारी से दूल्हा फंसाया जाए।”

नाजिया ने सिर्फ सुना, चुप रहकर टूटती रही, क्योंकि उसके पास बोलने का हक नहीं था। बस सहन करने का कर्ज था।

3. अपमान और मेहनत का सिलसिला

रबाब ने उसे झिड़कते हुए पीछे धकेला – “हटो रास्ते से, मैं खुद कर लूंगी। तुम जाओ और बैठक साफ कर दो। उस काम में तो दिमाग की जरूरत भी नहीं पड़ती।” नाजिया कांपती हुई रसोई से निकल गई। दोपहर ढलते-ढलते मेहमान आने शुरू हो गए। नाजिया धीरे-धीरे कॉफी की ट्रे उठाकर कमरे में दाखिल हुई। उसके कदम कांप रहे थे, सबकी निगाहें उसी पर टिकी थी।

फुसफुसाहटें हवा में तीरों की तरह चलने लगी – “यह वही है, सुना था खालिद तो उसकी खूबसूरती पर मरता है। यह तो उसकी मोटी बहन है।” और फिर खालिद की मौसी ने सबके सामने ताना मारा – “अच्छा दुल्हन जी आ गई। खालिद बेटा, हमने तो सुना था तुमने नाजुक सी लड़की पसंद की है। यह क्या पूरा पेड़ घर ले आए?”

कमरे में दबकर हंसी छूट गई। खालिद ने बेहद शांति से कहा – “मौसी, पतली डाल तो हल्की सी हवा से टूट जाती है। लेकिन पेड़ वो जड़ों से मजबूत होता है, छाया भी देता है और फल भी।” कमरा एक पल के लिए थम गया। सब हैरान रह गए। यहां तक कि रबाब भी अपने बेटे की तरफ हैरत से देखने लगी। नाजिया के भीतर कुछ पिघला, एक अजीब सी गर्माहट।

शाम ढलते ही मेहमान चले गए और घर पर सन्नाटा फैल गया। जब नाजिया रसोई में सफाई के लिए दाखिल हुई, रबाब पहले से ही वहां खड़ी थी। ठंडी कठोर और इंतजार करती हुई। “वाह फलदार पेड़ मुबारक हो। तुमने मेरे बेटे को मेरे ही खिलाफ खड़ा कर दिया।” फिर आदेशों की लंबी सूची शुरू हुई – “कल से मुर्गे से पहले उठना, दूर वाले कुएं से पानी लाना, घर का कुआं तुम्हें नहीं छूना, आटा गूंथना, जानवरों के बाड़े की सफाई, नदी पर कपड़े धोना, सब तुम्हारा काम।”

नाजिया ने सिर झुका कर सब सुना। यह काम तो 10 आदमियों के बराबर था। उसने बमुश्किल फुसफुसाया – “जी, समझ गई।” उसे पता था अपने पिता के झूठ, बहन के भागने और एक ऐसे पति के अहंकार की कीमत उसे ही चुकानी पड़ेगी।

उस रात उसने स्टोर रूम में नींद काटी। ठंडी हवा उसकी हड्डियों तक उतर रही थी। वह घुटनों को सीने से लगाकर बैठी रही – खामोश, अकेली।

4. बदलाव की शुरुआत

अगला दिन उसके इम्तिहान की शुरुआत थी। दूर वाले कुएं से पानी ढूंढना, भारी मटकियां, कीचड़ भरा रास्ता, उसके नाजुक हाथों में छाले, जानवरों का बाड़ा यानी जानबूझकर दिया गया अपमान। नदी तक आधा घंटा पैदल चलकर कपड़े धोना, बर्फ जैसा पानी और कांपते हुए उंगलियां।

ऊपर की बालकनी से खालिद सब देख रहा था। उसने उसे लड़खड़ाते हुए देखा, उसके फटे हुए हाथ और मन में हल्की सी टीस उठी। वह जानता था उसकी मां कठोर है, लेकिन यह तो खुला बदला था। उसने दिल को ठंडा किया – “यही हकदार है।” लेकिन फिर भी उसकी थकी हुई चाल, खून से भरे हाथों की तस्वीर उसके दिमाग से निकल नहीं रही थी।

रबाब उसे गिराना चाहती थी, पर वह अनजाने में उसे तराश रही थी। नाजिया का भारी बदन पिघलने लगा, सख्त मेहनत, कम खाना, सब कुछ बदल रहा था। उसके पुराने कपड़े ढीले पड़ गए, उसकी चाल हल्की होने लगी। खालिद अब उसे अनदेखा नहीं कर पाता था। वह उसे अलग नजर से देखने लगा।

एक दिन वह खेत से जल्दी लौटा। बाड़े के पास उसकी नजर उस पर पड़ी। वह सूखी घास पर बैठी थी, चेहरा धूप में फीका, हाथों में सूखी रोटी का छोटा सा टुकड़ा। वहीं उसका रात का खाना था। उसके सामने एक छोटी सी दुबली बिल्ली कांप रही थी। नाजिया ने अपनी सूखी रोटी को पानी में भिगोया, उसे दो हिस्सों में तोड़ा। बड़ा हिस्सा बिल्ली के आगे रख दिया और खुद छोटे टुकड़ों से पेट भरने की कोशिश की।

खालिद दूर खड़ा यह सब देख रहा था – पूरी तरह जड़। जिस औरत के साथ घर में जानवरों जैसा बर्ताव होता था, जो खुद मुश्किल से खाती थी, वही औरत अपनी भूख से ज्यादा एक भूखी बिल्ली की तकलीफ महसूस कर रही थी। उसके सीने में कुछ तेज सा चुभा – यह गुस्सा नहीं था, यह शर्म थी।

5. पहली जीत और सम्मान

उस शाम रबाब रसोई में चीख रही थी कि आटा जल्दी खत्म हो रहा है। इस कोलाहल के बीच कई हफ्तों बाद पहली बार नाजिया की धीमी दबी हुई आवाज सुनाई दी – “मां जी, अगर हम मजदूरों की रोटी के लिए सफेद आटे में थोड़ा जौ मिला दें तो रोटी ज्यादा पेट भरेगी और हमारा आधा गेहूं बच जाएगा।”

रबाब ने ऐसे देखा जैसे किसी भिखारी ने हुक्म दे दिया हो – “कब से तुम भंडार के काम समझने लगी? चुप रहो और आटा गूंथो।” लेकिन तभी खालिद की आवाज आई, सख्त, साफ और निर्णायक – “रुको मां। वह ठीक कह रही है, जौ सस्ता है और पेट भी ज्यादा भरता है। कल से ऐसा ही होगा।”

यह पहली बार था कि किसी ने उसके विचार को सुना था और उस पर यकीन भी किया था। रबाब के चेहरे पर नफरत की एक नई लकीर उभर आई। नाजिया पहली बार किसी बात में जीत गई थी और यह रबाब को बिल्कुल पसंद नहीं आया।

6. नई जिम्मेदारी, नई पहचान

अगली सुबह रबाब ने उसे घर से जितना दूर भेज सके भेजने का फैसला किया। ऊंचे गांव में आज बाजार है। “यह पनीर ले जाओ, बेचो और इस सूची के सामान लेकर आना, पैदल जाना। घोड़ा तुम्हारे लिए नहीं है।” ऊंचे पहाड़ तक 3 घंटे की चढ़ाई थी। भारी टोकरी उठाकर नाजिया चुपचाप निकल गई।

उसी दिन खालिद भी घोड़ों के सौदे के लिए उसी इलाके के पास था। लौटते हुए उसने छोटा रास्ता पकड़ा। दूर एक अकेली परछाई बहुत धीरे-धीरे चल रही थी। वह करीब पहुंचा – वह नाजिया थी। वापस लौटते हुए उसकी टोकरी अब और भारी थी, पसीने से उसका दुपट्टा पीछे खिसक गया था, बाल हवा में उड़ रहे थे।

खालिद अचानक रुक गया – यह वह मोटी बोझिल लड़की नहीं थी जिसे उसने शादी की रात ठुकरा दिया था। यह एक औरत थी, दर्द और मेहनत ने जिसे कठोर पत्थर की तरह तराशा था। उसका चेहरा अब साफ था, गाल की हड्डियां उभरी हुई थी, आंखें बड़ी, नम और गहरी। एक अलग ही तरह की खूबसूरती से भरी हुई।

खालिद ने कांपते हाथों से उसकी भारी टोकरी ली, उसे घोड़े पर रखा – “मेरे आगे चलो, घोड़ा तुम्हारा बोझ उठाएगा।” उसने उसे घोड़े पर बैठने को नहीं कहा, लेकिन उसका बोझ उठा लिया।

घर की दहलीज पर शाम ढल रही थी। रबाब खड़ी इंतजार कर रही थी। जैसे ही उसने यह दृश्य देखा, उसका चेहरा तमतमा उठा। “आओ राजकुमारी, यात्रा आरामदायक रही?” नाजिया ने सिर झुका लिया। रबाब ने वार जारी रखा – “कल शायद हमें तुम्हें अपनी पीठ पर लाना पड़े।”

तभी खालिद ने शांत लेकिन भारी आवाज में कहा – “सामान मेरा था और घोड़ा भी मेरा है। मैंने अपना सामान अपने घोड़े पर रखा। इसमें मसला क्या है? वह 6 घंटे धूप में चली है, मेरी जमीन के लिए बीज और मेरे घर के लिए खाना लाने के लिए। कम से कम उसका बोझ घोड़ा उठा ले, वह नहीं।”

रबाब पत्थर बनकर रह गई। लेकिन उससे भी ज्यादा नाजिया हैरान थी – यह पहला मौका था जब खालिद ने उसे किसी तरह की इज्जत दी थी।

7. मेहनत का स्वाद और सच्ची मोहब्बत

कुछ दिन बाद खालिद ने रात के खाने की बड़ी जिम्मेदारी नाजिया को दी। उसने व्यापारियों को खाने पर बुलाया था। नाजिया का दिल धड़क उठा। वह स्टोर रूम भागी, लेकिन भंडार लगभग खाली था – रबाब ने जानबूझकर सब कुछ खत्म कर दिया था। नाजिया की आंखों से आंसू निकल पड़े। लेकिन फिर उसकी नजर जौ के बोरे पर पड़ी – “मुझे कुछ बेहतरीन बनाना होगा।”

उसका जादू शुरू हुआ – बगीचे से पुदीना, रोजमेरी और जंगली अजवाइन के ताजा पत्ते, मसूर का सूप, शाही ब्रेड, जौ की मलाईदार डिश। खालिद अपने मेहमानों को लेकर आंगन में दाखिल हुआ। व्यापारी साधारण भोजन देखकर हैरान थे। बूढ़े व्यापारी ने सूप चखा – “यह मसूर नहीं, यह पिघला हुआ सोना है। इसका स्वाद मुझे अपने बचपन के घर की याद दिलाता है।”

ब्रेड इतनी हल्की और खुशबूदार थी कि व्यापारी खड़ा हो गया – “ओ मेम साहब, मुझे नहीं पता तुम्हारे पति तुम्हें कहां से लाए। लेकिन वह दुनिया का सबसे खुशकिस्मत आदमी है। तेरी दौलत यह औरत है जो मिट्टी को सोना बना सकती है। यही तुझे जमीन का सबसे अमीर आदमी बनाएगी।”

मेहमान दुआओं के साथ चले गए। खालिद बीच कमरे में खड़ा रहा, रबाब दरवाजे पर मूर्ति की तरह जम गई थी।

8. सच्ची जीत और नया रिश्ता

खालिद चुपचाप बाहर निकला, नाजिया उसके पीछे पहुंची। वह मुड़ा, उसकी आंखों में नरमी थी। “कैसे? रसोई तो खाली थी, फिर तुमने इतना बेहतरीन खाना कैसे बना लिया?” नाजिया ने बोहती हुई हवा जैसी शांत आवाज में कहा – “जो कुछ भी बचा हुआ था, उसी से बना दिया। आपका घर भूखा ना रहे, बस यही चाहा।”

खालिद उसे देर तक देखता रहा – यह वही औरत थी जिसे उसने मोटी कहकर नजरअंदाज किया था, जिसे नौकरानी जैसा जीवन दिया गया था। लेकिन अब वह मेहनत से तराशी हुई पतली, मजबूत, खूबसूरत औरत थी – बाहर भी और भीतर भी।

खालिद ने धीमे से अपने कमरे की तरफ इशारा किया – “मैंने गलती की। जब मैंने सोचा कि कीमत रूप में है। गलती की जब मैं चुपचाप अन्याय देखता रहा। यह घर तुम्हारा है, ना गेस्ट रूम, ना स्टोर रूम।”

उसने गहरी सांस ली – “क्या तुम इस घर की मेम साहब और मेरे दिल की मेम साहब बनना स्वीकार करोगी?”

नाजिया ने आंखें बंद कर ली। उसके पतले खूबसूरत चेहरे पर एक थकी हुई, लेकिन जीत से भरी मुस्कान फैल गई। यही उसकी जीत थी।

9. कहानी की सीख

कभी-कभी जिसे हम अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा जुल्म समझते हैं, वही हमारा असली रूप, हमारी असली ताकत और हमारी असली जगह उजागर करने का रास्ता बन जाता है। नाजिया ने दर्द, अपमान, मेहनत और तिरस्कार को अपनी ताकत बना लिया। उसने साबित कर दिया कि असली खूबसूरती और असली मोहब्बत मेहनत, इंसानियत और आत्मसम्मान में छिपी होती है।

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