पत्नी फुटपाथ पर चाय बेच रही थी, अचानक उसका पति दूसरी पत्नी के साथ आ गया, फिर आगे जो हुआ

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दूसरा मौका: फुटपाथ की चाय

भाग १: संघर्ष और सुगंध

सर्दी की सुबह थी। शहर की सबसे व्यस्त सड़क पर, फुटपाथ के किनारे सावित्री का छोटा सा चाय का ठेला, ‘सावित्री टी स्टॉल’, धुएं और अदरक की खुशबू से अपनी पहचान बना रहा था। लकड़ी के तख्ते पर रखा पुराना स्टोव लगातार जल रहा था, और उसकी आंच पर खौलती चाय की पत्ती सावित्री की आँखों में जल रहे संघर्ष की तरह थी।

सावित्री, लगभग सत्ताईस साल की, सांवले रंग की एक मजबूत इरादों वाली औरत थी। उसके हाथों की उँगलियाँ रोज़ाना स्टोव की गर्मी से झुलसी हुई थीं, लेकिन उसकी मुस्कान कभी नहीं झुलसी। हर ग्राहक से वह बड़े प्यार से कहती, “भैया, आज की खास अदरक-इलायची वाली चाय है। एक बार पीकर देखिए, दिन बन जाएगा।”

उसके पास ही, ज़मीन पर बिछे एक पुराने बोरे पर उसका आठ साल का बेटा, राहुल, बैठा था। राहुल स्कूल की पुरानी किताबों में कुछ लिख रहा होता, और बीच-बीच में उठकर ग्राहकों को पानी देता या चिप्स के पैकेट थमाता। “अंकल, यह वाला चिप्स ज़्यादा फ्रेश है,” उसकी मासूम आवाज़ हर सुबह की थकान को धो देती थी।

सावित्री हर शाम जब ठेला बंद करती, तो राहुल को लेकर टूटे-फूटे किराए के कमरे में लौटती। वह कमरा, जहाँ बिजली और पानी दोनों की किल्लत थी, अक्सर उसे रुला देता था। लेकिन राहुल के सामने उसके आँसू कभी नहीं आते थे।

“माँ, तुम रो रही हो?” राहुल पूछता।

सावित्री तुरंत आँसू पोंछती, “नहीं बेटा, धुआँ चला गया आँख में।”

पर असल धुआँ तो उसकी जिंदगी का था। कुछ साल पहले, इसी फुटपाथ पर वह अपने पति, अमन, के साथ चाय का ठेला चलाती थी। दोनों ने मिलकर सपने बुने थे—एक छोटी सी दुकान, राहुल के लिए अच्छा स्कूल, और गरीबी से आज़ादी। अमन हँसमुख था, पहाड़ी लड़का, जिसकी बातों में मिठास थी। सावित्री अक्सर कहती, “हम दोनों मिलकर सब कर लेंगे।” और अमन कहता, “जब तक तू साथ है, मुझे कोई डर नहीं।”

लेकिन जिंदगी ने अचानक मोड़ ले लिया।

भाग २: विश्वास का टूटना

एक दिन, ठेले पर चाय पीने आई रिया। रिया, एक अमीर घराने की लड़की, बेहद खूबसूरत, महंगी कार और कपड़ों वाली। अमन उसकी बातों, उसके रहन-सहन और उसके पैसे से बहुत प्रभावित हुआ। रिया रोज़ आने लगी। पहले चाय, फिर बातें, फिर हँसी-मज़ाक, और धीरे-धीरे अमन के दिल पर रिया का जादू चलने लगा।

सावित्री को यह सब अच्छा नहीं लगा, पर उसने अपने विश्वास का दामन नहीं छोड़ा। एक शाम, अमन ने हिम्मत करके सावित्री से कहा, “रिया मुझे बहुत पसंद करती है। वह कहती है कि वह मुझे बड़ी दुकान, घर, गाड़ी सब दिला सकती है।”

सावित्री ने पल भर चुप रहकर सिर्फ एक सवाल किया, “और मैं? और राहुल?”

अमन ने आँखें चुराते हुए कहा, “मेरे पास बहुत सारा पैसा आएगा, सब ठीक हो जाएगा। रिया चाहती है कि मैं उससे शादी कर लूँ।”

सावित्री का दिल जैसे फट गया। “शादी? मैं हूँ न तुम्हारी पत्नी!”

अमन ने क्रूरता से कहा, “सावित्री, मैं गरीबी से तंग आ गया हूँ। मुझे दूसरा मौका चाहिए। मैं रिया से शादी कर रहा हूँ।”

उस रात, सावित्री ने पहली बार महसूस किया कि इंसान पैसे के लिए अपने ही दिल को, अपने रिश्तों को, और अपनी इंसानियत को कितनी आसानी से मार देता है। अगले ही दिन, अमन रिया के साथ चला गया। उसने पीछे मुड़कर न तो सावित्री को देखा, न ही अपने बेटे राहुल को।

सावित्री टूट गई थी, पर उसने हार नहीं मानी। उसने फैसला किया कि वह अपने बेटे को दुनिया के सामने झुकने नहीं देगी। उसी दिन से, उसने अकेले ही चाय का ठेला संभाल लिया। तीन साल बीत गए, और लोग कहते रहे कि अमन दूसरी पत्नी के साथ बहुत खुश है। सावित्री सिर्फ मुस्कुराती और कहती, “भगवान सब देख रहा है।”

भाग ३: फुटपाथ पर ड्रामा

उस दिन भी सावित्री चाय बना रही थी। भीड़ बहुत थी। राहुल पानी भरने जा रहा था। तभी सड़क के दूसरी तरफ एक चमचमाती, काली कार रुकी। कार से उतरा एक आदमी—सूट-बूट में, धूप के चश्मे में, बाल सेट किए हुए। वह अमन था। उसके साथ थी रिया, हाथों में हीरे की चमक, गले में महंगी चेन, चेहरे पर घमंड।

दोनों धीरे-धीरे सावित्री के ठेले की तरफ बढ़े। सावित्री ने उन्हें देखा और उसकी आँखें झुक गईं। हाथ काँपने लगे, दिल धड़कने लगा।

राहुल ने आश्चर्य से पूछा, “माँ, यह कौन है?”

सावित्री कुछ नहीं बोली, उसकी साँसें तेज़ हो गईं।

अमन सामने आकर खड़ा हो गया। तीन साल बाद दोनों आमने-सामने थे। अमन ने ठंडे, बनावटी स्वर में कहा, “कैसी हो, सावित्री?”

सावित्री ने धीरे से कहा, “ठीक हूँ। भगवान की दया से।”

रिया मुस्कुराते हुए बोली, “अरे वाह! अभी भी फुटपाथ पर चाय बेचती हो? कितना स्ट्रगल है, न?”

सावित्री चुप रही। भीड़ में फुसफुसाहट शुरू हो गई। लोग चाय पीना भूलकर रुककर देखने लगे। स्टोव पर उबलती चाय की आवाज़, मानो किसी टूटे दिल की धड़कन बन गई थी।

अमन ने एक गहरी साँस लेते हुए पूछा, “यह… यह बच्चा कौन है?”

सावित्री ने दर्द में डूबी, लेकिन बेहद शांत आवाज़ में कहा, “तुम्हारा बेटा, राहुल।”

अमन जैसे पत्थर बन गया। उसके चेहरे पर हैरानी और पछतावे की एक हल्की सी झलक आई, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कहता, रिया ने ऊँची आवाज़ में कहा, “ओह प्लीज़, ड्रामा मत करो, अमन! पहले से बताती तो अच्छा होता कि कोई ‘बैगेज’ भी है तुम्हारे पास।”

राहुल चुपचाप खड़ा था, उसकी मासूम आँखों में सवालों का तूफान था। “माँ, यह मेरे पापा हैं?”

सावित्री कुछ बोल भी पाती कि अमन ने जल्दी से कहा, “राहुल, मैं…”

रिया ने बात काट दी, ताली बजाते हुए बोली, “चलो, अमन! यहाँ से निकलो। इतनी भीड़ में खड़े होकर मैं बेइज्जती नहीं करवाऊँगी। इन्हें जो ज़िंदगी पसंद है, हम उसमें क्यों दखल दें?”

अमन चुप था। वह बस राहुल को देख रहा था।

राहुल ने धीमी, काँपती आवाज़ में पूछा, “पापा, आप मुझे छोड़कर क्यों चले गए थे?”

यह सवाल सुनते ही अमन का गला सूख गया। वह नहीं जानता था कि क्या कहे। उसकी खामोशी ने सब कह दिया।

सावित्री ने बेटे का हाथ पकड़ा और उसके बाल सहलाते हुए बोली, “बेटा, सब ठीक है। चलो, पानी भर लो। काम रुकेगा तो रोटी भी रुक जाएगी।”

पर राहुल की आँखें भर आईं। “माँ, क्या मेरे पापा मुझे प्यार नहीं करते?”

सावित्री ने मुस्कुराने की कोशिश की, पर मुस्कान टूट गई। “करते होंगे बेटा, पर कभी-कभी लोग समझ नहीं पाते कि सच्चा प्यार कहाँ होता है।”

तभी रिया ने ताना मारते हुए कहा, “सावित्री, अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें कुछ पैसे दे सकती हूँ। आखिर दया करना भी एक नेकी है। बताओ, कितना लोगी? दस हज़ार? बीस हज़ार?”

भीड़ फुसफुसाने लगी। सावित्री ने बिना पलक झपकाए रिया की आँखों में देखा। “मैं भीख नहीं लेती। मैं मेहनत से कमाती हूँ।”

रिया हँस पड़ी। “मेहनत? चाय बेचकर ज़िंदगी बनाओगी?”

सावित्री शांत आवाज़ में बोली, “ज़िंदगी पैसों से नहीं बनती। भरोसे और ईमान से बनती है।”

अमन ने धीरे से कहा, “सावित्री, अगर तुम्हें मदद की ज़रूरत हो तो…”

सावित्री ने तुरंत उसके शब्द रोक दिए। “मदद? तू भूल गया, अमन? कभी तूने ही कहा था कि जब तक मैं साथ हूँ, तुझे कोई डर नहीं। आज देख, मैं अकेली हूँ, फिर भी नहीं टूटी। पर तू? तेरे पास सब कुछ है, फिर भी तेरी आँखों में सुकून नहीं है।”

अमन की आँखों में नमी भर आई। लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कहता, राहुल अचानक उसकी ओर बढ़ा और बोला, “पापा, मुझे सिर्फ एक बार गले लगा लो। बस एक बार।”

पूरी सड़क स्तब्ध थी। सावित्री का दिल फट गया। अमन का कदम रुक गया। उसने पलटकर देखा। राहुल आँसू पोंछते हुए भागकर उससे लिपट गया। “मैं बहुत साल से आपका इंतज़ार कर रहा था।”

लेकिन तभी रिया ने ज़ोर से चिल्लाया, “अमन! अगर तुमने इसे गले लगाया, अगर तुमने पीछे देखा, तो याद रखना—मैं अभी इसी वक़्त तुम्हें छोड़ दूँगी! तुम्हारे पास जो कुछ है, सब छीन लूँगी!”

अमन की आँखों में डर उतर आया। वह काँपते होठों से बोला, “राहुल, मैं…” और धीरे-धीरे उसने राहुल के छोटे से हाथ को हटाया, और पीछे देखे बिना, रिया के साथ चल दिया।

राहुल ज़मीन पर बैठ गया और ज़ोर से रो पड़ा। “माँ, मेरे पापा मुझे छोड़कर फिर चले गए।”

सावित्री उसके पास बैठ गई, उसे सीने से लगा लिया, और खुद फूट-फूट कर रोने लगी। पूरी सड़क रो पड़ी।

भाग ४: नियति का पलटवार

उधर, अमन और रिया कार तक पहुँच चुके थे। अमन बार-बार पीछे देखने की कोशिश कर रहा था, लेकिन रिया ने गुस्से में कहा, “अगर एक बार भी पीछे मुड़े न, तो समझो सब ख़त्म! तुम मेरे बिना कुछ नहीं।”

अमन गाड़ी में बैठ गया। कार तेज़ी से आगे बढ़ने लगी। उसके सीने में कुछ टूट रहा था।

“रिया, वो मेरा बेटा है,” अमन ने भारी आवाज़ में कहा।

रिया हँस पड़ी, “बेटा? बेटा तो तब होता जब तुम उनके साथ रहते। अब वो सिर्फ एक बोझ है। और सुनो, अगर तुमने फिर कभी उनसे मिलने की कोशिश की, तो मैं तुम्हारी सारी दुकानें, गाड़ियाँ, बिज़नेस सब अपने नाम करवा लूँगी।”

अमन जैसे पत्थर का बन गया। पैसा, महत्वाकांक्षा और मोह के बीच वह पूरी तरह हार गया था।

तभी, फुटपाथ पर पीछे से एक तेज़ आवाज़ आई। “सावित्री, जल्दी चलो! किसी ने दौड़ते हुए बताया—अमन और रिया जिस कार में गए थे, उसका एक्सीडेंट हो गया है! उनकी कार ट्रक से टकरा गई है! हालत गंभीर है!”

सावित्री और राहुल भी उसी दिशा में भागे। सड़क पर खून फैला था। कार बुरी तरह टूटी हुई थी। अमन ज़मीन पर पड़ा था, साँसें टूटी-टूटी। आँखों में दर्द और पछतावा था। रिया बेहोश थी।

अमन ने सावित्री और राहुल को देखा। उसकी आँखों में आँसू लुढ़क पड़े। “सावित्री… भगवान ने मेरी सज़ा यहीं दे दी। मैंने तुम दोनों को छोड़कर गुनाह किया। मुझे माफ़ कर दो।”

राहुल उसके पास घुटनों के बल बैठ गया। “पापा, उठिए! मैं आपको माफ़ करता हूँ, बस ठीक हो जाइए।”

अमन ने काँपते हाथों से राहुल का चेहरा छुआ। “आज… आज मुझे समझ आया। मेरे पास सब कुछ था, पर खुशी सिर्फ तुम दोनों में थी।”

सावित्री की आँखों में आँसू भर आए। “अमन, भगवान सबको दूसरा मौका देता है। तुम ठीक हो जाओगे। हम सब मिलकर नई शुरुआत करेंगे।”

डॉक्टरों की आवाज़ आई। “हमें तुरंत हॉस्पिटल ले जाना होगा। हालत बहुत नाज़ुक है।”

हॉस्पिटल पहुँचकर डॉक्टर ने कहा, “स्थिति बहुत गंभीर है। बहुत ज़्यादा खून बह चुका है। हमें तुरंत ओ नेगेटिव खून की ज़रूरत है।”

सावित्री ने तुरंत कहा, “डॉक्टर, मेरी जाँच करो। मेरा ब्लड दे दो।”

टेस्ट रिजल्ट आया। सावित्री का ब्लड ग्रुप ओ नेगेटिव था। बिल्कुल मैच।

डॉक्टर ने कहा, “आपका खून देने से उसकी जान बच सकती है।”

राहुल ने घबराकर कहा, “माँ, पापा को बचाओ!”

सावित्री ने मुस्कुराकर कहा, “बेटा, यही तो परिवार होता है। जब किसी की ताक़त ख़त्म हो जाए, तो दूसरा उसका सहारा बन जाता है।”

ब्लड ट्रांसफ़्यूज़न शुरू हुआ। सावित्री कमज़ोर पड़ने लगी, लेकिन उसके चेहरे पर अजीब-सी संतुष्टि थी। आज शायद वह अपना सबसे बड़ा युद्ध जीत रही थी—नफ़रत से नहीं, बल्कि प्रेम से।

भाग ५: दूसरा मौका

तीन घंटे बाद, ऑपरेशन थिएटर का दरवाज़ा खुला। डॉक्टर ने लंबी साँस ली और कहा, “ऑपरेशन सफल रहा। मरीज़ ख़तरे से बाहर है।”

राहुल खुशी से उछल पड़ा।

सावित्री और राहुल धीरे-धीरे अंदर गए। अमन आँखें खोल रहा था। उसने जैसे ही राहुल को देखा, आँसू बहने लगे। उसने काँपते हाथों से राहुल का चेहरा छुआ। “बेटा, मुझे माफ़ कर दो।”

राहुल ने तुरंत उसे गले लगा लिया। “पापा, मुझे आपसे सिर्फ प्यार चाहिए। कुछ और नहीं।”

अमन ने सावित्री की ओर देखा। उसकी आँखों में शर्म, टूटन और कृतज्ञता सब कुछ था। “सावित्री, तूने फिर मेरी जान बचाई। मैं इसके लायक नहीं हूँ। मैं बहुत छोटा इंसान बन गया था।”

सावित्री ने आँसू रोकते हुए कहा, “प्यार में जीतने या हारने का सवाल नहीं होता। बस साथ निभाने का होता है। ज़िंदगी ने आज हम सबको एक मौका दिया है। इसे खोना मत।”

अमन रोते-रोते बोला, “अगर तू इजाज़त दे, तो मैं फिर से इस परिवार का हिस्सा बनना चाहता हूँ। मैं वादा करता हूँ, अब कभी तुम्हारे दिल को चोट नहीं पहुँचाऊँगा।”

सावित्री ने चुपचाप उसका हाथ पकड़ लिया। “यह घर है, अमन, और घर में जगह माँगनी नहीं, समझनी होती है।”

कुछ दिन बाद, फुटपाथ पर वही चाय का ठेला था। लेकिन इस बार, तीन लोग साथ खड़े थे। सावित्री चाय बना रही थी। अमन ग्राहकों को सर्व कर रहा था। राहुल खुशी-खुशी ऑर्डर लिख रहा था।

एक ग्राहक ने मुस्कुराकर पूछा, “भैया, यह दुकान का नाम क्या रखा है?”

अमन ने मुस्कुराकर बोर्ड पर लिखा नाम दिखाया: “दूसरा मौका फैमिली टी पॉइंट”

सड़क तालियों से गूँज उठी। सावित्री ने आकाश की ओर देखा और धीरे से कहा, “धन्यवाद, भगवान। तूने मेरी मेहनत की लाज रख ली।”

राहुल ने अपने माता-पिता को गले लगाया। उस दिन ज़िंदगी ने खुद साबित कर दिया कि दौलत बहुत कुछ खरीद सकती है, लेकिन परिवार और सच्चा प्यार नहीं।