डिलीवरी बॉय ने अपनी सैलेरी देकर बूढ़ी माँ की मदद की , फिर उसके करोड़पति बेटे ने जो किया हैरान कर देगा

कहानी की शुरुआत: जिम्मेदारियों का बोझ

दिल्ली के भीड़-भाड़ वाले एक मोहल्ले में 23 साल के अर्जुन की छोटी सी दुनिया थी। पिता की मृत्यु के बाद उसके कंधों पर घर की सारी जिम्मेदारी आ गई थी। उसकी बीमार मां और 12वीं पास करने के बाद कॉलेज में दाखिले का सपना देख रही छोटी बहन प्रिया ही उसकी पूरी दुनिया थी।

अर्जुन एक बड़ी ऑनलाइन डिलीवरी कंपनी Swift Cart में डिलीवरी बॉय था। उसकी आमदनी थी बस 12,000 रुपए, जिसमें से किराया, मां की दवाई, राशन, बहन की ट्यूशन वगैरह निकालते ही बमुश्किल घर चलता। कई बार उसे एक वक्त का खाना छोड़ना पड़ता। पर चेहरे पर शिकन नहीं। उसकी मां ने सिखाया था — “किसी भी हाल में मेहनत और ईमानदारी नहीं छोड़नी।”

विद्यार्थी बहन की उम्मीद

उस महीने प्रिया को अच्छे नंबरों से शहर के बड़े कॉलेज में दाखिला मिल गया। फीस चाहिए थी पूरे 10,000 रुपए। अर्जुन को अपनी सैलरी का बेसब्री से इंतजार था। महीने भर की कमाई मिलते ही उसने प्रिया की फीस के पैसे जेब में रख लिए। मन में तय कर लिया — इसी बार सबसे पहले बहन का सपना पूरा करेगा। वह लौटते वक्त मां के लिए जलेबी और प्रिया के लिए किताब भी लेने वाला था।

मोड़: एक अनजान मां

अपना आखिरी पैकेट डिलीवर करने आरोप वह एक मध्यमवर्गीय कॉलोनी पहुँचा। वहां एक 70 वर्षीया बूढ़ी अम्मा, जिनका सारा सामान मकान-मालिक फुटपाथ पर फेंक चुका था। वह किराया न दे पाने के कारण सड़क पर आ चुकी थीं। मकान मालिक गुस्से में चिल्ला रहा था, अम्मा रहम की भीख मांग रही थीं — “बस कुछ दिन की मोहलत दे दो बेटा, मेरा बेटा पैसे भेज देगा।”

अर्जुन ने अम्मा की बेबसी में अपनी मां की परछाई देखी। उसका मन — एक तरफ प्रिया की फीस, दूसरी तरफ अम्मा के आंसू। दिल और दिमाग में संघर्ष चला, पर आख़िर दिल जीत गया। अर्जुन ने जेब से 10,000 रुपए निकाले, 9,000 मकान मालिक को “किराया” के लिए और 1,000 अम्मा को खर्चे के लिए दे दिए। खुद का सपना, बहन की उम्मीद, एक पल में एक अनजान मां के लिए कुर्बान कर दिया।

अम्मा आश्चर्यचकित, दुआएं देती रहीं। अर्जुन का दिल हल्का, लेकिन घर जाकर मां और प्रिया को क्या बताए? वह झूठ बोल आया — “सैलरी कुछ दिन बाद आएगी।” प्रिया उदास हो गई पर अर्जुन को अब भी अपनी भलाई पर संतोष था।

असली चौंकाने वाला सच

दूसरी तरफ, वह बूढ़ी अम्मा थीं — श्रीमती सावित्री देवी, Swift Cart कंपनी के अरबपति संस्थापक राजन मल्होत्रा की मां। पुरानी नाराज़गी के कारण उनसे अलग रह रही थीं। उन्होंने बेटा राजन को फोन कर सारी घटना बता दी।

राजन ने डिलीवरी डिटेल्स ट्रैक कीं और जाना कि अर्जुन 12,000 रुपए कमाता है और 9,000 रुपया उनकी मां के लिए दे गया। उन्होंने अर्जुन के परिवार और बहन की स्थिति की पूरी फाइल मँगाई। फ़ैसला कर लिया — अब वे अर्जुन की जिंदगी हमेशा के लिए बदलेंगे।

जीवन बदल देने वाला इनाम

अगली सुबह अर्जुन को सीईओ ऑफिस से बुलावा आया। वह घबराया — कहीं कोई गलती तो नहीं हो गई? वह कांपते हुए गया। सामने राजन मल्होत्रा बैठे थे। सवाल — “सैलरी मिल गई? बहन की फीस भरी?” — अर्जुन झूठ न बोल सका, फूट-फूटकर सब बता दिया।

राजन ने भावुक होकर कहा — “वह अम्मा मेरी मां थीं। तुमने सिर्फ उनका घर ही नहीं, मेरा भी दिल बचा लिया। तुमने मुझे अच्छा बेटा बनने का अहसास दिलाया।”

राजन ने अर्जुन को बहन की पूरी पढ़ाई की फीस दी, एक नया घर दिया और कहा — “आज से Swift Cart के फाउंडेशन (CSR विंग) के हेड तुम हो! अब से तुम्हारा काम जरूरतमंद लोगों की मदद करना है। तुम्हारी ईमानदारी और करुणा इस कंपनी की असली दौलत है।”

अर्जुन की दुनिया बदल गई। उसके काम से हजारों जरूरतमंदों को मदद मिलने लगी। उसकी बहन डॉक्टर बनी, मां सुकून से रहने लगी। राजन मल्होत्रा और उनकी मां भी फिर से करीब आ गए।

सीख

अगर जी-जान से, निस्वार्थ भाव से किसी की मदद करो — कायनात खुद तुम्हारी मदद करती है। नेकी कभी बेकार नहीं जाती। अगर अर्जुन की कहानी ने आपके दिल को छुआ, तो लाइक, कमेंट और शेयर करें। अपनी राय बताएं — आपको अर्जुन की कौन सी बात सबसे अच्छी लगी? और ऐसी ही इंसानियत भरी कहानियों के लिए बने रहिए! धन्यवाद!