डीएम साहब ने सड़क किनारे बैठे बूढ़े भिखारी के पैर पकड़कर फूट-फूट कर रोए, जानिए पूरी कहानी!

मुंबई के व्यस्त चौराहे पर रोज़ एक बूढ़ा भिखारी बैठा रहता था। उसकी झुकी पीठ, कांपते हाथ और फटी चादर उसके दर्द भरे जीवन की कहानी बयां करती थी। लोग उसे अनदेखा करते, बच्चे हँसते और दुकानदार उसे भगाते। पुलिस वाले भी उसे परेशान करते, लेकिन वह चुप रहता, ना गुस्सा करता, ना शिकायत।

इंस्पेक्टर सुरेश यादव, जो सख्त और ईमानदार था, जब आया तो उसने उस बूढ़े को वहां से हटाने की कोशिश की। कई बार पुलिसकर्मियों ने उसे घसीटा और भगाया, लेकिन बूढ़ा हर दिन वहीं वापस आ जाता।

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एक बारिश भरी शाम, जब बूढ़ा भीग रहा था, डीएम विशाल सिंह वहां पहुंचे। सबको लगा कि वे किसी निरीक्षण के लिए आए हैं, लेकिन उन्होंने सीधे उस बूढ़े के पैर छू लिए और फूट-फूट कर रोने लगे। सब हैरान रह गए क्योंकि वह बूढ़ा भिखारी कोई और नहीं, बल्कि डीएम का अपना पिता मदन लाल जी था।

मदन लाल जी ने बताया कि उन्होंने यह जीवन खुद चुना है ताकि समाज का असली चेहरा देख सकें। उन्होंने कहा कि वे समाज की संवेदना देखना चाहते थे, जो आजकल कम हो गई है। उन्होंने इंस्पेक्टर सुरेश को भी माफ कर दिया।

अगले दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में मदन लाल जी ने सभी से गुजारिश की कि भिखारियों को भीख देना बंद करें, लेकिन संवेदना देना न भूलें। भूखे को रोटी, ठंडे में कपड़ा और अकेले को साथ दें, यही असली इंसानियत है।

कुछ दिनों बाद मदन लाल जी का निधन हो गया, लेकिन उनका संदेश पूरे देश में फैल गया। डीएम विशाल ने संवेदना केंद्र बनाने का प्रण लिया, जहां बेसहारा लोगों को खाना, कपड़ा और सम्मान मिले।

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अगर आप सड़क किनारे बैठे बुजुर्ग को देखें, तो क्या आप उसे नजरअंदाज करेंगे या इंसानियत दिखाकर मदद करेंगे?
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