जरीन खान का हिंदू रीति-रिवाज से हुआ अंतिम संस्कार — सामने आई असली वजह
बॉलीवुड की जगमगाती दुनिया में एक दुखद खबर ने सभी को झकझोर दिया। मशहूर अभिनेता संजय खान की पत्नी और अभिनेता जायद खान की मां जरीन खान का हाल ही में निधन हो गया। जरीन खान लंबे समय से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही थीं। उनके निधन के बाद पूरे फिल्म जगत में शोक की लहर दौड़ गई। लेकिन उनके अंतिम संस्कार को लेकर एक ऐसा सवाल उठा, जिसने हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया —
“जब संजय खान मुस्लिम हैं, तो उनकी पत्नी जरीन खान का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से क्यों किया गया?”
यह सवाल सोशल मीडिया से लेकर समाचार चैनलों तक चर्चा का विषय बना। अब इस पर सच्चाई सामने आ चुकी है — और यह सच्चाई न केवल जरीन खान के धर्म से जुड़ी है, बल्कि उनकी आखिरी इच्छा से भी संबंधित है।
जरीन खान कौन थीं
जरीन खान सिर्फ अभिनेता संजय खान की पत्नी नहीं थीं, बल्कि एक स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और कलात्मक व्यक्तित्व वाली महिला थीं। उनका जन्म एक पारसी परिवार में हुआ था। पारसी समुदाय प्राचीन ज़ोरास्ट्रियन धर्म का अनुयायी है, जो आग को पवित्र मानता है और जीवन के बाद आत्मा की शुद्धता पर विश्वास करता है।
जरीन खान का असली नाम जरीन कतरक था। वह पारसी समुदाय के एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखती थीं। अभिनय और कला के प्रति उनमें बचपन से ही झुकाव था। उन्होंने कुछ फिल्मों में भी अभिनय किया — जिनमें तेरे घर के सामने और एक फूल दो माली जैसी फ़िल्में शामिल थीं।
हालांकि, जरीन खान को असली पहचान तब मिली जब उन्होंने अपनी रचनात्मकता को इंटीरियर डिज़ाइन और लेखन की दिशा में मोड़ा। वह फिल्म इंडस्ट्री में एक बेहतरीन इंटीरियर डिजाइनर और लेखिका के रूप में जानी जाती थीं।
संजय खान से मुलाकात और शादी
फिल्मों में काम करते हुए जरीन खान की मुलाकात अभिनेता संजय खान से हुई। संजय खान उस दौर के एक आकर्षक और लोकप्रिय अभिनेता थे। दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ीं और उन्होंने शादी करने का फैसला किया।
जरीन खान पारसी थीं और संजय खान मुस्लिम धर्म को मानते थे। लेकिन जरीन ने शादी के बाद अपना धर्म नहीं बदला। उन्होंने अपना नाम तो बदला, पर अपनी धार्मिक पहचान — पारसी धर्म — को बनाए रखा। यही बात उनके अंतिम संस्कार से जुड़ी रहस्य की जड़ बनी।

पारसी धर्म की अंतिम संस्कार परंपरा
पारसी धर्म में मृत्यु को आत्मा की यात्रा का आरंभ माना जाता है। प्राचीन समय में पारसी समुदाय अपने मृतकों के शव को “टॉवर ऑफ साइलेंस” (दख्मिनाशिनी) नामक ऊँचे टावर पर रख देता था, जहाँ पक्षी — विशेषकर गिद्ध — उस शरीर को खा लेते थे। इसे आत्मा की शुद्धि और पृथ्वी की पवित्रता बनाए रखने का तरीका माना जाता था।
लेकिन समय के साथ यह परंपरा समाप्त हो गई। आधुनिक पारसी समाज में अब दो तरीके अपनाए जाते हैं —
दफनाना, या
अग्नि संस्कार (दाह संस्कार)
जरीन खान का परिवार इन्हीं आधुनिक विचारों का अनुयायी था। और उनकी अपनी इच्छा थी कि जब उनका जीवन समाप्त हो, तो उनका अंतिम संस्कार अग्नि संस्कार के रूप में किया जाए।
जरीन खान की आखिरी इच्छा
जरीन खान ने अपने जीवनकाल में ही स्पष्ट रूप से अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त की थी कि उनका संस्कार हिंदू परंपरा के अनुसार किया जाए। उन्होंने यह निर्णय किसी धार्मिक विरोध के रूप में नहीं, बल्कि अपनी आध्यात्मिक समझ के आधार पर लिया था।
वह हमेशा मानती थीं कि आत्मा किसी धर्म की सीमाओं में बंधी नहीं होती।
उनके लिए “अग्नि” जीवन का प्रतीक थी — और आग के हवाले होकर आत्मा का परमात्मा से मिलन, उन्हें सबसे पवित्र तरीका लगता था।
इसलिए, जब उनके निधन के बाद परिवार ने उनकी इच्छा को याद किया, तो उन्होंने वही किया जो वह चाहती थीं — उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से किया गया।
अंतिम संस्कार का दृश्य और लोगों की प्रतिक्रिया
मुंबई में जब जरीन खान का अंतिम संस्कार हुआ, तो वहां परिवार और करीबी रिश्तेदार मौजूद थे।
उनके बेटे जायद खान को माथे पर तिलक लगाए, कंधे पर जनेऊ डाले और मटकी लेकर चलते हुए देखा गया। यह दृश्य सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ।
लोगों के मन में सवाल उठा — “क्यों मुस्लिम परिवार का बेटा इस तरह से हिंदू रीति से संस्कार कर रहा है?”
कुछ लोगों ने इसे गलत बताया, तो कुछ ने कहा कि यह मां की इच्छा का सम्मान है और इसमें कोई धार्मिक विवाद नहीं होना चाहिए।
बाद में जब यह जानकारी सामने आई कि जरीन खान पारसी थीं और उन्होंने इस्लाम धर्म नहीं अपनाया था, तो पूरा मामला स्पष्ट हो गया।
पारसी होने के बावजूद हिंदू रीति क्यों चुनी?
जरीन खान ने हिंदू रीति से संस्कार की इच्छा इसलिए व्यक्त की थी क्योंकि आधुनिक पारसी समुदाय में अग्नि को आत्मा की शुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
उनकी यह भावना हिंदू धर्म की अग्नि संस्कार परंपरा से मेल खाती थी।
वह मानती थीं कि “आग सबको एक करती है” — यह तत्व न किसी धर्म का है, न किसी जाति का।
इसलिए उन्होंने न केवल अपने विश्वास के अनुसार बल्कि एक मानवीय दृष्टिकोण से यह निर्णय लिया।
परिवार का धर्म और सामंजस्य
संजय खान और जरीन खान का विवाह दो धर्मों के मिलन का सुंदर उदाहरण था।
दोनों ने कभी भी एक-दूसरे पर धर्म बदलने का दबाव नहीं डाला।
उनका परिवार — जिसमें सुज़ैन खान, सिमोन अरोरा, फराह अली खान और जायद खान शामिल हैं — हमेशा इस विविधता को सम्मान के साथ जीता रहा।
सुज़ैन खान ने जहां हिंदू धर्म के परिवार में शादी की (ऋतिक रोशन से), वहीं जायद खान मुस्लिम परंपरा को मानते हैं, लेकिन एक उदार दृष्टिकोण रखते हैं।
जरीन खान ने अपने बच्चों को सिखाया था कि धर्म से पहले इंसानियत और प्रेम आता है।
बॉलीवुड में संवेदना की लहर
जरीन खान के निधन के बाद बॉलीवुड के कई कलाकार उनके परिवार से मिलने पहुंचे।
ऋतिक रोशन अपनी गर्लफ्रेंड सबा आज़ाद के साथ शोक सभा में दिखे।
फिल्म जगत की कई हस्तियों ने सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
संजय खान के दोस्तों और सहकर्मियों ने भी जरीन खान के विनम्र स्वभाव की तारीफ की।
अभिनेता धर्मेंद्र ने लिखा,
“जरीन बेहद सादगी और संस्कार की प्रतीक थीं। उन्होंने हमेशा परिवार को जोड़ा रखा।”
निर्माता फराह खान ने कहा,
“जरीन आंटी ने हमें यह सिखाया कि धर्म से बड़ा है दिल।”
जरीन खान का जीवन — सादगी और सम्मान का प्रतीक
जरीन खान की पहचान सिर्फ संजय खान की पत्नी के रूप में नहीं, बल्कि एक मजबूत और विचारशील महिला के रूप में थी।
उन्होंने हमेशा खुद को सीमाओं में नहीं बांधा।
फिल्मों से लेकर इंटीरियर डिजाइनिंग तक, उन्होंने हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी।
उनका व्यक्तित्व शालीनता, संस्कार और आत्म-सम्मान का प्रतीक था।
उन्होंने धर्म, परंपरा और आधुनिकता के बीच एक खूबसूरत संतुलन बनाया।
समाज के लिए एक संदेश
जरीन खान की कहानी आज के समाज को यह सिखाती है कि धर्म से ऊपर इंसानियत होती है।
उन्होंने न तो किसी धर्म का विरोध किया, न किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाई।
बल्कि उन्होंने अपने जीवन से यह दिखाया कि जब विश्वास शुद्ध हो, तो किसी भी धर्म की सीमाएं मायने नहीं रखतीं।
उनकी अंतिम इच्छा — हिंदू रीति से अग्नि संस्कार — दरअसल यह संदेश देती है कि आत्मा का धर्म मानवता है।
निष्कर्ष
जरीन खान का जीवन और मृत्यु दोनों हमें एक गहरी सीख देकर जाते हैं —
धर्म बदल सकता है, पर आस्था का सार नहीं बदलता।
उन्होंने अपने जीवन में प्रेम, सादगी और आत्मसम्मान का रास्ता चुना।
और मृत्यु के बाद भी उन्होंने अपने निर्णय से यह साबित किया कि वह स्वतंत्र सोच की प्रतीक थीं।
उनकी कहानी केवल एक अभिनेत्री या स्टार की नहीं, बल्कि एक ऐसी स्त्री की है जिसने जीवन के हर निर्णय को आत्मा की आवाज़ पर लिया।
उनका अंतिम संस्कार भले हिंदू रीति से हुआ हो, पर उनकी आत्मा उस “अग्नि” में समा गई जिसने सदैव सत्य और शांति का प्रतीक रहा है।
ओम शांति, जरीन खान।
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