क्यों एक मोची के सामने झुक गई IPS मैडम….
“अंशिका की जिद और परिवार का पुनर्मिलन”
यह कहानी एक ऐसी लड़की की है, जिसने अपनी हिम्मत और समझदारी से अपने टूटे हुए परिवार को फिर से एक साथ जोड़ा। यह कहानी न केवल रिश्तों की अहमियत को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि प्यार, माफी और विश्वास से किसी भी टूटे हुए रिश्ते को फिर से जोड़ा जा सकता है।
अंशिका का परिचय
अंशिका वर्मा एक 28 साल की होनहार और निडर आईपीएस अधिकारी थी। उसने अपनी मेहनत और लगन के बलबूते पर यह मुकाम हासिल किया था। लेकिन उसकी जिंदगी में एक खालीपन था, जिसे वह अपने काम में छुपाने की कोशिश करती थी। अंशिका के माता-पिता का तलाक तब हुआ था, जब वह केवल 5 साल की थी। उसकी मां सरिता देवी ने अकेले ही उसे पाला और बड़ा किया।
सरिता एक सख्त और आत्मनिर्भर महिला थीं, जिन्होंने अपनी बेटी को सिखाया था कि जिंदगी में कुछ भी हासिल करने के लिए मेहनत और ईमानदारी सबसे जरूरी हैं। लेकिन सरिता के दिल में अपने पूर्व पति अशोक वर्मा के लिए गहरा गुस्सा और नफरत थी।
अशोक की हालत
अशोक वर्मा, जो कभी एक सम्मानित सरकारी अधिकारी थे, अब एक छोटे से कस्बे में सड़क किनारे बैठकर जूते पॉलिश करते थे। उनकी जिंदगी में अकेलापन और पछतावा था। उन्होंने अपनी गलतियों की वजह से अपने परिवार को खो दिया था।
अशोक ने अपनी शादीशुदा जिंदगी को गंभीरता से नहीं लिया था। उनकी लापरवाही, गुस्सैल स्वभाव और गैर-जिम्मेदाराना रवैये ने उनके रिश्ते को तोड़ दिया। तलाक के बाद उनकी जिंदगी बिखर गई।
मुलाकात की शुरुआत
एक सुबह, अंशिका अपनी मां सरिता के साथ बाजार जा रही थी। तभी उसकी नजर सड़क के दूसरी तरफ पड़ी, जहां एक बूढ़ा आदमी जूते पॉलिश कर रहा था। अंशिका ने गौर से देखा और तुरंत पहचान लिया कि वह उसके पिता अशोक वर्मा थे।
“मां, देखो! वो मेरे पापा हैं, है ना?” अंशिका ने उत्सुकता से पूछा।
सरिता ने घबराते हुए कहा, “नहीं बेटा, वो तुम्हारे पापा नहीं हो सकते। तुम्हारे पापा तो बहुत अच्छे इंसान थे। वो तो एक सरकारी अधिकारी थे। ये तो बस एक साधारण मोची है।”
लेकिन अंशिका को यकीन हो गया था कि वह उसके पापा ही हैं। उनकी आंखों और चेहरे की झलक ने उसे पहचानने में कोई गलती नहीं होने दी।
मां-बेटी के बीच बहस
अंशिका ने अपनी मां से कहा, “मां, मैं जानती हूं कि वो मेरे पापा ही हैं। उनकी हालत देखो, कितनी खराब है। प्लीज, उन्हें हमारे घर ले चलो।”
लेकिन सरिता ने गुस्से से कहा, “मैंने कहा ना, वो तुम्हारे पापा नहीं हैं। और अगर वो तुम्हारे पापा भी होते, तो भी मैं उन्हें इस घर में कभी नहीं लाती।”
अंशिका ने जवाब दिया, “मां, आपका और उनका रिश्ता खत्म हो चुका है, लेकिन मेरा रिश्ता तो अभी भी है। मैं उनके बिना नहीं रह सकती।”
सरिता ने गुस्से में कहा, “अगर तुम उन्हें घर लाना चाहती हो, तो मुझे भूल जाओ। मैं उस आदमी को कभी माफ नहीं कर सकती।”
अंशिका का फैसला
अंशिका इस बात को लेकर बहुत परेशान थी। वह जानती थी कि उसकी मां अपने गुस्से में सही-गलत का फर्क नहीं कर पा रही हैं। उसने ठान लिया कि वह अपने पिता से खुद मिलेगी और उनके दिल का हाल जानेगी।
अगले दिन सुबह, अंशिका चुपके से बाजार की ओर निकल पड़ी। वहां उसने अपने पिता को फिर से जूते पॉलिश करते देखा। वह उनके पास गई और बोली, “आपका नाम क्या है?”
अशोक ने सिर झुकाकर कहा, “मेरा नाम अशोक है।”
अंशिका ने पूछा, “आप यहां क्यों काम कर रहे हैं? आपका घर कहां है?”
अशोक ने जवाब दिया, “मेरा कोई घर नहीं है। मैं यहीं सड़क पर रहता हूं।”
यह सुनकर अंशिका की आंखों में आंसू आ गए। उसने खुद को संभालते हुए कहा, “क्या आप मुझे पहचानते हैं?”
अशोक ने शर्म से सिर झुका लिया और कहा, “नहीं, मैं तुम्हें नहीं जानता।”
लेकिन अंशिका ने हार नहीं मानी। उसने कहा, “पापा, मैं आपकी बेटी हूं। मैं अंशिका हूं। क्या आप मुझे भूल गए?”
यह सुनकर अशोक की आंखों से आंसू बहने लगे। उन्होंने कहा, “बेटा, मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हें और तुम्हारी मां को बहुत दुख दिया। मैं इस लायक नहीं हूं कि तुम्हारा पापा कहलाऊं।”
सच्चाई का पता चलता है
अंशिका ने अपने पिता से उनकी जिंदगी की पूरी कहानी सुनी। अशोक ने बताया कि कैसे उन्होंने अपनी गलतियों से अपना परिवार खो दिया और कैसे वह अब पछता रहे हैं।
अंशिका ने कहा, “पापा, अब भी देर नहीं हुई है। मैं आपको और मां को फिर से एक साथ देखना चाहती हूं। मुझे पता है कि यह आसान नहीं होगा, लेकिन मैं कोशिश करूंगी।”
अशोक ने कहा, “बेटा, तुम्हारी मां मुझे कभी माफ नहीं करेगी। मैंने जो किया है, उसके बाद मैं किसी माफी के लायक नहीं हूं। लेकिन अगर तुम चाहती हो, तो मैं तुम्हारी खुशी के लिए तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूं।”
मां को मनाने की कोशिश
अंशिका ने अपने पिता को घर ले जाने का फैसला किया। जब वह अपने पिता को लेकर घर पहुंची, तो सरिता का गुस्सा सातवें आसमान पर था।
“तुम इसे यहां क्यों लेकर आई हो?” सरिता ने चिल्लाते हुए पूछा।
अंशिका ने कहा, “मां, मैं जानती हूं कि आप गुस्सा हैं। लेकिन पापा ने अपनी गलतियों को स्वीकार कर लिया है। वो आपसे माफी मांगने को तैयार हैं। प्लीज, उन्हें एक मौका दीजिए।”
सरिता ने गुस्से में कहा, “मैंने कहा ना, मैं उन्हें माफ नहीं करूंगी। उन्होंने मेरे साथ बहुत बुरा किया है। मैं उन्हें कभी नहीं अपनाऊंगी।”
पिता की माफी और मां का दिल पिघलना
अशोक ने सरिता के सामने हाथ जोड़कर कहा, “सरिता, मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया। मैं जानता हूं कि मैं तुम्हारे भरोसे के लायक नहीं हूं। लेकिन मैं अपनी बेटी के लिए, उसके कहने पर यहां आया हूं। अगर तुम मुझे माफ नहीं करना चाहती, तो मैं अभी चला जाऊंगा।”
सरिता ने अशोक की आंखों में सच्चाई और पछतावा देखा। वह कुछ देर तक चुप रहीं। फिर उन्होंने कहा, “अशोक, तुम्हारी वजह से मैंने बहुत कुछ सहा है। मैं तुम्हें माफ तो नहीं कर सकती, लेकिन अपनी बेटी के लिए मैं तुम्हें एक मौका दे सकती हूं।”
परिवार का पुनर्मिलन
सरिता और अशोक ने धीरे-धीरे बात करना शुरू किया। अंशिका ने दोनों के बीच की गलतफहमियों को दूर करने में मदद की।
कुछ महीनों के बाद, अशोक ने एक छोटी सी नौकरी शुरू की और अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की कोशिश की। सरिता ने भी अपने गुस्से को छोड़कर अंशिका और अशोक के साथ एक नई जिंदगी की शुरुआत की।
कहानी का संदेश
यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्तों को बचाने के लिए माफी और समझदारी सबसे जरूरी है। गलतियां हर इंसान से होती हैं, लेकिन उन्हें सुधारने का मौका देना भी उतना ही जरूरी है।
“प्यार और माफी से हर रिश्ता मजबूत बनता है।”
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