पति मंदिर में भंडारा करवा रहा था… खाना मांगती मिली तलाकशुदा पत्नी… फिर जो हुआ…
गुजरात के राजनगर की एक साधारण-सी गली। यहीं एक मंदिर के आँगन में हाल ही में भंडारा आयोजित किया गया था। लंबी कतारें लगी थीं — कोई गरमा-गरम भोजन पाने के लिए खड़ा था, तो कोई कपड़े लेने की प्रतीक्षा कर रहा था। माहौल में भक्ति और रौनक का अद्भुत संगम था। भीड़ के बीच खड़ीं 65 वर्षीय उमती देवी और उनका बेटा राघव, एक-एक गरीब के हाथ में कपड़े और भोजन का पैकेट सौंप रहे थे।
भीड़ के शोर-गुल के बीच अचानक उमती देवी की नज़र एक महिला पर पड़ी। वह झोली फैलाए, सिर झुकाए खड़ी थी। चेहरा आधा धूप से ढका था, लेकिन थकी हुई आँखें और काँपते हाथ बहुत कुछ कह रहे थे। पल भर में उमती देवी ने उसे पहचान लिया — यह और कोई नहीं बल्कि उनकी बहू यशोदा थी। वही यशोदा, जिसने कभी इस घर की मालकिन बनकर उन्हें बेइज़्ज़ती और तकलीफ़ दी थी।
क्षणभर के लिए समय ठहर गया। सास-बहू की आँखें मिलीं, और माहौल में एक गहरा मौन छा गया। यशोदा सीधे सास के पैरों में गिर पड़ी और रोते हुए बोली — “माँजी, मुझे माफ़ कर दीजिए…”।
लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ था कि कभी सम्मान और सुख-सुविधा में रहने वाली यशोदा आज गरीबों की कतार में खड़ी थी?
संघर्ष की शुरुआत
कहानी की शुरुआत वर्षों पहले हुई। उमती देवी कम उम्र में ही विधवा हो गई थीं। जब उनके पति का निधन हुआ, तब बेटा राघव सिर्फ़ पाँच साल का था और उमती देवी मात्र पच्चीस वर्ष की थीं। उस कठिन समय में उन्होंने ठान लिया कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, वह बेटे को पाल-पोसकर बड़ा करेंगी और उसे एक बेहतर भविष्य देंगी।
समय बीता। राघव बड़ा हुआ, पढ़ाई पूरी की और एक छोटा-सा कारोबार शुरू किया। शादी के बाद बहू यशोदा घर आई। शुरू में सब कुछ सामान्य था, लेकिन धीरे-धीरे यशोदा का असली चेहरा सामने आने लगा। जब राघव घर पर होता, तब यशोदा मीठी बातें करती। लेकिन उसके बाहर जाते ही यशोदा का रवैया बदल जाता। वह उमती देवी से भारी-भरकम काम करवाती, और थक जाने पर ताने मारती — “अगर काम नहीं कर सकतीं तो खाने का इंतज़ाम खुद कर लीजिए। और हाँ, यह बात अपने बेटे को मत बताइए, वरना मैं यह घर छोड़ दूँगी।”
माँ के लिए यह शब्द किसी तीर से कम न थे, लेकिन बेटे का घर टूटने से बचाने के लिए वह चुप रह जातीं।
विदेश जाने का फ़ैसला
इस बीच राघव का कारोबार घाटे में जाने लगा। एक पुराने दोस्त ने उसे सलाह दी कि अगर यही काम विदेश जाकर शुरू करे तो ज्यादा मुनाफा होगा। राघव ने यह बात माँ से कही और विदेश जाने की अनुमति माँगी।
उमती देवी जानती थीं कि परदेस में रहना आसान नहीं है, मगर बेटे की आँखों में सपनों की चमक देखकर उन्होंने हामी भर दी। कुछ ही दिनों में राघव विदेश चला गया। शुरुआत में फोन पर लंबी बातें होतीं, लेकिन धीरे-धीरे फोन कम होते गए और घर का माहौल बदल गया।
अब यशोदा को खुला मैदान मिल चुका था। उसने अपनी माँ से फोन पर हँसते हुए कहा — “अब तो राघव चला गया है। मैं सास को खूब काम करवाऊँगी और उससे पैसे भी कमाऊँगी।”
माँ को फिर से मज़दूर बनाना
यशोदा ने उमती देवी से कहा कि राघव का कारोबार विदेश में घाटे में है, इसलिए पैसों की ज़रूरत है। और उन्हें फिर से दूसरों के घर काम करना होगा। उम्रदराज़ माँ ने पहले तो मना किया, लेकिन बहू ने बेटे का हवाला देकर कहा — “यह तेरे बेटे के लिए है, उसके घर को बचाने के लिए है।”
बेटे का नाम सुनकर उमती देवी का दिल पिघल गया। और वह एक बार फिर दूसरों के घरों में काम पर जाने लगीं।
दिन हफ्तों में, हफ्ते महीनों में बदलते गए। उमती देवी रोज़ तीन-तीन घरों में झाड़ू-पोंछा, बर्तन और कपड़े धोने का काम करतीं। उनके हाथ खुरदरे हो गए, उंगलियों पर पुराने ज़ख्मों के निशान पड़ गए। लेकिन हर महीने की मेहनताना वह बिना एक रुपया अपने पास रखे बहू को सौंप देतीं।
राघव को फोन पर सिर्फ इतना कहतीं — “बेटा, यहाँ सब ठीक है, तू अपना ध्यान रख।”
सच्चाई का खुलासा
एक दिन अचानक उमती देवी काम पर जाते हुए अपना चश्मा भूल गईं। जब घर लौटीं तो दरवाज़े के पास रुक गईं। अंदर से यशोदा और उसकी माँ की बातचीत सुनाई दी।
यशोदा हँस रही थी — “अरे बुढ़िया अच्छा-खासा काम कर रही है। मुझे तो बस आराम ही आराम है। राघव को कहा है कि कारोबार में घाटा है, ताकि वह यहाँ से कुछ न पूछे और सास को मज़दूरी करने भेज दूँ।”
यह सुनते ही उमती देवी का दिल जैसे टूट गया। वह अंदर गईं और बहू से सवाल किया। लेकिन यशोदा ने धमकी दी — “अगर तुमने यह बात राघव को बताई तो मैं यह घर छोड़ दूँगी।”
उम्मीद की किरण
उसी इमारत में रहने वाले एक युवक ने उमती देवी से अनुरोध किया कि वह उसके लिए खाना बना दिया करें। धीरे-धीरे दोनों के बीच विश्वास बना। एक दिन युवक के घर पर खाना बनाते समय उमती देवी ने उसके फोन पर राघव की तस्वीर देखी। चौंककर पूछा — “यह फोटो तेरे फोन में क्यों है?”
युवक ने बताया — “ये हमारे विदेश वाले सप्लायर हैं।”
तभी उमती देवी का सब्र टूट गया। उन्होंने युवक को अपनी पूरी आपबीती सुना दी। युवक ने कहा — “अम्मा, यह अन्याय है। सच्चाई राघव को पता चलनी ही चाहिए।”
युवक ने तुरंत वीडियो कॉल पर राघव को सारा सच दिखा दिया।
बेटे की वापसी
स्क्रीन पर माँ की थकी हुई हालत देखकर राघव की आँखें भर आईं। उसने तुरंत कहा — “माँ, आप यह सब अकेले सहती रहीं और मुझे बताया तक नहीं। अब और नहीं। मैं आ रहा हूँ।”
दो दिन बाद राघव भारत लौटा। सबसे पहले माँ को गले लगाया और रोते हुए कहा — “माँ, मैंने आपको अकेला छोड़कर बहुत बड़ी गलती की।”
इसके बाद वह माँ को लेकर घर पहुँचा और यशोदा के सामने सारी सच्चाई रख दी।
क्षमा या दंड?
यशोदा पहले तो डर गई, फिर रोते हुए सास के पैरों में गिर पड़ी — “माँजी, मुझसे गलती हो गई। लालच में आकर मैंने आपको बहुत सताया। मुझे माफ़ कर दीजिए।”
राघव गुस्से में था। लेकिन फैसला माँ के हाथ में था। उमती देवी ने गहरी सांस ली और कहा — “गलती इंसान से होती है, लेकिन उसे मानकर सुधारना ही इंसानियत है। अगर तू सच में बदलना चाहती है, तो मैं तुझे माफ़ करती हूँ।”
उनके इस फैसले ने घर को टूटने से बचा लिया।
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