मोहनलाल जी की कहानी

शहर के व्यस्त चौराहे पर एक पुरानी पुलिस वैन आकर रुकी। उसकी नीली बत्ती की चमक ने शाम के धुंधले को चीर दिया। दरवाजा खुला और दो सिपाही एक बूढ़े आदमी को बाहर खींच लाए। उसके हाथों में हथकड़ी थी और आंखों में गहरी बेबसी थी। भीड़ जमा हो गई, लोग अपने घरों की बालकनियों से झांक रहे थे। दुकानों के शटर आधे गिरे थे और हर नजर उस बूढ़े चेहरे पर टिकी थी। कोई दया दिखा रहा था, कोई अविश्वास, लेकिन कोई आगे बढ़कर कुछ बोल नहीं रहा था।

वह बूढ़ा आदमी था मोहनलाल जी। जिसने अपनी पूरी जिंदगी अपने इकलौते बेटे रमेश और बहू सुनीता के लिए समर्पित कर दी थी। आज वही बेटा-बहू उन्हें बोझ समझकर जेल भिजवा रहे थे। मोहनलाल जी ने एक बार बेटे के आलीशान घर की ओर देखा। उसकी खिड़कियों से रोशनी छनकर आ रही थी और बालकनी में रमेश और सुनीता खड़े थे। उनकी आंखों में कोई पछतावा नहीं था, बस एक क्रूर मुस्कान थी।

मोहनलाल जी का जीवन एक छोटे से गांव में शुरू हुआ था। जहां मिट्टी की खुशबू और खेतों की हरियाली ही उनका संसार थी। पिता साधारण किसान थे, और मोहनलाल जी ने बचपन से ही खेतों में काम करना सीख लिया था। युवावस्था में ही पत्नी का निधन हो गया, लेकिन उनका इकलौता बेटा रमेश उनके जीवन का केंद्र बन गया। सारी खुशियां, सारे सपने रमेश के लिए कुर्बान कर दिए। दिन-रात मेहनत की, खेतों में पसीना बहाया, सिर्फ एक ही सपना था – रमेश को अच्छी शिक्षा मिले।

अपनी जमीन का एक हिस्सा बेचकर रमेश को शहर के अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवाया। रमेश पढ़ाई में होशियार था। उसने इंजीनियरिंग की डिग्री ली, बड़ी कंपनी में नौकरी पाई। मोहनलाल जी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था। रमेश की शादी सुनीता से हुई, जो पढ़ी-लिखी और आधुनिक थी। शुरुआत में सुनीता बहुत अच्छी थी, मोहनलाल जी की सेवा करती, प्यार से बात करती। मोहनलाल जी को लगा, उन्हें बेटी जैसी बहू मिली है।

लेकिन धीरे-धीरे सब बदल गया। शहर की हवा और आधुनिक जीवन ने सुनीता को बदल दिया। वह मोहनलाल जी को बोझ समझने लगी। उसे लगता था कि मोहनलाल जी उसकी आजादी छीनते हैं, उनके पुराने विचार उसे शर्मिंदा करते हैं। सुनीता रमेश से कहती, “तुम्हारे पिता बेकार हो गए हैं, वे सिर्फ बोझ हैं।” धीरे-धीरे रमेश भी सुनीता की बातों में आ गया। उसने अपने पिता से दूरी बना ली। मोहनलाल जी का दिल टूट गया। वह कमरे में बंद रहने लगे, खाना-पीना छोड़ दिया। उन्हें लगता था, उनकी जिंदगी का कोई मतलब नहीं बचा।

एक दिन सुनीता ने रमेश से कहा, “हमें अपने पिता से छुटकारा पाना होगा।” उसने एक खतरनाक योजना बनाई – मोहनलाल जी पर चोरी का झूठा इल्जाम लगाना। रमेश पहले हिचकिचाया, लेकिन सुनीता ने उसे मना लिया। उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस आई, मोहनलाल जी को गिरफ्तार कर लिया। मोहनलाल जी ने बेटे-बहू की ओर देखा, सवाल भरी नजरों से, लेकिन जवाब नहीं मिला।

जेल में मोहनलाल जी को बहुत अपमान सहना पड़ा। सिपाही उन्हें “बूढ़ा चोर” कहते, बासी खाना देते। मोहनलाल जी को अपने बेटे की बहुत याद आती थी, पुराने दिनों की यादें सताती थीं। उन्हें लगता था, उन्होंने अपनी जिंदगी में सबसे बड़ी गलती की है – बेटे को इतना प्यार देकर।

इसी शहर में एक युवा वकील था – आकाश। ईमानदार और न्यायप्रिय। उसे मोहनलाल जी के केस के बारे में पता चला। उसने ठान लिया कि वह मोहनलाल जी को न्याय दिलाएगा। आकाश ने मोहनलाल जी से जेल में मुलाकात की, उनकी पूरी कहानी सुनी। आकाश ने सबूत जुटाए, गवाहों से बात की, गांव जाकर लोगों से मोहनलाल जी के बारे में जानकारी ली। सबने कहा, “मोहनलाल जी ईमानदार हैं, उन्होंने कभी किसी का नुकसान नहीं किया।”

आकाश ने कोर्ट में केस लड़ा। उसने रमेश और सुनीता के झूठ को उजागर किया, सबूत पेश किए, गवाहों के बयान दिलवाए। कोर्ट में सच सामने आ गया – रमेश और सुनीता ने मोहनलाल जी पर झूठा इल्जाम लगाया था। न्यायाधीश ने रमेश और सुनीता को फटकार लगाई, उनकी गलती स्वीकार करवाई। मोहनलाल जी को बेगुनाह घोषित किया गया और तुरंत रिहा कर दिया गया। रमेश और सुनीता को जेल भेज दिया गया।

मोहनलाल जी की आंखों में खुशी के आंसू थे। उन्होंने आकाश को गले लगाया। आकाश ने कहा, “जीवन में कभी हार मत मानिए, पैसा सब कुछ नहीं होता। प्यार, सम्मान और इंसानियत सबसे महत्वपूर्ण है। माता-पिता कभी बोझ नहीं होते, उनका सम्मान करना चाहिए।”

दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्तों में प्यार और सम्मान सबसे जरूरी है। अपने माता-पिता का हमेशा सम्मान करें।