कोर्ट रूम की सुबह और एक बेटी की बहादुरी – प्रेरणादायक कहानी
सुबह-सुबह कोर्ट रूम में हल्की रोशनी गिर रही थी। पुरानी लकड़ी की बेंचें और ऊंची छत उस जगह को और भी गंभीर बना रही थी। सबकी नजर दरवाजे पर थी, जैसे किसी खास इंसान का इंतजार हो। तभी एक पतली सी लड़की, स्कूल यूनिफार्म जैसी ड्रेस पहने अंदर आई। उसके हाथ कांप रहे थे, मगर आंखों में दृढ़ता थी। वह धीरे-धीरे जज के सामने जाकर झुककर नमस्ते करती है।
जज साहब ने चश्मा नीचे सरकाते हुए पूछा, “तुम कौन हो? तुम्हारे वकील कहां हैं?” पूरे कोर्ट में कानाफूसी होने लगी। लोग सोच रहे थे, यह बच्ची यहां क्या करने आई है? लड़की ने गहरी सांस ली, फाइल को सीने से कसकर पकड़ लिया और साफ आवाज में बोली, “मैं अपनी मां की वकील हूं, मान्यवर।” उसकी आवाज में ना डर था ना झिझक, जैसे यह उसका आखिरी दांव हो।
पत्रकारों के कैमरे क्लिक करने लगे। लोगों के चेहरे पर आश्चर्य था। जज ने कुछ पल उसे देखा, फिर बोले, “तुम्हें पता है तुम किस जगह खड़ी हो?” लड़की ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “हां, मुझे पता है। यहां सच को सुनने और देखने की जगह है।” उसके शब्दों ने कोर्ट की हवा बदल दी। सबको लगा यह कोई साधारण मुकदमा नहीं, कुछ अलग होने वाला है।
अदिति की यादों में वह दिन ताजा था जब सब कुछ बदल गया था। उसकी मां, सीमा देवी, एक छोटी कंपनी में अकाउंटेंट थीं। महीने भर पहले अचानक पुलिस आई और चोरी व गबन के आरोप में उन्हें पकड़ ले गई। अदिति समझ ही नहीं पाई कि रातोंरात उसकी मां अपराधी कैसे बन गई। पड़ोसियों ने ताने मारे, रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया। असली सच यह था कि कंपनी का मालिक अपने काले पैसे छुपाने के लिए किसी बलि के बकरे की तलाश में था और सीमा देवी सबसे आसान शिकार बनीं।
अदिति ने एक-एक कागज पढ़ा, मां के सारे पुराने फाइल्स खंगाले, हर जगह से सबूत जुटाए—ईमेल, बैंक स्टेटमेंट, पुराने लेनदेन। जब उसने कई वकीलों से जाकर बात की तो सबने पैसे मांगे, कुछ ने मजाक भी उड़ाया। “बेटी, यह बड़ा केस है, बच्चों का खेल नहीं।” मगर अदिति हार मानने वालों में नहीं थी। उसने स्कूल की पढ़ाई छोड़कर कानूनी किताबें पढ़नी शुरू कर दीं। देर रात तक इंटरनेट पर केस स्टडीज और धाराएं पढ़ती रहती। कागजों पर नोट्स बनाती। अपनी मां को जेल में जाकर उम्मीद देती—”मां, मैं आपको बाहर निकालूंगी।”
उसकी उम्र छोटी थी, लेकिन इरादा बड़ा। वह जानती थी, अगर उसने आवाज नहीं उठाई तो उसकी मां हमेशा के लिए अपराधी बन जाएगी। सुनवाई का दिन आ पहुंचा। अदालत में भीड़ कुछ ज्यादा थी। लोग जानना चाहते थे कि वह नाबालिग लड़की अपनी मां की पैरवी कैसे करेगी।
कंपनी का चमकदार वकील, जो बड़े-बड़े केस जीतने के लिए मशहूर था, मुस्कुराता हुआ अदिति को देख रहा था। उसने धीमी आवाज में अपने साथी से कहा, “यह बच्ची हमें टक्कर देगी?” और फिर जोर से बोल पड़ा, “मान्यवर, यह कोर्ट रूम है, कोई स्कूली प्रतियोगिता नहीं। यह लड़की नियमों को नहीं समझती।”
अदिति ने बिना झिझके जज की तरफ देखा, “मान्यवर, मुझे कानून के मूल अधिकारों के तहत अपनी मां की पैरवी करने का अधिकार है। मैंने सबूत और गवाह तैयार कर रखे हैं।” उसकी आवाज इतनी स्थिर थी कि पूरे हॉल में खामोशी फैल गई।
उसने अपना पहला सबूत रखा—कंपनी के ईमेल्स की प्रिंट आउट। फिर मोबाइल रिकॉर्डिंग चलाई, जिसमें मैनेजर पैसे के बारे में बात कर रहा था। कंपनी के वकील ने बीच में टोका, “आपत्ति!” लेकिन जज ने अदिति की तैयारी देखकर कहा, “आपत्ति दर्ज की गई, मगर लड़की को पूरा बोलने दें।”
लोगों के चेहरे पर हैरानी थी। इतनी कम उम्र की लड़की ना सिर्फ नियम जानती थी, बल्कि अदालत में बोलने का आत्मविश्वास भी रखती थी। जज की आंखों में पहली बार सम्मान की झलक थी। जैसे उन्हें यकीन हो गया हो कि यह लड़की यहां कुछ बड़ा साबित करने आई है।
गवाहों को बुलाने का समय आ गया। अदिति ने गहरी सांस लेकर अपनी नोटबुक खोली और पहला नाम पुकारा। सामने कंपनी का वरिष्ठ मैनेजर खड़ा था, जिसने सीमा देवी पर चोरी का आरोप लगाया था। अदिति ने सीधा सवाल किया, “क्या आप बता सकते हैं उस दिन आप कहां थे जब पैसे गायब हुए?” मैनेजर घबराकर बोला, “मैं ऑफिस में था।” अदिति ने मुस्कुराकर एक कागज उठाया, “सीसीटीवी फुटेज कहता है कि आप उसी समय बैंक में थे। क्या आप इसे भी झुठलाएंगे?”
कोर्ट रूम में खुसरपुसर शुरू हो गई। गवाह की पेशानी पर पसीना आ गया। अदिति ने दूसरा गवाह बुलाया—एक जूनियर अकाउंटेंट, जिसने पहले कंपनी के दबाव में झूठ बोला था। उसके सवाल इतने तेज और साफ थे कि वह टूट गया। उसने मान लिया कि कंपनी के मालिक ने सबको डराकर सीमा देवी के खिलाफ बयान दिलवाया था।
जज ध्यान से हर शब्द सुन रहे थे। जैसे-जैसे गवाह सच उगलते गए, कोर्ट का माहौल बदलता गया। पत्रकार कैमरे में हर पल कैद कर रहे थे। कंपनी के वकील का आत्मविश्वास धीरे-धीरे पिघलने लगा। उस पल अदालत में सभी को एहसास हो रहा था—यह लड़की कोई साधारण वकील नहीं, बल्कि अपनी मां के लिए न्याय की जंग लड़ने वाली योद्धा है।
अदिति ने अब अपनी सबसे मजबूत दलील पेश करने की तैयारी कर ली थी। उसने अपनी फाइल से एक मोटा दस्तावेज निकाला, जिसमें कंपनी के लेनदेन की असली एंट्रियां और छिपाए गए रसीदें थीं। उसने अदालत के बीचोंबीच खड़े होकर कहा, “मान्यवर, मेरी मां पर जो आरोप लगाए गए हैं, वे पूरी तरह झूठे हैं। ये रहे वे सबूत जो दिखाते हैं कि पैसे कंपनी के मालिक के निजी अकाउंट में ट्रांसफर हुए, ना कि मेरी मां के पास।”
कंपनी के वकील ने झुंझलाकर कहा, “यह बच्ची अदालत को गुमराह कर रही है।” अदिति ने बिना डरे जवाब दिया, “मैं गुमराह नहीं कर रही, मैं सच दिखा रही हूं। अगर चाहे तो बैंक से सीधा कंफर्म कर लें।” उसने फिर कानून की धाराओं का हवाला दिया, धारा दर धारा बताते हुए समझाया कि किस तरह उसकी मां निर्दोष है और किस तरह कंपनी ने दस्तावेजों में हेराफेरी की।
जज ने गंभीर होकर सब देखा-सुना। गवाह भी अब सच का साथ देने लगे थे। कोर्ट रूम का माहौल पूरी तरह पलट गया था। जहां सुबह सबको अदिति पर शक था, अब वही लोग उसकी बहादुरी की तारीफ कर रहे थे। कंपनी के वकील की आवाज धीमी पड़ गई, और उसके चेहरे से आत्मविश्वास गायब हो गया।
अदिति ने आखिर में कहा, “मेरी मां ने अपनी जिंदगी ईमानदारी से बिताई है। उन्हें सिर्फ एक बलि का बकरा बनाया गया। न्याय मांगना अपराध नहीं, अधिकार है।” पूरा हॉल सन्न था, सिर्फ उसकी आवाज गूंज रही थी।
अदालत में सबकी निगाहें जज साहब पर थीं। पूरे दिन की सुनवाई के बाद वे कुछ पल चुप बैठे रहे, जैसे हर सबूत और हर गवाही को फिर से तौल रहे हों। हवा में गहरी खामोशी थी। अदिति अपनी मां का हाथ पकड़े खड़ी थी। उसकी आंखों में थकान भी थी और उम्मीद भी।
जज ने भारी आवाज में फैसला पढ़ना शुरू किया, “सीमा देवी पर लगाए गए सभी आरोप झूठे और निराधार पाए जाते हैं। असली अपराध कंपनी के मालिक और उसके सहयोगियों ने किया है। पुलिस तुरंत कार्रवाई करे।”
जैसे ही ये शब्द अदालत में गूंजे, अदिति की मां के चेहरे पर वर्षों का बोझ उतर गया। उनकी आंखों में आंसू थे, मगर चेहरे पर मुस्कान। अदिति वहीं खड़ी रह गई। कुछ सेकंड के लिए उसे यकीन नहीं हुआ कि वह जीत गई है। मीडिया के कैमरे चमकने लगे, लोग उठकर ताली बजाने लगे।
जज साहब ने अदिति की ओर देखकर हल्की मुस्कान के साथ कहा, “आज तुमने साबित किया कि न्याय के लिए उम्र या डिग्री नहीं, हिम्मत और सच्चाई चाहिए।” अदिति ने अपनी मां को गले लगा लिया। वह पल सचमुच अद्भुत था, ना सिर्फ उसके परिवार के लिए बल्कि पूरे कोर्ट रूम के लिए। जिसने देखा कि एक बेटी ने अपनी मां के लिए कानून के मंदिर में न्याय का दीपक जला दिया।
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