जिस महिला को ऑटो चालक ने बचाया वह आईपीएस अधिकारी थी उसके बाद उस ऑटो चालक का क्या हुआ…
आईपीएस नीरा चौहान और ऑटो ड्राइवर रज्जाक की इंसानियत और बहादुरी की मिशन
लखनऊ की हल्की धूप भरी सुबह थी। शहर की भीड़ और शोर में एक पुराना पीला-हरा ऑटो रिक्शा चल रहा था। उसका ड्राइवर रज्जाक, चालीस पार का दुबला-पतला आदमी, चेहरे पर झुर्रियां लेकिन आंखों में सादगी। उसकी जिंदगी की पूंजी मेहनत थी, और हथियार ईमानदारी। वह दिनभर सवारी ढूंढता ताकि बीमार बीवी की दवा और बेटे की स्कूल फीस भर सके।
चारबाग स्टेशन पर एक महिला ने ऑटो को हाथ दिया। नीला साधारण सूट, काला चश्मा, हल्की चुन्नी, चेहरे पर थकावट लेकिन चाल में आत्मविश्वास। रज्जाक ने पूछा – “किधर जाना है मैडम?”
उसने जवाब दिया – “बक्शी का तालाब, और जल्दी।”
रास्ते में महिला चुप थी, बार-बार बैग कसकर पकड़ रही थी। रज्जाक ने बात करने की कोशिश की, लेकिन महसूस किया कि वह परेशान है।
करीब आधा घंटा बीता कि अचानक महिला की सांसें तेज हो गईं, चेहरा पीला पड़ गया, और वह बेहोश होकर सीट पर गिर पड़ी।
रज्जाक घबरा गया, ऑटो रोका और महिला को गोद में उठाकर पास के अस्पताल भागा।
रिसेप्शन पर चिल्लाया – “जल्दी डॉक्टर को बुलाओ, मैडम को सांस नहीं आ रही!”
डॉक्टरों ने तुरंत इलाज शुरू किया। पता चला कि महिला के खून में ज़हर के हल्के अंश थे, जो किसी ने खाने या पानी में मिला दिया था। समय पर इलाज मिलने से उसकी जान बच गई।
रज्जाक वहीं बैठा रहा, पसीने से लथपथ, बस यही सोचता रहा कि एक इंसान की जान बचानी है। उसे नहीं पता था कि जिसके लिए वह दौड़ रहा है, वह कोई आम महिला नहीं बल्कि राज्य की तेजतर्रार आईपीएस अधिकारी नीरा चौहान है, जो मानव तस्करी के बड़े गिरोह को पकड़ने मिशन पर निकली थी।
अस्पताल में नीरा को होश आया। डॉक्टर ने बताया कि जहर की मात्रा ज्यादा होती तो जान खतरे में थी, लेकिन ऑटो ड्राइवर ने समय पर लाकर जान बचा ली।
नीरा ने खिड़की से देखा – वही ऑटो वाला दरवाजे के पास बैठा है, थकावट के बावजूद आंखों में चिंता।
नीरा ने नर्स से कहा – “उसे बुलाओ, मैं बात करना चाहती हूं।”
रज्जाक सिर झुकाए आया –
“मैडम, माफ कीजिएगा, मैंने आपको पहचान नहीं पाया। मैंने तो बस इंसान समझकर…”
नीरा ने मुस्कुरा कर कहा – “यही सबसे बड़ी बात है। तुमने मुझे पद नहीं, इंसान समझा। तुम्हारा शुक्रिया अदा करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।”
रज्जाक असहज हो गया –
“बस इतना जानता हूं कि कोई रास्ते में गिरे तो उठाना चाहिए। यही मेरे अब्बा सिखा गए थे।”
नीरा उसकी सादगी से भीतर तक छू गई।
“क्या करते हो?”
“ऑटो चलाता हूं, मैडम। बेटे की फीस भरना मुश्किल होता है।”
नीरा ने अस्पताल के रिसेप्शन पर एक लिफाफा छोड़ा – कुछ पैसे और एक पर्चा,
“यह मदद नहीं, सम्मान है। आपने वर्दी को नहीं, इंसान को बचाया है।”
रज्जाक ने पैसे लेने से मना कर दिया, सिर्फ वह पर्चा अपने पास रखा।
मिशन की नई शुरुआत
नीरा अब पूरी तरह ठीक होकर मिशन पर लौटी। लेकिन अब अकेली नहीं थीं – उन्हें रज्जाक की जरूरत महसूस हुई।
उन्होंने रज्जाक को भरोसे में लिया, एक कैमरा और वायरलेस डिवाइस दी, ताकि वह संदिग्ध बातचीत रिकॉर्ड कर सके।
एक दिन रज्जाक ने ऑटो में एक आदमी को बिठाया, जो मोबाइल पर बात कर रहा था –
“नई लड़की आई है, खूबसूरत है, बड़े साहब देखेंगे तो सब समझ जाएंगे।”
रज्जाक ने सब रिकॉर्ड किया और नीरा को सौंप दिया।
अब पता चला कि यह सिर्फ एक छोटा गैंग नहीं, बल्कि झुग्गी बस्तियों से कॉलेजों तक फैला बड़ा नेटवर्क था, जिसमें कुछ पुलिसवाले भी शामिल थे।
रज्जाक के एक पुराने जानने वाले ने उसे गैंग में शामिल होने का ऑफर दिया। नीरा ने योजना बनाई – रज्जाक को उस आदमी से दोबारा मिलने भेजा, ट्रैकर और रिकॉर्डिंग डिवाइस के साथ।
रज्जाक को एक लड़की को दूसरे शहर पहुंचाने का काम दिया गया। जगह, समय, गाड़ी नंबर सब रिकॉर्ड कर लिया।
अब नीरा के पास पूरे सबूत थे – शहर के प्रभावशाली नेता का बेटा, विवेक सिंह, इस रैकेट का मास्टरमाइंड था।
अंतिम ऑपरेशन
नीरा ने एक विशेष टीम बनाई – सिर्फ भरोसेमंद पुलिसवालों के साथ।
रज्जाक को एक आखिरी काम दिया गया – गोदाम में होने वाली डील में शामिल होना।
रात के अंधेरे में रज्जाक ऑटो लेकर उस गोदाम पहुंचा, पासवर्ड बोला – “शाम की चाय ठंडी ना हो।”
अंदर तीन-चार डरी-सहमी लड़कियां, सिगार पीते आदमी, और नेता का बेटा विवेक सिंह।
वह कैमरा सब कुछ रिकॉर्ड कर रहा था।
नीरा ने टीम को कोड वर्ड दिया – “साया उतर रहा है।”
पुलिस ने चारों तरफ से गोदाम घेर लिया। सायरन, बंदूकें, अफरातफरी।
अपराधियों की आंखों में पहली बार डर था।
नीरा खुद विवेक के सामने आई –
“बहुत सालों से बचते आ रहे थे, अब न्याय से मिलो।”
लड़कियों को सुरक्षित बाहर निकाला गया।
रज्जाक वहीं खड़ा था, जैसे सपना पूरा होते देख रहा हो।
सम्मान और नई शुरुआत
ऑपरेशन पूरी तरह सफल रहा।
मीडिया में सुर्खियां – “आईपीएस नीरा चौहान की टीम ने बचाई दर्जनों लड़कियों की जिंदगी, नेता के बेटे की गिरफ्तारी, ऑटो ड्राइवर बना सबसे बड़ा गवाह।”
रज्जाक को राज्यपाल के विशेष सम्मान समारोह में बुलाया गया।
मंच पर गवर्नर ने कहा –
“यह वह आदमी है जिसने वर्दी से पहले इंसान को पहचाना।”
रज्जाक की आंखों में आंसू थे –
“मेरे अब्बा कहते थे कि अगर इंसानियत नहीं बची तो कुछ नहीं बचेगा। मैं सिर्फ वही करने की कोशिश कर रहा था।”
नीरा ने जन प्रहरी अभियान शुरू किया – आम नागरिकों को अपराध रोकने के लिए जागरूक किया जाने लगा।
पहला नाम – रज्जाक।
अब वह ऑटो चलाते हुए युवाओं को सिखाता – “ईमानदारी सिर्फ किताबों में नहीं, रास्तों पर भी जिंदा रह सकती है।”
उसका बेटा पुलिस की तैयारी कर रहा था –
“क्योंकि मेरे अब्बा ने एक आईपीएस को जमीन पर गिरने से पहले थाम लिया था।”
सीख और समापन
नीरा अब सिर्फ कानून की रक्षक नहीं, दबे हुए आवाजों की संरक्षक थीं।
रज्जाक अब सिर्फ ऑटो ड्राइवर नहीं, समाज की सच्ची इंसानियत की मिसाल था।
सीख:
इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है। पद, पैसा, रुतबा – सब बाद में।
अगर दिल में सच्चाई और मदद का जज्बा हो, तो आम इंसान भी हीरो बन सकता है।
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