IPS मैडम सड़क किनारे गुप्त मिशन पर बैठी थी ; दरोगा ने बदतमीजी की फिर मैडम ने जो किया …..
.
.
IPS अधिकारी साक्षी राजपूत: एक साहसी कहानी
गर्मियों की दोपहरी थी, सूरज आग बरसा रहा था। सड़क पर उड़ती धूल और ट्रैफिक का शोर हर किसी के सब्र की परीक्षा ले रहा था। इस भीड़भाड़ के बीच एक महिला सादा सलवार सूट पहने हुए तेज कदमों से सड़क किनारे खड़ी थी। वह कोई आम महिला नहीं थी; वह थी आईपीएस अधिकारी साक्षी राजपूत। मगर आज वह अपनी वर्दी में नहीं थी। किसी जरूरी निजी काम से निकलना था और गाड़ी अचानक खराब हो गई थी। मजबूरन उन्हें सड़क से एक ऑटो लेना पड़ा।
ऑटो में पहले से एक आदमी बैठा था। मोटा शरीर, चेहरे पर बड़ा गहरा चश्मा और निगाहों में कुछ अजीब सी घबराहट। साक्षी ने जल्दी में ज्यादा ध्यान नहीं दिया और बैठने की इजाजत मांगी। ऑटो चल पड़ा। कुछ मिनटों की खामोश सफर के बाद वह आदमी धीरे से मुस्कुराने लगा। बोला, “बहन जी, कहां जा रही हैं? इतनी जल्दी में।”
साक्षी ने बिना कोई भाव बदले शांत लहजे में कहा, “काम से जा रही हूं। अकेले ही जा रही हूं।” लेकिन उस आदमी की नजरें अब भी उसकी तरफ ही टिकी थी। कुछ पल बाद उसने धीमी आवाज में कहा, “आप तो बहुत सुंदर हैं। आपको तो फिल्मों में होना चाहिए।”
साक्षी का चेहरा सख्त हो गया। उसने स्टर्न आवाज में कहा, “दे मुझे परेशान मत कीजिए। मैं सिर्फ अपनी मंजिल तक जाना चाहती हूं।” पर वह व्यक्ति नहीं रुका। फिर बोला, “अगर कहो तो मैं छोड़ देता हूं आपको। वैसे आज रात का क्या प्लान है?”
इतना सुनते ही, साक्षी का धैर्य जवाब दे गया। उसने झटके से उसकी तरफ देखा और पूरी ताकत से एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया। ऑटो अचानक रुक गया। “तमीज में रहो,” साक्षी गरज उठी। ऑटो चालक भी डर गया। पर उस आदमी ने अचानक अपनी जेब से पुलिस का पहचान पत्र निकाला और ठहाका मारते हुए बोला, “तू जानती नहीं मैं कौन हूं। मैं हूं दरोगा राकेश वर्मा। इस इलाके का। वर्दी पर हाथ उठाया है तूने। अब देखता हूं तुझे कैसे छोड़ता हूं।”
साक्षी ने उसकी आंखों में गुस्से से आंखें डालते हुए कहा, “वर्दी का मतलब चरित्र नहीं होता। तुम जैसे लोग वर्दी की इज्जत को मिट्टी में मिलाते हो।” पर दरोगा अब आपा खो चुका था। उसने तुरंत फोन घुमा दिया। कुछ ही मिनटों में पुलिस की जीप आ पहुंची। दो सिपाही उतरे और बिना किसी सवाल जवाब के साक्षी को खींचने लगे।
साक्षी ने विरोध किया। चिल्लाई लेकिन भीड़ बस तमाशा देख रही थी। कुछ लोग मोबाइल से वीडियो बनाने लगे पर कोई आगे नहीं आया। दरोगा राकेश ने उसके बाल पकड़कर उसे खींचते हुए जीप में धकेल दिया। आईपीएस साक्षी राजपूत, जिसने ना जाने कितने अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया था, आज खुद अपराधी की तरह घसीटी जा रही थी। उसकी आंखें गुस्से से लाल थी, लेकिन उसमें डर नहीं था। बस मन ही मन एक संकल्प बार-बार गूंज रहा था, “अब इस सिस्टम को भीतर से देखूंगी। हर उस भेड़िए का सच सामने लाऊंगी जो वर्दी की आड़ में दरिंदगी करता है।”
थाने में पहुंचते ही दरोगा ने ठहाका लगाते हुए कहा, “अब दिखाता हूं तुझे तेरी औकात। बहुत हिम्मत है ना तुझ में।” साक्षी राजपूत के भीतर अब केवल उसकी अपनी नहीं बल्कि हर उस महिला की पीड़ा सुलगने लगी थी जो इस तंत्र की दीवारों में दम तोड़ती है।
दोस्तों, कहानी में आगे क्या होता है? जानने के लिए बने रहिए इस वीडियो में। वीडियो की समाप्ति तक थाने में दाखिल होते ही दरोगा राकेश वर्मा की आवाज गूंज उठी। “नाटक बहुत कर लिया तूने। अब यहीं समझ में आएगा कि कानून से खेलने का अंजाम क्या होता है।”
साक्षी राजपूत जो एक ऊंचे ओहदे की आईपीएस अफसर थी, लेकिन आज एक आम महिला की तरह उस थाने में घसीटी जा रही थी। उनकी मुट्ठी कस चुकी थी। चेहरे पर भाव शून्य थे, पर भीतर एक तूफान खौल रहा था। उन्होंने मन में ठान लिया था। अब यह लड़ाई सिर्फ मेरी नहीं है। यह उस महिला की लड़ाई है जिसे सिस्टम ने हमेशा कमजोर समझा है।
चुप कराया है। थाने के भीतर का माहौल गर्म था। दीवारों पर लगी नेताओं और अधिकारियों की तस्वीरें धूल से धुंधली हो चुकी थी। जैसे खुद व्यवस्था की आंखें अब साफ नहीं देख पा रही थी। फर्श पर फैली गंदगी, दीवारों की दरारें, खिड़कियों की जाली में फंसी पॉलिथीनें सब कुछ उस जगह की सच्चाई बयां कर रहे थे।
साक्षी को एक आम अपराधी की तरह भीतर लाया गया। कोई यह नहीं जानता था कि यह वही महिला है जिसने कई गैंगस्टरों को गिरफ्तार किया है। नक्सल ऑपरेशन लीड किए हैं और जिसके साहस पर किताबें लिखी गई हैं। एक महिला कांस्टेबल ने रजिस्टर उठाया और तिरछे लहजे में पूछा, “नाम क्या है तेरा?” साक्षी की आंखों में एक शांत लेकिन दृढ़ रोशनी थी। उन्होंने सीधे जवाब दिया, “नाम नहीं बताना। जो करना है कर लो।”
दरोगा राकेश बीच में बोल पड़ा, “ऐसी बहुत देखी है साहब। 2 दिन में सब उगल देंगी।” टीएसपी ने दरोगा को चुप रहने का इशारा किया। फिर साक्षी की ओर देखते हुए शांत स्वर में पूछा, “बताओ सीमा, तुम यहां क्यों हो?”
साक्षी ने कोई सीधा उत्तर नहीं दिया। उसकी आवाज में गहरी पीड़ा थी। उसने बस इतना कहा, “सर, क्या आपने कभी जेल की चार दीवारी के भीतर का सच देखा है? बाहर से यह दीवारें ईंट और पत्थर की लगती है, मगर अंदर यह दीवारें इंसान को निगल जाती है।” कमरे में एक गहरा सन्नाटा छा गया।
डीएसपी त्रिपाठी उसकी आंखों में देख रहे थे। अब उन्हें पूरा यकीन हो चुका था। इस महिला में कुछ तो खास है। ना डर, ना गिड़गिड़ाहट। बस आत्मविश्वास। उसकी आंखों में सच्चाई की आग थी। उन्होंने फिर पूछा, “तुम कौन हो सीमा?”
इस बार भी साक्षी ने कोई शब्द नहीं बोले। उसने बस धीरे से अपने मुंह की पट्टी हटाई और नीचे की गंदी जमीन पर अपनी उंगली से लिख दिया, “सिस्टम में बदलाव लाने के लिए पहले खुद को मिटाना पड़ता है।” उसके इस एक वाक्य ने महिला बंदियों के भीतर की ज्वाला भड़का दी।
सभी ने अपनी पट्टियां उतार दी और एक स्वर में गूंज उठी, “हमें न्याय चाहिए। हमें इंसान समझो गुनहगार नहीं।” थाने की दीवारें अब साक्षी के लिए सिर्फ ईंट पत्थर की बनी इमारत नहीं रही। यह अब गवाह बन चुकी थी। उस संघर्ष की, उस जंग की जो उसने खुद से और इस सड़े हुए तंत्र से शुरू की थी।
पिछली रात बंदियों की आंखों में छिपा दर्द, उनकी दबी चीखें अब साक्षी के सीने में अंगारे बनकर धक रही थी। वह जानती थी कि अब यह लड़ाई भीतर की सच्चाई को बाहर लाने तक रुकेगी।
नहीं। पर अपनी असली पहचान उजागर करना अभी उसके लिए सही वक्त नहीं था। अब उसका एक ही लक्ष्य था। सबूत इकट्ठा करना और सही समय पर वार करना। इसी बीच इंस्पेक्टर राकेश वर्मा अब भी उसे नीचा दिखाने और तोड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा था। उसके लिए अब सीमा एक चुनौती बन चुकी थी। एक ऐसी महिला जिसे डराया नहीं जा सकता था, जिसे तोड़ना बहुत जरूरी था।
और तभी दोपहर में थाने में एक नया मामला आया। दोस्तों, याद रखना सच्ची क्रांति तख्तों पर नहीं, बंद दीवारों के भीतर जन्म लेती है। जो डर के आगे डट जाए वही बदलाव का बीज बोता है।
दोपहर की तेज धूप थाने की दीवारों पर पड़ रही थी। उसी समय वहां हलचल मच गई। एक नई युवती को पकड़कर लाया गया था। पुलिस का आरोप था संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त। वह लड़की बार-बार रो रही थी। “मैं निर्दोष हूं। मैंने कुछ नहीं किया। प्लीज मुझे छोड़ दीजिए।” किसी ने उसकी नहीं सुनी। हर सवाल पर उसके आंसू ही जवाब थे।
साक्षी राजपूत ने जब उसे पहली बार देखा तो उसकी आंखों में वही दहशत देखी जो पिछले कई दिनों से वह खुद भी महसूस कर रही थी। एक दबा हुआ दर्द जो चीखना चाहता था लेकिन उसे आवाज नहीं मिल पा रही थी। साक्षी ने धीरे से उसके पास जाकर पूछा, “तुम्हारा नाम?”
लड़की ने सिसकते हुए जवाब दिया, “शालिनी, मैं कॉलेज में पढ़ती हूं। मेरी मां बीमार है। दवा लेने बाजार गई थी। तभी पुलिस ने पकड़ लिया।” साक्षी ने उसके कांपते कंधे पर हाथ रखा और भरोसा दिलाते हुए कहा, “घबराओ मत, मैं कुछ करूंगी।”
रात के गहरे सन्नाटे में जब सारे सिपाही अपने कमरों में थे, साक्षी चुपचाप शालिनी के पास पहुंची और धीरे से फुसफुसाई, “सच बताओ, क्या हुआ है?” शालिनी ने चारों ओर देखा कि कहीं कोई सुन तो नहीं रहा। फिर बहुत धीमे स्वर में बोली, “मैडम जी, यह सब पुलिस और दलालों का खेल है। वे लड़कियों को उठाते हैं। अगर घर वाले पैसे दे दें तो छोड़ देते हैं, नहीं तो उन्हें वेश्या बनाकर धंधे में धकेल देते हैं।”
साक्षी की आंखों में गुस्से की लहर दौड़ गई। तुम्हें कैसे पता? उसने पूछा। शालिनी की आवाज और धीमी हो गई। “क्योंकि मेरी एक सहेली भी ऐसे ही यहां लाई गई थी। अब वह यहां नहीं है। उसका नाम फाइलों में कहीं नहीं है, जैसे उसे मिटा दिया गया हो।” यह सुनकर साक्षी समझ गई कि यह खेल सिर्फ थाने के भीतर का नहीं बल्कि एक बड़े गिरोह का हिस्सा है।
अगले दिन जब डीएसपी अमितेश त्रिपाठी निरीक्षण पर आए, तब साक्षी ने कुछ फाइलें उनके सामने रख दी। वे सारे केस थे जो फर्जी तरीके से बनाए गए थे या जिन पर कोई कार्रवाई ही नहीं हुई थी। डीएसपी ने गंभीरता से फाइलें देखी। उनकी भृें चढ़ गई। उन्होंने सख्त आवाज में पूछा, “तुम्हें यह सब कैसे मिला?”
साक्षी ने दृढ़ता से कहा, “सच बोलने के लिए पद नहीं, हिम्मत चाहिए सर।” डीएसपी ने उसकी आंखों में देख रहे थे। अब उन्हें पूरा यकीन हो चुका था। यह महिला कोई साधारण कैदी नहीं है।
नेहा ने साक्षी के कहे अनुसार उसी रात से गुप्त जांच शुरू कर दी। वह अब पूरे थाने को गहराई से खंगाल रही थी। पुराने रिकॉर्ड देखे, सीसीटीवी फुटेज निकाले। महिला बंदियों से अकेले में बयान ली। धीरे-धीरे एक संगठित रैकेट की परतें खुलने लगी।
दरोगा राकेश वर्मा, उसके दलाल और कुछ वरिष्ठ अफसर इसमें शामिल थे। अब यह क्रांति शहर से बाहर तक फैलने लगी थी। मीडिया भी अब खुलकर इस मुहिम के साथ आ खड़ा हुआ था।
साक्षी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। मंच पर खड़ी साक्षी की आवाज में सच्चाई की ताकत थी। “यह सिर्फ एक महिला अवसर की जीत नहीं है। यह हर उस औरत की जीत है जिसने सालों से चुप रहकर अन्याय सहा।”
यहां तक कि मुख्यमंत्री ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया। जैसे-जैसे समय बीतता गया, साक्षी की मेहनत रंग लाने लगी। अब पूरे प्रदेश में साक्षी का नाम हर अखबार की सुर्खी बन चुका था।
अंततः, साक्षी ने अपनी पहचान को फिर से स्थापित किया। वह सिर्फ एक आईपीएस अधिकारी नहीं थी, बल्कि अब वह एक आंदोलन बन चुकी थी। उन्होंने पूरे प्रदेश को दिखा दिया कि चाहे एक महिला वर्दी में हो या आम कपड़ों में, अगर वह न्याय के लिए उठे तो पूरा समाज उसकी ताकत बन जाता है।
इस तरह, साक्षी राजपूत ने न केवल अपने लिए, बल्कि हर उस महिला के लिए एक नई लड़ाई की शुरुआत की, जो अपने हक के लिए लड़ी थी। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चाई और न्याय की लड़ाई कभी खत्म नहीं होती।
दोस्तों, यह थी हमारी आज की कहानी। आप सभी को कैसी लगी, कमेंट बॉक्स के माध्यम से हमें जरूर बताएं। हमारे चैनल स्माइल वॉइस को सब्सक्राइब करना न भूलें। मिलते हैं ऐसी ही इंटरेस्टिंग और खतरनाक कहानी के साथ। तब तक के लिए आप सभी का तह दिल से धन्यवाद। जय श्री राम।
.
News
मासूम बच्चे ने सिर्फ खाना मांगा था, करोड़पति पति–पत्नी ने जो किया…
मासूम बच्चे ने सिर्फ खाना मांगा था, करोड़पति पति–पत्नी ने जो किया… यह कहानी राजस्थान के झुंझुनू जिले के छोटे…
Sad News for Amitabh Bachchan Fans as Amitabh Bachchan was in critical condition at hospital!
Sad News for Amitabh Bachchan Fans as Amitabh Bachchan was in critical condition at hospital! . . Amitabh Bachchan’s Hospitalization…
Aishwarya Rais Shocking Step Sued with Bachchan Family & Move to Delhi Court for Linkup with Salman?
Aishwarya Rais Shocking Step Sued with Bachchan Family & Move to Delhi Court for Linkup with Salman? . . Bollywood…
कोच्चि दहल उठा: मछली पकड़ने वाली नाव के डिब्बे से 36 शव बरामद, सीमा पर छिपा चौंकाने वाला सच
कोच्चि दहल उठा: मछली पकड़ने वाली नाव के डिब्बे से 36 शव बरामद, सीमा पर छिपा चौंकाने वाला सच ….
एक अरबपति एक टोकरी में एक बच्चे को पाता है और सच्चाई उसे हमेशा के लिए उसकी नौकरानी से जोड़ देती है
एक अरबपति एक टोकरी में एक बच्चे को पाता है और सच्चाई उसे हमेशा के लिए उसकी नौकरानी से जोड़…
Avika Gor’s grand Wedding with Milind Chandwani on National TV with Tv Actors and Family
Avika Gor’s grand Wedding with Milind Chandwani on National TV with Tv Actors and Family . . Avika Gor and…
End of content
No more pages to load