वह बच्चा अपनी बीमार माँ के लिए भीख माँग रहा था, पुलिस वाले ने उसे पकड़ा और पीटा, फिर क्या हुआ…

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मासूम राजू और इंस्पेक्टर वर्मा की कहानी

दिल्ली के एक व्यस्त चौराहे पर रोज़ाना कई लोग आते-जाते थे। यहाँ गाड़ियों का शोर, लोगों की भीड़ और जीवन की भागदौड़ का मेला लगा रहता था। इसी चौराहे पर एक दस साल का लड़का राजू भीख मांगता था। उसके फटे-पुराने कपड़े और धूल से सना चेहरा उसकी गरीबी की कहानी बयां कर रहे थे। लेकिन उसकी आंखों में एक चमक थी, जो उसकी मासूमियत और उम्मीद को दर्शाती थी।

राजू की दुनिया उसकी बीमार मां, गायत्री के इर्द-गिर्द घूमती थी। वे एक छोटी सी झुग्गी में रहते थे, जिसकी छत तिनकी की बनी थी और दीवारें प्लास्टिक की चादरों से ढकी थीं। बारिश के दिनों में झुग्गी में पानी भर जाता था और गर्मी में वह भट्टी बन जाती थी। फिर भी, राजू और उसकी मां के लिए यह घर किसी महल से कम नहीं था क्योंकि वहाँ उनका प्यार था।

राजू के पिता सुरेश एक मजदूर थे, जो कुछ साल पहले एक सड़क हादसे में चल बसे थे। तब से गायत्री अकेले ही राजू की परवरिश कर रही थी। वह दूसरों के घरों में काम करती थी, लेकिन एक साल पहले उसे एक गंभीर बीमारी हो गई, जिससे वह बिस्तर पर पड़ गई। डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी थी, जिसकी कीमत ₹500 थी। यह रकम उनके लिए पहाड़ जैसी थी।

राजू जानता था कि उसकी मां की हालत दिन-ब-दिन खराब हो रही है। वह रात को मां की कराहती आवाज़ सुनता और उसका दिल टूट जाता था। एक दिन उसने मां से कहा, “मां, मैं भीख मांगकर आपके ऑपरेशन के लिए पैसे इकट्ठे करूंगा।”

गायत्री ने उसकी आंखों में देखा और रो पड़ी, “नहीं राजू, तुम भीख नहीं मांगोगे। तुम्हारे बाबूजी ने कभी किसी से भीख नहीं मांगी। हम गरीब जरूर हैं, लेकिन भिखारी नहीं।”

राजू ने मां का हाथ पकड़ा और कहा, “मां, मुझे भीख नहीं मांगनी है। मुझे बस आपके ऑपरेशन के लिए पैसे चाहिए। मैं जानता हूं कि आप ठीक हो जाएंगी।”

गायत्री ने उसे गले लगाया और कहा, “ठीक है बेटा, लेकिन एक बात याद रखना, किसी का दिल मत दुखाना।”

अगले दिन से राजू ने भीख मांगना शुरू किया। वह सुबह जल्दी उठता, मां के लिए थोड़ा खाना बनाता और फिर चौराहे पर चला जाता। वह हाथ जोड़कर लोगों से कहता, “साहब, मेरी मां बीमार है। मुझे उनके ऑपरेशन के लिए पैसे चाहिए।” कुछ लोग उसे दया से देखते और पैसे देते, तो कुछ लोग उसे भगा देते और बुरा भला कहते। राजू को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था, उसका मकसद सिर्फ मां के लिए पैसे इकट्ठे करना था।

चौराहे के पास एक पुलिस स्टेशन था, जहाँ इंस्पेक्टर राजेश वर्मा तैनात थे। वर्मा एक सख्त और कठोर पुलिस अधिकारी थे। उन्हें अपने काम से प्यार था, लेकिन वे इंसानियत से दूर थे। उनके लिए कानून ही सब कुछ था और कानून को तोड़ने वालों को वे दया नहीं दिखाते थे।

वर्मा की जिंदगी भी कुछ खास नहीं थी। उनकी पत्नी सीमा एक साल पहले बीमारी से चल बसी थीं। उनका बेटा रवि मां की मौत के बाद उनसे दूर हो गया था। वर्मा ने अपनी पत्नी की मौत का बदला लेने के लिए खुद को काम में झोंक दिया था, लेकिन अंदर से वे दुखी और अकेले थे।

एक दिन वर्मा चौराहे पर घूम रहे थे। उन्होंने देखा कि राजू भीख मांग रहा है। वर्मा को भीख मांगने वालों से नफरत थी। उन्हें लगता था कि ये लोग समाज के लिए बोझ हैं। उन्होंने राजू को पकड़ कर डांटा, “क्यों भीख मांग रहा है? तेरे जैसे लड़के पढ़ाई करते हैं, भीख नहीं मांगते।”

राजू ने डरते हुए कहा, “साहब, मेरी मां बीमार है। मुझे उनके ऑपरेशन के लिए पैसे चाहिए।”

वर्मा ने उसकी बात पर यकीन नहीं किया, “तेरी मां? तेरी मां का नाम तो हर भिखारी लेता है। चल, अपनी बढ़ाई करना छोड़ और हमारे साथ चल।”

उन्होंने राजू को जबरदस्ती पुलिस वाहन में बिठाया और थाने ले गए। राजू बहुत डर रहा था। उसने सोचा कि अब वह कभी मां से नहीं मिल पाएगा। थाने का माहौल बहुत डरावना था। बदबूदार हवा, दीवारों पर लगी सीलन और चोरों की चीखें। वर्मा ने राजू को एक छोटे से सेल में बंद कर दिया जहाँ पहले से तीन चोर बंद थे।

रात हो चुकी थी। वर्मा ने राजू को अपने सामने बुलाया और कहा, “तू ही है वह चोर जिसने गांव के घर में चोरी की।”

राजू ने शांत स्वर में कहा, “साहब, मैंने चोरी नहीं की, मैं बस भीख मांग रहा था।”

वर्मा ने उसकी बात पर विश्वास नहीं किया और उसे बेल्ट से पीटना शुरू कर दिया। राजू दर्द से कराह रहा था, लेकिन उसने आंसू नहीं बहाए। उसे यह सब किसी भयानक सपने जैसा लग रहा था।

राजू ने कहा, “साहब, मुझे छोड़ दीजिए। मेरी मां अकेली हैं। वो मेरा इंतजार कर रही होंगी।”

वर्मा ने ठहाका लगाते हुए कहा, “तेरी मां? मां तो बस एक नाम है।”

राजू ने फिर से कहा, “साहब, मेरी मां बीमार है। मुझे ऑपरेशन के लिए पैसे चाहिए।”

वर्मा ने गुस्से में उसे और पीटा। राजू ने उस रात बहुत दर्द सहा। उसे दुख था कि उसके पास अपनी बात साबित करने का कोई तरीका नहीं था।

अगले दिन सुबह राजू की मां गायत्री उसे ढूंढ रही थी। पड़ोसियों से पूछने के बाद भी कोई खबर नहीं मिली। गायत्री को डर लग रहा था कि राजू कहीं खो गया है। उन्होंने पड़ोसियों की मदद से थाने में फोन किया और इंस्पेक्टर वर्मा से बात की।

वर्मा ने कहा, “हाँ, यहाँ एक लड़का है जो खुद को राजू बताता है।”

गायत्री ने गुस्से में कहा, “वो मेरा बेटा है। अगर आपने उसे कोई नुकसान पहुंचाया तो हम केस कर देंगे।”

वर्मा को यकीन नहीं हुआ। उसने फोन बंद कर दिया और अपने सीनियर इंस्पेक्टर अशोक से बात की।

अशोक को पता चला कि चौराहे के पास एक गरीब महिला रहती है जिसका बेटा भीख मांगता है। उन्होंने तुरंत थाने आकर राजू को देखा। राजू का चेहरा चोट से भरा हुआ था और कपड़े फटे हुए थे। अशोक को यकीन नहीं हुआ कि यह वही राजू है जिसकी मां ने फोन किया था।

अशोक ने राजू को गले लगाया और माफी मांगी, “साहब, हमें माफ कर दीजिए। हमें पता नहीं था कि आप ही राजू हैं।”

वर्मा के होश उड़ गए। वह कुर्सी से गिर पड़ा। उसे यकीन नहीं हुआ कि जिस बच्चे को उसने चोर समझकर पीटा था, वह वास्तव में गरीब मां का बेटा था।

पुलिस वालों ने राजू को तुरंत छोड़ा और उसके लिए पानी और नाश्ता मंगवाया। राजू ने कुछ नहीं खाया, सिर्फ पानी पिया और कहा, “मुझे आप लोगों से कोई शिकायत नहीं है। आप लोग अपना काम कर रहे थे।”

वर्मा ने राजू के पैरों में गिरकर माफी मांगी, “साहब, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने आपको बुरा कहा और मारा भी।”

राजू ने उसे उठाया और गले लगाया, “तुमने जो किया वह अपनी गलती का परिणाम था। मुझे दुख इस बात का है कि तुमने एक इंसान को बिना सच्चाई जाने मारा।”

इंस्पेक्टर अशोक ने पूछा, “साहब, हम आपकी क्या मदद कर सकते हैं? क्या हम हुए अन्याय का बदला ले सकते हैं?”

राजू ने मुस्कुराकर कहा, “मुझे कोई बदला नहीं चाहिए। मुझे बस इतना चाहिए कि आप लोग अपनी सोच बदलें। हर इंसान को एक समान देखें। उसके कपड़ों से नहीं, उसके चरित्र से।”

राजू की बात सुनकर पुलिस वालों की आंखें नम हो गईं। उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। आज उन्होंने एक चोर नहीं, बल्कि एक सच्चे इंसान को मारा था।

राजू थाने से बाहर निकला और मां को बुलाया। वे अपने प्रोजेक्ट के उद्घाटन समारोह में गए। समारोह में उनके चेहरे पर चोट के निशान थे। सबने पूछा, “साहब, क्या हुआ? आप इतने परेशान क्यों हैं?”

राजू ने मुस्कुराकर कहा, “मैं ठीक हूँ, बस एक छोटा सा सबक मिला है।”

उन्होंने अपनी कहानी सबको सुनाई। पत्रकार ने इसे बड़े अक्षरों में छापा। एक गरीब बच्चे की मासूमियत ने सख्त इंस्पेक्टर की सोच बदल दी।

वर्मा को उसकी गलती की सजा मिली और उसे पुलिस की नौकरी से निकाल दिया गया। लेकिन राजू ने उसे एक मौका दिया। अपनी कंपनी में एक छोटी सी नौकरी दी और कहा, “मुझे पता है कि तुम अच्छे इंसान हो, बस सोच बदलनी होगी।”

वर्मा ने राजू का धन्यवाद किया और वादा किया कि वह अपनी गलती नहीं भूलेगा।

राजू की कहानी पूरे शहर में मशहूर हो गई। लोग उसकी सादगी, ईमानदारी और विनम्रता के कायल हो गए। उसने अपने गांव में एक बड़ा स्कूल और अस्पताल बनवाया, माता-पिता के नाम समर्पित।

राजू ने अपनी सादगी को ताकत बनाया और समाज को संदेश दिया कि इंसान की पहचान उसके कर्मों से होती है, दौलत से नहीं।

वर्मा ने राजू को स्कूल में दाखिल करवाया, पढ़ाई का खर्च उठाया और उसकी देखभाल के लिए नौकरानी रखी। राजू अब खुशहाल जीवन जी रहा था।

वर्मा ने अपने बेटे दिलीप से बात की, जिसने मां की मौत के बाद पिता से दूरी बना ली थी। वर्मा ने राजू की कहानी सुनाई और कहा, “बेटा, मैंने गलतियां कीं, लेकिन राजू ने मुझे इंसानियत का सबक सिखाया। मुझे माफ कर दो।”

दिलीप ने पिता को गले लगाया, “पापा, आपने जो किया सही था, मैं आपसे प्यार करता हूँ।”

वर्मा ने नौकरी छोड़ दी और सामाजिक कार्यकर्ता बन गए। उन्होंने राजू और उसकी मां के लिए घर बनवाया और उन्हें अपने पास रखा। राजू को अपना बेटा बनाया और गायत्री को बहन।

सालों बाद राजू डॉक्टर बन चुका था। उसने मां और वर्मा के सपनों को पूरा किया। अपने गांव में अस्पताल बनवाया और मां के नाम समर्पित किया।

राजू ने मां से कहा, “मां, मैंने जो किया वह ईमानदारी का परिणाम था।”

गायत्री मुस्कुराई, “बेटा, तुम्हारी ईमानदारी ने तुम्हें डॉक्टर बनाया, लेकिन इंसानियत ने तुम्हें अच्छा इंसान बनाया।”

वर्मा ने राजू को गले लगाया, “तुमने मेरी जिंदगी बदल दी, नया जीवन दिया।”

राजू ने कहा, “मां, वर्मा अंकल, आप दोनों ने मुझे नया जीवन दिया। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ।”

कहानी का संदेश:
मासूमियत और दयालुता में बड़ी ताकत होती है। इंसानियत ही सबसे बड़ी दौलत है, जो समाज को बदल सकती है। हर इंसान के अंदर अच्छाई होती है, बस उसे जगाने की जरूरत होती है।