भारती शुक्ला: एक बेटी, एक एसपी और एक इंसानियत का प्रतीक

शहर के सबसे महंगे रेस्टोरेंट “द एलिट” के बाहर ऑटो रिक्शा आकर रुकी। अंदर से भारती उतरी। हल्के गुलाबी रंग की कुर्ती, साधारण नीली जींस और पैर में कोल्हापुरी चप्पल। उसके पीछे उसकी मां शांति जी उतरीं। हल्की नीली साड़ी, करीने से कंधे पर पिन किया हुआ पल्लू। भारती ने मुस्कुराते हुए कहा, “मां, आज आपका जन्मदिन है। आज सबकुछ सबसे अच्छा होगा।” शांति जी ने रेस्टोरेंट के सुनहरे बोर्ड की तरफ देखा। “बेटा, यह बहुत महंगा लगता है। घर पर ही कुछ बना लेते।” भारती ने उनकी कंधे पर हाथ रखा। “मां, आप पूरी जिंदगी हमारे लिए घर पर बनाती आई हो। आज एक दिन मेरे लिए प्लीज।”

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सीढ़ियों पर चढ़ते ही दरवाजे पर खड़े गार्ड ने उन्हें सिर से पांव तक घूरा। उसकी नजरें भारती की चप्पलों पर टिक गईं। उसने दरवाजा खोला, लेकिन बिना मुस्कुराए। अंदर का नजारा किसी दूसरी दुनिया जैसा था। नरम कालीन, धीमी पियानो की आवाज और क्रिस्टल के झूमर से छनती रोशनी। जैसे ही वे अंदर आए, बातें रुक गईं और सबकी नजरें उनकी तरफ मुड़ गईं। फुसफुसाहट शुरू हो गई। एक महिला ने अपनी सहेली से कहा, “कैसे-कैसे लोग आ जाते हैं।”

एक वेटर, जिसकी शर्ट जरूरत से ज्यादा कड़क थी, उनकी तरफ बढ़ा। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। उसने रूखेपन से पूछा, “रिजर्वेशन है कि नहीं?” भारती ने इशारा किया, “लेकिन वह टेबल तो खाली है।” वेटर कुछ और कहने ही वाला था कि मैनेजर मिस्टर भाटिया आ गया। उसने नकली शालीनता से कहा, “यहां लोग पहले से बुकिंग करा कर आते हैं। अगली बार ड्रेस कोड का ध्यान रखिएगा।” यह सुनकर शांति जी का चेहरा उतर गया। उन्होंने भारती का हाथ पकड़ा। “चल बेटा, मुझे भूख नहीं है। घर चलते हैं।” भारती ने उनकी आंखों में देखा और कहा, “शुक्रिया। हम वहीं बैठेंगे।”

खाना आया। वेटर ने प्लेटें टेबल पर रखते हुए काफी आवाज की। दाल की कटोरी लगभग छलक ही गई। शांति जी ने कीमतें देखकर कहा, “अरे बेटा, यह तो बहुत महंगा है।” भारती ने मुस्कुराते हुए कहा, “मां, आज सिर्फ आज। आपको जो पसंद है वह बोलिए।” लेकिन तभी हॉल के दूसरे कोने में हंगामा मच गया। मिस्टर कपूर का वॉलेट गायब हो गया। मैनेजर भाटिया ने सीधे भारती और उनकी मां की तरफ इशारा कर दिया। “इन्हीं पर शक है।” पुलिस को बुलाया गया।

थोड़ी ही देर में दो हवलदार शर्मा और यादव पहुंचे। उन्होंने भारती और उनकी मां को घूरते हुए कहा, “थाने चलिए। वहां बात करेंगे।” भारती ने शांत आवाज में कहा, “हमने कुछ नहीं किया। सीसीटीवी फुटेज चेक कीजिए।” लेकिन पुलिस ने उनकी बात नहीं सुनी। थाने में उन्हें चोरों की तरह बिठाया गया। शांति जी की तबीयत बिगड़ने लगी। भारती ने पानी मांगा, लेकिन पुलिस ने मजाक उड़ाया। भारती का खून खौल रहा था। वह अपनी पहचान बता सकती थी, लेकिन उसने सोचा, “अगर मैं एसपी नहीं होती तो क्या होता?”

तभी थाने का दरवाजा खुला। इंस्पेक्टर वर्मा अंदर आया। उसने भारती को देखा और तुरंत पहचान लिया। वह सैल्यूट करते हुए बोला, “जय हिंद, मैम।” पूरे थाने में सन्नाटा छा गया। शर्मा और यादव पसीने में नहा गए। भारती ने कहा, “मेरी मां की तबीयत खराब है। उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाओ।” आदेश का पालन हुआ। फिर भारती ने कहा, “इन दोनों हवलदारों को सस्पेंड कीजिए और इनके खिलाफ केस दर्ज कीजिए।”

सीसीटीवी फुटेज मंगवाया गया। फुटेज में साफ दिखा कि असली चोर वेटर रोहन था। भारती ने कहा, “रोहन को गिरफ्तार करो। और मिस्टर भाटिया को भी। उसने बिना सबूत के हमें चोर करार दिया।” भाटिया गिड़गिड़ाने लगा, लेकिन भारती ने उसे गिरफ्तार करवा दिया।

अगले दिन रेस्टोरेंट के बाहर “अस्थाई रूप से बंद” का बोर्ड लगा था। भारती अपनी मां के साथ अस्पताल में थी। शांति जी ने कहा, “आज मुझे गर्व है कि मेरी बेटी सिर्फ वर्दी से नहीं, दिल से भी ऑफिसर है। तुमने हर आम आदमी का मान रखा है।”

भारती ने मुस्कुराते हुए अपनी मां का हाथ थामा। आज वह सिर्फ एसपी नहीं, एक बेटी थी।