जिसे मामूली सब्जियां बेचने वाला समझ कर मज़ाक उड़ाया था ,जब उसका सच पता चला तो होश उड़ गए

“लालच का अंधा कुआँ – रामकिशन जी की इज्जत की वापसी”

भूमिका

यह कहानी सिर्फ पैसे की नहीं, बल्कि विश्वास, अपमान, धोखे और न्याय की ऐतिहासिक जीत की है। यह कहानी बताती है कि दौलत से बड़ी चीज़ मां-बाप की इज्जत और इंसानियत होती है। कैसे लालच इंसान को अंधा बना देता है, और कैसे एक साधारण सब्जी वाला असल में करोड़ों का मालिक निकल सकता है।

अध्याय 1: अपमान का बीज

सुबह के 10 बजे थे। रामकिशन जी अपने ठेले पर ताजे टमाटर, आलू, भिंडी, लौकी लेकर मालवीय नगर की गलियों में सब्जी बेच रहे थे। तभी एक घमंडी युवक हरीश ने उन्हें रोका –
“ओ बाबा, रुक जा। टमाटर कितने के दिए?”
रामकिशन जी ने विनम्रता से कहा, “पचास रुपये किलो साहब, ताजा माल है।”
हरीश ने दो किलो मांगे, फिर अचानक दाम घटाकर बोला, “साठ में दे, वरना जा!”
रामकिशन जी ने मना किया तो हरीश गुस्से में आ गया, ठेले को धक्का दे दिया। टमाटर सड़क पर गिर गए। भीड़ तमाशा देख रही थी, किसी ने मदद नहीं की।
हरीश ने अपमानित करते हुए कहा, “दुनिया पैसों से चलती है बुड्ढे, तेरे जैसे लोग हमेशा गुलाम रहेंगे।”
रामकिशन जी चुपचाप, कांपते हाथों से टमाटर समेटते रहे, आंखों में आंसू थे।

अध्याय 2: फरिश्ता – प्रिया का आगमन

भीड़ में से एक लड़की, प्रिया, आगे आई।
“बस करो! क्या यही इंसानियत है?”
प्रिया ने हरीश को लताड़ा, रामकिशन जी को सहारा दिया, और उनकी बिखरी सब्जियों के पैसे देकर बोली, “बाबा, आप अकेले नहीं हैं।”
रामकिशन जी ने नम आंखों से प्रिया को देखा।
प्रिया ने महसूस किया कि बाबा कोई आम इंसान नहीं, उनके चेहरे पर गहरी शालीनता थी।
“बाबा, आप कौन हैं? आपकी आंखें कुछ और कहानी कहती हैं।”
रामकिशन जी बोले, “बिटिया, मैं कभी इस शहर का सबसे बड़ा उद्योगपति था – ‘रामकिशन एंटरप्राइजेज’ का मालिक।”

अध्याय 3: दौलत, परिवार और धोखा

रामकिशन जी ने अपनी कहानी सुनाई –
“मेरे पास सब कुछ था – बंगला, गाड़ियां, हजारों कर्मचारी। लेकिन जब घर में लालच घुस जाता है, तो परिवार बिखर जाता है।
मेरी पत्नी को बस गहनों का शौक था, बेटा नई कार मांगता, बेटी ब्रांडेड कपड़े।
मैं समझाता – पैसा पेड़ पर नहीं उगता, मेहनत से कमाया है।
पर किसी ने मेरी बात नहीं मानी।
एक दिन सबने मिलकर मेरे खिलाफ चाल चली –
मुझसे दस्तखत करवाए, कहा कंपनी के लिए फॉर्मेलिटी है।
मैंने आंख मूंदकर साइन कर दिए, सोचा – अपने ही बच्चे हैं।
लेकिन वे सारे कागज पावर ऑफ अटॉर्नी और प्रॉपर्टी ट्रांसफर के थे।
धीरे-धीरे सब कुछ उनके नाम हो गया।
जब सच पता चला, तो मेरी पत्नी बोली – अब तुम्हारी जरूरत नहीं।
बेटे-बेटी ने भी मुझे घर से निकाल दिया।
मैं सड़क पर आ गया, सब्जी बेचने लगा।”

अध्याय 4: प्रिया का रिश्ता और उम्मीद की किरण

प्रिया की आंखें भर आईं –
“बाबा, आप वही रामकिशन हैं, जिन्होंने मेरे पापा सुरेश की कंपनी को डूबने से बचाया था।
आज मैं आपकी बेटी जैसी हूं, आपको न्याय दिलाऊंगी।
मेरा दोस्त नवीन वकील है, हम आपके हक की लड़ाई लड़ेंगे।”

प्रिया और नवीन ने कंपनी के कागज निकलवाए।
पता चला – नियमों के कारण रामकिशन जी के नाम पर अब भी 55% मास्टर शेयर हैं, जो ट्रांसफर नहीं हो सकते।
प्रिया ने कहा – “अब वक्त है सच्चाई को सामने लाने का!”

अध्याय 5: न्याय की ऐतिहासिक जीत

मामला कोर्ट पहुंचा।
रामकिशन जी साधारण कपड़ों में, लेकिन आत्मविश्वास के साथ खड़े थे।
सामने पत्नी और बच्चे महंगे कपड़ों में, मगर चेहरे पर घबराहट थी।
जज ने दस्तावेजों की जांच के बाद फैसला सुनाया –
“कंपनी के असली मालिक रामकिशन हैं, धोखे से किए गए ट्रांसफर अमान्य हैं।”
कोर्ट में तालियां बज उठीं।
मीडिया की सुर्खियां बनीं – “सब्जी वाले से फिर उद्योगपति – सच की जीत!”

अध्याय 6: पछतावा और सीख

फैसले के बाद रामकिशन जी ने अपने बच्चों से कहा –
“बेटे, मैंने कौन सी कमी छोड़ी थी? दौलत, नाम, इज्जत – सब तुम्हारे कदमों में रखा। फिर भी तुमने मुझे धोखा दिया।
मां-बाप की इज्जत सबसे बड़ी दौलत होती है।
बच्चे कभी बुरे नहीं होते, पर लालच उन्हें अंधा बना देता है।”

बेटे ने सिर झुका लिया, बेटी फूट-फूटकर रोने लगी।
प्रिया दरवाजे पर खड़ी थी, आंखों में आंसू और चेहरे पर सुकून।

अंतिम संदेश

यह कहानी एक कड़वा सच बताती है –
पैसा इंसान को बदलता नहीं, उसकी असली नियत सामने लाता है।
रामकिशन जी के परिवार ने लालच में आकर पिता का विश्वास और इज्जत खो दी।
प्रिया ने विपरीत हालात में भी इंसानियत का हाथ थामा और अपने परिवार के पुराने एहसान का कर्ज चुकाया।

सीख

मां-बाप की इज्जत सबसे बड़ा धन है।
लालच इंसान को अंधा बना सकता है, लेकिन सच और न्याय की जीत हमेशा होती है।
अगर आपके साथ ऐसा हो, तो चुप न रहें – न्याय के लिए आवाज उठाएं।

समाप्त