शादी के दिन दूल्हे वालों ने दुल्हन की बहनों के साथ की छेड़खानी, फिर दुल्हन ने जो किया देख सभी के होश

“आत्मसम्मान की आवाज: पूनम की शादी का फैसला”

भाग 1: बचपन के सपने और परिवार

शादी का नाम सुनते ही हर लड़की की आंखों में सपनों की चमक आ जाती है। बचपन से पूनम ने भी अपनी शादी को लेकर कई ख्वाब बुने थे – शहनाइयों की गूंज, पकवानों की खुशबू, दो परिवारों का मिलन और एक खूबसूरत दुल्हन बनना।
पूनम का परिवार लखनऊ के आशियाना मोहल्ले में रहता था। श्रीवास्तव जी, एक सरकारी दफ्तर से रिटायर्ड, अपनी तीन बेटियों की परवरिश और शिक्षा में पूरी जमा-पूंजी लगा चुके थे। उनकी पत्नी शारदा जी भी संस्कारों और प्यार से भरी गृहणी थीं।
पूनम सबसे बड़ी थी – पढ़ी-लिखी, समझदार और आत्मसम्मान को सबसे ऊपर रखने वाली। पूजा, 20 साल की, चंचल और बातूनी थी। सबसे छोटी आरती, 17 साल की, शांत और संवेदनशील थी। तीनों बहनें एक-दूसरे की सबसे अच्छी दोस्त थीं।

भाग 2: रिश्ता, तैयारियां और खुशियां

कई महीनों की तलाश के बाद पूनम का रिश्ता कानपुर के कारोबारी वर्मा परिवार में राहुल से तय हुआ। राहुल पढ़ा-लिखा, स्मार्ट और अपने पिता का बिजनेस संभालता था। दोनों परिवारों को यह रिश्ता बहुत पसंद आया।
श्रीवास्तव जी ने अपनी हैसियत से बढ़कर शादी की तैयारियां कीं – घर फूलों और रोशनियों से सजा, मेहमानों की आवाजें, ढोल की थाप और मंगल गीतों से माहौल गूंज उठा।
पूनम सुर्ख लाल शादी के जोड़े में बैठी थी, हाथों में राहुल के नाम की मेहंदी, आंखों में नए जीवन के सपने। पूजा और आरती सबसे ज्यादा खुश थीं, पूरे घर में तितलियों की तरह घूम रही थीं।

भाग 3: बारात, रस्में और बढ़ता मजाक

रात को बारात आई – बैंड-बाजे, रोशनियों और शाही जुलूस की तरह। राहुल घोड़ी पर, दोस्त और भाई-बहन नाचते हुए।
श्रीवास्तव जी ने स्वागत किया, रस्में शुरू हुईं।
राहुल के दोस्त विक्की और सुमित, महंगी गाड़ियों और डिजाइनर कपड़ों में, पर उनके व्यवहार में घमंड और छिछोरापन झलक रहा था।
शुरुआती हंसी-मजाक में विक्की ने शारदा जी से कहा, “सासू मां, जरा ध्यान से, हमारे हैंडसम दोस्त को नजर ना लग जाए।”
जब पूजा और आरती शरबत लेकर आईं, सुमित ने आरती को देखकर कहा, “वाह, सालियां तो दुल्हन से भी ज्यादा खूबसूरत हैं।”
आरती शर्म से लाल हो गई। पूनम ऊपर से यह सब देख रही थी, थोड़ा असहज महसूस किया, लेकिन सोचा कि शादी में ऐसा थोड़ा-बहुत चलता है।

भाग 4: हदें पार करती मस्ती

जयमाला के वक्त पूनम मंच पर आई, सब उसकी खूबसूरती देख रहे थे।
जब पूनम ने राहुल को माला पहनाने के लिए हाथ बढ़ाया, विक्की और सुमित ने राहुल को कंधों पर इतना ऊपर उठा लिया कि पूनम का हाथ पहुंच ही नहीं पा रहा था।
सब जोर-जोर से हंस रहे थे, राहुल भी।
पूनम को अपने पिता और मेहमानों के सामने अपमानित महसूस हुआ।
मुश्किल से जयमाला की रस्म पूरी हुई।

फिर आई जूता छुपाई की रस्म। पूजा और आरती ने जूते छुपाए।
राहुल ने नेक मांगा, विक्की ने नोटों की गड्डी निकालते हुए कहा, “पैसे मांगो, पर तुम्हें हमारे साथ डांस करना होगा।”
पूजा जीजाजी के कहने पर नाचने लगी, विक्की और सुमित उसके साथ नाचने लगे, पर उनका नाचना पूजा के करीब आने की कोशिश लग रही थी।
विक्की ने नाचते-नाचते उसका दुपट्टा खींच लिया, पूजा डरकर भाग गई।

खाने के समय सुमित ने आरती का हाथ पकड़ लिया, आरती रोती हुई भाग गई।
पूनम सब देख रही थी, खून खौल रहा था, लेकिन शादी और परिवार की इज्जत के कारण चुप थी।
वह बार-बार राहुल की तरफ देखती, उम्मीद करती कि वह दोस्तों को रोकेगा, पर राहुल या तो अनदेखा कर रहा था या मुस्कुरा रहा था।

भाग 5: आत्मसम्मान की लड़ाई

फेरों का समय आया। पूजा और आरती पूनम को लेने कमरे में गईं – दोनों डरी और सहमी थी।
मंडप के रास्ते में विक्की, सुमित और उनके दोस्त रास्ता रोक लेते हैं, गंदी सीटी बजाते हैं, फब्तियां कसते हैं।
सुमित ने पूजा को जबरदस्ती पकड़ लिया, चूमने की कोशिश की।
राहुल भी वहां पहुंचा, पर उसने दोस्तों को रोकने के बजाय हंसते हुए कहा, “साली आधी घरवाली होती है, छोड़ दे बेचारियों को।”

यह सुनकर पूनम की आत्मा अंदर तक कांप गई।
पूजा और आरती रोते हुए पूनम के पास भागी, “दीदी, इस घर में शादी मत करना, ये लोग बहुत गंदे हैं।”
पूनम पत्थर की मूरत बन गई।
उसके सारे सपने, सारे ख्वाब एक पल में टूट गए।
उसे एहसास हुआ कि जिस इंसान के साथ वह पूरी जिंदगी बिताने जा रही थी, उसकी नजरों में औरतों की कोई इज्जत नहीं है।

उसके अंदर का दुख और दर्द अब गुस्से में बदल गया।
उसने बहनों के आंसू पोंछे, शांत लेकिन दृढ़ आवाज में कहा, “तुम दोनों बिल्कुल सही कह रही हो। यह शादी नहीं होगी।”

भाग 6: मंडप में फैसला

पूनम सीधी मंडप की ओर चली, सब लोग हैरान।
पंडित जी ने कहा, “बेटी, फेरों का मुहूर्त निकला जा रहा है।”
पूनम ने सबकी तरफ देखा, गहरी सांस ली और ऊंची आवाज में कहा,
“पंडित जी, अब कोई फेरे नहीं होंगे। मैं यह शादी नहीं कर रही हूं।”

मंडप में सन्नाटा छा गया।
श्रीवास्तव जी घबराकर बेटी के पास आए, “पूनम, क्या कह रही हो?”
पूनम ने कहा, “पापा, मेरा दिमाग आज ही तो ठीक हुआ है।”

राहुल और उसके परिवार वाले भी आ पहुंचे।
राहुल के पिता वर्मा जी गुस्से से बोले, “यह क्या बकवास है?”
पूनम ने राहुल की तरफ मुड़ी, आंखों में नफरत थी।
“तमाशा तो आप लोगों ने बना रखा है, मेरी बहनों की इज्जत का, मेरे परिवार के सम्मान का।
आपने अपने बेटों और दोस्तों को औरत की इज्जत करना नहीं सिखाया।
मेरी मां ने मुझे आत्मसम्मान के लिए लड़ना सिखाया है।
जो इंसान अपनी होने वाली पत्नी की बहनों की इज्जत नहीं कर सकता, वो अपनी पत्नी की क्या करेगा?
मुझे ऐसा पति नहीं चाहिए। मैं यह शादी नहीं कर सकती।”

उसने एक-एक करके सारी घटनाएं सबके सामने बयान कर दी।
हर कोई स्तब्ध रह गया।

श्रीवास्तव जी और शारदा जी का सिर शर्म से झुक गया, पर बेटी की हिम्मत पर गर्व भी था।
वर्मा परिवार का घमंड चूर-चूर हो गया।
श्रीवास्तव जी ने कहा, “तुमने बिल्कुल सही फैसला लिया है बेटा। हमें ऐसी जगह अपनी बेटी नहीं बहानी जहां उसकी इज्जत न हो।”
वर्मा जी से हाथ जोड़कर कहा, “आप अपनी बारात वापस ले जा सकते हैं।”

बारात बेरंग लौट गई।
ढोल-ताशे, रोशनियां सब मातम के सन्नाटे में बदल गईं।

भाग 7: संदेश और सीख

पूनम ने समाज की लोकलाज की परवाह किए बिना अपने और अपने परिवार के सम्मान को चुना।
उसने एक रात में शादी तोड़ दी, पर अपनी पूरी जिंदगी को टूटने से बचा लिया।

यह कहानी हर उस लड़के और मर्द के लिए है, जो मजाक और बदतमीजी का फर्क भूल जाते हैं।
औरतों का सम्मान हमारी संस्कृति और इंसानियत का पहला हिस्सा है।

यह कहानी हर उस लड़की के लिए है, जो कभी ऐसी स्थिति का सामना करती है –
चुप मत रहिए, डरिए मत। आपकी चुप्पी ही ऐसे लोगों की हिम्मत बढ़ाती है। पूनम की तरह अपनी आवाज उठाइए।
आपका आत्मसम्मान किसी भी रिश्ते या परंपरा से बढ़कर है।

अगर पूनम की हिम्मत ने आपके दिल को छुआ, तो इस कहानी को शेयर करें, लाइक करें और कमेंट में बताएं कि आप पूनम के फैसले के बारे में क्या सोचते हैं।
औरतों के सम्मान का यह संदेश हर घर, हर दिल तक पहुंचे।

धन्यवाद!