एक सिख व्यापारी बिजनेस के सिलसिले में एक गाँव में गया था वहां उसने गरीब और भूखे मरते लोग देखे, तो
कहानी: सरदार जोगिंदर सिंह – इंसानियत का असली कारोबार
1. प्रस्तावना
क्या सेवा का कोई धर्म होता है? क्या दिल की इंसानियत पैसों, पद या महलों में बंद हो जाती है? यह कहानी है एक बड़े उद्योगपति सरदार जोगिंदर सिंह की – जो अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की नगर में आलीशान कोठी, महंगी कारों, करोड़ों के कारोबार और दुनिया भर की दौलत के मालिक थे, लेकिन उनके अंदर कहीं एक सच्चा सेवक, गुरु नानक के “वंड छको” के संदेश का सच्चा अनुयायी भी था।
2. जागती अंतरात्मा – पत्थरगढ़ की पुकार
सरदार जोगिंदर सिंह का कारोबार फैला हुआ, बेटा लंदन में पढ़ता था, लेकिन उनके मन में हमेशा एक खालीपन रहा – कुछ ऐसा, जो जमीन से जुड़ा हो, इंसानियत से बंधा हो। नए बिज़नेस के विस्तार के लालच में वह उतर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच बुंदेलखंड के एक वीरान, भुला दिए गए गांव पत्थरगढ़ पहुंचे। मकसद था – वहां के दुर्लभ हैंडलूम कारीगरों को उद्योग में जोड़कर बड़ा मुनाफा कमाना।
गांव में घुसते ही उनका दिल बैठ गया – कच्ची झोपड़ियाँ, भूखे बच्चे, बेरंग औरतें, वीरानी और लाचारी का मंजर। और जब उन्होंने एक सात-आठ साल की बच्ची को एक आवारा कुत्ते के साथ एक सूखी रोटी के टुकड़े के लिए लड़ते देखा, तो उनका दिल टूट गया। करोड़ों की कंपनी, सालों की तरक्की, अमीरी का सारा गर्व पल में चूर-चूर हो गया।
3. आध्यात्मिक जागरण – एक नई शुरुआत
उस रात गांव के सरपंच के घर चारपाई पर लेटे जोगिंदर सिंह की आँखों में नींद नहीं थी। हर तरफ से सिर्फ उस बच्ची की भूखी आंखें, उसका डर, और कुत्ते की गुर्राहट सुनाई देती। उन्हें स्वर्ण मंदिर का विशाल लंगर याद आया – जहां हजारों भूखे अमीर-गरीब भेद भूलकर एक साथ गरमागरम खाना खाते हैं। क्या मेरे असली धर्म, गुरु नानक के वंड छको का यही मोल है?
अगली सुबह उनका इरादा बदल चुका था। बिजनेस प्रोजेक्ट की फाइल असिस्टेंट को बंद करने को कहा। “अब मेरी डील, मेरा कारोबार यही गांव है,” उन्होंने तय किया।
4. पत्थरगढ़ में लंगर – पेट से आत्मा तक का सफर
अगले ही दो दिन में जोगिंदर सिंह की टीम बोरियों में राशन, आटा, चावल, सब्जियां, घी और ताजगी भरती गांव पहुंची। खाली पंचायत घर को विशाल रसोई बनाया गया। गाँव के बेरोजगार युवकों को काम पर रखा गया। जोगिंदर सिंह ने सूट-टाई छोड़, कुर्ता पायजामा पहना, सिर पर केसरी पटका बांधा और खुद आटा गूंधते, सब्जियां काटते नजर आए।
तीसरे दिन गांव में पहला समारोहिक लंगर लगा – पंचायत घर के बाहर लंबी दरियाँ बिछीं, गर्म दाल, सब्जी, चावल की खुशबू से गाँव का आसमान महक गया। लोग झिझक रहे थे, लेकिन वही बच्ची काजरी डरते हुए सबसे पहले आई। जोगिंदर सिंह ने उसे गोद में बैठाकर खुद पहले निवाले से भोजन कराया। उसके बाद सारी भीड़ उमड़ पड़ी – सबने पहली बार भरपेट, सम्मान से खाना खाया। वर्षों बाद किसी की आंख में सुकून, किसी माँ के चेहरे पर खुशी और किसी बूढ़े के होंठों पर दुआ देखी गई।
5. बाधाएं और गाँव का बदलाव
शुरू में लोगों ने जोगिंदर सिंह के इरादों पर शक किया– कोई चुनावी ढोंग है, कुछ ही दिन में लौट जाएंगे… लेकिन सच्ची लगन, रोज लंगर, खुद सेवा ने सबका दिल जीत लिया। कभी कुछ स्थानीय अड़चनों, नेताओं, भ्रष्टाचार या गाँववालों के रवैये ने मुश्किल डाली, लेकिन हर बार उन्होंने प्यार, समझाइश और ईमानदारी से सबको आर-पार किया – “यह लंगर तुम्हारा है। अगर लूटोगे, तो अपने ही भाई-बहनों का पेट काटोगे।” अब सब स्वेच्छा से खुद रसोई, लकड़ियां, पानी और सेवा में आगे आने लगे।
लेकिन जोगिंदर सिंह जानते थे, सिर्फ लंगर चलाकर गाँव की तक़दीर नहीं बदलेगी। उन्होंने अपनी कारोबारी बुद्धि का अद्भुत उपयोग किया–
सूखी नदी पर चैक डैम बनवाए, गाँववालों को मजदूरी दी
पुराने स्कूल को फिर से चालू कराकर मास्टर, किताबें, मिड-डे मील की व्यवस्था की
बुजुर्ग बुनकरों को नयी मशीनें, धागे, डिज़ाइन दिए, वीवर्स सोसाइटी बनाई
‘पत्थरगढ़ सिल्क’ को देश-विदेश की मार्केट में पहुँचाया
6. दो साल बाद – पत्थरगढ़ का कायाकल्प
अब गाँव के कुओं में पानी है, खेतों में फसलें हैं, स्कूल में बच्चों की चहक है, बुनकरों की खड्डियों की आवाज हैं। गाँववालों के चेहरों पर आत्मविश्वास और स्वाभिमान है। लंगर केवल पेट की भूख नहीं, खुशियों और अपनापे का उत्सव था।
राज्य के मुख्यमंत्री अचानक गाँव आए। चमत्कारी बदलाव देख पूछा– “यह किसने किया?” जब सुना कि एक सिख व्यापारी अकेले ने सब किया, वे खुद सरदार जोगिंदर सिंह से मिलने गए। उन्हें आम गाँववालों के साथ पंगत में बैठकर खाते, एक सामान्य इंसान की तरह सेवा करते पाया। मुख्यमंत्री ने झुककर सलाम किया – “सरदार साहब, आपने धरती पर इंसानियत की सबसे बड़ी मिसाल पेश की है।”
7. असली इनाम – दिलों की जीत और परिवार का मिलना
यह खबर मीडिया में आई, जोगिंदर सिंह रातों-रात नेशनल हीरो बन गए। विदेश में बेटे ने सब देखा, पहली बार गर्व और शर्मिंदगी से आँसू निकले। वह भागा-भागा गांव लौटा, पिता के पैरों में गिरा। पिता ने उसे गले से लगाकर कहा – “बेटा, असली कारोबार दुआओं का है, दौलत का नहीं।”
उस दिन से सिमरनजीत ने भी पिता का मिशन अपनाया – अब दोनों बाप-बेटा पत्थरगढ़ के सच्चे सेवक बने।
सीख: यह कहानी हमें सिखाती है:
सच्ची सेवा, सच्ची देशभक्ति तन-मन-धन से, अभ्यास से होती है – दिखावे या भाषण से नहीं
इंसानियत की कीमत पैसे में नहीं, दुआओं और दूसरे की मुस्कान में है
सेवा करने वाला सबसे बड़ा और धनवान है
अगर सरदार जोगिंदर सिंह की सेवा और पत्थरगढ़ की कहानी ने आपको छू दिया, तो वाहेगुरु का आशीर्वाद लिखें, और इस कहानी को हर इंसान तक पहुँचने दें। क्योंकि असली धर्म इंसानियत है, और असली मुनाफा – किसी भूखे की तृप्त मुस्कान।
वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह!
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