जब दरोगा ने डीएम मैडम को भरे बाजार में सबके सामने मारा जोरदार थपड़ फिर जो हुआ सब हैरान।

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शहर की सुबह की भागदौड़ के बीच, जिले की डीएम, काजल वर्मा, ने अपनी सरकारी गाड़ी को ऑफिस से कुछ दूर रुकवा दिया। आज उनका मन फाइलों और मीटिंगों के बोझ से हटकर, शहर की धड़कन को महसूस करने का था। उन्होंने अपने ड्राइवर को छुट्टी दी, सिर पर एक साधारण सा दुपट्टा ओढ़ा और आम लोगों की भीड़ में गुम हो गईं। वह उस दुनिया को अपनी आँखों से देखना चाहती थीं, जिसकी शासक वह कागजों पर थीं।

बाजार में जिंदगी अपने पूरे शबाब पर थी। सब्जियों के मोल-भाव, बच्चों की खिलखिलाहट और मसालों की महक हवा में घुली हुई थी। इसी बीच, घी में सिंकती और चाशनी में डूबती जलेबियों की मीठी खुशबू ने काजल के कदम रोक लिए। एक पल के लिए वह भूल गईं कि वह डीएम हैं। वह बस एक आम औरत थीं, जिसका मन गरमागरम जलेबी खाने को ललचा रहा था। उन्होंने एक बूढ़े चाचा की छोटी सी रेहड़ी पर जाकर कहा, “चाचा, एक प्लेट जलेबी देना।”

जलेबी की मिठास अभी उनके होठों पर थी ही कि एक भारी, रोबदार आवाज ने बाजार का माहौल बदल दिया। इलाके का दरोगा, अमित सिंह, अपनी वर्दी के घमंड में चूर, रेहड़ी के पास आकर खड़ा हो गया। उसकी आँखों में कानून का सम्मान नहीं, बल्कि उसे अपनी जागीर समझने का गुरूर था। उसने बिना कुछ कहे, जलेबी की एक प्लेट उठाई और खाने लगा, जैसे यह उसका अधिकार हो।

काजल चुपचाप देखती रहीं। उन्होंने सोचा, शायद वह बाद में पैसे देगा। लेकिन जब अमित जलेबी खत्म करके जाने लगा, तो काजल की अंतरात्मा ने उन्हें रोक लिया। उन्होंने शांत लेकिन दृढ़ आवाज में कहा, “साहब, जलेबी के पैसे।”

अमित सिंह रुका। उसने काजल को ऊपर से नीचे तक देखा, जैसे किसी कीड़े-मकोड़े को देख रहा हो। फिर एक तिरस्कार भरी हंसी के साथ बोला, “पैसे? तू मुझे जानती नहीं? मैं इस इलाके का दरोगा हूँ। मुझसे पैसे मांगने की हिम्मत कैसे हुई तेरी?”

धीरे-धीरे लोगों की भीड़ जमा होने लगी। सबकी नजरें उन दोनों पर थीं। काजल ने अपना स्वर शांत बनाए रखा, “साहब, वर्दी कानून की रक्षा के लिए होती है, मुफ्त में खाने के लिए नहीं। यहाँ जो भी खाता है, पैसे देता है।”

यह सुनना था कि अमित सिंह का चेहरा तमतमा गया। एक मामूली सी औरत, भरे बाजार में उसकी सत्ता को चुनौती दे रही थी। यह उसके अहंकार पर सीधी चोट थी। “ज़बान लड़ाती है!” वह गरजा। और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, उसने अपना भारी हाथ उठाया और काजल के गाल पर एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया।

‘चटाक’ की आवाज़ के साथ पूरे बाजार में एक पल को सन्नाटा छा गया। लोगों की साँसें थम गईं। बूढ़े जलेबी वाले चाचा की आँखें डर से फैल गईं। यह सिर्फ एक थप्पड़ नहीं था, यह वर्दी की ताकत का सबसे घिनौना प्रदर्शन था।

काजल का चेहरा एक तरफ झुक गया। गाल पर उंगलियों के निशान उभर आए थे और एक तेज जलन महसूस हो रही थी। लेकिन उनकी आँखों में आँसू या डर की जगह एक अजीब सी ठंडक थी, एक ऐसी शांति जो तूफान से पहले आती है। उन्होंने अपनी नजरें सीधे अमित सिंह की आँखों में डालीं और धीरे से, लगभग फुसफुसाते हुए कहा, “इस थप्पड़ की गूंज… बहुत दूर तक जाएगी, दरोगा साहब।”

अमित सिंह ठहाका मारकर हँसा। “ओहो, धमकी भी दे रही है! जा, यहाँ से अपना नाटक बंद कर, वरना इसी थाने में बंद कर दूँगा।” वह अपनी मूछों पर ताव देता हुआ वहाँ से चला गया, लेकिन उसके जाने के बाद भी बाजार में वह खौफनाक सन्नाटा पसरा रहा।

काजल वहीं खड़ी रहीं। उनके भीतर अपमान और गुस्से का एक ज्वालामुखी खौल रहा था, लेकिन उन्होंने उसे बाहर नहीं आने दिया। उन्होंने मन ही मन तय कर लिया था कि यह मामला सिर्फ एक थप्पड़ का नहीं है। यह उस सड़े हुए सिस्टम का है, जहाँ एक रक्षक ही भक्षक बन बैठा है। यह लड़ाई अब काजल वर्मा की निजी लड़ाई नहीं थी, यह डीएम की लड़ाई थी, न्याय की लड़ाई थी।

अगले कुछ दिनों तक काजल ने अपनी पहचान गुप्त रखी। वह एक आम नागरिक की तरह बाजार में घूमतीं, लोगों से बात करतीं। धीरे-धीरे परतें खुलने लगीं। पता चला कि अमित सिंह का आतंक पूरे इलाके में था। वह हर दुकानदार से हफ्ता वसूलता, मुफ्त में सामान उठाता और जो कोई भी विरोध करने की हिम्मत करता, उसे झूठे केस में फंसाने की धमकी देता या सरेआम पीटता। कई छोटे ठेले वालों की रोजी-रोटी उसने छीन ली थी। यह सब सुनकर काजल का संकल्प और भी मजबूत हो गया।

उधर, अमित सिंह थाने में बैठकर अपने सिपाहियों के सामने अपनी बहादुरी के किस्से सुना रहा था। “देखा, कैसे सबक सिखाया उस औरत को! अब कोई पुलिस वाले से पैसे मांगने की जुर्रत नहीं करेगा।” सिपाही डर के मारे हंस रहे थे, लेकिन वे जानते थे कि यह घमंड एक दिन उसे ले डूबेगा।

अमित को अपने एक खबरी सिपाही से पता चला कि जिस औरत को उसने थप्पड़ मारा था, वह कोई और नहीं, बल्कि जिले की नई डीएम, काजल वर्मा थीं। यह सुनते ही एक पल के लिए उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। पसीना माथे पर चमकने लगा। लेकिन अगले ही पल उसका घमंड उस पर हावी हो गया। “डीएम है तो क्या हुआ? मेरे ऊपर मंत्री जी का हाथ है। वो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी।”

उसने तुरंत अपने राजनीतिक आका, मंत्री जी को फोन मिलाया और मिलने का समय माँगा। मंत्री जी के आलीशान बंगले पर पहुँचकर उसने पूरी कहानी नमक-मिर्च लगाकर सुनाई। “मंत्री जी, एक औरत ने भरे बाजार में मेरी वर्दी का अपमान किया। मैंने बस थोड़ा अनुशासन सिखाया। अब पता चला है कि वो डीएम है।”

मंत्री जी ने एक ठंडी मुस्कान के साथ कहा, “अमित, तुम चिंता मत करो। जब तक मैं हूँ, तुम्हारा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। जाओ, अपना काम करो।”

यह आश्वासन पाकर अमित सिंह का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसे लगा कि अब वह अजेय है। उसने बाजार में अपना आतंक और बढ़ा दिया। एक दिन उसने एक बूढ़े चाय वाले का ठेला सिर्फ इसलिए तोड़ दिया क्योंकि उसने जलेबी वाली घटना का जिक्र कर दिया था। इस बार, बाजार के कुछ नौजवानों ने हिम्मत करके चुपके से अपने मोबाइल फोन से पूरी घटना का वीडियो बना लिया और किसी तरह उसे एक गुमनाम पते पर भेज दिया, जो काजल ने ही फैलाया था।

अब काजल के पास सबूत थे। उनके पास लोगों के बयान थे, उनकी आँखों में डर था और अब उनके हाथ में वीडियो भी था। उन्होंने फैसला किया कि अब आखिरी चाल चलने का समय आ गया है।

अगले दिन, काजल ने फिर वही साधारण कपड़े पहने और सीधे पुलिस थाने पहुँचीं। उनके साथ सेना से छुट्टी पर आया उनका भाई कुलदीप भी था, जो सादे कपड़ों में था।

थाने के अंदर एसएचओ अपनी कुर्सी पर अकड़ा बैठा था। काजल ने कहा, “हमें एक रिपोर्ट लिखवानी है।”

एसएचओ ने उन्हें घूरकर देखा और लापरवाही से कहा, “किसके खिलाफ?”

“आपके दरोगा, अमित सिंह के खिलाफ।”

यह सुनते ही एसएचओ हँस पड़ा। “दरोगा जी के खिलाफ रिपोर्ट? यहाँ नहीं लिखी जाएगी। जाओ, यहाँ से।”

काजल ने शांति से कहा, “कानूनन आप रिपोर्ट लिखने से मना नहीं कर सकते।”

एसएचओ ने मेज पर हाथ पटकते हुए कहा, “मैं यहाँ का कानून हूँ! कहा न, जाओ यहाँ से, वरना अंदर कर दूँगा।”

काजल चुपचाप उठीं और बाहर आ गईं। एसएचओ और थाने में मौजूद सिपाही हँस रहे थे। उन्हें लगा कि उन्होंने डीएम को डराकर भगा दिया।

लेकिन वे गलत थे।

थाने से कुछ दूर आकर काजल रुकीं। उन्होंने अपना मोबाइल फोन निकाला। उनकी उंगलियाँ तेजी से चलीं। एक फोन एसपी को, एक आईजी को, और एक सीधा कमिश्नर ऑफिस। उन्होंने सिर्फ एक वाक्य कहा, “मैं डीएम काजल वर्मा बोल रही हूँ। मुझे तुरंत पुलिस फोर्स चाहिए। लोकेशन भेज रही हूँ।”

पंद्रह मिनट बाद, थाने के बाहर का नजारा बदल गया। एक के बाद एक, लाल बत्ती लगी गाड़ियाँ सायरन बजाती हुई आकर रुकीं। पूरे जिले की टॉप पुलिस फोर्स, रैपिड एक्शन फोर्स के जवानों के साथ थाने को घेर चुकी थी। एसएचओ और अमित सिंह, जो अभी-अभी चाय पीकर ठहाके लगा रहे थे, खिड़की से यह नजारा देखकर पत्थर बन गए।

एक काली गाड़ी सबसे आखिर में आकर रुकी। उसका दरवाजा खुला। और उसमें से वही साधारण कपड़ों वाली औरत उतरी। लेकिन आज उसके चलने का अंदाज, उसकी आँखों की दृढ़ता और उसके चेहरे का तेज कुछ और ही था। जैसे ही वह गाड़ी से उतरी, जिले के एसपी ने आगे बढ़कर उन्हें सैल्यूट किया। “मैम!”

काजल ने कोई जवाब नहीं दिया। वह सीधे थाने के दरवाजे की ओर बढ़ीं। उनके पीछे-पीछे आला अधिकारियों की फौज चल रही थी। थाने के अंदर घुसते ही उन्होंने अपनी नजरें सीधे अमित सिंह पर गड़ाईं, जिसका चेहरा अब सफेद पड़ चुका था।

काजल की आवाज पूरे थाने में गूंजी। अब वह एक आम औरत की आवाज नहीं थी, वह जिले के सबसे बड़े अधिकारी की आवाज थी। “दरोगा अमित सिंह! आपने अपनी वर्दी का, अपने पद का और कानून का अपमान किया है। आपने एक नागरिक पर हाथ उठाया, दुकानदारों से हफ्ता वसूली की और अपने पद का दुरुपयोग किया। आपको तत्काल प्रभाव से सस्पेंड किया जाता है।”

फिर उनकी नजरें एसएचओ पर पड़ीं। “और आप, एसएचओ साहब! आपने एक पीड़ित की रिपोर्ट लिखने से इनकार किया और एक भ्रष्ट अधिकारी का साथ दिया। आप भी सस्पेंड किए जाते हैं। इन दोनों के खिलाफ विभागीय जांच बैठेगी और आपराधिक मुकदमा भी चलेगा।”

सुरक्षा टीम ने तुरंत अमित सिंह और एसएचओ को हिरासत में ले लिया। उनकी वर्दी पर लगे सितारे अब बेजान लग रहे थे। कल तक जो खुद को कानून समझते थे, आज कानून के शिकंजे में थे।

बाजार के जिन लोगों ने यह खबर सुनी, वे खुशी से झूम उठे। बूढ़े जलेबी वाले चाचा की आँखों में खुशी के आँसू थे। काजल वर्मा ने साबित कर दिया था कि जब एक शासक न्यायप्रिय और साहसी हो, तो कोई भी अत्याचारी, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, बच नहीं सकता।

उस दिन के बाद, उस जिले में वर्दी का मतलब खौफ नहीं, बल्कि सुरक्षा बन गया। और एक जलेबी वाले को मारे गए थप्पड़ की गूंज वाकई इतनी दूर तक गई कि उसने पूरे सिस्टम को हिलाकर रख दिया।