प्यास जिसने एक साम्राज्य बना दिया
जून की तपती दोपहर थी। शहर की सड़कों पर गर्मी अपने चरम पर थी। लोग एसी गाड़ियों में बैठे थे, लेकिन एक बुजुर्ग, जिनके कपड़े पसीने और धूल से सने थे, धीमे-धीमे कदमों से शहर के सबसे बड़े फाइव स्टार होटल के गेट तक पहुंचे। उम्र करीब 78 साल, पैर कांप रहे थे, आंखों में थकान और चेहरे पर धूप की तपीश का निशान। हाथ में बस एक छोटा सा कपड़े का झोला।
होटल के गार्ड ने गेट खोला, लेकिन हैरानी से देखा। बुजुर्ग सीढ़ियां चढ़ते हुए रिसेप्शन की तरफ बढ़े। एसी की ठंडी हवा उनके चेहरे से टकराई, लेकिन होटल के अंदर मौजूद स्टाफ के चेहरे पर घृणा और घमंड की हवा थी।
“मैं पानी पी सकता हूं क्या?” बुजुर्ग ने धीमे स्वर में पूछा।
रिसेप्शन पर बैठे दो युवा लड़के आपस में देखकर हंस दिए। एक वेटर, स्मार्ट यूनिफार्म में, बोला, “यहां पानी मांगने आए हो बाबा? यह होटल है, धर्मशाला नहीं!” बुजुर्ग कुछ नहीं बोले, बस अपनी जगह खड़े रहे। होठ सूखे थे, पर आंखों में अब भी नम्रता थी। वेटर ने फिर ताना मारा, “चलिए जाइए यहां से, नाटक करने की जरूरत नहीं!”
एक महिला स्टाफ ने फुसफुसाया, “कहीं किसी अमीर गेस्ट से पैसे मांगने ना लगे ये।” और फिर वही वेटर आगे बढ़ा और बुजुर्ग को जोर से धक्का देकर बाहर कर दिया। “निकलिए साहब, गर्मी से बचना है तो छाया में बैठिए, होटल में नहीं।” गेट बंद हुआ। बुजुर्ग सीढ़ियां उतरने लगे, हर कदम जैसे उनकी आत्मा पर गिर रहा था। भीड़ थी, लोग देख रहे थे, पर कोई आगे नहीं आया। इंसानियत वहां भी खामोश थी।
तभी एक लुक्सरी ब्लैक BMW होटल के सामने आकर रुकी। ड्राइवर सीट से उतरा एक शानदार सूट पहना व्यक्ति, उम्र करीब 40। आंखों में पहचान की चिंगारी और चेहरे पर बेचैनी। उसने सीढ़ियों पर उतरते बुजुर्ग को देखा और चीख पड़ा, “बाबा! बाबा आप यहां… इतने सालों बाद इस हाल में?”
वह दौड़ते हुए बुजुर्ग के पैरों में गिर पड़ा। बुजुर्ग की आंखें अब भी धूप से झुकी थीं, लेकिन चेहरे पर हल्की सी झलक आई। “तू अर्जुन?”
“हां बाबा, मैं अर्जुन! मैंने आपको हर जगह ढूंढा… और आज आप इस हालत में मिले।”
अब होटल का स्टाफ भागकर बाहर आया। जिस वेटर ने धक्का दिया था उसका मुंह खुला का खुला रह गया। होटल के मैनेजर ने अर्जुन को पहचान लिया, “सर, आप…” अर्जुन ने गुस्से से उसकी तरफ देखा, “तुमने इन्हें बाहर फेंका? तुम्हें पता भी है ये कौन हैं?”
होटल का फ्रंट पोर्च अब सन्नाटे से भर गया था। जहां कुछ मिनट पहले हंसी और तिरस्कार की गूंज थी, अब वहां सिर्फ झुकी निगाहें और पसीने से गीले चेहरे थे। अर्जुन मेहरा, देश की सबसे प्रसिद्ध होटल चेन का मालिक, अपनी अरमानी सूट में अपने गुरु बाबा के पैरों में बैठा था। उस इंसान के सामने जिसे कुछ देर पहले ही भिखारी कहकर बाहर धकेल दिया गया था।
“बाबा, आपने बताया क्यों नहीं कि आप आ रहे हैं?” अर्जुन की आवाज कांप रही थी।
बुजुर्ग ने बस एक फीकी सी मुस्कान दी, “कहता तो क्या कहता बेटा? अब तो चेहरा भी पहचान में नहीं आता।”
वेटर जो धक्का देकर बाहर निकाला था, अब पीछे खींच रहा था। चेहरा सफेद पड़ चुका था। होटल का मैनेजर सामने खड़ा था, कुछ कहने की हिम्मत नहीं बची थी। अर्जुन ने धीरे से बाबा को सहारा देकर बैठाया। “इनके बिना मैं आज कुछ नहीं होता। जो आज मैं हूं, इसी इंसान की दी हुई शिक्षा, संस्कार और संघर्ष की वजह से हूं। मैं एक गरीब लड़का था, सड़क पर किताबें बेचता था। लोग हंसते थे, कोई घूरता था। पर एक इंसान ने मुझे उठाकर कहा, तू सिर्फ रोटी नहीं, सोच भी बदल सकता है। वही इंसान आज प्यासा है और हमने पानी देने से मना कर दिया।”
बाबा की आंखों से आंसू गिरने लगे। “तेरी तरक्की देखी थी अर्जुन, पर आज तेरा समाज देख रहा हूं जो तूने बनाया। तू तो वही है, लेकिन तेरे बनाए लोग क्या वही हैं?”
पूरा स्टाफ चुप। वेटर के हाथ कांपने लगे। मैनेजर ने सर झुका लिया। “तुम सब ने सिर्फ एक आदमी को नहीं निकाला, तुमने मेरी पूरी पहचान, मेरी जड़, मेरी आत्मा को बाहर धकेल दिया।” अर्जुन की आंखों से अब आंसू थम नहीं रहे थे।
“माफ करिए बाबा, मैं असफल हूं अगर मेरे होटल में इंसानियत नहीं बची।”
तभी अर्जुन ने सबके सामने घोषणा की, “आज से इस होटल और मेरी हर ब्रांच में एक ‘काइंडनेस काउंटर’ होगा, जहां कोई भी आए, उसे पानी, खाना और इज्जत मिलेगी, बिना कपड़ों से पहचाने, बिना नाम पूछे। और जो लोग आज इस अपमान के जिम्मेदार हैं, वह अब इस परिवार का हिस्सा नहीं रह सकते।” वेटर को वहीं सस्पेंड कर दिया गया।
होटल के स्टाफ में कुछ लोग रोने लगे। किसी ने अर्जुन के पास आकर कहा, “सर, हमें अब आपकी तरह बनना है। इंसान से ऊपर इंसानियत।”
बाबा ने अर्जुन का हाथ पकड़ा और कहा, “बेटा, पानी मांगने वाला जब खुद बरसात दे जाए, तो समझ लेना उसने तुम्हें मिट्टी नहीं, जड़ें दी हैं।”
अगले दिन देश भर की मीडिया में एक ही खबर थी। होटल में बुजुर्ग को निकाला गया, पर निकला मालिक का गुरु। हर न्यूज़ चैनल पर वह वीडियो वायरल था जिसमें अर्जुन मेहरा अपने बाबा के पैरों में बैठकर रो रहा था। टीवी स्टूडियो में बहस चल रही थी – क्या बड़े शहरों में अब सम्मान सिर्फ कपड़ों से तय होता है? क्या होटल ब्रांड्स को इंसानियत को भी मापदंड में शामिल करना चाहिए?
सोशल मीडिया पर लोग दो टूक बोल रहे थे, “वह सिर्फ पानी मांगने आए थे और हम उन्हें इंसान तक नहीं समझ पाए।” #KindnessCounter ट्रेंड करने लगा।
उधर होटल के बाहर अब एक छोटा सा स्टॉल लगाया गया था – ‘इंसानियत सेवा केंद्र’। जहां कोई भी आ सकता था और बिना किसी नाम, जात या रूप के खाना, पानी और आराम पा सकता था।
बाबा को अर्जुन ने खुद अपने बंगले में ले जाया। एक सादा कमरा, लेकिन उसमें वही दीवारें थीं जिन पर अर्जुन की जिंदगी की कहानी टंगी थी। पुरानी तस्वीरें, किताबें और वही थैला जिसमें बाबा ने उसे पहली बार स्कूल भेजा था।
एक शाम अर्जुन ने पूछा, “बाबा, आप इतने साल कहां थे?”
बाबा बोले, “तेरे उड़ान के बाद मैं बस देख रहा था, तू ऊंचाई पर पहुंचेगा, पर जमीन देखता रहेगा या नहीं। कल जब तू मेरे पैरों में गिरा, तो समझ गया मेरी तपस्या सफल हुई।”
अर्जुन की आंखें नम थीं। “आपने ही तो सिखाया था, पैसे से होटल बनता है, पर दिल से संस्कृति।”
होटल चेन की सभी ब्रांच में अब एक नई नीति लागू हो गई थी। हर होटल के प्रवेश द्वार पर एक पोस्टर लगा था –
“अगर कोई सिर्फ पानी मांगता है, तो शायद वह आपकी जड़ से जुड़ा हुआ हो।”
साफ यूनिफार्म पहने वेटर अब पहले मुस्कुरा कर स्वागत करते और पूछते, “भूख लगी है क्या बाबा?”
एक दिन एक रिपोर्टर ने अर्जुन से पूछा, “आप अरबों की कंपनी के मालिक हैं, लेकिन आप एक बूढ़े आदमी के लिए रो पड़े?”
अर्जुन ने जवाब दिया, “क्योंकि वह बूढ़ा आदमी मेरी दौलत नहीं, मेरी सोच का जन्मदाता था। अगर मैंने उसे खो दिया होता, तो सब कुछ होते हुए भी मैं खोखला होता।”
बाबा अब रोज शाम को होटल की लॉबी में आते। कभी किसी बच्चे को कहानी सुनाते, कभी किसी गरीब को एक कप चाय पिलाते। वे अब फाउंडर मेंटर बन चुके थे। और अर्जुन ने एक नई किताब लॉन्च की – “एक प्यास जिसने साम्राज्य खड़ा किया।”
समय बीतता गया। बाबा अब होटल की सबसे सादगी भरी लेकिन सबसे प्रभावशाली उपस्थिति बन चुके थे। वे किसी कुर्सी पर नहीं बैठे थे, पर सबकी नजरों में उनका स्थान सबसे ऊंचा था।
एक दिन एक युवा लड़का, ट्रेनी वेटर, उनसे बोला, “बाबा, आप जैसे लोगों की वजह से तो यह होटल इतना बड़ा बना, लेकिन आप कभी शोपीस नहीं बने। क्यों?”
बाबा ने हंसते हुए कहा, “शोपीस सजावट के लिए होते हैं। मैं तो वह धागा हूं जिसने यह पूरी चादर बुनी है। मुझे दीवार पर नहीं, दिल में जगह चाहिए।”
“हर प्यासे को भिखारी मत समझो, क्योंकि कभी-कभी वही इंसान आपकी जड़ों को सींच कर गया होता है। इज्जत मांगने से नहीं मिलती, वह मिलती है जब आप दूसरों को बिना वजह इज्जत देना सीख जाते हैं।”
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