सतीश भाई को सभी बहुत प्यार करते थे। “वी लव यू सतीश भाई, यू विल बी मिस,” हर कोई यही कह रहा था। उनके जाने का दुख सबको था, लेकिन सबको पता था कि सतीश जी हमेशा कहते थे कि “हंसते-हंसते जाना है।”

उनके अंतिम विदाई में भी माहौल ग़मगीन होने के बजाय मुस्कान से भरा था। लोग उन्हें याद कर रहे थे, उनकी बातें कर रहे थे, और हंसते-हंसते उन्हें विदा कर रहे थे। किसी ने कहा, “इसको हटाओ भाई, चलो आप तो सुनो,” और सबने उनकी यादों को साझा किया।

उनकी जिंदगी के सफर को सबने दिल से स्वीकार किया। “हो गया, उनको हंसते-हंसते विदा करना था,” एक शख्स ने कहा। सभी ने सतीश जी की तरह ही सोचते हुए, उन्हें मुस्कुराते हुए आखरी विदाई दी।

रास्ते खुले थे, सबने उन्हें जाने दिया, लेकिन दिल में उनकी याद हमेशा रहेगी। “जगह दे,” किसी ने भावुकता में कहा, और सभी ने उन्हें अपनी यादों में जगह दी।

आखिर में, जब किसी ने पूछा, “सर, क्या कहना चाहेंगे आदमी के बारे में?” तो जवाब आया, “तुम लोग दीपक हो, दीपक।” सतीश भाई सबके लिए एक रौशनी थे, और उनकी मुस्कान हमेशा सबको रोशन करती रहेगी।